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भारत का सम्पूर्ण इतिहास 🔥| Complete Indian History in Hindi in 75+Chapters
Indian History in Hindi के इस पृष्ठ में आप पायेंगे भारत का इतिहास ( Indian History in Hindi ) नोट्स, जो कि हिन्दी में हैं जिन्हें हमने 4 भागों में बांटा है, प्राचीन इतिहास, मध्यकालीन इतिहास, आधुनिक भारत और स्वतन्त्रता आंदोलन |
ये सभी विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए बेहद उपयोगी हैं, नोट्स को बनाने का मकसद तेजी से रिविज़न के साथ साथ सभी उपयोगी तथ्यों को भी रखना है ताकि कोई भी तथ्य ना छूटे ये इन सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए उपयोगी है जैसे – UPSC Exam, UPPSC, SSC CGL, उम्मीद है भारतीय इतिहास ( Indian History in Hindi ) के ये नोट्स आपके लिए उपयोगी साबित होंगे ! कई सारे इतिहास के नोट्स Download के लिए भी उपलब्ध हैं, शीघ्र ही और भी नोट्स उपलब्ध होंगे !
प्राचीन भारत का इतिहास | Ancient History in Hindi
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मध्यकालीन इतिहास | Medieval History in Hindi
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आधुनिक भारत का इतिहास | Modern History in Hindi
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स्वाधीनता संग्राम
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Download PDF Indian History in Hindi
- (56 Facts PDF) प्राचीन इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण तथ्य
- NCERT History eBook in Hindi – Download PDF
- प्राचीन इतिहास | Handwritten Notes Hindi PDF Download
इतिहास के महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर (History in Hindi)
- साहित्यिक स्रोतों से सबसे ज्यादा पूछे जाने वाले 20 सवाल
- क्या 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन अहिंसक था ?
- भारत में 19वीं शताब्दी के जनजातीय विद्रोह के क्या कारण थे ?
- जैन दर्शन के अनुसार सृष्टि की रचना एवं पालन पोषण कैसे हुआ है ?
- वैदिक सभ्यता में धर्म और ऋत से क्या तात्पर्य था ?
75+ History Important Questions in Hindi
- कैबिनेट मिशन को प्रधानमंत्री एटली ने भारत कब भेजा ? उत्तर- 19 फरवरी,1946
- बीजक में किसका उपदेश संग्रहित है? उत्तर- कबीर का
- कैपटन हाकिन्स किस मुगल शासक के दरबार में आया था ? उत्तर- जहाँगीर
- भारत आने वाले प्रथम यूरोपीय कौन था? उत्तर- पुर्तगाल
- भारत में रेलवे की शुरुआत कब हुई थी? उत्तर- 1853 ई. में
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रथम महिला अध्यक्षा कौन थीं? उत्तर- एनी बेसेंट
- भारत के संविधान का पिता किसे कहा जाता है? उत्तर- डॉ. बी. आर अम्बेडकर
- प्रसिद्ध विरुपाक्ष मंदिर कहाँ स्थित है? उत्तर- हम्पी में
- सिक्किम भारत का हिस्सा कब बना? उत्तर- 1975 में
- राज्य पुर्नगठन आयोग की स्थापना कब हुआ?उत्तर- 1953 में
- हड़प्पा सभ्यता किस युग की सभ्यता है? उत्तर- कांस्य युग
- सिंधु घाटी के निवासियों को किस धातु का ज्ञान नहीं था? उत्तर– लोहा, note :- उन्हें सोना,चांदी और तांबा धातु का ज्ञान था
- इण्डिका की रचना किसने की? उत्तर- मैगस्थनीज ने
- गुप्तों की काल में कौन चीनी यात्री भारत आया? उत्तर- फाह्यान
- महाभारत की रचना किसने की ? उत्तर- वेद व्यास
- महाभारत का युद्ध कितने दिन चला? उत्तर– 18 दिन तक
- कुरु वंश की राजधानी कहाँ थी ? उत्तर- हस्तिनापुर में
- त्रिपिटक साहित्य संबंधित है? उत्तर– बौद्ध धर्म से
- तृतीय बौद्ध संगीति किसके शासन काल में हुआ? उत्तर- अशोक के समय में
- आईन-ए-अकबरी’ एवं ‘अकबरनामा’ की रचना किसने की? उत्तर-अबुल फजल
- अकबर का वित्तिय मंत्री था? उत्तर- टोडरमल
- पुराणों की संख्या कितनी है?उत्तर- 18
- तम्बाकू का सेवन सबसे पहले किस मुगल सम्राट ने किया? उत्तर-अकबर ने
- पानीपत का प्रथम युद्ध किस वर्ष हुआ था ? उत्तर– 1526 ई. में
- शेख मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह स्थित है? उत्तर- अजमेर में
- अकबर ने किस वर्ष दिन-ए इलाही धर्म चलाया? उत्तर- 1582 ई.
- स्थापत्य काल का सर्वाधिक विकास किसके काल में हुआ? उत्तर- शाहजहाँ के काल में
- विजयनगर सम्राज्य की स्थापना किसने की? उतर- हरिहर और बुक्का ने
- गोपुरम से आप क्या समझते है? उत्तर- मंदिर का प्रवेश द्वारा
- हम्पी नगर किस राज्य से संबंधित है? उत्तर- विजयनगर
- विजयनगर के शासको ने अपने आप को कहा? उत्तर– राय
- तकवन्दी (ननकाना साहिब) किसका जन्म स्थान हैं? उत्तर– नानक का
- उत्तर भारत में भक्ति आंदोलन का आरम्भ किस संत ने शुरू किया?उत्तर- रामानंद
- भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस की स्थापना कब हुई? उत्तर- 1885 में
- राबिया कौन-सी संत थी उत्तर- रहस्यवादी
- इब्नबतूता की देश का यात्री था? उत्तर– मोरक्को
- अलबरुद्दीन किसके साथ भारत आया था ? उत्तर- महमूद गजनी
- संथाल विद्रोह का नेता था? उत्तर- सिंद्धु और कान्हू
- दामिन-ए-कोह क्या था?उत्तर– भू-भाग
- स्थायी बंदोबस्त कहा लागू किया गया? उत्तर-बंगाल में
- इंग्लिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना कब हुई?उत्तर- 1600 ई.में
- स्थायी बंदोबस्त किससे संबंधित है? उत्तर– वेलेजली
- संथाल विद्रह कब हुआ था ? उत्तर- 1855 में
- व्यपगत के सिंद्धांत का सम्बन्ध किससे है? उत्तर-लार्ड डलहौजी
- 1857 की क्रांति आरम्भ हुई? उत्तर- 10 मई,1857 से
- बिहार में 1857 की क्रांति का नेता कौन था? उत्तर- कुंवर सिंह
- कलकत्ता में अंग्रेजों की किलेबंद बस्ती का नाम था?उत्तर-फोर्ड विलियन
- गेट वे ऑफ इंडिया का निर्माण कब हुआ? उत्तर-1911 ई. में
- दिल्ली चलो का नारा किसने दिया? उत्तर- सुभाषचन्द्र बोस
- जलियांवाला बाग हत्या कांड कब हुआ? उत्तर- 1919 में
- काला कानून किसे कहा गया ? उत्तर- रोलट एक्ट को
- द्वितीय विश्व युद्ध की घोषणा कब हुई और किसने की? उत्तर-3 सितम्बर,1939 में ब्रिटेन ने जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की
- संविधान सभा की पहली बैठक कब हुई?उत्तर- 9 दिसम्बर,1946 को
- भारतीय संविधान सभा पर हस्ताक्षर कब हुआ?उत्तर- 24 जनवरी,1950 को
- 1917 में रूस में समाजवादी राज्य की स्थापना किसने की? उत्तर- लेलिन ने की
- भारत का प्रथम गृह मंत्री कौन था? उत्तर- सरदार बल्लभ भाई पटेल
- सीमान्त गांधी के नाम से किसे जाना जाता है?उत्तर- ख़ान अब्दुल गफ्फार खाँ को सीमान्त गांधी के नाम से जाना जाता है
- कश्मीर के भारत में विलय पत्र पर किसने हस्ताक्षर किया था? उत्तर- राजा हरीसिंह
- राज्यो से पुनर्गठन आयोग के अश्याक्ष कौन था?उत्तर- न्यामूर्ति फजल अली
- हड़प्पा किस नदी के किनारे स्थित है? उत्तर– रावी नदी के किनारे
- कालीबंगान स्थिति है? उत्तर- राजस्थान में
- पूना समझौता किस वर्ष हुआ? उत्तर- 1932 ई. में
- बिहार में चंपारण सत्या ग्रह कब हुआ? उत्तर- 1917 ई. में
- डांडी किस राज्य में स्थित है? उत्तर- गुजरात में
- 1920 ई. में कौन-सा आंदोलन हुआ? उत्तर- असहयोग आंदोलन
- स्वतंत्र भारत के अंतिम गवर्न जनरल कौन था?उत्तर-सी.राजगोपालाचारी
- मुस्लिम लीग की स्थापना किस वर्ष हुई? उत्तर- 1906 में
- भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम कब पारित हुआ? उत्तर- 18 जुलाई 1947 को
- भारतीय संविधान के अनुसार सम्प्रभुता निहित है?उत्तर- राष्ट्रपति में
- भारतीय पुरातत्व के पिता किसे कहा जाता है? उत्तर- अलेक्जेंडर कनिघम
- यूरोप का समुंद्र गुप्त कौन था? उत्तर- नेपोलियन
- दिल्ली से दौलताबाद किस शासक ने अपनी राजधानी परिवर्तित की ?उत्तर- मुहम्मद तुगलक
- विजयनगर सम्राज्य द्वारा असैनिक और सैनिक सेवा के लिए दिया जाने वाला भूमिदान की कहलाता है? उत्तर– अमरभ
नेहरू के निर्धन के बाद उनका राजनीतिक उत्तराधिकारी कों बना?उत्तर- लालबहादुर शास्त्री
भारत में आपातकाल कब लगाया गयाउत्तर- 25 जून,1975 को, भारत में संविधान के किस अनुच्छेद के तहत वित्तिय आपातकाल लगाया गयाउत्तर- अध्यादेश-360, भारतीय इतिहास की शुरुआत कब हुई.
भारत का इतिहास कई सहस्र वर्ष पुराना माना जाता है । 65,000 साल पहले, पहले आधुनिक मनुष्य, या होमो सेपियन्स, अफ्रीका से भारतीय उपमहाद्वीप में पहुँचे थे, जहाँ वे पहले विकसित हुए थे। सबसे पुराना ज्ञात आधुनिक मानव आज से लगभग 30,000 वर्ष पहले दक्षिण एशिया में रहता है।
भारत का इतिहास कितने प्रकार का है?
प्राचीन इतिहास, मध्यकालीन इतिहास, आधुनिक भारत और स्वतन्त्रता आंदोलन
Sources – Wikipedia
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18 Comments
Yah post competitive exam ki preparation karne walo ke liye bahut helful hai…
Thanks for the information sir
Verry good tripst by study center
Sir ji apne jo topic select kiye hai wo elsare reet me available hai isliye… NCERT ki aisi koi Book jisme prachin Bharat, Madhyakalin bharat,nd aadhunik bharat ki Book ya fir PDF Hindi medium me ho to PLZZ send me sir ji…. Or tino ki NCERT me Alag alag book milti ho to muje jarur bataye 🙏🙏
Indian history
Nice Post of history INDIA
Sir ji apne jo topic select kiye hai wo elsare reet me available hai isliye… NCERT ki aisi koi Book jisme prachin Bharat, Madhyakalin bharat,nd aadhunik bharat ki Book ya fir PDF Hindi medium me ho to PLZZ send me sir ji…. Or tino ki NCERT me Alag alag book milti ho to muje jarur bataye 🙏🙏
Sir ji apne dehli sultanet or bahmni A-Z topic send karo
Nice to meet you sir
Nice post history 👍❤sir
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भारतीय इतिहास पर निबंध (Indian History Essay In Hindi)
भारत एक ऐसा देश है जहां की संस्कृति और सभ्यता के चर्चे देश विदेशों में भी होते हैं। भारत में कई प्रकार के जाति, धर्म, भाषा और संप्रदाय के लोग रहते हैं। इसके बावजूद भी उनके बीच में मौके मौके पर भाईचारा तथा एकता देखी गयी है। भारत की संस्कृति और परंपरा प्राचीन समय से ही लोगों के बीच चर्चा का विषय है।
३) हिंदू धर्म का बदलाव
५) गुप्त साम्राज्य
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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम
भारत की आजादी का इतिहास, 1857 का विद्रोह, स्वतंत्रता संग्राम में गांधीजी का योगदान, स्वतंत्रता संग्राम की समयरेखा.
साल | स्थान | घटना | नायक (स्वतंत्रता सेनानी) |
---|---|---|---|
1857 | बरहमपुर | 19वीं इन्फंट्री के सिपाहियों का राइफल अभ्यास से इंकार। | |
1857 | मेरठ | सैनिक विद्रोह | |
1857 | अंबाला | अंबाला में गिरफ्तारी | |
1857 | बेरकपोर | मंगल पांडे का ब्रिटिश अधिकारियों पर हमला और बाद में मंगल पांडे को फांसी दे दी गयी थी. | मंगल पांडे |
1857 | लखनउ | लखनउ में 48वां विद्रोह | |
1857 | पेशावर | मूल सेना का निरस्त्रीकरण | |
1857 | कानपुर | दूसरी केवलरी का विद्रोह सतीचैरा घाट नरसंहार बीबीघर में महिलाओं और बच्चों का नरंसहार | |
1857 | दिल्ली | बदली-की-सेराई की लड़ाई | |
1857 | झांसी | रानी लक्ष्मीबाई का दत्तक पुत्र के हकों को नकारे जाने के प्रति विरोध प्रदर्शन और हमलावर सेनाओं से झांसी को बचाने का सफल प्रयास | रानी लक्ष्मीबाई |
1857 | मेरठ | सिपाहियों और भीड़ द्वारा 50 यूरोपियों की हत्या | |
1857 | कानपुर | कानपुर की दूसरी लड़ाईः तात्या टोपे का कंपनी की सेना को हराना | तात्या टोपे |
1857 | झेलम | देसी सेना द्वारा ब्रिटिश विरोधी गदर | |
1857 | गुरदासपुर | त्रिम्मू घाट की लड़ाई | |
1858 | कलकत्ता | ईस्ट इंडिया कंपनी का खात्मा | |
1858 | ग्वालियर | ग्वालियर की लड़ाई जिसमें रानी लक्ष्मीबाई ने मराठा बागियों के साथ सिंधिया शासकों के कब्जे से ग्वालियर छुड़ाया | रानी लक्ष्मीबाई |
1858 | झांसी | रानी लक्ष्मीबाई की मौत | रानी लक्ष्मीबाई |
1859 | शिवपुरी | तात्या टोपे कब्जे में और उनकी हत्या | तात्या टोपे |
1876 | महारानी विक्टोरिया भारत की साम्राज्ञी घोषित | ||
1885 | बॉम्बे | ए ओ हयूम द्वारा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का गठन | ए ओ हयूम |
1898 | लॉर्ड कर्जन वायसराय बने | ||
1905 | सूरत | स्वदेशी आंदोलन शुरु | |
1905 | बंगाल | बंगाल का विभाजन | |
1906 | ढाका | ऑल इंडिया मुस्लिम लीग का गठन | आगा खान तृतीय |
1908 | 30 अप्रेलः खुदीराम बोस को फांसी | ||
1908 | मांडले | राजद्रोह के आरोप में तिलक को छह साल की सजा | बाल गंगाधर तिलक |
1909 | मिंटो-मार्ले सुधार या इंडियन काउंसिल एक्ट | ||
1911 | दिल्ली | दिल्ली दरबार आयोजित। बंगाल का विभाजन रद्द | |
1912 | दिल्ली | नई दिल्ली भारत की नई राजधानी बना | |
1912 | दिल्ली | लॉर्ड हार्डिंग की हत्या का दिल्ली साजिश मामला | |
1914 | सेन फ्रांसिसको में गदर पार्टी का गठन | ||
1914 | कोलकाता | कोमारगाता मारु घटना | |
1915 | मुंबई | गोपाल कृष्ण गोखले की मौत | |
1916 | लखनउ | लखनउ एक्ट पर हस्ताक्षर | मोहम्मद अली जिन्ना |
1916 | पुणे | तिलक द्वारा पुणे में पहली इंडियन होम रुल लीग का गठन | बाल गंगाधर तिलक |
1916 | ंमद्रास | एनी बेसेंट द्वारा होम रुल लीग का नेतृत्व | एनी बेसेंट |
1917 | चंपारण | महात्मा गांधी द्वारा बिहार में चंपारण आंदोलन शुरु | महात्मा गांधी |
1917 | राज्य सचिव एडविन शमूएल मोंटेगू द्वारा मोंटेगू घोषणा | ||
1918 | चंपारण | चंपारण अगररिया कानून पास | |
1918 | खेड़ा | खेड़ा सत्याग्रह | |
1918 | भारत में ट्रेड संघ आंदोलन शुरु | ||
1919 | अमृतसर | जलियावाला बाग नरसंहार | |
1919 | लंदन में इंपिरियल लेजिसलेटिव काउंसिल द्वारा ोलेट अधिनियम पास | ||
1919 | खिलाफत आंदोलन शुरु | ||
1920 | तिलक का कांग्रेस डेमोक्रेटिक पार्टी गठन | ||
1920 | असहयोग आंदोलन शुरु | महात्मा गांधी | |
1920 | अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस शुरु | नारायण मल्हार जोशी | |
1920 | कलकत्ता | गांधीजी द्वारा प्रस्ताव पारित जिसमें अंग्रेजों से भारत को अधिराज्य का दर्जा देने को कहा गया | महात्मा गांधी |
1921 | मालाबार | मोपलाह विद्रोह | |
1922 | चैरी चैरा | चैरी चैरा घटना | |
1922 | इलाहबाद | स्वराज पार्टी गठित | सरदार वल्लभ भाई पटेल |
1925 | |||
1925 | काकोरी | काकोरी षडयंत्र | रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खान, चंद्रशेखर आजाद |
1925 | बारडोली | बारडोली सत्याग्रह | वल्लभ भाई पटेल |
1928 | बॉम्बे | बॉम्बे में साइमन कमीशन आया और अखिल भारतीय हड़ताल हुई | |
1928 | लाहौर | लाला लाजपत राय पर पुलिस की ज्यादती और जख्मों के चलते उनकी मौत | लाला लाजपत राय |
1928 | नेहरु रिपोर्ट में भारत के नए डोमिनियन संविधान का प्रस्ताव | मोतीलाल नेहरु | |
1929 | लाहौर | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन आयोजित | पंडित जवाहरलाल नेहरु |
1929 | लाहौर | कैदियों के लिए सुविधाओं की मांग करते हुए भूख हड़ताल करने पर स्वतंत्रता सेनानी जतिंद्रनाथ दास की मौत | जतिंद्र नाथ दास |
1929 | ऑल पार्टी मुस्लिम कांफ्रेंस ने 14 सूत्र सुझाए | मोहम्मद अली जिन्ना | |
1929 | दिल्ली | सेंट्रल लेजिसलेटिव असेंबली में बम फेंका जाना | भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त |
1929 | भारतीय प्रतिनिधियों से मिलने राउंड टेबल कांफ्रेंस की लाॅर्ड इरविन की घोषणा | ||
1929 | लाहौर | जवाहरलाल नेहरु ने भारतीय ध्वज फहराया | |
1930 | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज घोषित किया | ||
1930 | साबरमति आश्रम | दांडी मार्च के साथ सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरु | महात्मा गांधी |
1930 | चिटगांव | चिटगांव शस्त्रागार पर छापा | सूर्य सेन |
1930 | लंदन | साइमन कमीशन की रिपोर्ट पार विचार हेतु लंदन में पहली गोल मेज बैठक | |
1931 | लाहौर | भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी | भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु |
1931 | महात्मा गांधी और लाॅर्ड इरविन द्वारा गांधी इरविन पैक पर दस्तखत | ||
1931 | दूसरी राउंड टेबल बैठक | महात्मा गांधी, सरोजिनी नायडू, मदन मोहन मालवीय, घनश्यामदास बिड़ला, मोहम्मद इकबाल, सर मिर्जा इस्माइल, उसके दत्ता, सर सैयद अली इमाम | |
1932 | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और उसकी सहयोगी संस्थाएं अवैध घोषित | ||
1932 | बिना ट्रायल के गांधी विद्रोह के आरोप में गिरफ्तार | महात्मा गांधी | |
1932 | ब्रिटिश प्रधानमंत्री रामसे मैकडोनाल्ड ने भारतीय अल्पसंख्यकों के लिए अलग निर्वाचक मंडल बनाकर 'सांप्रदायिक अवार्ड' घोषित किया | ||
1932 | गांधीजी ने अछूत जातियों की हालत में सुधार हेतु आमरण अनषन किया जो छह दिन चला | महात्मा गांधी | |
1932 | लंदन | तीसरी राउंड टेबल कांफ्रेंस | |
1933 | अछूतों के कल्याण की ओर ध्यान की मांग पर गांधीजी ने उपवास किया | महात्मा गांधी | |
1934 | गांधीजी ने खुद को सक्रिय राजनीति से अलग किया और सकारात्मक कार्यक्रमों के लिए समर्पित किया | महात्मा गांधी | |
1935 | भारत सराकर अधिनियम 1935 पास | ||
1937 | भारत सराकर अधिनियम 1935 के तहत भारत प्रांतीय चुनाव हुए | ||
1938 | हरीपुरा | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का हरीपुरा अधिवेशन हुआ | |
1938 | सुभाष चंद्र बोस को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया | सुभाष चंद्र बोस | |
1939 | जबलपुर | त्रिपुरी अधिवेशन हुआ | |
1939 | ब्रिटिश सरकार कह नीतियों के विरोध में कांग्रेस मंत्रियों का इस्तीफा। सुभाष चंद्र बोस ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया | सुभाष चंद्र बोस | |
1939 | कांग्रेस मंत्रियों के त्यागपत्र के जश्न में मुस्लिम लीग ने उद्धार दिवस मनाया | मोहम्मद अली जिन्ना | |
1940 | मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए अलग राज्य की मांग करते हुए लाहौर अधिवेशन | ||
1940 | लाॅर्ड लिंलीथगो ने अगस्त आॅफर 1940 बनाया जिसमें भारतीयों को उनका संविधान बनाने का अधिकार दिया गया | ||
1940 | वर्धा | कांग्रेस कार्यकारिणी समिति ने अगस्त आॅफर ठुकराया और एकल सत्याग्रह शुरु किया | |
1941 | सुभाष चंद्र बोस ने भारत छोड़ा | सुभाष चंद्र बोस | |
1942 | भारत छोड़ो आंदोलन या अगस्त आंदोलन शुरु | ||
1942 | चर्चिल ने क्रिप्स आंदोलन शुरु किया | ||
1942 | बाॅम्बे | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भारत छोड़ो प्रस्ताव शुरु किया | |
1942 | गांधीजी और कांग्रेस के अन्य बड़े नेता गिरफ्तार | महात्मा गांधी | |
1942 | आजाद हिंद फौज का गठन | सुभाष चंद्र बोस | |
1943 | पोर्ट ब्लेयर | सेल्युलर जेल को भारत की अस्थाई सरकार का मुख्यालय घोषित किया गया | |
1943 | सुभाष चंद्र बोस ने भारत की अस्थाई सरकार के गठन की घोषणा की | सुभाष चंद्र बोस | |
1943 | कराची | मुस्लिम लीग के कराची अधिवेशन में बांटो और राज करो नारा अपनाया गया | |
1944 | मोरेंग | जापान के सहयोग से आजाद हिंद फौज के कर्नल शौकत मलिक ने इस क्षेत्र में अंग्रेजों को हराया | कर्नल शौकत अली |
1944 | शिमला | भारतीय राजनीतिक नेताओं और वायसराय आर्किबाल्ड वेवलीन के बीच शिमला सम्मेलन | |
1946 | दिल्ली | केबिनेट मिशन प्लान पास | |
1946 | दिल्ली | संविधान सभा का गठन | |
1946 | राॅयल इंडियन नेवी गदर | ||
1946 | दिल्ली | नई दिल्ली में केबिनेट मिशन का आगमन | |
1946 | लाहौर | जवाहरलाल नेहरु ने कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभाला | जवाहरलाल नेहरु |
1946 | भारत की अंतरिम सरकार बनी | ||
1946 | दिल्ली | भारत की संविधान सभा का पहला सम्मेलन | |
1947 | ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली ने ब्रिटिश भारत को ब्रिटिश सरकार का पूर्ण सहयोग देने की घोषणा की | ||
1947 | लार्ड माउंटबेटन भारत के वायसराय नियुक्त और स्वतंत्र भारत के पहले गवर्नर जनरल बने | ||
1947 | 15 अगस्त 1947 को भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के तहत भारत के भारत और पाकिस्तान में विभाजन हेतु माउंटबेटन प्लान बनाया गया |
Question and Answer forum for K12 Students
Hindi Essay (Hindi Nibandh) | 100 विषयों पर हिंदी निबंध लेखन – Essays in Hindi on 100 Topics
हिंदी निबंध: हिंदी हमारी राष्ट्रीय भाषा है। हमारे हिंदी भाषा कौशल को सीखना और सुधारना भारत के अधिकांश स्थानों में सेवा करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। स्कूली दिनों से ही हम हिंदी भाषा सीखते थे। कुछ स्कूल और कॉलेज हिंदी के अतिरिक्त बोर्ड और निबंध बोर्ड में निबंध लेखन का आयोजन करते हैं, छात्रों को बोर्ड परीक्षा में हिंदी निबंध लिखने की आवश्यकता होती है।
निबंध – Nibandh In Hindi – Hindi Essay Topics
- सच्चा धर्म पर निबंध – (True Religion Essay)
- राष्ट्र निर्माण में युवाओं का योगदान निबंध – (Role Of Youth In Nation Building Essay)
- अतिवृष्टि पर निबंध – (Flood Essay)
- राष्ट्र निर्माण में शिक्षक की भूमिका पर निबंध – (Role Of Teacher In Nation Building Essay)
- नक्सलवाद पर निबंध – (Naxalism In India Essay)
- साहित्य समाज का दर्पण है हिंदी निबंध – (Literature And Society Essay)
- नशे की दुष्प्रवृत्ति निबंध – (Drug Abuse Essay)
- मन के हारे हार है मन के जीते जीत पर निबंध – (It is the Mind which Wins and Defeats Essay)
- एक राष्ट्र एक कर : जी०एस०टी० ”जी० एस०टी० निबंध – (Gst One Nation One Tax Essay)
- युवा पर निबंध – (Youth Essay)
- अक्षय ऊर्जा : सम्भावनाएँ और नीतियाँ निबंध – (Renewable Sources Of Energy Essay)
- मूल्य-वृदधि की समस्या निबंध – (Price Rise Essay)
- परहित सरिस धर्म नहिं भाई निबंध – (Philanthropy Essay)
- पर्वतीय यात्रा पर निबंध – (Parvatiya Yatra Essay)
- असंतुलित लिंगानुपात निबंध – (Sex Ratio Essay)
- मनोरंजन के आधुनिक साधन पर निबंध – (Means Of Entertainment Essay)
- मेट्रो रेल पर निबंध – (Metro Rail Essay)
- दूरदर्शन पर निबंध – (Importance Of Doordarshan Essay)
- दूरदर्शन और युवावर्ग पर निबंध – (Doordarshan Essay)
- बस्ते का बढ़ता बोझ पर निबंध – (Baste Ka Badhta Bojh Essay)
- महानगरीय जीवन पर निबंध – (Metropolitan Life Essay)
- दहेज नारी शक्ति का अपमान है पे निबंध – (Dowry Problem Essay)
- सुरीला राजस्थान निबंध – (Folklore Of Rajasthan Essay)
- राजस्थान में जल संकट पर निबंध – (Water Scarcity In Rajasthan Essay)
- खुला शौच मुक्त गाँव पर निबंध – (Khule Me Soch Mukt Gaon Par Essay)
- रंगीला राजस्थान पर निबंध – (Rangila Rajasthan Essay)
- राजस्थान के लोकगीत पर निबंध – (Competition Of Rajasthani Folk Essay)
- मानसिक सुख और सन्तोष निबंध – (Happiness Essay)
- मेरे जीवन का लक्ष्य पर निबंध नंबर – (My Aim In Life Essay)
- राजस्थान में पर्यटन पर निबंध – (Tourist Places Of Rajasthan Essay)
- नर हो न निराश करो मन को पर निबंध – (Nar Ho Na Nirash Karo Man Ko Essay)
- राजस्थान के प्रमुख लोक देवता पर निबंध – (The Major Folk Deities Of Rajasthan Essay)
- देशप्रेम पर निबंध – (Patriotism Essay)
- पढ़ें बेटियाँ, बढ़ें बेटियाँ योजना यूपी में लागू निबंध – (Read Daughters, Grow Daughters Essay)
- सत्संगति का महत्व पर निबंध – (Satsangati Ka Mahatva Nibandh)
- सिनेमा और समाज पर निबंध – (Cinema And Society Essay)
- विपत्ति कसौटी जे कसे ते ही साँचे मीत पर निबंध – (Vipatti Kasauti Je Kase Soi Sache Meet Essay)
- लड़का लड़की एक समान पर निबंध – (Ladka Ladki Ek Saman Essay)
- विज्ञापन के प्रभाव – (Paragraph Speech On Vigyapan Ke Prabhav Essay)
- रेलवे प्लेटफार्म का दृश्य पर निबंध – (Railway Platform Ka Drishya Essay)
- समाचार-पत्र का महत्त्व पर निबंध – (Importance Of Newspaper Essay)
- समाचार-पत्रों से लाभ पर निबंध – (Samachar Patr Ke Labh Essay)
- समाचार पत्र पर निबंध (Newspaper Essay in Hindi)
- व्यायाम का महत्व निबंध – (Importance Of Exercise Essay)
- विद्यार्थी जीवन पर निबंध – (Student Life Essay)
- विद्यार्थी और राजनीति पर निबंध – (Students And Politics Essay)
- विद्यार्थी और अनुशासन पर निबंध – (Vidyarthi Aur Anushasan Essay)
- मेरा प्रिय त्यौहार निबंध – (My Favorite Festival Essay)
- मेरा प्रिय पुस्तक पर निबंध – (My Favourite Book Essay)
- पुस्तक मेला पर निबंध – (Book Fair Essay)
- मेरा प्रिय खिलाड़ी निबंध हिंदी में – (My Favorite Player Essay)
- सर्वधर्म समभाव निबंध – (All Religions Are Equal Essay)
- शिक्षा में खेलकूद का स्थान निबंध – (Shiksha Mein Khel Ka Mahatva Essay)a
- खेल का महत्व पर निबंध – (Importance Of Sports Essay)
- क्रिकेट पर निबंध – (Cricket Essay)
- ट्वेन्टी-20 क्रिकेट पर निबंध – (T20 Cricket Essay)
- मेरा प्रिय खेल-क्रिकेट पर निबंध – (My Favorite Game Cricket Essay)
- पुस्तकालय पर निबंध – (Library Essay)
- सूचना प्रौद्योगिकी और मानव कल्याण निबंध – (Information Technology Essay)
- कंप्यूटर और टी.वी. का प्रभाव निबंध – (Computer Aur Tv Essay)
- कंप्यूटर की उपयोगिता पर निबंध – (Computer Ki Upyogita Essay)
- कंप्यूटर शिक्षा पर निबंध – (Computer Education Essay)
- कंप्यूटर के लाभ पर निबंध – (Computer Ke Labh Essay)
- इंटरनेट पर निबंध – (Internet Essay)
- विज्ञान: वरदान या अभिशाप पर निबंध – (Science Essay)
- शिक्षा का गिरता स्तर पर निबंध – (Falling Price Level Of Education Essay)
- विज्ञान के गुण और दोष पर निबंध – (Advantages And Disadvantages Of Science Essay)
- विद्यालय में स्वास्थ्य शिक्षा निबंध – (Health Education Essay)
- विद्यालय का वार्षिकोत्सव पर निबंध – (Anniversary Of The School Essay)
- विज्ञान के वरदान पर निबंध – (The Gift Of Science Essays)
- विज्ञान के चमत्कार पर निबंध (Wonder Of Science Essay in Hindi)
- विकास पथ पर भारत निबंध – (Development Of India Essay)
- कम्प्यूटर : आधुनिक यन्त्र–पुरुष – (Computer Essay)
- मोबाइल फोन पर निबंध (Mobile Phone Essay)
- मेरी अविस्मरणीय यात्रा पर निबंध – (My Unforgettable Trip Essay)
- मंगल मिशन (मॉम) पर निबंध – (Mars Mission Essay)
- विज्ञान की अद्भुत खोज कंप्यूटर पर निबंध – (Vigyan Ki Khoj Kampyootar Essay)
- भारत का उज्जवल भविष्य पर निबंध – (Freedom Is Our Birthright Essay)
- सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा निबंध इन हिंदी – (Sare Jahan Se Achha Hindustan Hamara Essay)
- डिजिटल इंडिया पर निबंध (Essay on Digital India)
- भारतीय संस्कृति पर निबंध – (India Culture Essay)
- राष्ट्रभाषा हिन्दी निबंध – (National Language Hindi Essay)
- भारत में जल संकट निबंध – (Water Crisis In India Essay)
- कौशल विकास योजना पर निबंध – (Skill India Essay)
- हमारा प्यारा भारत वर्ष पर निबंध – (Mera Pyara Bharat Varsh Essay)
- अनेकता में एकता : भारत की विशेषता – (Unity In Diversity Essay)
- महंगाई की समस्या पर निबन्ध – (Problem Of Inflation Essay)
- महंगाई पर निबंध – (Mehangai Par Nibandh)
- आरक्षण : देश के लिए वरदान या अभिशाप निबंध – (Reservation System Essay)
- मेक इन इंडिया पर निबंध (Make In India Essay In Hindi)
- ग्रामीण समाज की समस्याएं पर निबंध – (Problems Of Rural Society Essay)
- मेरे सपनों का भारत पर निबंध – (India Of My Dreams Essay)
- भारतीय राजनीति में जातिवाद पर निबंध – (Caste And Politics In India Essay)
- भारतीय नारी पर निबंध – (Indian Woman Essay)
- आधुनिक नारी पर निबंध – (Modern Women Essay)
- भारतीय समाज में नारी का स्थान निबंध – (Women’s Role In Modern Society Essay)
- चुनाव पर निबंध – (Election Essay)
- चुनाव स्थल के दृश्य का वर्णन निबन्ध – (An Election Booth Essay)
- पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं पर निबंध – (Dependence Essay)
- परमाणु शक्ति और भारत हिंदी निंबध – (Nuclear Energy Essay)
- यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो हिंदी निबंध – (If I were the Prime Minister Essay)
- आजादी के 70 साल निबंध – (India ofter 70 Years Of Independence Essay)
- भारतीय कृषि पर निबंध – (Indian Farmer Essay)
- संचार के साधन पर निबंध – (Means Of Communication Essay)
- भारत में दूरसंचार क्रांति हिंदी में निबंध – (Telecom Revolution In India Essay)
- दूरसंचार में क्रांति निबंध – (Revolution In Telecommunication Essay)
- राष्ट्रीय एकता का महत्व पर निबंध (Importance Of National Integration)
- भारत की ऋतुएँ पर निबंध – (Seasons In India Essay)
- भारत में खेलों का भविष्य पर निबंध – (Future Of Sports Essay)
- किसी खेल (मैच) का आँखों देखा वर्णन पर निबंध – (Kisi Match Ka Aankhon Dekha Varnan Essay)
- राजनीति में अपराधीकरण पर निबंध – (Criminalization Of Indian Politics Essay)
- प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर हिन्दी निबंध – (Narendra Modi Essay)
- बाल मजदूरी पर निबंध – (Child Labour Essay)
- भ्रष्टाचार पर निबंध (Corruption Essay in Hindi)
- महिला सशक्तिकरण पर निबंध – (Women Empowerment Essay)
- बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर निबंध (Beti Bachao Beti Padhao)
- गरीबी पर निबंध (Poverty Essay in Hindi)
- स्वच्छ भारत अभियान पर निबंध (Swachh Bharat Abhiyan Essay)
- बाल विवाह एक अभिशाप पर निबंध – (Child Marriage Essay)
- राष्ट्रीय एकीकरण पर निबंध – (Importance of National Integration Essay)
- आतंकवाद पर निबंध (Terrorism Essay in hindi)
- सड़क सुरक्षा पर निबंध (Road Safety Essay in Hindi)
- बढ़ती भौतिकता घटते मानवीय मूल्य पर निबंध – (Increasing Materialism Reducing Human Values Essay)
- गंगा की सफाई देश की भलाई पर निबंध – (The Good Of The Country: Cleaning The Ganges Essay)
- सत्संगति पर निबंध – (Satsangati Essay)
- महिलाओं की समाज में भूमिका पर निबंध – (Women’s Role In Society Today Essay)
- यातायात के नियम पर निबंध – (Traffic Safety Essay)
- बेटी बचाओ पर निबंध – (Beti Bachao Essay)
- सिनेमा या चलचित्र पर निबंध – (Cinema Essay In Hindi)
- परहित सरिस धरम नहिं भाई पर निबंध – (Parhit Saris Dharam Nahi Bhai Essay)
- पेड़-पौधे का महत्व निबंध – (The Importance Of Trees Essay)
- वर्तमान शिक्षा प्रणाली – (Modern Education System Essay)
- महिला शिक्षा पर निबंध (Women Education Essay In Hindi)
- महिलाओं की समाज में भूमिका पर निबंध (Women’s Role In Society Essay In Hindi)
- यदि मैं प्रधानाचार्य होता पर निबंध – (If I Was The Principal Essay)
- बेरोजगारी पर निबंध (Unemployment Essay)
- शिक्षित बेरोजगारी की समस्या निबंध – (Problem Of Educated Unemployment Essay)
- बेरोजगारी समस्या और समाधान पर निबंध – (Unemployment Problem And Solution Essay)
- दहेज़ प्रथा पर निबंध (Dowry System Essay in Hindi)
- जनसँख्या पर निबंध – (Population Essay)
- श्रम का महत्त्व निबंध – (Importance Of Labour Essay)
- जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणाम पर निबंध – (Problem Of Increasing Population Essay)
- भ्रष्टाचार : समस्या और निवारण निबंध – (Corruption Problem And Solution Essay)
- मीडिया और सामाजिक उत्तरदायित्व निबंध – (Social Responsibility Of Media Essay)
- हमारे जीवन में मोबाइल फोन का महत्व पर निबंध – (Importance Of Mobile Phones Essay In Our Life)
- विश्व में अत्याधिक जनसंख्या पर निबंध – (Overpopulation in World Essay)
- भारत में बेरोजगारी की समस्या पर निबंध – (Problem Of Unemployment In India Essay)
- गणतंत्र दिवस पर निबंध – (Republic Day Essay)
- भारत के गाँव पर निबंध – (Indian Village Essay)
- गणतंत्र दिवस परेड पर निबंध – (Republic Day of India Essay)
- गणतंत्र दिवस के महत्व पर निबंध – (2020 – Republic Day Essay)
- महात्मा गांधी पर निबंध (Mahatma Gandhi Essay)
- ए.पी.जे. अब्दुल कलाम पर निबंध – (Dr. A.P.J. Abdul Kalam Essay)
- परिवार नियोजन पर निबंध – (Family Planning In India Essay)
- मेरा सच्चा मित्र पर निबंध – (My Best Friend Essay)
- अनुशासन पर निबंध (Discipline Essay)
- देश के प्रति मेरे कर्त्तव्य पर निबंध – (My Duty Towards My Country Essay)
- समय का सदुपयोग पर निबंध – (Samay Ka Sadupyog Essay)
- नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों पर निबंध (Rights And Responsibilities Of Citizens Essay In Hindi)
- ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध – (Global Warming Essay)
- जल जीवन का आधार निबंध – (Jal Jeevan Ka Aadhar Essay)
- जल ही जीवन है निबंध – (Water Is Life Essay)
- प्रदूषण की समस्या और समाधान पर लघु निबंध – (Pollution Problem And Solution Essay)
- प्रकृति संरक्षण पर निबंध (Conservation of Nature Essay In Hindi)
- वन जीवन का आधार निबंध – (Forest Essay)
- पर्यावरण बचाओ पर निबंध (Environment Essay)
- पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध (Environmental Pollution Essay in Hindi)
- पर्यावरण सुरक्षा पर निबंध (Environment Protection Essay In Hindi)
- बढ़ते वाहन घटता जीवन पर निबंध – (Vehicle Pollution Essay)
- योग पर निबंध (Yoga Essay)
- मिलावटी खाद्य पदार्थ और स्वास्थ्य पर निबंध – (Adulterated Foods And Health Essay)
- प्रकृति निबंध – (Nature Essay In Hindi)
- वर्षा ऋतु पर निबंध – (Rainy Season Essay)
- वसंत ऋतु पर निबंध – (Spring Season Essay)
- बरसात का एक दिन पर निबंध – (Barsat Ka Din Essay)
- अभ्यास का महत्व पर निबंध – (Importance Of Practice Essay)
- स्वास्थ्य ही धन है पर निबंध – (Health Is Wealth Essay)
- महाकवि तुलसीदास का जीवन परिचय निबंध – (Tulsidas Essay)
- मेरा प्रिय कवि निबंध – (My Favourite Poet Essay)
- मेरी प्रिय पुस्तक पर निबंध – (My Favorite Book Essay)
- कबीरदास पर निबन्ध – (Kabirdas Essay)
इसलिए, यह जानना और समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि विषय के बारे में संक्षिप्त और कुरकुरा लाइनों के साथ एक आदर्श हिंदी निबन्ध कैसे लिखें। साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं। तो, छात्र आसानी से स्कूल और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए हिंदी में निबन्ध कैसे लिखें, इसकी तैयारी कर सकते हैं। इसके अलावा, आप हिंदी निबंध लेखन की संरचना, हिंदी में एक प्रभावी निबंध लिखने के लिए टिप्स आदि के बारे में कुछ विस्तृत जानकारी भी प्राप्त कर सकते हैं। ठीक है, आइए हिंदी निबन्ध के विवरण में गोता लगाएँ।
हिंदी निबंध लेखन – स्कूल और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए हिंदी में निबन्ध कैसे लिखें?
प्रभावी निबंध लिखने के लिए उस विषय के बारे में बहुत अभ्यास और गहन ज्ञान की आवश्यकता होती है जिसे आपने निबंध लेखन प्रतियोगिता या बोर्ड परीक्षा के लिए चुना है। छात्रों को वर्तमान में हो रही स्थितियों और हिंदी में निबंध लिखने से पहले विषय के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं के बारे में जानना चाहिए। हिंदी में पावरफुल निबन्ध लिखने के लिए सभी को कुछ प्रमुख नियमों और युक्तियों का पालन करना होगा।
हिंदी निबन्ध लिखने के लिए आप सभी को जो प्राथमिक कदम उठाने चाहिए उनमें से एक सही विषय का चयन करना है। इस स्थिति में आपकी सहायता करने के लिए, हमने सभी प्रकार के हिंदी निबंध विषयों पर शोध किया है और नीचे सूचीबद्ध किया है। एक बार जब हम सही विषय चुन लेते हैं तो विषय के बारे में सभी सामान्य और तथ्यों को एकत्र करते हैं और अपने पाठकों को संलग्न करने के लिए उन्हें अपने निबंध में लिखते हैं।
तथ्य आपके पाठकों को अंत तक आपके निबंध से चिपके रहेंगे। इसलिए, हिंदी में एक निबंध लिखते समय मुख्य बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करें और किसी प्रतियोगिता या बोर्ड या प्रतिस्पर्धी जैसी परीक्षाओं में अच्छा स्कोर करें। ये हिंदी निबंध विषय पहली कक्षा से 10 वीं कक्षा तक के सभी कक्षा के छात्रों के लिए उपयोगी हैं। तो, उनका सही ढंग से उपयोग करें और हिंदी भाषा में एक परिपूर्ण निबंध बनाएं।
हिंदी भाषा में दीर्घ और लघु निबंध विषयों की सूची
हिंदी निबन्ध विषयों और उदाहरणों की निम्न सूची को विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया गया है जैसे कि प्रौद्योगिकी, पर्यावरण, सामान्य चीजें, अवसर, खेल, खेल, स्कूली शिक्षा, और बहुत कुछ। बस अपने पसंदीदा हिंदी निबंध विषयों पर क्लिक करें और विषय पर निबंध के लघु और लंबे रूपों के साथ विषय के बारे में पूरी जानकारी आसानी से प्राप्त करें।
विषय के बारे में समग्र जानकारी एकत्रित करने के बाद, अपनी लाइनें लागू करने का समय और हिंदी में एक प्रभावी निबन्ध लिखने के लिए। यहाँ प्रचलित सभी विषयों की जाँच करें और किसी भी प्रकार की प्रतियोगिताओं या परीक्षाओं का प्रयास करने से पहले जितना संभव हो उतना अभ्यास करें।
हिंदी निबंधों की संरचना
उपरोक्त छवि आपको हिंदी निबन्ध की संरचना के बारे में प्रदर्शित करती है और आपको निबन्ध को हिन्दी में प्रभावी ढंग से रचने के बारे में कुछ विचार देती है। यदि आप स्कूल या कॉलेजों में निबंध लेखन प्रतियोगिता में किसी भी विषय को लिखते समय निबंध के इन हिस्सों का पालन करते हैं तो आप निश्चित रूप से इसमें पुरस्कार जीतेंगे।
इस संरचना को बनाए रखने से निबंध विषयों का अभ्यास करने से छात्रों को विषय पर ध्यान केंद्रित करने और विषय के बारे में छोटी और कुरकुरी लाइनें लिखने में मदद मिलती है। इसलिए, यहां संकलित सूची में से अपने पसंदीदा या दिलचस्प निबंध विषय को हिंदी में चुनें और निबंध की इस मूल संरचना का अनुसरण करके एक निबंध लिखें।
हिंदी में एक सही निबंध लिखने के लिए याद रखने वाले मुख्य बिंदु
अपने पाठकों को अपने हिंदी निबंधों के साथ संलग्न करने के लिए, आपको हिंदी में एक प्रभावी निबंध लिखते समय कुछ सामान्य नियमों का पालन करना चाहिए। कुछ युक्तियाँ और नियम इस प्रकार हैं:
- अपना हिंदी निबंध विषय / विषय दिए गए विकल्पों में से समझदारी से चुनें।
- अब उन सभी बिंदुओं को याद करें, जो निबंध लिखने शुरू करने से पहले विषय के बारे में एक विचार रखते हैं।
- पहला भाग: परिचय
- दूसरा भाग: विषय का शारीरिक / विस्तार विवरण
- तीसरा भाग: निष्कर्ष / अंतिम शब्द
- एक निबंध लिखते समय सुनिश्चित करें कि आप एक सरल भाषा और शब्दों का उपयोग करते हैं जो विषय के अनुकूल हैं और एक बात याद रखें, वाक्यों को जटिल न बनाएं,
- जानकारी के हर नए टुकड़े के लिए निबंध लेखन के दौरान एक नए पैराग्राफ के साथ इसे शुरू करें।
- अपने पाठकों को आकर्षित करने या उत्साहित करने के लिए जहाँ कहीं भी संभव हो, कुछ मुहावरे या कविताएँ जोड़ें और अपने हिंदी निबंध के साथ संलग्न रहें।
- विषय या विषय को बीच में या निबंध में जारी रखने से न चूकें।
- यदि आप संक्षेप में हिंदी निबंध लिख रहे हैं तो इसे 200-250 शब्दों में समाप्त किया जाना चाहिए। यदि यह लंबा है, तो इसे 400-500 शब्दों में समाप्त करें।
- महत्वपूर्ण हिंदी निबंध विषयों का अभ्यास करते समय इन सभी युक्तियों और बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए, आप निश्चित रूप से किसी भी प्रतियोगी परीक्षाओं में कुरकुरा और सही निबंध लिख सकते हैं या फिर सीबीएसई, आईसीएसई जैसी बोर्ड परीक्षाओं में।
हिंदी निबंध लेखन पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
1. मैं अपने हिंदी निबंध लेखन कौशल में सुधार कैसे कर सकता हूं? अपने हिंदी निबंध लेखन कौशल में सुधार करने के सर्वोत्तम तरीकों में से एक किताबों और समाचार पत्रों को पढ़ना और हिंदी में कुछ जानकारीपूर्ण श्रृंखलाओं को देखना है। ये चीजें आपकी हिंदी शब्दावली में वृद्धि करेंगी और आपको हिंदी में एक प्रेरक निबंध लिखने में मदद करेंगी।
2. CBSE, ICSE बोर्ड परीक्षा के लिए हिंदी निबंध लिखने में कितना समय देना चाहिए? हिंदी बोर्ड परीक्षा में एक प्रभावी निबंध लिखने पर 20-30 का खर्च पर्याप्त है। क्योंकि परीक्षा हॉल में हर मिनट बहुत महत्वपूर्ण है। इसलिए, सभी वर्गों के लिए समय बनाए रखना महत्वपूर्ण है। परीक्षा से पहले सभी हिंदी निबन्ध विषयों से पहले अभ्यास करें और परीक्षा में निबंध लेखन पर खर्च करने का समय निर्धारित करें।
3. हिंदी में निबंध के लिए 200-250 शब्द पर्याप्त हैं? 200-250 शब्दों वाले हिंदी निबंध किसी भी स्थिति के लिए बहुत अधिक हैं। इसके अलावा, पाठक केवल आसानी से पढ़ने और उनसे जुड़ने के लिए लघु निबंधों में अधिक रुचि दिखाते हैं।
4. मुझे छात्रों के लिए सर्वश्रेष्ठ औपचारिक और अनौपचारिक हिंदी निबंध विषय कहां मिल सकते हैं? आप हमारे पेज से कक्षा 1 से 10 तक के छात्रों के लिए हिंदी में विभिन्न सामान्य और विशिष्ट प्रकार के निबंध विषय प्राप्त कर सकते हैं। आप स्कूलों और कॉलेजों में प्रतियोगिताओं, परीक्षाओं और भाषणों के लिए हिंदी में इन छोटे और लंबे निबंधों का उपयोग कर सकते हैं।
5. हिंदी परीक्षाओं में प्रभावशाली निबंध लिखने के कुछ तरीके क्या हैं? हिंदी में प्रभावी और प्रभावशाली निबंध लिखने के लिए, किसी को इसमें शानदार तरीके से काम करना चाहिए। उसके लिए, आपको इन बिंदुओं का पालन करना चाहिए और सभी प्रकार की परीक्षाओं में एक परिपूर्ण हिंदी निबंध की रचना करनी चाहिए:
- एक पंच-लाइन की शुरुआत।
- बहुत सारे विशेषणों का उपयोग करें।
- रचनात्मक सोचें।
- कठिन शब्दों के प्रयोग से बचें।
- आंकड़े, वास्तविक समय के उदाहरण, प्रलेखित जानकारी दें।
- सिफारिशों के साथ निष्कर्ष निकालें।
- निष्कर्ष के साथ पंचलाइन को जोड़ना।
निष्कर्ष हमने एक टीम के रूप में हिंदी निबन्ध विषय पर पूरी तरह से शोध किया और इस पृष्ठ पर कुछ मुख्य महत्वपूर्ण विषयों को सूचीबद्ध किया। हमने इन हिंदी निबंध लेखन विषयों को उन छात्रों के लिए एकत्र किया है जो निबंध प्रतियोगिता या प्रतियोगी या बोर्ड परीक्षाओं में भाग ले रहे हैं। तो, हम आशा करते हैं कि आपको यहाँ पर सूची से हिंदी में अपना आवश्यक निबंध विषय मिल गया होगा।
यदि आपको हिंदी भाषा पर निबंध के बारे में अधिक जानकारी की आवश्यकता है, तो संरचना, हिंदी में निबन्ध लेखन के लिए टिप्स, हमारी साइट LearnCram.com पर जाएँ। इसके अलावा, आप हमारी वेबसाइट से अंग्रेजी में एक प्रभावी निबंध लेखन विषय प्राप्त कर सकते हैं, इसलिए इसे अंग्रेजी और हिंदी निबंध विषयों पर अपडेट प्राप्त करने के लिए बुकमार्क करें।
आधुनिक भारत का इतिहास Modern History of India in Hindi
आज के इस लेख में हम आपको आधुनिक भारत का इतिहास (Modern History of India in Hindi) बताएँगे। भारतीय इतिहास काफी ज्यादा समृद्ध है और अन्य देशों के मुकाबले भारतीय इतिहास काफी ज्यादा विस्तृत भी है। इस लेख को विद्यार्थी एक निबंध के रूप में भी परीक्षा में लिख सकते हैं।
Table of Content
प्राचीन भारत (Ancient India)
पाषाण युग, सिंधु घाटी सभ्यता , वेदिक भारत, महा जनपद, मौर्य काल और गुप्त काल, भारतीय प्राचीन इतिहास का ही हिस्सा हैं। यह खण्ड अन्य सभी खंडों का आधार माना जाता है।
मध्यकालीन भारत (Medieval India)
पढ़ें : मध्यकालीन भारत का इतिहास (पूर्ण)
पाल साम्राज्य और राष्ट्र कूट साम्राज्य इसके प्रमुख अंग है। भारत में इस्लाम का आगमन इसी काल के दौरान हुआ था। मुगलों की शुरुआत से लेकर अंत तक इसी काल में हुई थी।
आधुनिक भारत इतिहास (Modern History of India)
आधुनिक भारतीय इतिहास मुगलों के समापन से लेकर इंदिरा गांधी के शासन काल तक को माना जा सकता है। कई विद्वानों का यह भी मानना है कि आधुनिक भारतीय इतिहास भारत की आजादी पर खत्म हो जाता है।
इसी खण्ड के दौरान भारत पर सबसे अधिक समय तक राज करने वाला साम्राज्य, मुगल साम्राज्य अपने आस्तित्व से बाहर हुआ था। हालांकि सत्ता से तो वह काफी पहले ही निकल चुका था।
भारतीय आधुनिक इतिहास की प्रमुख घटनाएं (Main Incidents Of Indian Modern History)
ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना (arrival of east india company) .
पहले इसे जॉन कम्पनी के नाम से जाना जाता था लेकिन बाद में यह ईस्ट इंडिया कंपनी कहलाई थी। जॉन वाट्स इस कम्पनी के संस्थापक थे और उन्होने ही इस कंपनी के लिए व्यापार करने की इजाजत, ब्रिटेन की महारानी से ली थी।
मुगलों का अन्त (End of Mughals)
मुगलों ने भारत के मध्यकालीन इतिहास खण्ड में सत्ता खो दी थी, लेकिन आखिरी मुगल बादशाह रहे बहादुर शाह जफर की मृत्यु भारतीय आधुनिक इतिहास खण्ड के दौरान हुई। विशाल मुगल साम्राज्य के अंतिम बादशाह का देहांत बर्मा की जेलों में हुआ जहां उन्हे अंग्रेजो द्वारा कैद किया गया था, और उनके उत्तराधिकारीयों को उन्ही की नजरों के सामने मौत के घाट उतार दिया गया था।
आजादी की पहली लड़ाई (First war of independence)
आजादी की पहली लड़ाई को “1857 की क्रांति” के नाम से भी जाना जाता है। यह लड़ाई अलग अलग सैन्य दलों और किसान आंदोलन के मोर्चों को मिलाकर बनाई गई थी।
गौरतलब है कि ईस्ट इंडिया कम्पनी के भारत को अधीन करने के उपरान्त सबसे अधिक असंतोष किसानों और सैन्य दलों में ही था। किसानों और सैन्य दलों ने ही इस आंदोलन को खड़ा किया था। हालांकि बाद में कई सारे क्रांतिकारी इस आंदोलन में जुड़ते चले गए।
1857 की क्रांति की नींव 1853 में रखी गई थी। उस दौरान यह अफवाह फैला दी गई थी राइफल के कारतूस पर सुअर और गायों की चर्बी लगाई जाती है। गौरतलब है कि राइफल और कारतुस को चलाने से पहले उसे मूह से खोलना पड़ता था, जिस कारण यह हिंदू और मुस्लिम दोनों ही धर्म के भारतीय सैनिकों को बुरा लगा।
1857 की क्रांति का यह सैन्य कारण था। वहीं दूसरा कारण जो इस क्रांति से जुड़ा है वह यह कि किसानों पर ब्रिटिश सरकार के लगानों का बोझ काफी ज्यादा बढ़ गया था और वे काफी समय से इस चिंगारी को दबा रहे थे।
इस क्रांति के प्रमुख चेहरे, मंगल पांडे , नाना साहेब, बेगम हजरत महल , तात्या टोपे , वीर कुंवर सिंह, अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर, रानी लक्ष्मी बाई , लियाकत अली, गजाधर सिंह और खान बहादुर जैसे महत्वपूर्ण और वीर नेता थे।
भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस का निर्माण (Formation of Indian National Congress)
भारतीय कॉंग्रेस का गठन भारतीय आधुनिक इतिहास के प्रमुख चरणों में से एक है। भारतीय कॉंग्रेस ने आगे जाकर भारत की आजादी में एक महत्वपूर्ण किरदार निभाया, हालांकि यह भारतीय कॉंग्रेस का शुरुआती मकसद नहीं था।
भारतीय कॉंग्रेस का गठन ए ओ ह्यूम द्वारा किया गया था। उन्होने भारतीय कॉंग्रेस का निर्माण, ब्रिटिश सरकार के साथ मिलकर भारतीय लोगों के लिए बेहतर रणनीति बनाने के लिए किया था।
कॉंग्रेस के शुरुआती दौर में कॉंग्रेस के पास केवल 17 सदस्य थे। कॉंग्रेस का पहला अधिवेशन मुंबई में हुआ था जिसकी अध्यक्षता व्योमेश चंद्र बनर्जी द्वारा की गई थी।
सूरत अधिवेशन (Surat Split)
गौरतलब है कि 26 सितंबर 1907 को यह अधिवेशन ताप्ती नदी के किनारे पर रखा गया था। हर अधिवेशन की तरह ही इस अधिवेशन के लिए भी अध्यक्ष का चुनाव कराया गया, जहां से इस घटना क्रम की शुरुआत हुई। गौरतलब है कि स्वराज्य को पाने के लिए कराए जा रहे इस अधिवेशन के कारण कॉंग्रेस दो धड़ों में बंट गई।
दरअसल गरम दल के उग्रवादियों ने सूरत अधिवेशन का अध्यक्ष लोकमान्य तिलक को बनाने की मांग की थी लेकिन इसके उलट उदारवादी दल ने डॉक्टर राम बिहारी घोष ने इस अधिवेशन का अध्यक्ष बना दिया।
गांधी का आगमन (Arrival Of Mahatma Gandhi)
महात्मा गांधी का भारतीय राजनीति में आगमन भारतीय आधुनिक इतिहास के प्रमुख चरणों में से एक है। महात्मा गांधी पहले इंग्लैंड मे थे और उसके बाद वे दक्षिण अफ्रीका गए।
दक्षिण अफ्रीका में उन्होने काफी ज्यादा संघर्ष किया और उस संघर्ष के उपरान्त वे भारत में आए। जब गांधी भारत लौटकर आये तब उनकी उम्र 46 वर्ष थी और साल 1915 था। उस समय महात्मा गांधी के राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले थे।
महात्मा गांधी ने भारतीय राजनीति का प्रमुख नेता बनने से पहले एक वर्ष तक भारत का अध्यन किया। महात्मा गांधी जी ने इस दौरान किसी भी प्रकार का आंदोलन नहीं किया न ही वे किसी मंच पर भाषण देने के लिए चढ़े।
लेकिन 1915 के बाद 1916 में गांधी जी ने साबरमती आश्रम को स्थापित किया और पूरे भारत में भ्रमण करने लगे। उन्होने पहली बार मदन मोहन मालवीय द्वारा स्थापित बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के मंच से भाषण दिया जो कि पूरे देश में आग की तरह फैल गया।
महात्मा गांधी का एकमात्र लक्ष्य पूर्ण स्वराज्य था, जो कि आगे चलकर कॉंग्रेस पार्टी का भी लक्ष्य बना और महात्मा गांधी कॉंग्रेस के प्रतीक बन गए।
मुस्लिम लीग का गठन (Formation of Muslim league)
मुस्लिम लीग की स्थापना 30 दिसंबर, 1906 को ढाका में की गई थी। गौरतलब है की ढाका भी उस समय भारत का ही हिस्सा था। मुस्लिम लीग का शुरुआती नाम आल इंडिया मुस्लिम लीग था जो कि बाद में मुस्लिम लीग हो गया था। मुस्लिम लीग के प्रमुख नेताओं में मोहम्मद अली जिन्ना, ख्वाजा सलीमुल्लाह और आगा खाँ शामिल हैं।
खिलाफत आंदोलन (Khilafat Movement)
पढ़ें : खिलाफत आंदोलन का इतिहास
असहयोग आंदोलन (Non co-operation Movement)
पढ़ें: असहयोग आंदोलन पर निबंध
गौरतलब है कि गांधी जी के इस निवेदन पर कई लोग इस आंदोलन से जुड़े। इस आंदोलन के दौरान 396 हड़तालें की गईं जिनमें 30 मार्च 1919 और 6 अप्रैल 1919 की देश व्यापी हड़तालें प्रमुख हैं।
सविनय अवज्ञा आंदोलन (Civil Disobedience Movement)
भारत छोड़ो आंदोलन (quit india movement) .
भारत छोड़ो आंदोलन गांधी जी द्वारा किया गया आखिरी आंदोलन था। यह अंग्रेजों के खिलाफ भी किया गया आखिरी आंदोलन था क्यूंकि इस आंदोलन के उपरांत अंग्रेजों ने भारत छोड़ दिया था।
भारत का विभाजन (Partition of India)
भारतीय संविधान निर्माण (indian constitution) .
भारतीय संविधान निर्माण भारतीय आधुनिक इतिहास की प्रमुख घटनाओं में से एक है। भारतीय संविधान का निर्माण भारत की सुचारू रूप से चलाने के लिए किया गया था। भारतीय संविधान को 2 साल, 11 महीने और 18 दिनों में निर्मित किया गया था। 26 नवंबर को भारतीय संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है।
भारत की आजादी (Independence of India)
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भारत का इतिहास – प्राचीन, मध्यकालीन, आधुनिक और विविध – Important Notes
भारत का इतिहास – प्राचीन, मध्यकालीन, आधुनिक और विविध Important Notes : प्राचीन भारत का इतिहास नोट्स, मध्यकालीन भारत का इतिहास नोट्स, आधुनिक भारत का इतिहास नोट्स विविध ऐतिहासिक महत्वपूर्ण घटनाओं नोट्स यहाँ दिए गए हैं। UPSC, State PCS exams related History notes are available here. NCERT history notes for UPSC in hindi, NCERT history notes for PCS in hindi.
भारत का इतिहास – Important Notes
प्राचीन इतिहास.
- प्रागैतिहासिक काल
- ताम्रपाषाण युग
- सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल
- सिंधु घाटी सभ्यता की नगर योजना का वर्णन करें
- सिंधु घाटी सभ्यता का आर्थिक जीवन
- सिंधु घाटी सभ्यता शिल्प तथा उद्योग धन्धे
- सिंधु घाटी सभ्यता का सामाजिक जीवन
- सिंधु घाटी सभ्यता का धार्मिक जीवन
- सिंधु घाटी सभ्यता का पतन
- वैदिक सभ्यता
- मगध साम्राज्य
- मौर्य साम्राज्य
- मौर्योत्तर कालीन वंश
- गुप्त वंश – गुप्तकाल
- वर्द्धन या वर्धन वंश तथा पुष्यभूति वंश
- विजयनगर साम्राज्य
- चालुक्य वंश (बादामी/वातापी के चालुक्य – मुख्य शाखा)
- राष्ट्रकूट वंश
- चोल साम्राज्य
- कल्याणी के चालुक्य (पश्चिमी चालुक्य)
मध्यकालीन इतिहास
- दिल्ली सल्तनत का परिचय
- मामलूक या गुलाम वंश
- सैयद वंश (1414 – 1451 ई०)
- लोदी वंश (1451 -1526 ई०)
- हुमायूँ (1530-1556 ई०)
- शेरशाह सूरी (1540-45 ई०)
- अकबर (1556-1605 ई०)
- जहाँगीर (1605-1627 ई०)
- शाहजहां (1628-1658 ई०)
- औरंगजेब (1658-1707 ई०)
- सिख साम्राज्य का उदय / सिखों का इतिहास
- आंग्ल-सिख युद्ध
- मराठा साम्राज्य (1640-1749 ई०) (Short Notes)
- पेशवा साम्राज्य (1713-1818 ई०) (Short Notes)
- आंग्ल-मराठा युद्ध (1775-1818 ई०)
- हैदर अली का उत्कर्ष
- आंग्ल-मैसूर युद्ध
आधुनिक इतिहास
- भारत में यूरोपीय कंपनियों का आगमन
- कर्नाटक का युद्ध
- बंगाल का इतिहास
- प्लासी का युद्ध
- प्लासी के युद्ध के उपरान्त बंगाल की स्थिति
- बक्सर का युद्ध
- व्यपगत सिद्धांत या लार्ड डलहौजी की राज्य हड़प नीति या गोद प्रथा निषेध की नीति
- 1857 की क्रांति
- दक्कन विद्रोह
- नील आंदोलन / चंपारण आंदोलन
- बिजोलिया किसान आंदोलन
- अहमदाबाद मिल मजदूर आंदोलन
- खिलाफत आंदोलन
- जलियांवाला बाग हत्याकांड (13 अप्रैल, 1919)
- महात्मा गाँधी जी की जीवनी एवं प्रमुख सत्याग्रह आंदोलनों का संक्षिप्त वर्णन
- भारत के गवर्नर जनरल तथा वायसराय
- रेगुलेटिंग एक्ट 1773
- पिट्स इंडिया एक्ट 1784
- चार्टर एक्ट 1793
- चार्टर एक्ट 1813
- चार्टर एक्ट 1833
- चार्टर एक्ट 1853
- चार्टर एक्ट 1858
- भारत परिषद अधिनियम 1861
- भारत परिषद अधिनियम 1892
- भारत परिषद अधिनियम 1909
- भारत शासन अधिनियम 1919
- रॉलेट एक्ट 1919
- साइमन कमीशन 1927
- भारत शासन अधिनियम 1935
- भारतीय स्वाधीनता अधिनियम 1947
- भारत में हुए प्रमुख युद्ध
- कांग्रेस के महत्वपूर्ण अधिवेशन
- ब्रिटिश राज के दौरान भारत के कुछ प्रमुख समाचार पत्र
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भारतीय इतिहास पर निबंध | Essay on Indian History | Hindi
भारतीय इतिहास पर निबंध | Essay on Indian History in Hindi language!
Essay # 1. भारतीय इतिहास का भौगोलिक पृष्ठभूमि (Geographical Background of Indian History):
हिमालय पर्वत के दक्षिण तथा हिन्द महासागर के उत्तर में स्थित एशिया महाद्वीप का विशाल प्रायद्वीप भारत कहा जाता है । इसका विस्तृत भूखण्ड, जिसे एक उपमहाद्वीप कहा जाता है, आकार में विषम चतुर्भुज जैसा है ।
यह लगभग 2500 मील लम्बा तथा 2000 मील चौड़ा है । रूस को छोड़कर विस्तार में यह समस्त यूरोप के बराबर है । यूनानियों ने इस देश को इण्डिया कहा है तथा मध्यकालीन लेखकों ने इस देश को हिन्द अथवा हिन्दुस्तान के नाम से सम्बोधित किया है ।
भौगोलिक दृष्टि से इसके चार विभाग किये जा सकते हैं:
(i) उत्तर का पर्वतीय प्रदेश:
यह तराई के दलदल वनों से लेकर हिमालय की चोटी तक विस्तृत है जिसमें कश्मीर, काँगड़ा, टेहरी, कुमायूँ तथा सिक्किम के प्रदेश सम्मिलित हैं ।
(ii) गंगा तथा सिन्धु का उत्तरी मैदान:
इस प्रदेश में सिन्धु तथा उसकी सहायक नदियों की घाटियाँ, सिन्ध तथा राजस्थान के रेगिस्तानी भाग तथा गंगा और यमुना द्वारा सिंचित प्रदेश सम्मिलित हैं । देश का यह भाग सर्वाधिक उपजाऊ है । यहाँ आर्य संस्कृति का विकास हुआ । इसे ही ‘आर्यावर्त’ कहा गया है ।
(iii) दक्षिण का पठार:
ADVERTISEMENTS:
इस प्रदेश के अर्न्तगत उत्तर में नर्मदा तथा दक्षिण में कृष्णा और तुड्गभद्रा के बीच का भूभाग आता है ।
(iv) सुदूर दक्षिण के मैदान:
इसमें दक्षिण के लम्बे एवं संकीर्ण समुद्री क्षेत्र सम्मिलित हैं । इस भाग में गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी नदियों के उपजाऊ डेल्टा वाले प्रदेश आते हैं । दक्षिण का पठार तथा सुदूर दक्षिण का प्रदेश मिलकर आधुनिक दक्षिण भारत का निर्माण करते हैं । नर्मदा तथा ताप्ती नदियाँ, विन्धय तथा सतपुड़ा पहाड़ियों और महाकान्तार के वन मिलकर उत्तर भारत को दक्षिण भारत से पृथक् करते हैं ।
इस पृथकता के परिणामस्वरूप दक्षिण भारत आर्य संस्कृति के प्रभाव से मुक्त रहा, जबकि उत्तर भारत में आर्य संस्कृति का विकास हुआ । दक्षिण भारत में एक सर्वथा भिन्न संस्कृति विकसित हुई जिसे ‘द्रविण’ कहा जाता है । इस संस्कृति के अवशेष आज भी दक्षिण में विद्यमान हैं ।
प्रकृति ने भारत को एक विशिष्ट भौगोलिक इकाई प्रदान की है । उत्तर में हिमालय पर्वत एक ऊंची दीवार के समान इसकी रक्षा करता रहा है तथा हिन्द महासागर इस देश को पूर्व, पश्चिम तथा दक्षिण से घेरे हुए हैं । इन प्राकृतिक सीमाओं द्वारा बाह्य आक्रमणों से अधिकांशत: सुरक्षित रहने के कारण भारत देश अपनी एक सर्वथा स्वतन्त्र तथा पृथक् सभ्यता का निर्माण कर सका है ।
भारतीय इतिहास पर यहाँ के भूगोल का गहरा प्रभाव-पड़ा है । यहां के प्रत्येक क्षेत्र की अपनी अलग कहानी है । एक ओर ऊँचे-ऊँचे पर्वत हैं तो दूसरी ओर नीचे के मैदान हैं, एक ओर अत्यन्त उपजाऊ प्रदेश है तो दूसरी ओर विशाल रेगिस्तान है । यहाँ उभरे पठार, घने वन तथा एकान्त घाटियाँ हैं । एक ही साथ कुछ स्थान अत्यन्त उष्ण तथा कुछ अत्यन्त शीतल है ।
विभिन्न भौगोलिक उप-विभागों के कारण यहाँ प्राकृतिक एवं सामाजिक स्तर की विभिन्नतायें दृष्टिगोचर होती हैं । ऐसी विषमता यूरोप में कहीं भी दिखायी नहीं देती हैं । भारत का प्रत्येक भौगोलिक क्षेत्र एक विशिष्ट इकाई के रूप में विकसित हुआ है तथा उसने सदियों तक अपनी विशिष्टता बनाये रखी है ।
इस विशिष्टता के लिये प्रजातीय तथा भाषागत तत्व भी उत्तरदायी रहे हैं । फलस्वरूप सम्पूर्ण देश में राजनैतिक एकता की स्थापना करना कभी भी सम्भव नहीं हो सका है, यद्यपि अनेक समय में इसके लिये महान शासकों द्वारा प्रयास किया जाता रहा है । भारत का इतिहास एक प्रकार से केन्द्रीकरण तथा विकेन्द्रीकरण की प्रवृत्तियों के बीच निरन्तर संघर्ष की कहानी है ।
देश की विशालता तथा विश्व के शेष भागों से इसकी पृथकता ने अनेक महत्वपूर्ण परिणाम उत्पन्न किये है । भारत के अपने आप में एक विशिष्ट भौगोलिक इकाई होने के कारण भारतीय शासकों तथा सेनानायकों ने देश के बाहर साम्राज्य विस्तृत करने अथवा अपनी सैनिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति करने का कभी कोई प्रयास नहीं किया, बल्कि उन्होंने अपने साम्राज्य का विस्तार भारत में ही किया ।
सुदूर दक्षिण के चोलों का उदाहरण इस विषय में एक अपवाद माना जा सकता है । अति प्राचीन समय से यहाँ भिन्न-भिन्न जाति, भाषा, धर्म, वेष-भूषा तथा आचार-विचार के लोग निवास करते हैं । किसी भी बाहरी पर्यवेक्षक को यहाँ की विभिन्नतायें खटक सकती हैं ।
परन्तु इन वाह्य विभिन्नताओं के मध्य एकता दिखाई देती है जिसकी कोई भी उपेक्षा नहीं कर सकता । फलस्वरूप ‘विभिन्नता में एकता’ (Unity in Diversity) भारतीय संस्कृति की सर्वप्रमुख विशेषता बन गयी है । देश की समान प्राकृतिक सीमाओं ने यहाँ के निवासियों के मस्तिष्क में समान मातृभूमि की भावना जागृत किया है । मौलिक एकता का विचार यहाँ सदैव बना रहा तथा इसने देश के राजनैतिक आदर्शों को प्रभावित किया ।
यद्यपि व्यवहार में राजनैतिक एकता बहुत कम स्थापित हुई तथापि राजनैतिक सिद्धान्त के रूप में इसे इतिहास के प्रत्येक युग में देखा जा सकता है । सांस्कृतिक एकता अधिक सुस्पष्ट रही है । भाषा, साहित्य, सामाजिक तथा धार्मिक आदर्श इस एकता के प्रमुख माध्यम रहे हैं । भारतीय इतिहास के अति-प्राचीन काल से ही हमें इस मौलिक एकता के दर्शन होते हैं ।
महाकाव्य तथा पुराणों में इस सम्पूर्ण देश को ‘भारतवर्ष’ अर्थात् भारत का देश तथा यहाँ के निवासियों को ‘भारती’ (भरत की सन्तान) कहा गया है । विष्णुपुराण में स्पष्टत: इस एकता की अभिव्यक्ति हुई है- “समुद्र के उत्तर में तथा हिमालय के दक्षिण में जो स्थित है वह भारत देश है तवा वहाँ की सन्तानें ‘भारती’ हैं ।”
प्राचीन कवियों, लेखकों तथा विचारकों के मस्तिष्क में एकता की यह भावना सदियों पूर्व से ही विद्यमान रही है । कौटिल्यीय अर्थशास्त्र में कहा गया है कि-“हिमालय में लेकर समुद्र तक हजार योजन विस्तार वाला भाग चक्रवर्ती राजा का शासन क्षेत्र होता है ।” यह सर्वभौम सम्राट की अवधारणा भारतीय सम्राटों को अत्यन्त प्राचीन काल से ही प्रेरणा देती रही है ।
भारतीयों की प्राचीन धार्मिक भावनाओं एवं विश्वासों से भी इस सारभूत एकता का परिचय मिलता है । यहाँ की सात-पवित्र नदियाँ- गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु तथा कावेरी, सात पर्वत- महेन्द्र, मलय, सह्या, शक्तिमान, ऋक्ष्य, विन्ध्य तथा पारियात्र तथा सात नगरियों- अयोध्या, मथुरा, माया, काशी, कांची, अवन्ति, पुरी तथा द्वारावती, देश के विभिन्न भागों में बसी हुई होने पर भी देश के सभी निवासियों के लिये समान रूप से श्रद्धेय रही हैं ।
वेद, पुराण, उपनिषद्, रामायण, महाभारत आदि ग्रन्थों का सर्वत्र सम्मान है तथा शिव और विष्णु आदि देवता सर्वत्र पूजे जाते है।, यद्यपि यहीं अनेक भाषायें है तथापि वे सभी संस्कृत से ही उद्भूत अथवा प्रभावित है । धर्मशास्त्रों द्वारा प्रतिपादित सामाजिक व्यवस्था भी सर्वत्र एक ही समान है । वर्णाश्रम, पुरुषार्थ आदि सभी समाजों के आदर्श रहे है ।
प्राचीन समय में जबकि आवागमन के साधनों का अभाव था, पर्यटक, धर्मोपदेशक, तीर्थयात्री, विद्यार्थी आदि इस एकता को स्थापित करने में सहयोग प्रदान करते रहे है । राजसूय, अश्वमेध आदि यज्ञों के अनुष्ठान द्वारा चक्रवर्ती पद के आकांक्षी सम्राटों ने सदैव इस भावना को व्यक्त किया है कि भारत का विशाल भूखण्ड एक है । इस प्रकार विभिन्नता के बीच सारभूत एकता भारतीय संस्कृति की सर्वप्रमुख विशेषता बनी हुई है ।
Essay # 2. भारतीय इतिहास का नृजातीय तत्व (Ethnicity of Indian History):
आदि काल से ही भारत में विभिन्न जातियाँ निवास करती थीं जिनकी भाषाओं, रहन-सहन, सामाजिक-धार्मिक परम्पराओं में भारी विषमता थीं । भारत में नृजातीय तत्वों की पहचान प्रधानत: भौतिक, भाषाई तथा सांस्कृतिक लक्षणों पर आधारित है । नृतत्व विज्ञान मानव की शारीरिक बनावट के आधार पर उसकी प्रजाति का निर्धारण करता है ।
इसके दो प्रधान मानक है:
i. सिर सम्बन्धी
ii. नासिका सम्बन्धी
हमें यह स्वीकार करना पड़ेगा कि प्राचीन जनजाति में लम्बे तथा चौड़े दोनों ही सिरों वाले लोग विद्यमान थे जैसा कि प्राचीन कंकालों एवं कपालों से इंगित होता है । भारत में प्रागैतिहासिक मानवों के प्रस्तरित अवशेष अत्यल्प है किन्तु नृतत्व एवं भाषा विज्ञान की सहायता से यहाँ रहने अथवा आव्रजित होने चाली प्रजातियों तथा भारतीय संस्कृति के विकास में उनके योगदान का अनुमान लगाया गया है । बी॰ एस॰ ने प्रागैतिहासिक अस्थिपंजरों का अध्ययन करने के उपरान्त यहाँ की आदिम जातियों को छ भागों में विभाजित किया है ।
a. नेग्रिटो
b. प्रोटोआस्ट्रलायड
c. मंगोलियन
d. मेडीटरेनियन (भूमध्य सागरीय)
e. पश्चिमी ब्रेक्राइसेफलम
f. नार्डिक ।
भाषाविदों ने उपयुक्त प्रजातियों को चार भाषा समूहों के अन्तर्गत समाहित किया है:
2. द्रविडियन
3. इण्डो-यूरोपीयन
4. तिब्बतो-चायनीज
इनका विवरण इस प्रकार है:
a. नेग्रिटो:
यह भारत की सबसे प्राचीन प्रजाति थी । अब यह स्वतन्त्र रूप से तो कहीं नहीं मिलती लेकिन इसके तत्व अण्डमान निकोवार, कोचीन तथा त्रावनकोर की कदार एवं पलियन जनजातियों, असम के अंगामी नागाओं, पूर्वी बिहार की राजमहल पहाड़ियों में बसने वाली बांगड़ी समूह तथा ईरुला में देखे जा सकते हैं ।
ये नाटे कद, चौड़े सिर, मोटे होंठ, चौड़ी नाक तथा काले रंग के होते हैं । इनकी प्रमुख देन धनुष-बाण की खोज एवं आदिवासियों में मिलने वाले कुछ धार्मिक आचारों तथा दो-चार शब्दों तक सीमित है । हदन का विचार है कि बट-पीपल पूजा, मृतक की आत्मा और गर्भाधान सम्बन्धी मान्यता, स्वर्ग पथ पर दानवों की पहरेदारी सम्बन्धी विश्वास आदि नेग्रिटो प्रभाव से ही प्रचलित हुए ।
b. प्रोटोआस्ट्रलायड:
ये भारतीय जनसंख्या के आधारभूत अंग थे तथा उनकी बोली आस्तिक भाषा समूह की थी । इसका कुछ उदाहरण आदिम कबीलों की मुण्डा बोली में आज तक पाया जाता है । तिन्वेल्ली से प्राप्त प्रागैतिहासिक कपालों में इस प्रजाति के तत्व मिलते है ।
संस्कृत साहित्य में उल्लिखित ‘निषाद’ जाति इसी वर्ग की है । ये छोटे कद, लम्बे सिर, चौड़ी नाक, मोटे होंठ, काली-भूरी आंखें, घुंघराले बाल एवं चाकलेटी त्वचा वाले होते हैं । अधिकांश दक्षिणी भारत तथा मध्य प्रदेश की कुछ जनजातियों में इस प्रजाति के लक्षण पाये जाते हैं ।
इन्हें मृदभाण्ड बनाने तथा कृषि का ज्ञान था । चावल, कदली, नारियल, कपास आदि का ज्ञान था । मृत्यु के बाद आत्मा के अस्तित्व में विश्वास, धार्मिक कार्यों में ताम्बूल, सिन्दूर और हल्दी का प्रयोग, लिंगोपासना, निछावर प्रथा का प्रारम्भ, चन्द्रमा की कलाओं के अनुसार तिथिगणना, नाग, मकर, हाथी, कच्छप आदि की पूजा का प्रारम्भ भारतीय संस्कृति को इस प्रजाति की प्रमुख देन स्वीकार की जाती है ।
c. मंगोलायड:
ये छोटी नाक, मोटे होंठ, लम्बे-चौड़े सिर, पीले अथवा भूरे चेहरे वाले होते थे । इस जनजाति में पूर्व की ओर से भारत में प्रवेश किया । इस प्रजाति के तत्व मीरी, नागा, बोडो, गोंड, भोटिया तथा बंगाल-असम की जातियों में मिलते है । इनकी भाषा चीनी-तिब्बती समूह की भाषा से मिलती है ।
संभवत: मंगोल जाति के प्रभाव से ही भारतीय संस्कृति में तंत्र, वामाचार, शक्ति-पूजा एवं कुछ अश्लील धार्मिक कृत्यों का आविर्भाव हुआ । मोहेनजोदड़ो की कुछ छोटी-छोटी मृण्मूर्तियों तथा कपालों में इस जाति के शारीरिक लक्षण दिखाई देते है ।
d. मेडीटरेनियन (भूमध्य-सागरीय):
इस प्रजाति की तीन शाखायें भारत में आई तथा अन्तर्विवाह के फलस्वरूप परस्पर घुल-मिल गयीं । मिश्रित रूप से उनके वंशज बड़ी संख्या में भारत में विद्यमान हैं । इनकी एक शाखा कन्नड, तमिल, मलयालम भाषा-भाषी प्रदेश में, दूसरी पंजाब तथा गंगा की ऊपरी घाटी में तथा तीसरी सिन्ध, राजस्थान तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पाये जाते हैं ।
सामान्यत: भूमध्यसागरीय प्रजाति का सम्बन्ध द्रविड़ जाति से बताया जाता है । इसके अस्थि-पञ्जर सैन्धव सभ्यता में भी मिलते हैं । ये लम्बे सिर, मध्यम कद, चौड़े मुँह, पतले होंठ, घुँघराले बाल, भूरी त्वचा वाले होते है । इनकी प्रमुख देन है-नौ परिवहन, कृषि एवं व्यापार-वाणिज्य, नागर सभ्यता का सूत्रपात आदि ।
कुछ विद्वान् द्रविडों को ही सैन्धव सभ्यता का निर्माता मानते है किन्तु यह संदिग्ध है । भाषाविदों का विचार है कि भारत में भारोपीय भाषा में जो परिवर्तन दिखाई देता है वह भूमध्यसागरीय अथवा द्रविड़ सम्पर्क का ही परिणाम था ।
e. पश्चिमी ब्रेकाइसेफलस:
इनकी भी तीन शाखायें है- अल्पाइन, डिनारिक तथा आर्मीनायड । यूरोप में अल्पस पर्वत के समीपवर्ती क्षेत्र में रहने के कारण इस प्रजाति को अल्पाइन कहा जाता है । गुजरात, बिहार, उत्तर तथा मध्य भारत में यह प्रजाति पाई जाती है ।
ये चौड़े कन्धे, गहरी छाती, लम्बी व चौड़ी टाँग, चौड़ा सिर, छोटी नाक, पीली त्वचा वाले होते है । इनकी डिनारिक शाखा बंगाल, उड़ीसा, काठियावाड़, कन्नड़ तथा तमिल भाषी क्षेत्र में रहती है । तीसरी शाखा आर्मीनायड है जिसके तत्व मुम्बई के पारसियों में दिखाई देते है । भारतीय संस्कृति को इनका योगदान स्पष्ट नहीं है ।
f. नार्डिक:
इस प्रजाति को आर्यों का प्रतिनिधि तथा हिम सभ्यता का जनक माना जाता है । ये लम्बे सिर, श्वेत व गुलाबी त्वचा, नीली आँखें, सीधे एवं घुंघराले वाली वाले लक्षणों से युक्त थे । सर्वप्रथम यह प्रजाति पंजाब में वसी होगी तथा वहाँ से धीरे- धीरे देश के अन्य भागों में फैल गयी । किन्तु ‘आर्य’ वस्तुत एक भाषिक पद है जिससे भारोपीय मूल की एक भाषा-समूह का पता चलता है । यह नृवंशीय पद नहीं है । अत: आर्य आव्रजन की धारणा भ्रामक है ।
Essay # 3. भारतीय इतिहास के प्रजाति की परिकल्पना (Species Hypothesis of Indian History):
कुछ विद्वानों की मान्यता है कि भारत में सभ्यता का जन्म नहीं हुआ, यहाँ तो बाहर से ही लोग आये और बस गये । संस्कृत भारत की भाषा नहीं थी, यह तो मध्य एशिया से भारत में आई थी । मैक्समूलर तथा सर विलियम जोन्स के अनुसार ‘आर्य’ प्रजाति भारत की नहीं थी । उन्हीं के अनुकरण पर कुछ तथाकथित भारतीय प्रगतिवादी इतिहासकारों ने आयी को घुमक्कड़, तथा आक्रमणकारी सिद्ध कर दिया । द्रविड़ों को भी भूमध्यसागरीय माना गया ।
इलियट स्मिथ का तो कहना कि विश्व की समस्त सभ्यतायें मिस में जन्मा तथा वहीं से अन्य देशों में फैली थीं । किन्तु पश्चिमी विद्वानों द्वारा प्रतिपादित ‘प्रजाति का सिद्धान्त’ अत्यन्त भयावह एवं कुटिलतापूर्ण है । यूरोपीय ईसाई मिशनरियों तथा विद्वानों ने भारत को सदा औपनिवेशिक दृष्टि से देखा ।
यह सिद्ध करने के लिये अनेक तर्क गढ़े गये कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति का अपना कोई वैशिष्ट्य नहीं है तथा ईसा के 2000 वर्ष पहले यूरोप तथा उसके समीपवर्ती क्षेत्र में रहने वाली प्रजातियों ही भारत में विभिन्न मार्गों से आई तथा अपनी सभ्यता स्थापित किया ।
पाश्चात्य विद्वानों ने ‘आर्य’ तथा द्रविड शब्दों को प्रजाति तथा स्थानवाची माना जिसका प्रतिकार भारतीय विद्वानों ने नहीं किया । भारत तथा उसकी संस्कृति को जाति, प्रजाति, नृवंश, स्थान, भाषा, भूगोल आदि के आधार पर विभाजित करने का जो षड्यन्त्र अंग्रेजों ने अपने साम्राज्यवादी उद्देश्यों की पूर्ति के लिये रचा था उसे ही प्रगतिवादी विद्वानों ने प्रायः मान्यता प्रदान कर दी तथा ‘संस्कृति’ शब्द की मूल अवधारणा को ही आयातित स्वीकार कर लिया गया ।
‘आर्य’ तथा ‘द्रविड़’ जैसे शब्द प्रजातिगत न होकर गुणवाचक है और इसी अर्थ में इनका प्रयोग वैदिक साहित्य में हुआ है । ‘आर्य’ का अर्थ है- बौद्धिक प्रतिभा से सम्पन्न श्रेष्ठ पुरुष, स्वामी, विद्वान्, समाज का अग्रणी वर्ग आदि । इसी प्रकार द्रविड़ का अर्थ है- समृद्ध वर्ग, धन-धान्य से सम्पन्न व्यक्ति, ऐश्वर्यवान् पुरुष आदि । अत: इन शब्दों के आधार पर प्राचीन भारत में जाति, प्रजाति, नृवंश आदि की परिकल्पना करना उचित नहीं होगा ।
Essay # 4. भारतीय इतिहास जानने के साधन (Tools to know About Indian History):
भारतवर्ष का प्राचीन इतिहास अत्यन्त गौरवपूर्ण रहा है । परन्तु दुर्भाग्यवश हमें अपने प्राचीन इतिहास के पुनर्निर्माण के लिये उपयोगी सामग्री बहुत कम मिलती है । प्राचीन भारतीय साहित्य में ऐसे ग्रन्थों का प्रायः अभाव-सा है जिन्हें आ आधुनिक परिभाषा में “इतिहास” की संज्ञा दी जाती है ।
यह भी सत्य है कि हमारे यहाँ हेरोडोटस, थ्यूसीडाइडीज अथवा लिवी जैसे इतिहास-लेखक नहीं उत्पन्न हुए जैसा कि यूनान, रोम आदि देशों में हुए । कतिपय पाश्चात्य विद्वानों ने यह आरोपित किया कि प्राचीन भारतीयों में इतिहास-बुद्धि का अभाव था ।
लोएस डिकिंसन (Lowes Dickinson) के अनुसार हिन्दू इतिहासकार नहीं थे । भारत में मनुष्य प्रकृति के समक्ष अपने को तुच्छ और असमर्थ पाता है । फलस्वरूप उसमें नगण्यता तथा जीवन की निस्सारता जन्म लेती है, उसे जीवन की अनुभूति एक भयानक दु:स्वप्न के रूप में होती है और दु:स्वप्न का कोई इतिहास नहीं होता है ।
विन्दरनित्स की मान्यता है कि भारतीयों ने मिथक, आख्यान तथा इतिहास में कभी भी स्पष्ट विभेद नहीं किया और भारत में इतिहास रचना काव्य रचना से ऊपर नहीं उठ सकी । मैकडानल्ड के अनुसार भारतीय साहित्य का दुर्बल पक्ष इतिहास है जिसका यहाँ अस्तित्व ही नहीं था ।
इसी विचारधारा का समर्थन एलफिन्स्टन, फ्लीट, मैक्समूलर, वी. ए स्मिथ जैसे विद्वानों ने भी किया है । 11वीं शती के मुस्लिम लेखक अल्वरूनी इससे मिलता-जुलता विचार व्यक्त करते हुए लिखता है- हिन्दू लोग घटनाओं के ऐतिहासिक कम की ओर बहुत अधिक ध्यान नहीं देते । घटनाओं के तिथिक्रमानुसार वर्णन करने में वे बड़ी लापरवाही बरतते है ।
किन्तु भारतीयों के इतिहास विषयक गान पर पाश्चात्य विद्वानों द्वारा लगाया गया उपरोक्त आरोप सत्य से परे है । वास्तविकता यह है कि प्राचीन भारतीयों ने इतिहास को उस दृष्टि से नहीं देखा जिससे कि आज के विद्वान् देखते है । उनका दृष्टिकोण पूर्णतया धर्मपरक था ।
उनकी दृष्टि में इतिहास साम्राज्यों अथवा सम्राटों के उत्थान अथवा पतन की गाथा न होकर उन समस्त मूल्यों का संकलन-मात्र था जिनके ऊपर मानव-जीवन आधारित है । अतः उनकी बुद्धि धार्मिक और दार्शनिक ग्रन्थों की रचना में ही अधिक लगी, न कि राजनैतिक घटनाओं के अंकन में ।
तथापि इसका अर्थ यह नहीं है कि प्राचीन भारतीयों में ऐतिहासिक चेतना का भी अभाव था । प्राचीन ग्रन्थों के अध्ययन से यह वात स्पष्ट हो जाती है कि यहाँ के निवासियों में अति प्राचीन काल से ही इतिहास-बुद्धि विद्यमान रही । वैदिक साहित्य, बौद्ध तथा जैन ग्रन्थों में अत्यन्त सावधानीपूर्वक सुरक्षित आचार्यों की सूची (वंश) से यह बात स्पष्ट हो जाती है ।
वंश के अतिरिक्त गाथा तथा नाराशंसी साहित्य, जो राजाओं तथा ऋषियों के स्तुतिपरक गीत है, से भी सूचित होता है कि वैदिक युग में इतिहास लेखन की परम्परा विद्यमान थी । इसके अतिरिक्त ‘इतिहास तथा पुराण’ नाम से भी अनेक रचनायें प्रचलित थी । इन्हें ‘पंचम वेद’ कहा गया है ।
सातवीं शती के चीनी यात्री हुएनसांग ने लिखा है कि भारत के प्रत्येक प्रान्त में घटनाओं का विवरण लिखने के लिये कर्मचारी नियुक्त किये गये थे । कल्हण के विवरण से पता चलता है कि प्राचीन भारतीय विलुप्त तथा विस्मृत इतिहास को पुनरुज्जीवित करने की कुछ आधुनिक विधियों से भी परिचित थे ।
वह लिखता हैं- “वही गुणवान् कवि प्रशंसा का अधिकारी है जो राग-द्वेष से मुक्त होकर एकमात्र तथ्यों के निरूपण में ही अपनी भाषा का प्रयोग करता है ।” वह हमें बताता है कि इतिहासकार का धर्म मात्र ज्ञात घटनाओं में नई घटनाओं को जोड़ना नहीं होता । अपितु सच्चा इतिहासकार प्राचीन अभिलेखों तथा सिक्कों का अध्ययन करके विलुप्त शासकों तथा उनकी विजयों की पुन: खोज करता है ।
कल्हण का यह कथन भारतीयों में इतिहास-बुद्धि का सबल प्रमाण प्रस्तुत करता है । इस प्रकार यदि हम सावधानीपूर्वक अपने विशाल साहित्य की छानबीन करें तो उसमें हमें अपने इतिहास के पुनर्निर्माणार्थ अनेक महत्वपूर्ण सामग्री उपलब्ध होगी ।
साहित्यिक ग्रन्थों के साथ-साथ भारत में समय-सभय पर विदेशों से आने वाले यात्रियों के भ्रमण-वृत्तान्त भी इतिहास-विषयक अनेक उपयोगी सामग्रियों प्रदान करते है । इधर पुरातत्ववेत्ताओं ने अतीत के खण्डहरों से अनेक ऐसी वस्तुएँ खोज निकाली हैं जो हमें प्राचीन इतिहास-सम्बन्धी बहुमूल्य प्रदान करती हैं ।
अत: हम सुविधा के लिये भारतीय इतिहास जानने के साधनों को तीन शीर्षकों में रख सकते हैं:
(1) साहित्यिक साक्ष्य ।
(2) विदेशी यात्रियों के विवरण ।
(3) पुरातत्व-सम्बन्धी साक्ष्य ।
यहाँ हम प्रत्येक का अलग-अलग विवेचन करेंगे:
(1) साहित्यिक साक्ष्य:
इस साक्ष्य के अन्तर्गत साहित्यिक ग्रन्थों से प्राप्त ऐतिहासिक सामग्रियों का अध्ययन किया जाता है ।
हमारा साहित्य दो प्रकार का हैं:
(a) धार्मिक साहित्य,
(b) लौकिक साहित्य ।
धार्मिक साहित्य में ब्राह्मण तथा ब्राह्मणेतर ग्रन्थों की चर्चा की जा सकती है । ब्राह्मण ग्रन्थों में वेद, उपनिषद्, रामायण, महाभारत, पुराण तथा स्मृति ग्रन्थ आते है, जबकि बाह्मणेतर गुणों में बौद्ध तथा जैन साहित्यों से सम्बन्धित रचनाओं का उल्लेख किया जा सकता है । इसी प्रकार लौकिक साहित्य में ऐतिहासिक ग्रंथों, जीवनियां, कल्पना-प्रधान तथा गल्प साहित्य का वर्णन किया जाता है ।
इनका अलग-अलग विवरण इस प्रकार है:
I. ब्राह्मण साहित्य :
वेद भारत के सर्वप्राचीन धर्म ग्रन्थ है जिनका संकलनकर्त्ता महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यास को माना जाता है । भारतीय परम्परा वेदों को नित्य तथा अपौरुषेय मानती है। वैदिक युग की सांस्कृतिक दशा के ज्ञान का एकमात्र सोत होने के कारण वेदों का ऐतिहासिक महत्व बहुत अधिक है । प्राचीन काल के अध्ययन के लिये रोचक समस्त सामग्री हमें प्रचुर रूप में वेदों से उपलब्ध हो जाती है ।
वेदों की संख्या चार हैं- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद । इनमें ऋग्वेद न केवल भारतीय आयी की अपितु समस्त आर्य जाति की प्राचीनतम् रचना । इस प्रकार यह भारत तथा भारतेतर प्रदेशों के आर्यों के इतिहास, भाषा, धर्म एवं उनकी सामान्य संस्कृति पर प्रकाश डालता है । विद्वानों के अनुसार आयी ने इसकी रचना पंजाब में किया था जब वे अफगानिस्तान से लेकर गंगा-यमुना के प्रदेश तक ही फैले थे । इनमें दस मण्डल तथा 1028 सूक्त है ।
ऋग्वेद का अधिकांश भाग देव-स्तोत्रों में भरा हुआ है और इस प्रकार उसमें ठोस ऐतिहासिक सामग्री बहुत कम मिलती है । परन्तु इसके कुछ मन्त्र ऐतिहासिक घटनाओं का उल्लेख करते है । जैसे, एक स्थान पर “दस राजाओं के युद्ध” (दाशराज्ञ) का वर्णन आया है जो भरत कबीले के राजा सुदास के साथ हुआ था । यह ऋग्वैदिक काल की एकमात्र महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना है ।
यह युद्ध आयी के दो प्रमुख जनों- पुरु तथा भरत के बीच हुआ था । भरत जन का नेता सुदास था जिसके पुरोहित वशिष्ठ थे । इनके विरुद्ध दस राजाओं का एक सध था जिसके पुरोहित विश्वामित्र थे । सुदास ने रावी नदी के तट पर दस राजाओं के इस संघ को परास्त किया और इस प्रकार वह ऋग्वैदिक भारत का चक्रवर्ती शासक बन बैठा ।
सामवेद तथा यजुर्वेद में किसी भी विशिष्ट ऐतिहासिक घटना का वर्णन नहीं मिलता । ‘साम’ का शाब्दिक अर्थ है गान । इसमें मुख्यत: यज्ञों के अवसर पर गाये जाने वाले मन्त्रों का संग्रह है । इसे भारतीय संगीत का मूल कहा जा सकता है । यजुर्वेद में यज्ञों के नियमों एवं विधि-विधानों का संकलन मिलता है ।
जबकि अन्य वेद पद्य में हैं, यह गद्य तथा पद्य दोनों में लिखा गया है । ऐतिहासिक दृष्टि से अथर्ववेद का महत्व रस बात में है कि रस में सामान्य मनुष्यों के विचारों तथा अंधविश्वासों का विवरण मिलता है । इनमें कुल 731 मन्त्र तथा लगभग 6000 पद्य हैं । इसके कुछ मन्त्र ऋग्वैदिक मन्त्रों से भी प्राचीनतर है ।
पृथिवीसूक्त इसका प्रतिनिधि सूक्त माना जाता है । इसमें मानव जीवन के सभी पक्षों-गृह निर्माण, कृषि की उन्नति, व्यापारिक मार्गों का गाहन, रोग निवारण, समन्वय, विवाह तथा प्रणय-गीतों, राजभक्ति, राजा का चुनाव, बहुत सी वनस्पतियों तथा औषधियों आदि का विवरण दिया गया है ।
कुछ मन्त्रों में जादू-टोने का भी वर्णन है जो इस बात का सूचक है कि इस समय तक आर्य- अनार्य संस्कृतियों का समन्दय हो रहा था तथा आयी ने अनायों के कई सामाजिक एवं धार्मिक रीति रिवाजों एवं विश्वासों को ग्रहण कर लिया था । अथर्ववेद में परीक्षित को कुरुओं का राजा कहा गया है तथा कुरु देश की समृद्धि का अच्छा चित्रण मिलता है । इन चार वेदों को “संहिता” कहा जाता है ।
ii. ब्राह्मण , आरण्यक तथा उपनिषद:
संहिता के पश्चात् ब्राह्मणों, आरण्यकों तथा उपनिषदों का स्थान है । इनसे उत्तर वैदिक कालीन समाज तथा संस्कृति के विषय में अच्छा ज्ञान प्राप्त होता है । ब्राह्मण ग्रन्थ वैदिक संहिताओं की व्याख्या करने के लिए गद्य में लिखे गये हैं । प्रत्येक संहिता के लिये अलग-अलग ब्राह्मण ग्रन्थ हैं जैसे- ऋग्वेद के लिये ऐतरेय तथा कौषीतकी, यजुर्वेद के लिये तैत्तिरीय तथा शतपथ, सामवेद के लिये पंचविश, अथर्ववेद के लिये गोपथ आदि ।
इन ग्रन्थों से हमें परीक्षित के बाद और बिम्बिसार के पूर्व की घटनाओं का ज्ञान प्राप्त होता है । ऐतरेय, शतपथ, तैत्तिरीय, पंचविश आदि प्राचीन ब्राह्मण ग्रन्थों में अनेक ऐतिहासिक तथ्य मिलते हैं । ऐतरेय में राज्याभिषेक के नियम तथा कुछ प्राचीन अभिषिक्त राजाओं के नाम दिये गये है ।
शतपथ में गन्धार, शल्य, कैकय, कुरु, पंचाल, कोसल, विदेह आदि के राजाओं का उल्लेख मिलता है । प्राचीन इतिहास के साधन के रूप में वैदिक साहित्य में ऋग्वेद के बाद शतपथ ब्राह्मण का स्थान है । कर्मकाण्डों के अतिरिक्त इसमें सामाजिक विषयों का भी वर्णन है । इसी प्रकार आरण्यक तथा उपनिषदों में भी कुछ ऐतिहासिक-तेल प्राप्त होते हैं, यद्यपि ये मुख्यत: दार्शनिक ग्रन्थ है जिनका ध्येय ज्ञान की खोज करना है । इनमें हम भारतीय चिंतन की चरम परिणति पाते हैं ।
iii. वेदांग तथा सूत्र:
वेदों को भली-भाँति समझने के लिये छ: वेदांगों की रचना की गयी- शिक्षा, ज्योतिष, कल्प, व्याकरण, निरुक्त तथा छन्द । ये वेदों के शुद्ध उच्चारण तथा यज्ञादि करने में सहायक थे । इसी प्रकार वैदिक साहित्य को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिये सूत्र साहित्य का प्रणयन किया गया ।
श्रौत, गृह्या तथा धर्मसूत्रों के अध्ययन से हम यज्ञीय विधि-विधानों, कर्मकाण्डों तथा राजनीति, विधि एवं व्यवहार से सम्बन्धित अनेक महत्वपूर्ण बातें ज्ञात करते है । ऋग्वेद से लेकर सूत्रों तक के सम्पूर्ण वैदिक वाङ्मय का काल ईसा पूर्व 2000 से लेकर 500 के लगभग तक: सामान्य तौर से स्वीकार किया जा सकता है ।
iv. महाकाव्य:
वैदिक साहित्य के बाद भारतीय साहित्य में रामायण और महाभारत नामक दो महाकाव्यों का समय आता है । मूलत: इन ग्रन्थों की रचना ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में हुई थी तथा इनका वर्तमान स्वरूप क्रमश: दूसरी एवं चौथी शताब्दी ईस्वी के लगभग निर्मित हुआ था । भारत के सम्पूर्ण धार्मिक साहित्य में इन दोनों ही महाकाव्यों का अत्यन्त आदराणीय स्थान है । इनके अध्ययन से हमें प्राचीन हिंदू संस्कृति के विविध पक्षों का सुन्दर ज्ञान प्राप्त हो जाता है ।
इन महाकाव्यों द्वारा प्रतिपादित आदर्श तथा मूल्य सार्वभौम मान्यता रखते है । रामायण हमारा आदि-काव्य है जिसकी रचना महर्षि वाल्मीकि ने की थी । इससे हमें हिन्दुओं तथा यवनों और शकों के संघर्ष का विवरण प्राप्त होता है । इसमें यवन-देश तथा शकों का नगर, कुरु तथा मद्र देश और हिमालय के बीच स्थित बताया गया है । इससे ऐसा प्रतीत होता है कि उन दिनों यूनानी तथा सीथियन लोग पंजाब के कुछ भागों में बसे हुये थे ।
महाभारत की रचना वेदव्यास ने की थी । इसमें भी शक, यवन, पारसीक, हूण आदि जातियों का उल्लेख मिलता है । इससे प्राचीन भारतवर्ष की सामाजिक, धार्मिक तथा राजनीतिक दशा का परिचय मिलता है । राजनीति तथा शासन के विषय में तो यह ग्रन्थ बहुमूल्य सामग्रियों का भण्डार ही है । महाभारत में यह कहा गया है कि ‘धर्म’, अर्थ, काम तथा मोक्ष के विषय में जो कुछ भी इसमें है, वह अन्यत्र कहीं नहीं है ।
परन्तु ऐतिहासिक दृष्टि से इन अन्यों का विशेष महत्व नहीं है क्योंकि इनमें वर्णित कथाओं में कल्पना का मिश्रण अधिक है । महाकाव्यों में जिस समाज और संस्कृति का चित्रण है उसका उपयोग उत्तरवैदिक काल के अध्ययन के लिये किया जा सकता है ।
भारतीय ऐतिहासिक कथाओं का सबसे अच्छा क्रमबद्ध विवरण पुराणों में मिलता है । पुराणों के रचयिता लोमहर्ष अथवा उनके पुत्र उग्रश्रवा माने जाते हैं । इनकी संख्या 18 है । अधिकांश पुराणों की रचना तीसरी चौथी शताब्दी ईस्वी में की गयी थी । सर्वप्रथम पार्जिटर (Pargiter) नामक विद्वान् ने उनके ऐतिहासिक महत्व की ओर विद्वानों का ध्यान आकृष्ट किया गया था ।
अमरकोश में पुराणों के पाँच विषय बताये गये हैं:
(1) सर्ग अर्थात् जगत की सृष्टि,
(2) प्रतिसर्ग अर्थात् प्रलय के बाद जगत् की पुन सृष्टि,
(3) वंश अर्थात् ऋषियों तथा देवताओं की वंशावली,
(4) मन्वन्तर अर्थात् महायुग और
(5) वंशानुचरित अर्थात् प्राचीन राजकुलों का इतिहास ।
इनमें ऐतिहासिक दृष्टि से “वंशानुचरित” का विशेष महत्व है। अठारह पुराणों से केवल पाँच में (मत्स्य, वायु, विष्णु, ब्रह्माण्ड, भागवत) ही राजाओं की वंशावली पायी जाती है । इनमें मत्स्यपुराण सबसे अधिक प्राचीन एवं प्रामाणिक है । पुराणों की भविष्य शैली में कलियुग के राजाओं की तालिकायें दी गयी है ।
इनके साथ शैशुनाग, नन्द, मौर्य, शुड्ग, कण्व, आन्ध्र तथा गुप्त वंशों की वंशावलियां भी मिलती है । मौर्यवंश के लिये विष्णु पुराण तथा आन्ध्र (सातवाहन) वंश के लिये मत्स्य पुराण महत्व के है । इसी प्रकार वायु पुराण में गुप्तवंश की साम्राज्य सीमा का वर्णन तथा गुप्तों की शासन-पद्धति का भी कुछ विवरण प्राप्त होता है ।
सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अग्निपुराण का काफी महत्व है जिसमें राजतन्त्र के साथ-साथ कृषि सम्बन्धी विवरण भी दिया गया है । इस प्रकार पुराण प्राचीनकाल से लेकर गुप्तकाल के इतिहास से सम्बन्धित अनेक महत्वपूर्ण घटनाओं का परिचय कराते हैं । छठी शताब्दी ईस्वी पूर्व के पहले के प्राचीन भारतीय इतिहास के पुनर्निर्माण के लिये तो पुराण ही एकमात्र स्रोत है ।
vi. धर्मशास्त्र:
धर्मसूत्र, स्मृति, भाष्य, निबन्ध आदि को सम्मिलित रूप से धर्मशास्त्र कहा जाता है । धर्मसूत्रों का काल सामान्यत: ई॰ पू॰ 500-200 के लगभग निर्धारित किया जाता है । आपस्तम्भ, बौद्धायन तथा गौतम के धर्मसूत्र सबसे प्राचीन है । धर्मसूत्रों में ही सर्वप्रथम हम वर्णव्यवस्था का स्पष्ट वर्णन प्राप्त करते है तथा चार वर्णों के अलग-अलग कर्त्तव्यों का भी निर्देश मिलता है ।
कालान्तर में धर्मसूत्रों का स्थान स्मृतियों ने ग्रहण किया । जहाँ धर्मसूत्र गद्य में है, वहीं स्मृति ग्रंथ पद्य में लिखे गये है । स्मृतियों में मनुस्मृति सबसे प्राचीन तथा प्रामाणिक मानी जाती है । बूलर के अनुसार इसकी रचना ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी से लेकर ईसा की दूसरी शताब्दी के मध्य हुई थी ।
अन्य स्मृतियों में याज्ञवल्क्य, नारद, वृहस्पति, कात्यायन, देवल आदि की स्मृतियाँ उल्लेखनीय हैं । मनुस्मृति को शुंग काल का मानक ग्रन्थ माना जाता है । इसके अध्ययन से शुंगकालीन भारत की राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक दशा का बोध होता है । नारद स्मृति गुप्त-युग के विषय में महत्वपूर्ण सूचनायें प्रदान करती है । कालान्तर में इन पर अनेक विद्वानों द्वारा टीकायें लिखी गयीं ।
मनुस्मृति के प्रमुख टीकाकार भारुचि, मेघातिधि, गोविन्दराज तथा कुल्लूक भट्ट है । विश्वरूप, विज्ञानेश्वर तथा अपरार्क, याज्ञवल्क्य स्मृति के प्रमुख टीकाकार है । इन टीकाओं से भी हम हिंदू-समाज के विविध पक्षों के विषय में अच्छी जानकारी प्राप्त करते हैं ।
II. ब्राह्मणेतर साहित्य:
i. बौद्ध ग्रन्थों:
बौद्ध ग्रन्थों में ‘त्रिपिटक’ जबसे महत्वपूर्ण है । बुद्ध की मृत्यु के बाद उनकी शिक्षाओं को संकलित कर तीन भागों में बांटा गया । इन्हीं को त्रिपिटक कहते हैं । ये हैं- विनयपिटक (संघ सम्बन्धी नियम तथा आचार की शिक्षायें), सुत्तपिटक (धार्मिक सिद्धान्त अथवा धर्मोंप्रदेश) तथा अभिधम्मपिटक (दार्शनिक सिद्धान्त) । इसके अतिरिक्त निकाय तथा जातक आदि से भी हमें अनेकानेक ऐतिहासिक सामग्री उपलब्ध होती है ।
पाली भाषा में लिखे गये बौद्ध-अन्यों को प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व का माना जाता है । अभिधम्मपिटक में सर्वप्रथम संस्कृत भाषा का प्रयोग मिलता है । त्रिपिटकों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ये बौद्ध संघों के संगठन का पूर्ण विवरण प्रस्तुत करते हैं । निकायों में बौद्ध धर्म के सिद्धान्त तथा कहानियों का संग्रह हैं । जातकों में बुद्ध के पूर्व जन्मों की कहानी है । कुछ जातक ग्रन्थों से बुद्ध के समय की राजनीतिक अवस्था का परिचय भी मिलता है ।
इसके साथ ही साथ ये समाज और सभ्यता के विभिन्न पहलुओं के विषय में महत्वपूर्ण सामग्री प्रदान करते हैं । दीपवंश तथा महावंश नामक दो पाली गुणों से मौर्यकालीन इतिहास के विषय में सूचना मिलती है । पाली भाषा का एक अन्य महत्वपूर्ण ग्रन्थ नागसेन द्वारा रचित “मिलिन्दपण्हो” (मिलिन्द-प्रश्न) है जिससे हिन्द-यवन शासक मेनाण्डर के विषय ये सूचनायें मिलती है ।
इनके अतिरिक्त संस्कृत भाषा में लिखे गये अन्य कई बौद्ध ग्रन्थ भी हैं जो बौद्ध धर्म के दोनों सम्प्रदायों से सम्बन्धित है । हीनयान का प्रमुख ग्रन्थ ‘कथावस्तु’ है जिसमें महात्मा बुद्ध का जीवन चरित अनेक कथानकों के साथ वर्णित है । महायान सम्प्रदाय के ग्रन्थ ‘ललितविस्तर’, दिव्यावदान आदि है । ललितविस्तर में बुद्ध को देवता मानकर उनके जीवन तथा कार्यों का चमत्कारिक वर्णन प्रस्तुत किया गया है ।
दिव्यावदान से अशोक के उत्तराधिकारियों से लेकर पुष्यमित्र शुंग तक के शासकों के विषय में सूचना मिलती है । संस्कृत बौद्ध लेखकों में अश्वघोष का नाम अत्यन्त ऊँचा है । इनकी रचनाओं का उल्लेख यथास्थान किया गया है । जहाँ ब्राह्मण ग्रन्थ प्रकाश नहीं डालते वहाँ बौद्ध ग्रन्थों से हमें तथ्य का ज्ञान प्राप्त हो जाता है ।
ii. जैन-ग्रन्थ:
जैन साहित्य को ‘आगम’ (सिद्धान्त) कहा जाता है । जैन साहित्य का दृष्टिकोण भी बौद्ध साहित्य के समान ही धर्मपरक है । जैन ग्रन्थों में परिशिष्टपर्वन, भद्रबाहुचरित, आवश्यकसूत्र, आचारांगसूत्र, भगवतीसूत्र, कालिकापुराण आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय है । इनसे अनेक ऐतिहासिक घटनाओं की सूचना मिलती है ।
जैन धर्म का प्रारम्भिक इतिहास ”कल्पसूत्र” (लगभग चौथी शती ई॰ पू॰) से ज्ञात होता है जिसकी रचना भद्रबाहु ने की थी । परिशिष्टपर्वन् तथा भद्रबाहुचरित से चन्द्रगुप्त मौर्य के जीवन की प्रारम्भिक तथा उत्तरकालीन घटनाओं की सूचना मिलती है । भगवतीसूत्र में महावीर के जीवन, कृत्यों तथा अन्य समकालिकों के साथ उनके सम्बन्धों का बड़ा ही रोचक विवरण मिलता है ।
आचारांगसूत्र जैन भिक्षुओं के आचार-नियमों का वर्णन करता है । जैन साहित्य में पुराणों का भी महत्वपूर्ण स्थान है जिन्हें ‘चरित’ भी कहा जाता है । ये प्राकृत, संस्कृत तथा अपभ्रंश, तीनों भाषाओं में लिखे गये है । इनमें पद्मपुराण, हरिवंशपुराण, इत्यादि उल्लेखनीय है ।
जैन पुराणों का समय छठी शताब्दी से सोलहवीं-सत्रहवीं शताब्दी तक निर्धारित किया गया । यद्यपि इनमें मुख्यत: कथायें दी गयी है तथापि इनके अध्ययन से विभिन्न काली की राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक दशा का थोड़ा बहुत ज्ञान प्राप्त हो जाता है ।
III. लौकिक साहित्य :
लौकिक साहित्य के अन्तर्गत ऐतिहासिक एवं अर्द्ध-ऐतिहासिक ग्रन्थों तथा जीवनियों का विशेष रूप से उल्लेख किया जा सकता है जिनसे भारतीय इतिहास जानने में काफी मदद मिलती है । ऐतिहासिक रचनाओं में सर्वप्रथम उल्लेख ”अर्थशास्त्र” का किया जा सकता है जिसकी रचना चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रधानमन्त्री सुप्रसिद्ध राजनीतिज्ञ कौटिल्य (चाणक्य) ने की थी । मौर्यकालीन इतिहास एवं राजनीति के ज्ञान के लिये यह ग्रन्थ एक प्रमुख स्रोत है । इससे चन्द्रगुप्त मौर्य की शासन-व्यवस्था पर प्रचुर प्रकाश पड़ता है ।
कौटिल्यीय अर्थशास्त्र के अनेक सिद्धान्तों को सातवीं-आठवीं शताब्दी ईस्वी में कामन्दक ने अपने “नीतिसार” में संकलित किया । इस संग्रह में दसवीं शताब्दी ईस्वी के राजत्व सिद्धान्त तथा राजा के कर्तव्यों पर प्रकाश पड़ता है । ऐतिहासिक रचनाओं में सर्वाधिक महत्व कश्मीरी कवि कहर, हारा विरचित “राजतरंगिणी” को है । यह संस्कृत साहित्य में ऐतिहासिक घटनाओं के क्रमवद्ध इतिहास लिखने का प्रथम प्रयास है ।
इसमें आदिकाल से लेकर 1151 ई॰ के आरम्भ तक के कश्मीर के प्रत्येक शासक के काल की घटनाओं का क्रमानुसार विवरण दिया गया है । कश्मीर की ही भांति गुजरात से भी अनेक ऐतिहासिक ग्रन्थ प्राप्त होते है जिनमें सोमेश्वर कृत रसमाला तथा कीर्तिकौमुद्री, मेरुतुंग कृत प्रबन्धचिन्तामणि, राजशेखर कृत प्रबन्धकोश आदि उल्लेखनीय है । इनसे हमें गुजरात के चौलुक्य वंश का इतिहास तथा उसके समय की संस्कृति का अच्छा ज्ञान प्राप्त हो जाता है ।
इसी प्रकार सिन्ध तथा नेपाल से भी कई इतिवृत्तियां (Chronicles) मिलती हैं जिनसे वहाँ का इतिहास ज्ञात होता है । सिन्ध की इतिवृत्तियों के आधार पर ही “चचनामा” नामक ग्रन्थ की रचना की गयी जिसमें अरबों की सिन्ध विजय का वृत्तान्त सुरक्षित है ।
मूलत: यह अरबी भाषा में लिखा गया तथा कालान्तर में इसका अनुवाद खुफी के द्वारा फारसी भाषा में किया गया । अरब आक्रमण के समय सिन्ध की दशा का अध्ययन करने के लिये यह सर्वप्रमुख ग्राम्य है । नेपाल की वशावलियों में वहाँ के शासकों का नामोल्लेख प्राप्त होता है, किन्तु उनमें से अधिकांश अनैतिहासिक हैं ।
अर्द्ध-ऐतिहासिक रचनाओं में पाणिनि की अष्टाध्यायी, कात्यायन का वार्त्तिक, गार्गीसंहिता, पतंजलि का महाभाष्य, विशाखदत्त का मुद्राराक्षस तथा कालिदासकृत मालविकाग्निमित्र आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं । पाणिनि तथा कात्यायन के व्याकरण-ग्रन्थों से मौर्यो के पहले के इतिहास तथा मौर्ययुगीन राजनीतिक अवस्था पर प्रकाश पड़ता है । पाणिनि ने सूत्रों को समझाने के लिए जो उदाहरण दिये है उनका उपयोग सामाजिक-आर्थिक दशा के ज्ञान के लिये भी किया जा सकता है ।
इससे उत्तर भारत के भूगोल की भी जानकारी होती है । गार्गीसंहिता, यद्यपि एक ज्योतिष-अन्य है तथापि इससे कुछ ऐतिहासिक घटनाओं की सूचना मिलती है । इसमें भारत पर होने वाले यवन आक्रमण का उल्लेख मिलता है जिससे हमें पता चलता है कि यवनों ने साकेत, पंचाल, मधुरा तथा कुसुमध्वज (पाटलिपुत्र) पर आक्रमण किया था । पतंजलि पुष्यमित्र शुंग के पुरोहित थे । उनके महाभाष्य से शुंगों के इतिहास पर प्रकाश पड़ता है ।
मुद्राराक्षस से चन्द्रगुप्त मौर्य के विषय में सूचना मिलती है । कालिदास कृत ‘मालविकाग्निमित्र’ नाटक शुंगकालीन राजनीतिक परिस्थितियों का विवरण प्रस्तुत करता है । ऐतिहासिक जीवनियों में अश्वधोषकृत बुद्धचरित, बाणभट्ट का हर्षचरित, वाक्पति का गौड़वहो, विल्हण का विक्रमाड्कदेवचरित, पद्यगुप्त का नवसाहसाड्कचरित, सन्ध्याकर नन्दी कृत “रामचरित” हेमचन्द्र कृत ”कुमारपालचरित” (द्वयाश्रयकाव्य) जयानक कृत “पृथ्वीराजविजय” आदि का विशेष रूप से उल्लेख किया जा सकता है ।
“बुद्धचरित” में गौतम बुद्ध के चरित्र का विस्तृत वर्णन हुआ है । “हर्षचरित” से सम्राट हर्षवर्धन के जीवन तथा तत्कालीन समाज एवं धर्म-विषयक अनेक महत्वपूर्ण सूचनायें मिलती है । गौडवहो में कन्नोजनरेश यशोवर्मन् के गौड़नरेश के ऊपर किये गये आक्रमण एवं उसके बध का वर्णन है । विक्रमाड्कदेवचरित में कल्याणी के चालुक्यवंशी नरेश विक्रमादित्य षष्ठ का चरित्र वर्णित है । नवसाहसाँकचरित में धारानरेश मुञ्ज तथा उसके भाई सिन्धुराज के जीवन की घटनाओं का विवरण है ।
रामचरित से बंगाल के पालवंश का शासन, धर्म एवं तत्कालीन समाज का ज्ञान होता है । आनन्दभट्ट कृत बल्लालचरित से सेन वंश के इतिहास और संस्कृति पर प्रकाश पड़ता है । कुमारपालचरित में चौलुक्य शासकों-जयसिंह सिद्धराज तथा कुमारपाल का जीवन चरित तथा उनके समय की घटनाओं का वर्णन है ।
पृथ्वीराजविजय से चाहमान राजवंश के इतिहास का ज्ञान होता है । इसके अतिरिक्त और भी जीवनियां है जिनसे हमें प्रचुर ऐतिहासिक सामग्री मिल जाती है । राजशेखरकृत प्रबन्धकोश, बालरामायण तथा काव्यमीमांसा- इनसे राजपूतयुगीन समाज तथा धर्म पर प्रकाश पड़ता है ।
उत्तर भारत के समान दक्षिण भारत से भी अनेक तमिल ग्रन्थ प्राप्त होते है जिनसे वहाँ शासन करने वाले विभिन्न राजवंशों के काल का इतिहास एवं संस्कृति का ज्ञान होता है । तमिल देश का प्रारम्भिक इतिहास संगम-साहित्य से ज्ञात होता है ।
नन्दिक्कलम्बकम्, कलिंगत्तुपर्णि, चोलचरित आदि के अध्ययन से दक्षिण में शासन करने वाले पल्लव तथा चोल वंशों के इतिहास एवं उनकी संस्कृति का ज्ञान होता है । कलिंगत्तुपर्णि में चोल सम्राट कुलीतुंग प्रथम की कलिंग विजय का विवरण सुरक्षित है ।
तमिल के अतिरिक्त कन्नड़ भाषा में लिखा गया साहित्य भी हमें उपलब्ध होता है । इसमें महाकवि पम्प द्वारा रचित ‘विक्रमार्जुन विजय’ (भारत) तथा रन्न कृत ‘गदायुद्ध’ विशेष महत्व के हैं । इनसे चालुक्य तथा राष्ट्रकूट वंशों के इतिहास पर कुछ प्रकाश पड़ता है ।
(2) विदेशी यात्रियों के विवरण :
भारतीय साहित्य के अतिरिक्त समय-समय पर भारत में आने वाले विदेशी यात्रियों एवं लेखकों के विवरण से भी हमें भारतीय इतिहास जानने में पर्याप्त मदद मिलती है । इनमें से कुछ ने तो भारत में कुछ समय तक निवास किया और अपने स्वयं के अनुभव से लिखा है तथा कुछ यात्रियों ने जनश्रुतियों एवं भारतीय ग्रन्थों को अपने विवरण का आधार बनाया है । इन लेखकों में यूनानी, चीनी तथा अरबी-फारसी लेखक विशेष रूप में उल्लेखनीय हैं ।
I. यूनानी-रोमन (क्लासिकल) लेखक:
यूनान के प्राचीनतम लेखकों में टेसियस तधा हेरोडोटस के नाम प्रसिद्ध है । टेसियस ईरान का राजवैद्य था तथा उसने ईरानी अधिकारियों द्वारा ही भारत के विषय में जानकारी प्राप्त की थी । परन्तु उसका विवरण आश्चर्यजनक कहानियों से परिपूर्ण होने के कारण अविश्वसनीय हो गया है । हेरोडोटस को ‘इतिहास का पिता’ कहा जाता है ।
उसने अपनी पुस्तक ‘हिस्टोरिका (Historica) में पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व के भारत-फारस के सम्बन्ध का वर्णन किया है । उसका विवरण अधिकांशत अनुभूतियों तथा अफवाहों पर आधारित है । सिकन्दर के साथ आने वाले लेखकों में नियार्कस, आनेसिक्रिटस तथा आरिस्टोबुलस के विवरण अपेक्षाकृत अधिक प्रामाणिक एवं विश्वसनीय हैं । चूँकि रन लेखकों का उद्देश्य अपनी रचनाओं द्वारा अपने देशवासियों को भारतीयों के विषय में बताना था, अत: इनका वृत्तान्त यथार्थ है ।
सिकन्दर के पश्चात् के लेखकों में तीन राजदूतों-मेगस्थनीज डाइमेकस तथा डायीनिसियस के नाम उल्लेखनीय है जो यूनानी शासकों द्वारा पाटलिपुत्र के मौर्य दरवार में भेजे गये थे । इनमें भी मेगस्थनीज सर्वाधिक प्रसिद्ध है । वह सेल्युकस ‘निकेटर’ का राजदूत था तथा चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में आया था । उसने ‘इण्डिका’ नामक पुस्तक में मौर्ययुगीन समाज एवं संस्कृति के विषय में लिखा है ।
यद्यपि यह पुस्तक अपने मूल रूप में उपलब्ध नहीं है तथापि इसके कुछ अंश उद्धरण के रूप में एरियन, स्ट्रेबी, जस्टिन आदि लेखकों की कृतियों में प्राप्त होते है । ‘इण्डिका’ वस्तुतः यूनानियों द्वारा भारत के सम्बन्ध दे शप्त शनराशि में सबसे अमूल्य रत्न है ।
डाइमेकस (सीरियन नरेश अन्तियोकस का राजदूत) बिन्दुसार के दरबार में तथा डायोनिसियल (मिस्र नरेश टालमी फिलेडेल्फस का राजदूत) अशोक के दरबार दे आया था । अन्य अन्यों में ‘पेरीप्लस ऑफ द इरिथ्रयन-सी’, टालमी का भूगोल, प्लिनी का ‘नेचुरल हिन्दी’ आदि का भी उल्लेख किया जा सकता है । पेरीप्लस का लेखक 80 ई. के लगभग हिन्द महासागर की यात्रा पर आया था ।
उसने उसके बन्दरगाहों तथा व्यापारिक वस्तुओं का विवरण दिया है । प्राचीन भारत के समुद्री व्यापार के ज्ञान के लिये उसका विवरण बड़ा उपयोगी है । दूसरी शताब्दी ईस्वी में टालमी ने भारत का भूगोल लिखा था । प्लिनी का ग्रन्थ प्रथम शताब्दी ईस्वी का है । इससे भारतीय पशुओं, पेड़-पौधों, खनिज पदार्थों आदि का ज्ञान प्राप्त होता है ।
II. चीनी-लेखक:
प्राचीन भारतीय इतिहास के पुनर्निर्माण में चीनी यात्रियों के विवरण भी विशेष उपयोगी रहे हैं। ये चीनी यात्री बौद्ध मतानुयायी थे तथा भारत में बौद्ध तीर्थस्थानों की यात्रा तथा बौद्ध धर्म के विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिये आये थे। वे भारत का उल्लेख ‘यिन्-तु’ (Yin-tu) नाम से करते हैं ।
इनमें चार के नाम विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं- फाहियान, सुंगपुन, हुएनसांग तथा इत्सिग । फाहियान, गुप्तनरेश चन्द्रगुप्त द्वितीय ‘विक्रमादित्य’ (375-415 ई.) के दरबार में आया था । उसने अपने विवरण में मध्यदेश के समाज एवं संस्कृति का वर्णन किया है । वह मध्यदेश की जनता को चुखी एवं समृद्ध बताता है ।
सुंगयुन 518 ई. में भारत में आया और उसने अपने तीन वर्ष की यात्रा में बौद्ध ग्रन्धों की प्रतियाँ एकत्रित कीं । चीनी यात्रियों में सवाधिक महत्व हुएनसाग अथवा युवानच्चाग का ही है जो महाराज हर्षवर्द्धन के शासन काल में (629 ई. का लगभग) यहाँ आया था । उसने 16 वर्षों तक यहाँ निवास कर विभिन्न स्थानों की यात्रा की तथा नालन्दा विश्वविद्यालय में 6 वर्षों तक रहकर शिक्षा प्राप्त की ।
उसका भमण वृत्तान्त ‘सि-यू-की’ नाम से प्रसिद्ध है जिसमें 138 देशों का विवरण मिलता है । इससे हर्षकालीन भारत के समाज, धर्म तथा राजनीति पर सुन्दर प्रकाश पड़ता है । उसके मित्र ढीली ने ‘हुएनसांग की जीवनी’ लिखी है जो हर्षकालीन भारत की दशा के ज्ञान के लिये एक प्रमुख स्रोत है ।
भारतीय संस्कृति के इतिहास में हुएनसांग ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है । इत्सिग सातवीं शताब्दी के अन्त में भारत आया था । उसने अपने विवरण में नालन्दा विश्वविद्यालय, विक्रमशिला विश्वविद्यालय तथा अपने समय के भारत की दशा का वर्णन किया है । परन्तु वे हुएनसांग के समान उपयोगी नहीं हैं ।
अन्य चीनी लेखकों में मात्वान लिन् तथा चाऊ-जू-कूआ का उल्लेख किया जा सकता है । मा त्वान लिन् के विवरण से हर्ष के पूर्वी अभियान के विषय में कुछ सूचना मिलती है । चाऊ-जू-कृआ चोल इतिहास के विषय में कुछ तध्य प्रस्तुत करता है ।
III. अरबी लेखक:
अरब व्यापारियों तथा लेखकों के विवरण से हमें पूर्वमध्यकालीन भारत के समाज एवं संस्कृति के विषय में जानकारी होती है । ऐसे लेखकों में अल्बरूनी का नाम सर्वप्रसिद्ध है । उसका जन्म 973 ई॰ में ख्वारिज्म (खीवा) में हुआ धा । उसका पूरा नाम अबूरेहान मुहम्मद इब्न अहमद अल्बरूनी था । प्रारम्भ में उसने साहित्य तथा विज्ञान का अध्ययन किया एवं इन विद्याओं में निपुणता हासिल की ।
उसकी विद्वता से प्रभावित होकर ख्वारिज्म के ममूनी शासक ने उसे अपना मन्त्री नियुक्त कर दिया । 1017 ई॰ में गजनी के सुल्तान महमूद ने ख्वारिज्म पर आक्रमण किया तथा उसे जीत लिया । अनेकों लोग बन्दी बनाये गये जिनमें अल्बरूनी भी एक था । महमूद उसकी योग्यता से अत्यन्त प्रभावित हुआ तथा उसने उसे राजज्योतिषी के पद पर नियुक्त कर दिया ।
भारतीय तथा यूनानी दोनों ही पद्धतियों से उसने ज्योतिष का अध्ययन किया तथा निपुणता प्राप्त की । गणित, विज्ञान एवं ज्योतिष के साथ ही साथ अल्बरूनी अरबी, फारसी एवं संस्कृत भाषाओं का भी अच्छा ज्ञाता था । वह महमूद गजनवी के साथ भारत आया था ।
किन्तु उसका दृष्टिकोण महमूद से पूर्णतया भिन्न था और वह भारतीयों का निन्दक न होकर उनकी बौद्धिक सफलताओं का महान् प्रशंसक था । भारतीय संस्कृति के अध्ययन में उसकी गहरी दिलचस्पी थी तथा गौता से वह विशेष रूप से प्रभावित हुआ । भारतीयों के दर्शन, ज्योतिष एवं विज्ञान सम्बन्धी ज्ञान की वह प्रशंसा करता है ।
अल्बरूनी सत्य का हिमायती तथा अपने विचारों का पक्का था । उसने भारतीयों से जो कुछ सुना उसी के आधार पर उनकी सभ्यता का विवरण प्रस्तुत कर दिया । अपनी पुस्तक “तहकीक-ए-हिन्द” (भारत की खोज) में उसने यहां के निवासियों की दशा का वर्णन किया है । इससे राजपूतकालीन समाज, धर्म, रीति-रिवाज, राजनीति आदि पर सुन्दर प्रकाश पड़ता है ।
ज्ञात होता है कि उसके समय में ब्राह्मण धर्म का बोल-बाला था तथा बौद्ध धर्म का अस्तित्व समाप्त हो गया था । अपने विवरण में वह बौद्ध धर्म का बहुत कम उल्लेख करता है । हिंदू समाज में प्रचलित वर्णव्यवस्था का उल्लेख भी वह करता है तथा बताता है कि ब्राह्मणों को समाज में सबसे अधिक प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त था । पेशावर स्थित कनिष्क विहार का भी वह विवरण देता है ।
अल्बरूनी का विवरण चीनी यात्रियों के विवरण की भाँति उपयोगी नहीं है क्योंकि उसे भारत में भ्रमण करने का बहुत कम अवसर प्राप्त हुआ । उसके समय में बनारस तथा कश्मीर शिक्षा के प्रमुख केन्द्र थे किन्तु वह इन स्थानों में भी नहीं जा सका ।
अल्बरूनी के अतिरिक्त अल-बिलादुरी, सुलेमान, अल मसऊदी, हसन निजाम, फरिश्ता, निजामुद्दीन आदि मुसलमान लेखक भी हैं जिनकी कृतियों से भारतीय इतिहास-विषयक महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है । इब्नखुर्दद्ब (नवीं शती) के ग्रन्थ ‘किलबुल-मसालिक वल ममालिक’ में भारतीय समाज तथा व्यापारिक मार्गों का विवरण दिया गया है । अबूजैद ने भारत में सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन का वर्णन किया है । अल मसूदी के ग्रन्थ ‘मुरुजुज जहब’ में भारतीय समाज का चित्रण है ।
मीर मुहम्मद मसूम के तारीख-ए-सिन्द अथवा तारीक-ए-मसूमी से सिन्ध देश का इतिहास (अरब आक्रमण के समय का) ज्ञात होता है । यह अरब आक्रमण के कारणों तथा मुहम्मद बिन कासिम की सफलताओं पर भी प्रकाश डालता है । शेख अब्दुल हसन कृत ‘कमिल-उत-तवारीख’ से मुहम्मद गोरी के भारतीय विजय का वृतान्त ज्ञात होता है । मिनहासुद्दीन के तबकात-ए-नासिरी में भी मुहम्मद गोरी की हिन्दुस्तान विजय का प्रामाणिक विवरण सुरक्षित है ।
उपर्युक्त लेखकों के अतिरिक्त तिब्बती बौद्ध लेखक तारानाथ (12वीं शतीं) के ग्रन्थों -कंग्युर तथा तंग्युर-से भी भारतीय इतिहास की कुछ बातें ज्ञात होती है । किन्तु उसके विवरण ऐतिहासिक नहीं लगते । वेनिस का प्रसिद्ध यात्री मार्कोपोलो तेरहवीं शती के अन्त में पाण्ड्य देश की यात्रा पर आया था । उसका वृत्तान्त पाण्ड्य इतिहास के अध्ययन के लिये उपयोगी है ।
(3) पुरातत्व सम्बन्धी साक्ष्य :
पुरातत्व वह विज्ञान है जिसके माध्यम से पृथ्वी के गर्भ में छिपी हुई सामग्रियों की खुदाई कर प्राचीन काल के लोगों के भौतिक जीवन का ज्ञान प्राप्त किया जाता है । प्राचीन इतिहास के ज्ञान के लिये पुरातात्विक प्रमाणों से बहुत अधिक सहायता मिलती है । ये साधन अत्यन्त प्रामाणिक है तथा इनसे भारतीय इतिहास के अनेक अन्ध-युगों (Dark-Ages) पर प्रकाश पड़ता है । जहाँ साहित्यिक साक्ष्य मौन है वही हमारी सहायता पुरातात्विक साक्ष्य करते है ।
पुरातत्व के अन्तर्गत तीन प्रकार के साक्ष्य आते हैं:
(II) मुद्रा
(III) स्मारक
इनका विस्तृत विवरण इस प्रकार है:
(I) अभिलेख:
प्राचीन इतिहास के पुनर्निर्माण में अभिलेखों से बड़ी मदद मिली है । अभिलेखों का ऐतिहासिक महत्व साहित्यिक साक्ष्यों से अधिक है । ये अभिलेख पाषाण- शिलाओं, स्तम्भों, ताम्रपत्रों, दीवारों, मुद्राओं एवं प्रतिमाओं आदि पर खुदे हुये मिले है । सबसे प्राचीन अभिलेखों में मध्य एशिया के बोघजकोई से प्राप्त अभिलेख है ।
यह हित्ती नरेश सप्पिलुल्युमा तथा मितन्नी नरेश मतिवजा (Mativaja) के बीच सन्धि का उल्लेख करता है जिसके साक्षी के रूप में वैदिक मित्र, वरुण, इन्द्र और नासत्य (अश्विनी) के नाम मिलते है । यह लगभग 1400 ई॰ पू॰ के है तथा इनसे ऋग्वेद की तिथि ज्ञात करने में सहायता मिलती है ।
पारसीक नरेशों के अभिलेख हमें पश्चिमोत्तर भारत में ईरानी साम्राज्य के विस्तार की सूचना देते हैं । परन्तु अपने यथार्थ रूप में अभिलेख हमें अशोक के शासन काल से ही मिलने लगे हैं । अशोक के अनेक शिलालेख एवं स्तम्भ-लेख देश के विभिन्न स्थानों से प्राप्त होते है । अभिलेखों से अशोक के साम्राज्य की सीमा, उसके धर्म तथा शासन नीति पर महत्वपूर्ण प्रकाश पड़ता है ।
देवदत्त रामकृष्ण भण्डारकर जैसे एक चोटी के विद्वान् ने केवल अभिलेखों के आधार पर ही अशोक का इतिहास लिखने का सफल प्रयास किया है । अशोक के बाद भी अभिलेखों की परम्परा कायम रही । अब हमें अनेक प्रशस्तियाँ मिलने लगती हैं जिनमें दरबारी कवियों अथवा लेखकों द्वारा अपने आश्रयदाताओं की प्रशंसा के शब्द मिलते है ।
यद्यपि ये प्रशस्तियाँ अतिरंजित हैं तथापि ऐसे इनसे सम्बन्धित शासकों के विषय में हमें अनेक महत्वपूर्ण बातें ज्ञात होती हैं । ऐसे लेखों में खारवेल का हाथीगुम्फा अभिलेख, शकक्षत्रप रुद्रदामन का जूनागढ़ अभिलेख, सातवाहन नरेश पुलुमावी का नासिक गुहालेख, गुप्तसम्राट समुद्रगुप्त का प्रयाग स्तम्भ-लेख, मालवनरेश यशोधर्मन् का मन्दसोर अभिलेख, चालुक्यनरेश पुलकेशिन् द्वितीय का ऐहोल का अभिलेख, प्रतिहारनरेश भोज का ग्वालियर अभिलेख आदि विशेष रूप से प्रसिद्ध है ।
इनमें से अधिकांश लेखों से तत्सबंधी राजाओं के सैनिक अभियानों की सूचना मिलती है । जैसे, समुद्रगुप्त के प्रयाग स्तम्भ-लेख में उसकी विजयी का विशद विवरण है । ऐहोल का लेख हर्ष-पुलकेशिन् युद्ध का विवरण देता है । ग्वालियर लेख से गुर्जर-प्रतिहार शासकों के विषय में विस्तृत सूचनायें प्राप्त होती है ।
गैर-सरकारी लेखों में यवन राजदूत हेलियाडोरस का बेसनगर (विदिशा) से प्राप्त गरुड़-स्तम्भ लेख विशेष रूप से उल्लेखनीय है जिससे द्वितीय शताब्दी ई. पू. में मध्य भारत में भागवत धर्म विकसित होने का प्रमाण मिलता है । कुछ अभिलेख मूर्तियों, ताम्रपत्रों आदि के ऊपर अंकित मिलते है । इनसे भी इतिहास विषयक अनेक उपयोगी सामग्रियाँ प्राप्त हो जाती है ।
मध्यप्रदेश के एरण से प्राप्त वाराह प्रतिमा पर हूणराज तोरमाण का लेख अंकित है जिससे उसके विषय में सूचनायें मिलती है । पूर्व मध्यकाल में शासन करने वाले राजपूतों के विभिन्न राजवंशों में से प्रत्येक के कई लेख मिलते है जिनसे सबंधित राजाओं की उपलब्धियों के साथ-साथ समाज एवं संस्कृति की भी जानकारी होती है ।
इनमें गुर्जर प्रतिहार वंश की जोधपुर तथा ग्वालियर प्रशस्ति, पालवंश का खालीमपुर, नालन्दा तथा भागलपुर के लेख, सेनवशी विजय सेन की देवपाड़ा प्रशस्ति, गहड़वाल शासक गोविन्दचन्द्र का कमौली लेख, परमार भोजदेव का वंसवर लेख तथा जयसिह की उदयपुर प्रशस्ति, चन्देल धंग का खजुराहो लेख, चेदि कर्ण का बनारस तथा यश कर्ण का जबलपुर ताम्रपत्र लेख, चाहमान विग्रहराज का दिल्ली शिवालिक स्तम्भ लेख आदि प्रमुख रूप से उल्लेखनीय हैं ।
राजपूत शासकों के अधीन सामन्तों के भी बहुसख्यक लेख मिलते है । पूर्व मध्य काल के बहुसंख्यक भूमि अनुदान-पत्र मिलतें है जिनसे प्रशासन के सामन्ती स्वरूप की सूचना मिलती है । दक्षिण भारत में शासन करने वाले पल्लव, चोल आदि प्रसिद्ध राजवंशों के भी अनेक लेख प्राप्त हुए है जिनसे उनके इतिहास की विस्तृत जानकारी मिलती है।
(II) मुद्रायें अथवा सिक्के:
अभीलेखों के अतिरिक्त प्राचीन राजाओं द्वारा डलवाये गये सिक्कों से भी प्रचुर ऐतिहासिक सामग्री उपलब्ध होती है । यद्यपि भारत में सिक्कों की प्राचीनता आठवीं शती ईसा पूर्व तक जाती है तथापि ईसा पूर्व छठीं शताब्दी से ही हमें नियमित सिक्के मिलने लगते है । प्राचीनतम सिक्कों को ‘आहत सिक्के’ (Punch-Marked Coins) कहा जाता है ।
इन्हीं को साहित्य में ‘कार्षापण’, ‘पुराण’, ‘धरण’, शतमान’ आदि भी कहा गया है । ये अधिकांशतः चाँदी के टुकड़े है जिनपर विविध आकृतियाँ चिह्नित की गयी हैं। इन पर लेख नहीं मिलते । सर्वप्रथम सिक्कों पर लेख लिखवाने का कार्य यवन शासकों ने किया । उन्होंने उत्तर में सोने के सिक्के चलवाये । साधारणतया 206 ई॰ पू॰ से लेकर 300 ई॰ तक के भारतीय इतिहास का ज्ञान हमें मुख्य रूप से मुद्राओं की सहायता से ही होता है ।
कुछ मुद्राओं पर तिथियाँ भी खुदी हुई हैं जो कालक्रम के निर्धारण में बड़ी सहायक हुई हैं । मुद्राओं से तत्कालीन आर्थिक दशा तथा सम्बन्धित राजाओं की साम्राज्य सीमा का भी ज्ञान हो जाता है । किसी काल में सिक्कों की बहुलता को देखकर हम यह निष्कर्ष निकालते है कि उसमें व्यापार-वाणिज्य अत्यन्त विकसित दशा में था ।
सिक्कों की कमी को व्यापार-वाणिज्य की अवनति का सूचक माना जा सकता है । पूर्व मध्य काल के प्रथम चरण में सिक्कों का अभाव सा है । इसी आधार पर यह काल आर्थिक पतन का काल माना गया है । इसके विपरीत द्वितीय चरण में सिक्कों के मिल जाने से हम निष्कर्ष निकालते है कि इस समय व्यापार-वाणिज्य का पुनरुत्थान हुआ, जिससे देश आर्थिक दृष्टि से समृद्ध हो गया ।
प्राचीन भारत के गणराज्यों का अस्तित्व मुद्राओं से ही प्रमाणित होता है । मालव, यौधेय आदि गणराज्यों तथा पांचाल के मित्रवंशी शासकों के विषय में हम मुख्यत: सिक्कों से ज्ञान प्राप्त करते हैं । कभी-कभी मुद्रा के अध्ययन से हमें सम्राटों के धर्म तथा उनके व्यक्तिगत गुणों का पता लग जाता है ।
उदाहरणार्थ हम कनिष्क तथा समुद्रगुप्त की मुद्राओं को ले सकते है । कनिष्क के सिक्कों से यह पता चलता है कि वह बौद्ध धर्म का अनुयायी था । समुद्रगुप्त अपनी कुछ मुद्राओं पर वीणा बजाते हुए दिखाया गया है । इससे उसका संगीत-प्रेम प्रकट होता है’ भारत के इण्डों-बख्त्री (Indo-Bactrian) शासकों के विषय में हमें उनके सिक्कों से ही ज्ञात होता है । इण्डो-यूनानी तथा इण्डो-सीथियन शासकों के इतिहास के प्रमुख सोत सिक्के ही है ।
शकपह्लव युग की मुद्राओं से उनकी शासन-पद्धति का ज्ञान होता है । इनके लेखों से पता चलता है कि पह्लव राजा अपने गवर्नर के साथ शासन करते थे । समुद्रगुप्त तथा कुमारगुप्त की अश्वमेध शैली की मुद्राओं से अश्व-मेध यज्ञ की सूचना मिलती है । सातवाहन नरेश शातकर्णि की एक मुद्रा पर जलपोत का चित्र उत्कीर्ण है जिससे ऐसा अनुमान लगाया गया है कि उसने समुद्र-विजय की थी । इसी प्रकार चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य की व्याघ्रशैली की मुद्राओं से उसकी पश्चिम भारत (गुजरात-काठियावाड़) के शकों की विजय सूचित होती है ।
(III) स्मारक:
इसके अन्तर्गत प्राचीन इमारतें, मन्दिर, मूर्तियों आदि आती हैं । इनसे विभिन्न युगों की सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक परिस्थितियों का बोध होता है । इनके अध्ययन से भारतीय कला के विकास का भी ज्ञान प्राप्त होता है । मन्दिर, विहारों तथा स्तूपों से जनता की आध्यात्मिकता तथा धर्मानिष्ठा का पता चलता है ।
हड़प्पा और मोहेनजोदडों की खुदाइयों से पाँच सहस्र वर्ष पुरानी सैंधव सभ्यता का पता चला है । खुदाई के अन्य प्रमुख स्थल तक्षशिला, मथुरा, सारनाथ, पाटलिपुत्र, नालन्दा, राजगृह, सांची और भरहुत आदि हैं । प्रयाग विश्वविद्यालय के तत्वावधान में कौशाम्बी में व्यापक पैमाने पर खुदाई की गयी है । यहाँ से उदयन का राजप्रसाद एवं घोषिताराम नामक एक विहार मिला है ।
अतरंजीखेड़ा आदि की खुदाईयों से पता चलता है कि देश में लोहे का प्रयोग ईसा पूर्व 1000 के लगभग प्रारम्भ हो गया था । इसी प्रकार दक्षिण भारत के कई स्थानों से भी खुदाइयों की गई है । पाण्डिचेरी के समीप स्थित अरिकमेडु नामक स्थान की खुदाई से रोमन सिक्के, दीप का टुकड़ा, वर्तन आदि मिलते है जिनसे पता चलता है कि ईसा की प्रारम्भिक शताब्दियों में रोम तथा दक्षिण भारत के बीच घनिष्ठ व्यापारिक सम्बन्ध था ।
पत्तडकल, चित्तलदुर्ग, तालकड, हेलविड, मास्की, ब्रह्मगिरि आदि दक्षिण भारत के कुछ अन्य महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल हैं जहाँ से खुदाइयाँ हुई हैं । विभिन्न स्थानों से मापा सामग्रियों से प्राचीन इतिहास के विभिन्न पहलुओं पर सुन्दर प्रकाश पड़ता है ।
देवगढ़ (झाँसी) का मन्दिर, भितर-गाँव का मन्दिर, अजन्ता की गुफाओं के चित्र, नालन्दा की बुद्ध की ताम्रमूर्ति आदि से हिन्दू कला एव सभ्यता के पर्याप्त विकसित होने के प्रमाण मिलते है । दक्षिण भारत से भी अनेक स्मारक प्राप्त होते है । तन्नोर का राजराजेश्वर मन्दिर द्रविड़ शैली का सबसे अच्छा उदाहरण है ।
पल्लवकाल के भी कई मन्दिर प्राप्त किये गये है । खजुराहो तथा उड़ीसा से प्राप्त बहुसख्यक मन्दिर हिन्दू-वास्तु एवं स्थापत्य के उत्कृष्ट स्वरूप को प्रकट करते है । भारत के अतिरिक्त दक्षिण-पूर्व एशिया के अनेक द्वीपों से हिन्दू संस्कृति से सम्बन्धित स्मारक मिलते हैं ।
इनमें मुख्य रूप से जावा का बोरोबुदुर स्तुप तथा कम्बोडिया के अंकोरवाट मन्दिर का उल्लेख किया जा सकता है । इसी प्रकार मलाया, बोर्नियो, बाली आदि में हिन्दू संस्कृति से सम्बन्धित अनेक स्मारक प्राप्त हये हैं ।
इनसे इन द्वीपों में हिन्दू संस्कृति के पर्याप्त रूप से विकसित होने के प्रमाण मिलते हैं । इस प्रकार भारतीय साहित्य, विदेशी यात्रियों के विवरण तथा पुरातत्व-इन तीनों के सम्मिलित साक्ष्य के आधार पर हम भारत के प्राचीन इतिहास का पुनर्निर्माण कर सकते है ।
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15 अगस्त पर निबंध हिंदी में | स्वतंत्रता दिवस Independence Day Essay in Hindi
इस वर्ष हम सब भारत की आजादी के 76 वर्ष पूरे होने पर आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। इस अवसर पर सरकार के द्वारा हर घर तिरंगा अभियान चलाया जा रहा है जिसमे भारतवासियों को 13 से 15 अगस्त तक अपने अपने घरों में तिरंगा लगाना है। जैसा कि सबको पता है कि 15 अगस्त 1947 को हमारा देश ब्रिटिश शासन से पूरी तरह आज़ाद हुआ था। तब से इस दिन को हम सभी भारतवासी बहुत ही उत्साह और गौरव के साथ मनाते हैं। आज़ादी मिलने के बाद से हर वर्ष हम इस दिन को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाते हैं। 15 अगस्त यानी कि स्वंत्रता दिवस को देश में राष्ट्रीय अवकाश के रूप में घोषित किया गया है। इस दिन सभी सरकारी कार्यालय जैसे बैंक, पोस्ट ऑफिस, अन्य सभी कार्यालय आदि में अवकाश होता है। इसके साथ ही सभी स्कूल, कॉलेजों और ऑफिसों में तिरंगा फहराया जाता है और कहीं-कहीं इस अवसर पर निबंध आदि प्रतियोगिता आयोजित की जाती है। यह पोस्ट ऐसे ही प्रतियोगियों के लिए है जो भी प्रतियोगिता में शामिल होने के लिए 15 अगस्त पर निबंध की तलाश कर रहे हैं। स्वतंत्रता दिवस पर आधारित किसी भी निबंध प्रतियोगिता में शामिल होने के लिए आप यहां से Independence Day Essay in Hindi प्राप्त कर सकते हैं।
15 अगस्त पर निबंध
15 अगस्त 1947 भारत के लिए बहुत भाग्यशाली दिन था। इस दिन अंग्रजों की लगभग 200 वर्ष गुलामी के बाद हमारे देश को आज़ादी प्राप्त हुई थी। भारत को आज़ादी दिलाने के लिए कई स्वतंत्रता सेनानियों को अपनी जान गवानी पड़ी थी। स्वतंत्रता सेनानियों के कठिन संघर्ष के बाद भारत अंग्रजों की हुकूमत से आज़ाद हुआ था। तब से ले कर आज तक 15 अगस्त को हम स्वतंत्रता दिवस मानते हैं।
स्वंत्रता दिवस को भारत में राष्ट्रीय अवकाश होता है। इसके एक दिन पहले भारत के राष्ट्रपति देश के समक्ष संबोधित करते हैं। जिसे रेडियो के साथ कई टीवी चैनेल्स में भी दिखया जाता है। स्वतंत्रता दिवस को हर वर्ष देश के प्रधानमंत्री लाल किला पर तिरंगा फहराते हैं। तिरंगा फहराने के बाद राष्ट्र गान गाया जाता है और 21 बार गोलियां चला कर सलामी भी दी जाती है। इसके साथ ही भारतीय सशस्त्र बल, अर्धसैनिक बल और एनसीसी कैडेड परेड करते हैं। इस दिन लाल किला से टीवी के डी डी नेशनल चैनल और आल इंडिया रेडियो के माध्यम से सीधा प्रसारण किया जाता है। आतंकवाद के खतरे को ध्यान में रखते हुए सुरक्षा के कड़े इंतजाम भी किये जाते हैं।
केवल देश की राजधानी के साथ देश के अन्य सभी राज्यों के मुख्यमंत्री भी सम्मान के साथ अपने राज्य में तिरंगा फहराते हैं। 15 अगस्त को हमारे महान स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि दी जाती और उनका सम्मान किया जाता है। इस दिन देशभक्ति के गीत और नारे लगाये जाते हैं। वहीं कुछ लोग पतंग उड़ा कर आजादी का पर्व मनाते हैं।
स्वतंत्रता दिवस पर और अधिक –
- 15 अगस्त पर कविता, शायरी, मैसेज, कोट्स
- 15 अगस्त पर भाषण हिन्दी में
- 15 अगस्त पर निबंध हिंदी में
- 15 अगस्त की इमेज
स्वतंत्रता दिवस पर निबंध 500 शब्दों में
भारत में हर वर्ष 15 अगस्त को स्वत्रंता दिवस मनाया जाता है। प्रत्येक व्यक्ति के लिए स्वतंत्रता का विशेष महत्व होता इसलिए हर भारतीय के लिए यह दिन बहुत महत्व रखता है। 15 अगस्त 1947 को भारत को अंग्रजों की परतंत्रता के बाद स्वतंत्रता प्राप्त हुई थी। स्वतंत्रता दिवस को हम राष्ट्रीय त्योहार के रूप में मानते हैं।
कई वर्षों के विद्रोहों के बाद ही हमने स्वतंत्रता प्राप्त की और 14 व 15 अगस्त 1947 की मध्यरात्रि को भारत एक स्वतंत्र देश बन गया। दिल्ली के लाल किले में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने पहली बार भारत के झंडे को फहराया था। उन्होंने मध्यरात्रि के स्ट्रोक पर “ट्रास्ट विस्ट डेस्टिनी” भाषण दिया। पूरे राष्ट्र ने उन्हें अत्यंत खुशी और संतुष्टि के साथ सुना। तब से हर वर्ष स्वतंत्रता दिवस पर, प्रधानमंत्री पुरानी दिल्ली में लाल किले पर राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं और जनता को संबोधित करते हैं। इसके साथ ही तिरंगे को 21 तोपों की सलामी भी दी जाती है।
15 अगस्त को ही आज़ादी का दिन क्यों चुना गया इसके पीछे भी एक अपनी कहानी है। 1947 में भारत में लार्ड माउंटबेटन को गवर्नर के पद पर नियुक्त किया गया था। 15 अगस्त उनका सौभाग्यशाली दिन था क्योकि इससे पहले 15 अगस्त को ही द्वितीय विश्व युद्ध में जापान ने ब्रिटेन के समक्ष समर्पण किया था। अतः इसलिए लार्ड माउंटबेटन ने पहले से ही 15 अगस्त को भारत की आज़ादी का दिन निर्धारित कर रखा था।
इस दिन सभी सरकारी दफ्तर, कार्यालयों में तिरंगा फहराया जाता है और राष्ट्रगान “जन-गण-मन” गया जाता है। स्कूल, कालेजो में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है और मिठाइयां बांटी जाती हैं। मंगल पांडे, सुभाषचंद्र चंद्र बोस, भगतसिंह, रामप्रसाद बिस्मिल, रानी लक्ष्मीबाई, महात्मा गांधी, अशफाक उल्ला खां, चन्द्रशेखर आजाद, सुखदेव, राजगुरु आदि कई स्वतंत्रता सेनानियों की कुर्बानियों को याद किया जाता है।
कुछ भारतीय पतंग उड़ा कर तो कुछ कबूतर उड़ा कर आज़ादी मानते हैं। प्रतिवर्ष स्वतंत्रता दिवस मनाना भारत के स्वतंत्रता के इतिहास को जिंदा रखता है और आजादी का सही मतलब लोगों को समझाता है।
स्वतंत्रता दिवस लेखन हिंदी में
- स्वतंत्रता दिवस भाषण
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इतिहास किसे कहते हैं. इसकी उत्पत्ति और परिभाषा | What is History, Definition and Origin in Hindi
इतिहास किसे कहते हैं. इसकी उत्पत्ति, महत्व और परिभाषा | What is History, its Definition, Imporatance and Origin in Hindi | Itihas Kise Kahate Hai
एक समय युद्ध और बड़ी बड़ी घटनाओं के विवरण को ही इतिहास माना जाता था. यह इतिहास राजा महाराजा और उनकी नीतियों के बारे में होता था. परंतु आम जनमानस और आधुनिक युग में बच्चों के मन में इतिहास को लेकर कुछ अलग ही सवाल होते हैं. जो हमारे दैनिक जीवन से जुड़े होते हैं. हम सभी के जीवन में कभी ना कभी कुछ ऐसे मोड़ आते हैं जब हम कुछ बातें और चीजों को जानने के लिए उत्सुक होते हैं. जैसे पुराने जमाने में टीवी और रेडियो जैसे उपकरण नहीं होते थे तो उस समय के लोग कैसे देश और दुनिया की अन्य खबरों के बारे में जानकारी रखते थे या प्राप्त करते थे.
जिस जमाने में हवाई जहाज, रेल और मोटर वाहन नहीं हुआ करते थे उस समय लोग कैसे दूरदराज की यात्राएं संपन्न करते थे. जो अन्न हम खाते हैं उसकी खेती की शुरुआत कब और कैसे हुई. हमारे आज के जीवन और रहन-सहन से उपजे इन सवालों के जवाब अतीत के झरोखे से झांककर ही तलाशे जा सकते हैं. इसलिए इतिहास सिर्फ बीते हुए कल के बारे में ही नहीं बल्कि आज के बारे में भी है. इतिहास सुदूर अतीत से शुरू हुई ऐसी यात्रा है जिसमें किसान, व्यापारी, तीर्थयात्री, धर्म और शिल्पकार आदि है. इतिहास आज राजा रानी महान लोगों की जीवनी और राजनीतिक घटनाओं का संकलन मात्र नहीं है. इतिहास आम लोगों के बारे में भी है. और आम लोगों के जीवन में आए बदलावों के बारे में भी है.
इतिहास की उत्पत्ति (History Origin)
इतिहास शब्द की उत्पति संस्कृत व्याकरण के विद्वानों के अनुसार इति+ह+आस , इन तीन शब्दों के रूप में स्वीकार की जाती हैं. जिसका अर्थ इस प्रकार से है- निश्चित रूप से ऐसा ही हुआ था. इतिहास शब्द का प्रयोग हमें अनेक प्राचीन ग्रंथों में भी देखने को मिलता हैं. इस शब्द का वर्णन अथर्ववेद में भी मिलता हैं. उपनिषद के अनुसार इतिहास को पांचवा वेद भी माना गया हैं. अंग्रेजी में इतिहास को हिस्ट्री (history) कहते हैं. यह शब्द यूनानी लोरोपला (loropla) से ग्रहण किया गया हैं.
विभिन्न इतिहासकारों द्वारा इतिहास की परिभाषा (History Definition)
डॉ. राधाकृष्णन के अनुसार इतिहास राष्ट्र की स्मरण शक्ति होती है. परंतु इस कथन से भी समस्त इतिहासकार पूर्ण रूप से सहमत नहीं है तथा इसमें कुछ सत्यता भी हो सकती हैं क्योंकि अनेक राष्ट्रों तथा मानव जातियों को अपने विस्मृत गौरव तथा अतीत की जानकारी इतिहास से होती है.
लालबहादुर वर्मा के अनुसार अतीत के प्रति मनुष्य का नैसर्गिक लगाव होता है, इतिहास इस लगाव को इतिहास बोध में बदल देता है. संवेदना और भावना के यथार्थ को बौद्धिक यथार्थ, ज्ञान व विवेक में विकसित कर सकता है. अर्थात उस लगाव को प्रासंगिक तथा उपयोगी बना सकता है.
कॉलिंगवुड के अनुसार इतिहास अद्वितीय ज्ञान है और यह मनुष्य के संपूर्ण ज्ञान का स्त्रोत है. यह सत्य ही प्रतीत होता है क्योंकि इतिहास में ही मनुष्य जाति का संपूर्ण अतीत समाया हुआ है.
चार्ल्स फर्थ के अनुसार इतिहास ज्ञान की एक शाखा नहीं अपितु एक विशेष प्रकार का ज्ञान है जो मनुष्य के दैनिक जीवन में उपयोगी है.
हेनरी पिनेरे के अनुसार इतिहास समाज में रहने वाले मनुष्य के कार्यों तथा उपलब्धियों की कहानी है.
रैपसन अनुसार घटनाओं अथवा विचारों का अति से संबंद्ध विवरण ही इतिहास है.
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3 thoughts on “इतिहास किसे कहते हैं. इसकी उत्पत्ति और परिभाषा | What is History, Definition and Origin in Hindi”
Thanks aapki bajah se Mera kaam ho Gaya or bhi esi chij dete rahiyega ok and again thanks so much
Very good difination in history
It is so helpful for us thanks
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सुभाष चन्द्र बोस पर निबंध (Subhash Chandra Bose Essay in Hindi)
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को हुआ और इनका निधन 18 अगस्त 1945 में हुआ था। जब इनकी मृत्यु हुयी तो ये केवल 48 वर्ष के थे। वो एक महान भारतीय राष्ट्रवादी नेता थे जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारत की आजादी के लिये द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बड़ी हिम्मत से लड़ा था। नेताजी 1920 और 1930 के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के स्वच्छंदभाव, युवा और कोर नेता थे। वो 1938 में कांग्रेस अध्यक्ष बने हालांकि 1939 में उन्हें हटा दिया गया था। नेताजी भारत के एक क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने बहुत संघर्ष किया और एक बड़ी भारतीय आबादी को स्वतंत्रता संघर्ष के लिये प्रेरित किया।
सुभाष चन्द्र बोस पर छोटे तथा बड़े निबंध (Short and Long Essay on Subhash Chandra Bose, Subhash Chandra Bose par nibandh Hindi mein)
सुभाष चन्द्र बोस पर निबंध – 1 (250 – 300 शब्द).
सुभाष चन्द्र बोस पूरे भारतवर्ष में नेताजी के नाम से मशहूर हैं। वो भारत के एकमहान क्रांतिकारी थे, जिन्होंने भारत की आजादी में बहुत योगदान दिया। 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा में कटक के एक अमीर हिन्दू परिवार में इनका जन्म हुआ।
प्रारंभिक शिक्षा
सुभाषजी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कटक में एंग्लों इंडियन स्कूल से पूरी की और कलकत्ता विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। वो एक बहादुर और महत्वाकांक्षी भारतीय युवा थे जिन्होंने सफलतापूर्वक आई.सी.एस परीक्षा पास होने के बावजूद, अपनी मातृभूमि की आजादी के लिये असहयोग आंदोलन से जुड़ गये।
आज़ाद हिन्द फ़ौज की स्थापना
महात्मा गांधी के साथ कुछ राजनीतिक मतभेदों के कारण, 1930 में कांग्रेस के अध्यक्ष होने के बावजूद उन्होंने कांग्रेस को छोड़ दिया। नेताजी ने अपनी खुद की भारतीय राष्ट्रीय शक्तिशाली पार्टी ‘आजाद हिन्द फौज’ बनायी क्योंकि उनका मानना था कि भारत को एक आजाद देश बनाने के लिये गांधीजी की अहिंसक नीति सक्षम नहीं है।
स्वतंत्रता संग्राम और मृत्यु
वो जर्मनी गये और कुछ भारतीय युद्धबंदियों और वहाँ रहने वाले भारतीयों की मदद से भारतीय राष्ट्रीय सेना का गठन किया। आजाद हिन्द फौज और एंग्लों अमेरिकन बलों के बीच एक हिंसक लड़ाई में दुर्भाग्यवश, नेताजी सहित आजाद हिन्द फौज को आत्मसमर्पण करना पड़ा। जल्द ही वे, टोक्यो के लिये प्लेन में छोड़े गये हालांकि फारमोसा के आंतरिक भाग में प्लेन दुर्घटनाग्रस्त हो गया। उस प्लेन दुर्घटना में नेताजी की मृत्यु हो गयी।
नेताजी का साहसिक कार्य आज भी लाखों भारतीय युवाओं को देश के लिये कुछ कर गुजरने के लिये प्रेरित करता है। सुभाष चंद्र बोस एक विचार के रूप में जन – जन के बीच सदा के लिए अमर रहेंगे। भारत देश ऐसे वीर सपूतों के योगदान के लिए सदा ऋणी रहेगा।
इसे यूट्यूब पर देखें : Subhash Chandra Bose par Nibandh
Subhash Chandra Bose par Nibandh – निबंध 2 (250 शब्द)
भारतीय इतिहास में सुभाष चन्द्र बोस एक सबसे महान व्यक्ति और बहादुर स्वतंत्रता सेनानी थे। भारत के इतिहास में स्वतंत्रता संघर्ष के लिये दिया गया उनका महान योगदान अविस्मरणीय हैं। वो वास्तव में भारत के एक सच्चे बहादुर हीरो थे जिसने अपनी मातृभूमि की खातिर अपना घर और आराम त्याग दिया था। वो हमेशा हिंसा में भरोसा करते थे और ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता पाने के लिये सैन्य विद्रोह का रास्ता चुना।
उनका जन्म एक समृद्ध हिन्दू परिवार में 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक में हुआ था। उनके पिता जानकी नाथ बोस थे जो एक सफल बैरिस्टर थे और माँ प्रभावती देवी एक गृहिणी थी। एक बार उन्हें ब्रिटिश प्रिसिंपल के ऊपर हमले में शामिल होने के कारण कलकत्ता प्रेसिडेंसी कॉलेज से निकाल दिया गया था। उन्होंने प्रतिभाशाली ढंग से आई.सी.एस की परीक्षा को पास किया था लेकिन उसको छोड़कर भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई से जुड़ने के लिये 1921 में असहयोग आंदोलन से जुड़ गये।
नेताजी ने चितरंजन दास के साथ काम किया जो बंगाल के एक राजनीतिक नेता, शिक्षक और बंगलार कथा नाम के बंगाल सप्ताहिक में पत्रकार थे। बाद में वो बंगाल कांग्रेस के वालंटियर कमांडेंट, नेशनल कॉलेज के प्रिंसीपल, कलकत्ता के मेयर और उसके बाद निगम के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रुप में नियुक्त किये गये।
अपनी राष्ट्रवादी क्रियाकलापों के लिये उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा लेकिन वो इससे न कभी थके और ना ही निराश हुए। नेताजी कांग्रेस के अध्यक्ष के रुप में चुने गये थे लेकिन कुछ राजनीतिक मतभेदों के चलते गांधी जी के द्वारा उनका विरोध किया गया था। वो पूर्वी एशिया की तरफ चले गये जहाँ भारत को एक स्वतंत्र देश बनाने के लिये उन्होंने अपनी “आजाद हिन्द फौज” को तैयार किया।
Essay on Subhash Chandra Bose in Hindi – निबंध 3 (400 शब्द)
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस भारत के एक महान देशभक्त और बहादुर स्वतंत्रता सेनानी थे। वो स्वदेशानुराग और जोशपूर्ण देशभक्ति के एक प्रतीक थे। हर भारतीय बच्चे को उनको और भारत की स्वतंत्रता के लिये किये गये उनके कार्यों के बारे में जरुर जानना चाहिये। इनका जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक में एक हिन्दू परिवार में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा उनके अपने गृह-नगर में पूरी हुयी थी जबकि उन्होंने अपना मैट्रिक कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कॉलेज से किया और कलकत्ता विश्वविद्यालय के स्कॉटिश चर्च कॉलेज से दर्शनशास्त्र में ग्रेज़ुएशन पूरा किया। बाद में वो इंग्लैंड गये और चौथे स्थान के साथ भारतीय सिविल सेवा की परीक्षा को पास किया।
अंग्रेजों के क्रूर और बुरे बर्ताव के कारण अपने देशवासियों की दयनीय स्थिति से वो बहुत दुखी थे। भारत की आजादी के माध्यम से भारत के लोगों की मदद के लिये सिविल सेवा के बजाय उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ने का फैसला किया। देशभक्त देशबंधु चितरंजन दास से नेताजी बहुत प्रभावित थे और बाद में बोस कलकत्ता के मेयर के रुप में और उसके बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये। बाद में गांधी जी से वैचारिक मतभेदों के कारण उन्होंने पार्टी छोड़ दी। कांग्रेस पार्टी छोड़ने के बाद इन्होंने अपनी फारवर्ड ब्लॉक पार्टी की स्थापना की।
वो मानते थे कि अंग्रेजों से आजादी पाने के लिये अहिंसा आंदोलन काफी नहीं है इसलिये देश की आजादी के लिये हिंसक आंदोलन को चुना। नेताजी भारत से दूर जर्मनी और उसके बाद जापान गये जहाँ उन्होंने अपनी भारतीय राष्ट्रीय सेना बनायी, ‘आजाद हिन्द फौज’। ब्रिटिश शासन से बहादुरी से लड़ने के लिये अपनी आजाद हिन्द फौज में उन देशों के भारतीय रहवासियों और भारतीय युद्ध बंदियों को उन्होंने शामिल किया। सुभाष चन्द्र बोस ने अंग्रेजी शासन से अपनी मातृभूमि को मुक्त बनाने के लिये “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” के अपने महान शब्दों के द्वारा अपने सैनिकों को प्रेरित किया।
ऐसा माना जाता है कि 1945 में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु एक प्लेन दुर्घटना में हुयी थी। ब्रिटिश शासन से लड़ने के लिये उनकी भारतीय राष्ट्रीय सेना की सभी उम्मीदें उनकी मृत्यु की बुरी खबर के साथ समाप्त हो गयी थी। उनकी मृत्यु के बाद भी, कभी न खत्म होने वाली प्रेरणा के रुप में भारतीय लोगों के दिलों में अपनी जोशपूर्ण राष्ट्रीयता के साथ वो अभी-भी जिदा हैं। वैज्ञानिक विचारों के अनुसार, अतिभार जापानी प्लेन दुर्घटना के कारण थर्ड डिग्री बर्न की वजह से उनकी मृत्यु हुयी। एक अविस्मरणीय वृतांत के रुप में भारतीय इतिहास में नेताजी का महान कार्य और योगदान चिन्हित रहेगा।
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- Essays in Hindi /
Essay on APJ Abdul Kalam: स्टूडेंट्स के लिए डॉ. ए पी जे अब्दुल कलाम पर निबंध
- Updated on
- जुलाई 25, 2024
एपीजे अब्दुल कलाम भारत के सबसे प्रतिष्ठित व्यक्तियों में से एक हैं। वह एक राष्ट्रपति, एक वैज्ञानिक और एक प्रेरणा के रूप में सभी के प्रिय हैं। कलाम एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे, जिनका भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान में योगदान अविश्वसनीय है। वह भारत के लाखों बच्चों को कड़ी मेहनत करने और अपने सपनों को पूरा करने के लिए प्रेरित करते हैं। वह वर्ष 2002 में भारत के 11वें राष्ट्रपति बने और उन्होंने अगले पांच वर्षों तक राष्ट्रपति के रूप में देश की सेवा की। Essay on APJ Abdul Kalam in Hindi स्टूडेंट्स के लिए परीक्षा और असाइनमेंट की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण विषय है। इस ब्लॉग के माध्यम से जानिए 100, 200 और 500 शब्दों में Essay on APJ Abdul Kalam in Hindi.
This Blog Includes:
Essay on apj abdul kalam in hindi 100 शब्दों में , essay on apj abdul kalam in hindi 200 शब्दों में, प्रस्तावना , मिसाइल मैन ऑफ इंडिया, निष्कर्ष , ए पी जे अब्दुल कलाम पर 10 लाइन्स .
ए पी जे अब्दुल कलाम भारत के 11वें राष्ट्रपति थे। वे एक महान वैज्ञानिक और इंजीनियर थे, जिन्होंने भारत को एक मजबूत मिसाइल कार्यक्रम विकसित करने में मदद की। उन्हें “मिसाइल मैन ऑफ इंडिया” के रूप में जाना जाता है।
कलाम का जन्म 15 अक्टूबर, 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में हुआ था। उन्होंने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। उन्होंने रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) में काम किया।
कलाम ने भारत को कई मिसाइलों, जैसे कि अग्नि और पृथ्वी का विकास करने में मदद की। उन्होंने भारत को अंतरिक्ष में भी एक प्रमुख शक्ति बनाने में मदद की।
कलाम एक प्रेरणादायक व्यक्ति थे। उन्होंने हमेशा युवाओं को अपने सपनों को पूरा करने के लिए प्रोत्साहित किया। वे एक महान देशभक्त थे और उन्होंने हमेशा भारत को एक बेहतर देश बनाने के लिए काम किया।
यह भी पढ़ें : ए पी जे अब्दुल कलाम की शायरी
डॉ. ए पी जे अब्दुल कलाम का पूरा नाम ‘अवुल पाकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम’ है। उनका जन्म 15 अक्टूबर, 1931 को तमिलनाडु राज्य के रामेश्वरम में एक तमिल मुस्लिम परिवार में हुआ था। डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम एक भारतीय वैज्ञानिक थे जिन्हें भारत के रक्षा शस्त्रागार के विकास में उनकी भूमिका के लिए जाना जाता है। वह वर्ष 2002-2007 के दौरान देश के राष्ट्रपति थे। वह बच्चों के बीच लोकप्रिय थे क्योंकि उन्होंने कई छात्रों से बातचीत की और उन्हें उज्ज्वल भविष्य के लिए कड़ी मेहनत करने के लिए प्रेरित किया।
डॉ. कलाम ने अपने जीवन की विनम्र शुरुआत एक नाव मालिक के बेटे के रूप में रामेश्वरम से की थी। उनकी कड़ी मेहनत और शैक्षणिक प्रतिभा ने उन्हें कुछ सबसे महत्वपूर्ण रक्षा कार्यों को करने के लिए आगे बढ़ाया जिसने देश को बदल दिया।
लंबी दूरी की क्रूज मिसाइल पृथ्वी और अग्नि के विकास में उनके योगदान के लिए उन्हें देश में ‘भारत के मिसाइल मैन’ के रूप में बहुत माना जाता था। उन्होंने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के शुरुआती दिनों में इसे विकसित करने में भी योगदान दिया।
एक प्रेरणादायक व्यक्ति के रूप में, डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को देश में हर कोई प्यार करता था और विशेष रूप से स्कूली बच्चे उनसे प्रेरित थे। 2015 में उनकी मृत्यु पर देश ने एक बड़ी क्षति के रूप में शोक व्यक्त किया था।
यह भी पढ़ें – एपीजे अब्दुल कलाम के अनमोल विचार
Essay on APJ Abdul Kalam in Hindi 500 शब्दों में
500 शब्दों में Essay on APJ Abdul Kalam in Hindi कुछ इस प्रकार है –
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का नाम विश्वभर में मशहूर है, और उन्हें 21वीं सदी के प्रमुख वैज्ञानिकों में गिना जाता है। वे भारत के 11वें राष्ट्रपति रहे हैं और अपने देश की सेवा की। वे न केवल एक प्रमुख वैज्ञानिक हैं, बल्कि एक राष्ट्रपति के रूप में उनका योगदान भारत के लिए अत्यंत मूल्यवान है। उन्होंने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे कई परियोजनाओं के नेतृत्व में थे, जिनसे समाज को लाभ पहुँचा, और उन्होंने अग्नि और पृथ्वी मिसाइलों के विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान किया। उनके परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान के कारण वे “भारत के मिसाइल मैन” के रूप में मशहूर थे, और उन्हें सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का जन्म तमिलनाडु में हुआ था। उस समय उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी, इसलिए उन्होंने छोटी उम्र से ही अपने परिवार की आर्थिक सहायता करना शुरू किया था। लेकिन उन्होंने कभी भी अपनी पढ़ाई को छोड़ने का निर्णय नहीं लिया। वह अपने परिवार के साथी होते हुए अपनी शिक्षा का पूरा करने में सफल रहे और स्नातक की डिग्री हासिल की। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्होंने 1998 में हुए पोखरण परमाणु परीक्षण के सदस्य के रूप में भी योगदान दिया।
एक एयरोस्पेस वैज्ञानिक के रूप में, कलाम ने रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के साथ अपने काम के माध्यम से भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
27 जुलाई, 2015 को आईआईएम शिलांग में एक व्याख्यान देते समय दिल का दौरा पड़ने से डॉ. कलाम का निधन हो गया। प्रेरणा स्रोत के रूप में उनकी विरासत आज भी कायम है और पूरे भारत में छात्रों और नागरिकों के बीच गूंजती रहती है।
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने देश के लिए अनगिनत योगदान किया है, लेकिन वे अपने सबसे बड़े योगदान के रूप में मिसाइलों के विकास के लिए प्रसिद्ध हुए, जिन्हें अग्नि और पृथ्वी के नाम से जाना जाता है।
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का देश के लिए योगदान
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने देश को तकनीकी रूप से आत्मनिर्भर बनाने में बड़ा योगदान दिया था। देश को अग्नि और पृथ्वी जैसी मिसाइलें देने का श्रेय उन्हें ही जाता है। वह एक शानदार वैज्ञानिक होने के साथ साथ एक कुशल इंजीनियर भी थे। वे युवा इंजीनियर्स के लिए एक पथ प्रदर्शक और प्रेरणा स्रोत थे। उन्होंने अपने नेतृत्व में भारत के लिए कई इंजीनियर और वैज्ञानिक तैयार किए।
2015 में शिलांग में छात्रों को व्याख्यान देते समय अचानक उन्हें दिल का दौरा पड़ा, जिसके कारण उनकी मृत्यु हो गई। वे एक प्रमुख वैज्ञानिक और अग्रणी इंजीनियर थे, जिन्होंने अपने पूरे जीवन को देश की सेवा में समर्पित किया, और उनकी मृत्यु देश की सेवा करते हुए हुई। डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के पास भारत को एक महान देश बनाने का दृष्टिकोण था। और उनके अनुसार युवा ही देश की असली संपत्ति हैं इसलिए हमें उन्हें प्रेरित और प्रेरित करना चाहिए।
ए पी जे अब्दुल कलाम पर 10 लाइन्स जो स्टूडेंट्स के निबंध लेखन में कारगर साबित हो सकती हैं, कुछ इस प्रकार हैं –
- डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम भारत के पूर्व राष्ट्रपति थे।
- उनका जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में हुआ था।
- अब्दुल कलाम एक प्रमुख वैज्ञानिक और अंतरिक्ष वैज्ञानिक थे।
- उन्होंने भारतीय मिसाइल प्रोग्राम को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ावा दिया और “मिसाइल मैन” के उपनाम से प्रसिद्ध हुए।
- उन्होंने भारत को अग्नि, पृथ्वी, और अन्य मिसाइल प्रणालियों की विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- डॉ. कलाम एक उपग्रह साइंटिस्ट भी थे और भारतीय अंतरिक्ष प्रोग्राम के सफलता में उनका महत्वपूर्ण योगदान था।
- उन्होंने अपने जीवन के दौरान शिक्षा और विज्ञान के क्षेत्र में युवाओं को प्रेरित करने के लिए कई पुस्तकें लिखी।
- वे भारतीय युवाओं के बीच महान प्रेरणा स्रोत रहे हैं।
- उन्होंने 2002 में भारतीय राष्ट्रपति के रूप में सेवा की और “व्यक्ति और विज्ञान” के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए प्रमुख रूप से याद किए जाते हैं।
- उनकी मृत्यु 27 जुलाई 2015 को हुई, लेकिन उनकी यादें और उनके कार्य आज भी हमारे दिलों में हैं और हमें प्रेरित करते हैं।
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डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, जिनका पूरा नाम अवुल पकीर जैनुलअब्दीन अब्दुल कलाम था, भारतीय वैज्ञानिक और राजनेता थे, जिन्होंने 2002 से 2007 तक भारत के 11वें राष्ट्रपति के रूप में सेवा की। उन्हें भारतीय मिसाइल विकास कार्यक्रमों में उनके योगदान के लिए “भारत के मिसाइल मैन” के रूप में पुकारा जाता है।
डॉ. अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु राज्य के दक्षिणी शहर रामेश्वरम में हुआ था।
डॉ. कलाम ने भारत के मिसाइल और अंतरिक्ष कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने अग्नि और पृथ्वी जैसी मिसाइलों के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया। उन्होंने भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान में भी महत्वपूर्ण योगदान किया, जैसे कि उपग्रह प्रक्षेपण यांत्रों पर काम किया।
डॉ. कलाम शिक्षा के पक्षधर और युवा जनता के प्रेरणास्त्रोत रहे। उन्होंने अक्सर छात्रों के साथ संवाद किया और उन्हें विज्ञान और प्रौद्योगिकी में करियर बनाने की प्रोत्साहित की। उन्होंने किताबें लिखी और भारतीय युवा मनोबल को बढ़ावा देने के लिए भाषण दिए।
आशा हैं कि आपको इस ब्लाॅग में Essay on APJ Abdul Kalam in Hindi के बारे में पूरी जानकारी मिल गई होगी। इसी प्रकार के हिंदी निबंध के ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।
विशाखा सिंह
A voracious reader with degrees in literature and journalism. Always learning something new and adopting the personalities of the protagonist of the recently watched movies.
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स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त पर निबंध - Essay On Independence Day In Hindi
Independence Day Essay in Hindi for School: क्या आप स्वतंत्रता दिवस पर हिंदी में एक अनोखा, प्रभावशाली और दिल को छू लेने वाला निबंध लिखना चाहते हैं? 100, 200, 500 शब्दों तक के विभिन्न Independence Day Essay in Hindi for School के लिए इस लेख को देखें।
Independence Day Essay in Hindi for School: 15 अगस्त 1947 को हमारे इस मातृभूमि का पहला स्वतंत्रता दिवस था. आज जिस भूमि को हम अपना आज़ाद वतन मानते हैं उसे आज़ाद हुए 78 वर्ष हो चुके हैं. सोने की चिड़िया से ब्रिटिश कॉलोनी बनने से लेकर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्रों में से एक बनने का भारत देश का लंबा सफर सराहनीय और विख्यात है. आज हम इस आज़ादी की हवा में सांस ले पा रहे हैं क्यूंकि हमारे पूर्वजों ने हमें यह आज़ादी दिलाने के लिए 200 वर्ष तक संघर्ष किया। इसलिए आजादी का यह जश्न पूरे देश में देशभक्ति और उत्साह के साथ मनाया जाता है। आज के दिन विद्यार्थियों में विशेष उत्सुकता देखी जाती है. देश भर के स्कूलों में इस अवसर को उत्साह के साथ मनाते हैं. देश के बच्चे और युवा ही इसका भविष्य है. इनमें देशभक्ति की भावना जगाने के लिए निबंध लेखन, स्पीच कॉम्पीटीशन्स, नाटक, पेट्रियोटिक गीत और नृत्य के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं जिनमे बच्चे बढ़-चढ़ के हिस्सा लेते हैं.
इस लेख में, हमने स्कूल स्टूडेंट्स के लिए अंग्रेजी में 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस पर निबंध संकलित किया है। ये निबंध 100 से 500 शब्दों तक के हैं। हमने उन छात्रों के लिए अतिरिक्त सामग्री भी प्रदान की है जो अपने निबंध को और लंबा करना चाहते हैं या उसके किसी हिस्से को संशोधित करना चाहते हैं।
- Essay on Independence Day in English
- स्कूल के बच्चो के लिए स्वतंत्रता दिवस भाषण 2024 हिंदी में
- Independence Day Essay 2024: Short and Long Essay for School Students!
हिंदी निबंध लेखन टिप्स
- अपने निबंध को उद्धरणों, कहावतों, नारों आदि के साथ शुरू से ही दिलचस्प बनाएं।
- सही व्याकरण के साथ सरल भाषा का प्रयोग करें।
- अपनी छाप छोड़ने के लिए दिल को छू लेने वाली कहावत, नारा या उद्धरण शामिल करें।
- सबसे महत्वपूर्ण बात यह सुनिश्चित करें कि आपका स्वतंत्रता दिवस निबंध तथ्यात्मक है और इसमें कोई गलत, असत्यापित जानकारी नहीं है।
- सत्यापित जानकारी प्राप्त करने के लिए जागरण जोश जैसे प्रामाणिक स्रोत का सहारा लें।
हिंदी स्वतंत्रता दिवस निबंध
- स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त 2024 पर भाषण - Independence Day Speech in Hindi
- Independence Day Short Speech in English 2024 for School Students
हिंदी स्वतंत्रता दिवस निबंध 100 शब्दों में
गूंज रहा है दुनिया में हिंदुस्तान का नारा चमक रहा है आसमान में तिरंगा हमारा!
15 अगस्त, 2024, ब्रिटिश कोलोनिल राज से भारत का 78वां स्वतंत्रता दिवस है. यह एक ऐतिहासिक दिन है और हमारे देशवासियों के बीच देशप्रेम, समर्पण और एकता का प्रतीक है.
स्वतंत्रता दिवस समारोह की शुरुआत दिल्ली के लाल किले पर प्रधान मंत्री द्वारा राष्ट्रीय ध्वज फहराने के साथ होती है, जिसके बाद पूरे देश में देशभक्ति समारोह मनाया जाता है. स्वतंत्रता दिवस हमारे स्वतंत्रता सेनानियों और नेताओं के बलिदान को याद करने का समय है जिन्होंने हमारी आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी. स्वतंत्रता दिवस हमें भारत माता की उन्नति और प्रगति के प्रति हमारे कर्तव्यों की याद दिलाता है.
हिंदी स्वतंत्रता दिवस निबंध 200 शब्दों में
"स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, और मैं इसे लेकर रहूँगा" - बाल गंगाधर तिलक
15 अगस्त यानि भारतीय स्वतंत्रता दिवस देश के इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण दिनों में से एक है। 15 अगस्त 2024 को ब्रिटिश कोलोनियल राज से हमारे देश की आजादी की 78 वीं वर्षगांठ है।
इस दिन को मनाने के लिए पूरा देश एक साथ आता है। माननीय प्रधान मंत्री नई दिल्ली में लाल किले पर भारतीय तिरंगे फहराते हैं। देश के सभी राज्यों में राज्याधिकारी और अन्य नेता राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं, देशभक्ति के गीत गाते हैं और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करते हैं जो हमारे अंदर एकता और गौरव की भावना का नवनिर्माण करते हैं.
भारत को 1947 में आजादी मिल गई थी लेकिन इस आजादी की लड़ाई कई वर्षों लंबी और कठिन थी. स्वतंत्रता की इस लड़ाई का नेतृत्व प्रख्यात नेताओं और स्वतंत्रता सेनानियों ने किया। खून पसीना बहाकर, अपने भविष्य का निःस्वार्थ त्याग कर, अपने जीवन का बलिदान दिया और करोड़ों भारतीयों को ब्रिटिश उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया। स्वतंत्रता दिवस हमारे पूर्वजों के इन बलिदानों की याद दिलाता है। यह हमें अपनी स्वतंत्रता को संजोने और राष्ट्र की भलाई के लिए काम करने की प्रेरणा देता है।
स्वतंत्रता दिवस समारोह से हमें विविधता में एकता की याद दिलाने के लिए है। यह राष्ट्रवाद की भावना को फिर से जगाने और हमारे देश की वृद्धि और विकास में योगदान देने का समय है।
हिंदी स्वतंत्रता दिवस निबंध 500 शब्दों में
तिरंगा सिर्फ आन या शान नहीं है हम भारतीयों की जान है।
स्वतंत्रता दिवस का प्रत्येक भारतीय के दिल में एक महत्वपूर्ण स्थान है क्यूंकि यह हिन्दुस्तानियों की एकता और अटूट भाईचारे की विजय के साथ चिह्नित है। यह आज़ादी हमें 200 सालों की यातना, उत्पीड़न, युद्ध और बलिदान के बाद 15 अगस्त, 1947 को मिली. ब्रिटिश कोलोनियल शासन से कड़ी मेहनत से हासिल की गई यह आजादी लोकतंत्र का जश्न है. यह भारत के इतिहास में एक नये युग की शुरुआत का प्रतीक है।
दशकों के अथक संघर्ष और बलिदान से सजी स्वतंत्रता की यात्रा कठिन थी। महात्मा गांधी, रानी लक्ष्मी बाई, जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह और सरोजिनी नायडू जैसे असंख्य नेताओं और सेनानियों की मेहनत और बलिदान को किसी प्रकाश की आवश्यकता नहीं है. देश को इन्हीं वीरों के बलिदान के कारण आजादी मिली, जिन्होंने भारत के उज्ज्वल भविष्य के लिए अपना आज कुर्बान कर दिया.
स्वतंत्रता दिवस समारोह की शुरुआत हमारे प्रधान मंत्री द्वारा नई दिल्ली के लाल किले पर राष्ट्रगान और इक्कीस तोपों की सलामी के साथ भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराने से होती है। इस भव्य समारोह में कई सरकारी अधिकारी, विदेशी गणमान्य, स्कूली छात्र और कई अन्य नागरिक शामिल होते हैं.
ध्वजारोहण के बाद, माननीय प्रधान मंत्री राष्ट्र को संबोधित करते हैं और पिछले वर्ष में राष्ट्र की उपलब्धियों को दर्शाते हुए और आने वाले वर्षों के लिए राष्ट्र के दृष्टिकोण को सामने रखते हुए भाषण देते हैं. विभिन्न जीवंत सांस्कृतिक कार्यक्रम, नृत्य, डायन इत्यादि भारत की विविध विरासत और एकता को प्रदर्शित करते हैं. स्वतंत्रता की हवा में हमारा राष्ट्रीय ध्वज गर्व से ऊँचा लहराता है.
स्वतंत्रता दिवस का जश्न पूरे देश में जोरों शोरों से मनाया जाता है। राजधानी दिल्ली से लेकर और सभी राज्य की राजधानियों और छोटे से छोटे गांव तथा कस्बों में सभी उत्साह से स्वतंत्रता का जश्न मनाते हैं. भारत के कोने-कोने में तिरंगा लहराता है. स्वतंत्रता दिवस समारोह देश के प्रति देशवासियों का प्रेम और देश के बेहतर भविष्य के प्रति प्रतिबद्धता के साथ आयोजित किए जाते हैं। सरकारी कार्यालयों, स्कूलों और कॉलेजों में तिरंगा फहराया जाता है। बच्चे हाथों में भारतीय झंडे लेकर शान से घूमते नजर आते हैं. यह उन बहादुर स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान की याद दिलाता है जिन्होंने देश की आजादी के लिए अताह संघर्ष किया। यह भारतीयों में गर्व और देशभक्ति की गहरी भावना पैदा करता है, उनसे अपनी कड़ी मेहनत से अर्जित स्वतंत्रता की रक्षा करने और उसे संजोने और देश की प्रगति में योगदान देने का आग्रह करता है।
यह महज़ एक बधाइयों और खुशियों का दिन नहीं है. स्वतंत्रता दिवस समारोह का सार केवल उल्लासपूर्ण समारोहों से परे है। स्वतंत्रता दिवस बच्चे, युवाओं और बुजुर्गों को उन चुनौतियों की याद दिलाता देता है है जिनका मुकाबला हमारे पूर्वजों ने किया था और उन चुनौतियों की दस्तक के बारे में आगाह करता है जो हमारे सामने हैं।
स्वतंत्रता दिवस केवल स्मरणोत्सव और उत्सव का दिन नहीं है, बल्कि स्वराज और राष्ट्र-निर्माण के प्रति हमारी प्रतिबद्धता का नवीनीकरण है। यह भारतीयों को एकता, समानता और सांप्रदायिक सद्भाव की भावना को कभी न खोने देने के लिए प्रेरित करता है।
लता मंगेशकर का लोकप्रिय व सदाबहार गीत के बोल “ए मेरे वतन के लोगों, ज़रा आँखों में भर लो पानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुर्बानी” हमारे स्वतंत्रता के सच्चे सार बयान करता है.
यह दिन है अभिमान का, है भारत माता के मान का ! नहीं जाएगा रक्त व्यर्थ, वीरों के बलिदान का !!
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Independence Day Slogans in Hindi
- ‘करो या मरो’,
- ‘आराम हराम है’
- ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो'
- ‘तुम मुझे खून दो मै तुम्हे आजादी दूंगा’
- ‘इंकलाब जिंदाबाद’
- ‘सत्यमेव जयते’
- ‘वंदे मातरम’
- ‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं उसे लेकर ही रहूँगा’
- ‘जय जवान जय किसान’
- ‘सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा’
- ‘विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा’
- ‘सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना, बाज़ु-ए-कातिल में है?
आप जागरण जोश पर सरकारी नौकरी , रिजल्ट , स्कूल , सीबीएसई और अन्य राज्य परीक्षा बोर्ड के सभी लेटेस्ट जानकारियों के लिए ऐप डाउनलोड करें।
- हम स्वतंत्रता दिवस क्यों मनाते हैं 200 शब्द निबंध? + "15 अगस्त यानि भारतीय स्वतंत्रता दिवस देश के इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण दिनों में से एक है। 15 अगस्त 2023 को ब्रिटिश कोलोनियल राज से हमारे देश की आजादी की 76 वीं वर्षगांठ है। इस दिन को मनाने के लिए पूरा देश एक साथ आता है।" स्वतंत्रता दिवस पर पूरे 200 शब्दों का निबंध देखने के लिए इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें.
- स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त पर निबंध कैसे लिखें? + 15 अगस्त, 1947 को भारत देश अंग्रेजो से आजाद हुआ. यह गौरव का दिन देशवासी उल्लास और दर्शप्रेम की भावना से मनाते हैं. 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस पर निबंध लिखने के लिए जरूररी है की आप इस आज़ादी के सफर की गाथा को दिल से समझ कर, आसान एवं सरल भाषा में प्रस्तुत करें.
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हम्पी का इतिहास, रोचक बातें, प्रसिद्ध मंदिरे | Hampi history in Hindi
Hampi in Hindi/ हम्पी मध्यकालीन हिन्दू राज्य विजयनगर साम्राज्य की राजधानी था। तुंगभद्रा नदी के तट पर स्थित यह नगर अब ‘हम्पी’ के नाम से जाना जाता है। यह प्राचीन शानदार नगर अब मात्र खंडहरों के रूप में ही अवशेष अंश में बची है। यहाँ के खंडहरों को देखने से यह सहज ही प्रतीत होता है कि किसी समय में हम्पी में एक समृद्धशाली सभ्यता निवास करती थी।
भारत के कर्नाटक राज्य में स्थित यह नगर यूनेस्को द्वारा ‘विश्व विरासत स्थलों’ की सूची में भी शामिल है। हर साल यहाँ हज़ारों की संख्या में सैलानी और तीर्थ यात्री आते हैं। हम्पी का विशाल फैलाव गोल चट्टानों के टीलों में विस्तृत है। घाटियों और टीलों के बीच पाँच सौ से भी अधिक स्मारक चिह्न हैं। इनमें मंदिर, महल, तहख़ाने, जल-खंडहर, पुराने बाज़ार, शाही मंडप, गढ़, चबूतरे, राजकोष…. आदि बहुत से इमारतें हैं।
हम्पी की जानकारी – Hampi Information in Hindi
हम्पी एक प्राचीन शहर है और इसका जिक्र रामायण में भी किया गया है और इतिहासकारों के अनुसार इसे किष्किन्धा के नाम से बुलाया जाता था, वास्तव में 13वीं से 16वीं सदी तक यह शहर विजयनगर राजाओं की राजधानी के रुप में समृद्ध हुआ। हंपी पर्यटक और तीर्थ यात्री दोनों के लिए स्वर्ग है हंपी का हर मोड़ आश्चर्यजनक है। हर स्मार्क जितना प्रकट करता है उससे ज़्यादा गुप्त रखता है, और हंपी एक खुला संग्रहालय है। यहां पर्यटको की विशाल लाइन लगी रहती हैं। 2014 के सांख्यिकी आँकड़ो के अनुसार, हम्पी गूगल पर खोजी जाने वाली कर्नाटक की सबसे प्रसिद्ध जगह है।
हम्पी का इतिहास – Hampi History in Hindi
हम्पी का इतिहास प्रथम शताब्दी से प्रारंभ होता है। उस समय इसके आसपास बौद्धों का कार्यस्थल था। सम्राट अशोक के माइनर रॉक शिलालेख नुत्तुर और उडेगोलन के अनुसार यह साम्राज्य 3 री शताब्दी के दौरान अशोक साम्राज्य का ही भाग था। बाद में हम्पी विजयनगर साम्राज्य की राजधानी बना।
विजयनगर हिन्दुओं के सबसे विशाल साम्राज्यों में से एक था। हरिहर और बुक्का नामक दो भाईयों ने 1336 ई. में इस साम्राज्य की स्थापना की थी। कृष्णदेव राय ने यहाँ 1509 से 1529 के बीच हम्पी में शासन किया और अपने साम्राज्य का विस्तार किया। हम्पी में शेष रहे अधिकतर स्मारकों का निर्माण कृष्णदेव राय ने करवाया था। यहाँ चार पंक्तियों की क़िलेबंदी नगर की रक्षा करती थी। इस साम्राज्य की विशाल सेना दूसरे राज्यों से इसकी रक्षा करती थी। विजयनगर साम्राज्य के अर्न्तगत कर्नाटक, महाराष्ट्र और आन्ध्र प्रदेश के राज्य आते थे।
उस समय विजयनगर में तक़रीबन 5,00,000 निवासी रहने लगे थे। कृष्णदेवराय की मृत्यु के बाद इस विशाल साम्राज्य को बीदर, बीजापुर, गोलकुंडा, अहमदनगर और बरार की मुस्लिम सेनाओं ने 1565 में नष्ट कर दिया। कर्नाटक राज्य में स्थित हम्पी को रामायणकाल में पम्पा और किष्किन्धा के नाम से जाना जाता था। हम्पी नाम हम्पादेवी के मंदिर के कारण पड़ा। हम्पादेवी मंदिर ग्यारहवीं से तेरहवीं शताब्दी के बीच बनवाया गया था। विजयनगर के प्राचीन भवनों का विस्तृत विवरण लांगहर्स्ट ने अपनी पुस्तक ‘हम्पी रुइंस’ में दिया है।
विजयनगर शहर भी ऋषि विद्यारण्य के सम्मान में विद्यानगर के रूप में भी जाना जाता है। इस जगह के स्मारकों को हरिहर से लेकर सदाशिव राया के समय से ई 1336-1570 के बीच बनाया गया था। इस अवधि में अभूतपूर्व पैमाने पर हिंदू धर्म, कला, वास्तुकला आदि का पुनरुत्थान देखा गया।
हम्पी के साथ एक पौराणिक एसोसिएशन भी जुडी हुई है। स्थानीय लोगों और लोककथाओं के अनुसार, इस क्षेत्र को रामायण में पौराणिक किष्किन्दा वानर राज्य कहा जाता था और यह वह जगह है जहां राम और लक्ष्मण ने सीता की खोज करने के लिए लंका जाने से पहले पनाह ली थी। आज के पहाड़ों और कई स्थानों पर सुग्रीव, बाली, हनुमान और राम के रुकने की कहानियां हैं।
हम्पी अपने खंड़हरों की सुंदर वास्तुकला के अलावा अपने धार्मिक इतिहास के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां कई प्रसिद्ध मंदिर हैं। कर्नाटक की प्रमुख नदियों में से एक तुंगभद्रा नदी, इस शहर में बहती है, तथा इन खंड़हरों के पास एक विस्मयदायक प्राकृतिक वातावरण को प्रदान करती है। आसपास के पहाड़ों के प्राकृतिक पत्थर इन विशाल शिलाखंड़ों के स्रोत हैं जिनका इस्तेमाल विजयनगर के राजाओं द्वारा हम्पी के मंदिरों के प्रभावशाली पत्थरों के नक्काशीदार खंभों के लिए किया गया था।
मंदिरों और प्राकृतिक दृश्यों के अलावा, यहां बड़ी खूबसूरती के साथ बनाए गए कई पानी के ताल और अन्य सार्वजनिक भवन भी हैं, जो विजयनगर के राजाओं के नगर नियोजन कौशल को दर्शाते हैं। यहां के जलसेतु और नहरें 13 से 15वीं सदी की जल प्रबंधन प्रणाली की एक झलक दिखलाते हैं।
मंदिरों का शहर – Hampi Temple in Hindi
हम्पी मंदिरों का शहर है जिसका नाम पम्पा से लिया गया है। पम्पा तुंगभद्रा नदी का पुराना नाम है। हम्पी इसी नदी के किनारे बसा हुआ है। पौराणिक ग्रंथ रामायण में भी हम्पी का उल्लेख वानर राज्य किष्किन्धा की राजधानी के तौर पर किया गया है। शायद यही वजह है कि यहाँ कई बंदर हैं। आज भी हम्पी के कुछ मंदिरों में भगवान की पूजा की जाती है। चलिए कुछ मंदिरो के बारे में जानते हैं…
विट्ठलस्वामी का मन्दिर (Vittala swamy temple) –
हम्पी में विट्ठलस्वामी का मन्दिर सबसे ऊँचा है। यह विजयनगर के ऐश्वर्य तथा कलावैभव के चरमोत्कर्ष का द्योतक है। मंदिर के कल्याणमंडप की नक़्क़ाशी इतनी सूक्ष्म और सघन है कि यह देखते ही बनता है। मंदिर का भीतरी भाग 55 फुट लम्बा है। और इसके मध्य में ऊंची वेदिका बनी है। विट्ठल भगवान् का रथ केवल एक ही पत्थर में से कटा हुआ है। मंदिर के निचले भाग में सर्वत्र नक़्क़ाशी की हुई है।
विरुपाक्ष मन्दिर (Virupaksha temple) –
विरुपाक्ष मन्दिर को पंपापटी मंदिर भी कहा जाता है, यह हेमकुटा पहाड़ियों के निचले हिस्से में स्थित है। हम्पी के कई आकर्षणों में से यह मुख्य है। 1509 में अपने अभिषेक के समय कृष्णदेव राय ने गोपुड़ा का निर्माण करवाया था। भगवान विठाला या भगवान विष्णु को यह मंदिर समर्पित है। इस विशाल मंदिर के अंदर अनेक छोटे-छोटे मंदिर हैं जो विरूपाक्ष मंदिर से भी प्राचीन हैं। मंदिर के पूर्व में पत्थर का एक विशाल नंदी है जबकि दक्षिण की ओर भगवान गणेश की विशाल प्रतिमा है। यहाँ अर्ध सिंह और अर्ध मनुष्य की देह धारण किए नरसिंह की 6.7 मीटर ऊँची मूर्ति है
रथ (Hampi ratha) –
विठाला मंदिर का मुख्य आकर्षण इसकी खम्बे वाली दीवारें और पत्थर का बना रथ है। इन्हें संगीतमय खंभे के नाम से जाना जाता है, क्योंकि प्यार से थपथपाने पर इनमें से संगीत निकलता है। पत्थर का बना रथ वास्तुकला का अद्भुत नमूना है। पत्थर को तराशकर इसमें मंदिर बनाया गया है, जो रथ के आकार में है। कहा जाता है कि इसके पहिये घूमते थे, लेकिन इन्हें बचाने के लिए सीमेंट का लेप लगा दिया गया है।
बडाव लिंग –
यह हम्पी के सबसे बड़े लिंग का छायाछित्र है। जो लक्ष्मी नरसिम्हा मूर्ति के बाजू में ही स्थित है। बडाव लिंग चारों ओर से पानी से घिरा है, क्योंकि इस मंदिर से ही नहर गुज़रती है। मान्यता है कि हम्पी के एक ग़रीब निवासी ने प्रण लिया था कि यदि उसकी क़िस्मत चमक उठी तो वह शिवलिंग का निर्माण करवाया। बडाव का मतलब ग़रीब ही होता है।
लक्ष्मी नरसिम्हा मंदिर (Lakshmi narasimha temple) –
हम्पी लक्ष्मी नरसिम्हा मंदिर या उग्र नरसिम्हा मंदिर बड़े चट्टानों से बना हुआ है, यह हम्पी की सबसे ऊँची मूर्ति है। यह क़रीब 6.7 मीटर ऊँची है। नरसिम्हा आदिशेष पर विराजमान हैं। असल में मूर्ति के एक घुटने पर लक्ष्मी जी की छोटी तस्वीर बनी हुई है, जो विजयनगर साम्राज्य पर आक्रमण के समय धूमिल हो गई।
हज़ारा राम मंदिर (Hazara rama temple) –
यह एक खंडहर मंदिर है जिसे हिन्दू धर्मशास्त्र में काफी महत्त्व दिया गया है। यह मंदिर 1000 से भी ज्यादा लकडियो की खुदाई और शिलालेख और रामायण की प्राचीन कथा के लिये जाना जाता है।
रानी का स्नानागार –
हम्पी में स्थित रानी का स्नानागार चारों ओर से बंद है। 15 वर्ग मीटर के इस स्नानागार में गैलरी, बरामदा और राजस्थानी बालकनी है। कभी इस स्नानागार में सुगंधित शीतल जल छोटी-सी झील से आता है, जो भूमिगत नाली के माध्यम से स्नानागार से जुड़ा हुआ था। यह स्नानागार चारों ओर से घिरा और ऊपर से खुला है।
कमल महल (Lotus Temple) –
कमल महल हज़ारा राम मंदिर के समीप है। यह महल इन्डो-इस्लामिक शैली का मिश्रित रूप है। कहा जाता है कि रानी के महल के आसपास रहने वाली राजकीय परिवारों की महिलाएँ आमोद-प्रमोद के लिए यहाँ आती थीं। महल के मेहराब बहुत आकर्षक हैं।
रघुनाथास्वमी मंदिर (Raghunath swamy temple) –
मल्यावंता रघुनाथास्वमी मंदिर प्राचीन भारतीय शैली की वास्तुकला में बनाया गया है। मल्यावंता रघुनाथास्वमी मंदिर जमीन से 3 किलोमीटर निचे बना हुआ है। इसकी अंदरूनी दीवारों पर अजीब दिखावा किया गया है और मछली और समुद्री जीवो की कलाकृतियाँ भी बनायी गयी है।
हाउस ऑफ़ विक्टरी –
हाउस ऑफ़ विक्टरी स्थान विजयनगर के शासकों का आसन था। इसे कृष्णदेवराय के सम्मान में बनवाया गया जिन्होंने युद्ध में ओडिशा के राजाओं को पराजित किया था। वह हाउस ऑफ़ विक्टरी के विशाल सिंहासन पर बैठते थे और नौ दिवसीय दसारा पर्व को यहाँ से देखते थे।
हाथीघर –
हम्पी का हाथीघर जीनान क्षेत्र से सटा हुआ है। यह ग़ुम्बदनुमा इमारत है जिसका इस्तेमाल राजकीय हाथियों के लिए किया जाता था। इसके प्रत्येक चेम्बर में एक साथ ग्यारह हाथी रह सकते थे। यह हिन्दू-मुस्लिम निर्माण कला का उत्तम नमूना है।
इसके अलावा हम्पी के और आकर्षक स्माारक –
पवित्र केंद्र, वैश्यालय ‘स्ट्रीट, अच्युत राय के मंदिर, ससिवेकलु गणेश, रॉयल केंद्र, महानवमी डिब्बा, ग्रनारीस, हरिहर पैलेस वीरा, रिवरसाइड खंडहर, करैले क्रॉसिंग, जज्जल मंडप, पुरंदरदास मंडप, तालरिगट्टा गेट अहमद खान मस्जिद और मकबरे, कमालपुर, पुरातत्व संग्रहालय, भीमा के गेटवे, गनीगित्ति मंदिर, गुंबददार गेटवे, अनेगोंदी, विरुपपुर गडदे, बुक्का के जलसेतु, हाकपा मंडप, पंपा सरोवर, माटुंगा हिल।
हम्पी के बारे रोचक बाते – Interesting Facts About Hampi in Hindi
1). कहा जाता है कि हम्पी के हर पत्थर में कहानी बसी है। यहाँ दो पत्थर त्रिकोण आकार में जुड़े हुए हैं। दोनों देखने में एक जैसे ही हैं, इसलिए इन्हें सिस्टर स्टोंस कहा जाता है। इसके पीछे भी एक कहानी प्रचलित है। दो ईर्ष्यालु बहनें हम्पी घूमने आईं, वे हम्पी की बुराई करने लगीं। शहर की देवी ने जब यह सुना तो उन दोनों बहनों को पत्थर में तब्दील कर दिया।
2). मंदिर में प्रसिद्ध संगीतमय पिल्लर बने हुए है। ब्रिटिश हमेशा से ही इस चमत्कार के पीछे के कारण को जानना चाहते थे और इसीलिए उन्होंने यह देखने के लिये की पिल्लर के अंदर तो कुछ नही उन्होंने दो पिल्लरो को तोडा भी था। लेकिन पिल्लर में उन्हें ऐसा कुछ नही मिला जिससे आवाज़ निकलती हो। आज हमें ब्रिटिशो द्वारा तोड़े गए वो दो पिल्लर दिखाई देते है।
3). मंदिर से लगा हुआ जो रोड है वहा एक समय में घोड़ो को बेचने का बाज़ार हुआ करता था। आज भी हमें खंडहर के रूप में बाज़ार दिखाई देता है। मंदिर में भी हमें घोड़े बेचने वाले कुछ लोगो के छायाचित्र दिखाई देते है।
4). यह माना जाता है कि एक समय में हम्पी रोम से भी समृद्ध नगर था। प्रसिद्ध मध्यकालीन विजयनगर राज्य के खण्डहर वर्तमान हम्पी में मौजूद हैं। इस साम्राज्य की राजधानी के खण्डहर संसार को यह घोषित करते हैं कि इसके गौरव के दिनों में स्वदेशी कलाकारों ने यहाँ वास्तुकला, चित्रकला एवं मूर्तिकला की एक पृथक शैली का विकास किया था। हम्पी पत्थरों से घिरा शहर है। यहाँ मंदिरों की ख़ूबसूरत शृंखला है, इसलिए इसे मंदिरों का शहर भी कहा जाता है।
5). हम्पी दरअसल यह गाँव है, जो विकास की रफ़्तार में काफ़ी पिछड़ा हुआ है। यहाँ के निवासियों को बिल्कुल नहीं पता कि सदियों पहले यह जगह कैसी हुआ करती थी। नव वृंदावन मंदिर तक पहुँचने के लिए नाव के ज़रिए नदी पार करनी पड़ती है, जिसे कन्नड़ में टेप्पा कहा जाता है। यहाँ के लोगों का विश्वास है कि नव वृंदावन मंदिर के पत्थरों में जान है, इसलिए लोगों को इन्हें छूने की इजाज़त नहीं है।
6). यहाँ स्थापित इस्लामिक क्वार्टर को कभी-कभी मूरिश क्वार्टर भी कहते है, जो उत्तरी मल्यावंता पर्वत और तलारिगत्ता गेट के बीच बना है।
7). आर्कियोलॉजिस्ट के अनुसार, उच्च श्रेणी के मुस्लिम अधिकारी और दरबार के मुख्य व्यक्ति और मिलिट्री ऑफिसर इस जगह पर रहते है।
हम्पी कैसे जाएँ – How to reach hampi
दक्षिणी किनारे पर स्थित हम्पी खूबसूरत होने के साथ-साथ ऐतिहासिक रूप से भी काफी समृद्ध है। अगर आप भी इतिहास में दिलचस्पी रखते हैं और हम्पी जाने का प्लान बना रहे हैं इस तरह से जाएँ..
हवाई मार्ग – कर्नाटक का हुबली एयरपोर्ट हम्पी का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट है जो यहां से 166 किलोमीटर दूर है। बेंगलुरू से नियमित फ्लाइट्स हुबली आती हैं। यहां आप कैब या बसे लेकर जा सकते हैं।
रेल मार्ग – हम्पी का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन हॉस्पेट जंक्शन है जो हम्पी से महज 13 किलोमीटर दूर है। हॉस्पेट, देश के प्रमुख शहरों से रेल मार्ग के जरिए जुड़ा हुआ है और बेंगलुरु, हैदराबाद और गोवा से कई नियमित ट्रेनें यहां आती हैं। यहाँ से आप वाहन लेकर पहुँच सकते हैं।
सड़क मार्ग – कर्नाटक के सभी प्रमुख शहरों से हम्पी बस सर्विस के जरिए जुड़ा हुआ है। कर्नाटक स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन की बसों के अलावा कई प्राइवेट और टूरिस्ट बसें भी नजदीकी शहरों से हम्पी के लिए चलती हैं।
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1 thought on “हम्पी का इतिहास, रोचक बातें, प्रसिद्ध मंदिरे | hampi history in hindi”.
Vijaynagar’s soldier system is required for all of us
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Freedom Fighters in Hindi | भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी
- Post author By Admin
- January 24, 2022
भारत बहुत लम्बे समय तक अंग्रेजो के अधीन था, बहुत लम्बे समय तक अंग्रेजो के अधीन रहने बाद 15 अगस्त 1947 को हमारे देश को आजादी मिली।
लेकिन क्या हमें आजादी ऐसे ही मिल गयी थी, क्या इतने सालों के जुल्म को खत्म करने के लिए अंग्रेज सरकार ऐसे ही मान गयी थी।
नहीं, अंग्रेज सरकार ने यह माना नहीं था, उन्हें हमें आजाद करने का फैसला मानना पड़ा था, क्यूंकि भारत के कईं शूरवीर लोगो ने उन्हें ऐसा करने पर मजबूर कर दिया था।
हम उन शूरवीरों को अब freedom fighters यानि की आज़ादी के लिए लड़ने वाले क्रांतिकारी कहते है। आज हम इस freedom fighters in hindi ब्लॉग में उन्ही साहसी लोगो के बारे में बात करेंगे।
जिनके निरंतर प्रयासों और बलिदानो के बाद आज हम अपने देश में आज़ाद है और अपने अनुसार अपनी ज़िन्दगी जी सकते है।
आज़ादी की इस लड़ाई में अलग अलग लोगों ने भाग लिया, किसी ने शांति के साथ अंग्रेजो तक अपनी बात पहुंचाई तो किसी ने अपने अंदर पनपन रहे देश के लिए ज़ज़्बे के साथ अंग्रेजी हकूमत की टस तोड़ी।
इन सब लोगों का तरीका बेशक अलग अलग हो लेकिन सबके मन में एक ही विचार था की हमें हमारे देश को आज़ादी दिलानी है।
आज हम इन्ही लोगो के बारे में बात करेंगे और कोशिश करेंगे की हम इन लोगों से प्रेरणा ले सके और ज़रूरत पड़ने पर देश हित के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर सकें।
Table of Contents
Indian Freedom fighters in Hindi
जैसा की हमनें आपको बताया की भारत को आज़ादी दिलाने में बहुत सारे लोगों ने अपना अपना योगदान दिया, ऐसे बहुत से लोग है,
जिन्होंने इस लड़ाई में अपना योगदान दिया था लेकिन उनका नाम इतिहास के पन्नो में कहीं खो के रह गया है।
भारत के वह शूरवीर इतने है की यह सम्भव ही नहीं है की हम उन सबका नाम अपने इस freedom fighters in hindi ब्लॉग में लिख सकें।
लेकिन हम कोशिश करेंगे की हम अधिक से अधिक स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में आपको जानकारी दे सकें।
पर जिन जिन फ्रीडम फाइटर्स के नाम हम इस ब्लॉग में नहीं लिख पाए, course mentor की पूरी टीम उनका भी पूरा सम्मान करती है और देश के लिए दिए उनके बलदानों के लिए उनका धन्यवाद भी करती है।
तो चलिए अब हम आपके सामने freedom fighters in Hindi लिस्ट पेश करते है -:
मंगल पाड़े का जन्म 19 जुलाई 1827 को उत्तर पदेश के बलिया जिले के एक गाँव नगवा में हुआ था। इनका जन्म ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
इनके जन्म को लेकर इंतिहासकारों की अलग अलग राय है, कईं इतिहासकार इनका जन्म फैजाबाद जिले के अकबरपुर तहसील में भी बताते है। इनके पिता का नाम दिवाकर पांडे और माता का नाम अभय रानी था।
इन्होंने भारत की आजादी की पहली लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी, बहुत लोग इन्हें भारत का प्रथम स्वतरंता सेनानी भी मानते है।
वह पहले ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में भर्ती हुए थे, वह सेना में पैदल सेना के सिपाही थे, जिनमें उनका सिपाही नंबर 1446 था।
1857 में जब अंग्रेजी हकूमत के खिलाफ पहली बार विद्रोह किया गया, उस विद्रोह में मंगल पांडे जी का अहम योगदान था।
1857 में हुआ यह विद्रोह ही भारत की आजादी के जंग में नींव की तरह साबित हुआ, इस विद्रोह के बाद ही भारत में आजादी के लिए लड़ाई की लहर दौड़ गई थी।
मंगल पांडे जी को इस विद्रोह की वजह से ईस्ट इंडिया कंपनी ने गद्दार घोषित कर दिया था और फिर 8 अप्रैल 1857 को उन्हें फांसी दे दी गई।
Facts about Mangal Pandey
यह है मंगल पांडे जी के बारे में कुछ अहम बातें -:
- इन्होंने ने 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ पहली जंग शुरू की थी।
- जब वह east इंडिया कंपनी सेना में थे तो उस समय कंपनी ने सेना को गाय और सूअर के मास से बने कारतूस दिए थे, लेकिन भारत के बहुत सारे सैनिकों ने उन्हें इस्तेमाल करने से मना कर दिया था, क्यूंकी कारतूस को मुँह से छीलना पड़ता था, उस समय भारतीय हिन्दू और मुस्लिम सैनिकों ने विद्रोह किया था और मंगल पांडे जी ने इस विद्रोह का नेतृत्व किया था।
- कहा जाता है की मंगल पांडे जी अंग्रेजी हकूमत के इस फैसले पर इतना गुस्सा थे की उन्होंने अंग्रेजी Lieutenant Baugh पर गोली चला दी, गोली का निशाना तो चूक गया था, लेकिन Lieutenant को वहाँ से जान बचा कर भागना पड़ गया था।
- इनके जीवन पर मंगल पांडे – दी राइज़ींग नाम से मूवी बन चुकी है, जिसमें आमिर खान जी ने मुख्य किरदार निभाया।
महात्मा गाँधी
हमारी इस freedom fighters in Hindi की लिस्ट में अगला नाम है महात्मा गांधी जी का। उनका पूरा नाम था मोहनदास कर्मचंद गांधी।
उनके पिता का नाम कर्मचंद गांधी और माता का पुतलीबाई था। उन्होंने देश को आजाद करवाने में एक बहुत अहम भूमिका निभाई।
वह एक बहुत साफ दिल और साधारण जीवन जीने वाले व्यक्ति थे, वह जो धोती पहनते थे उसके लिए सूत वह खुद चरखा चला कर कातते थे।
देश को आजाद करवाने के लिए उन्होंने कईं आंदोलन किए, वह कहीं पर भी अन्याय होता हुआ नहीं देख पाते थे। साउथ अफ्रीका में अश्वेत लोगो पर हो रहे जुल्म पर भी गांधी जी ने अपनी आवाज उठाई थी।
उनके इन योगदानों और उनके विचारों के वजह से आज केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरा विश्व उनसे प्रेरणा लेता है। उनके अहम योगदानों की वजह से भारत में उन्हें राष्ट्रपिता कहा जाता है।
Facts about Mahatma Gandhi Ji
यह है महात्मा गांधी जी के बारे कुछ facts जो की आपको पता होने चाहिए -:
- उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा Alfred हाईस्कूल, राजकोट से प्राप्त की थी।
- उनके जन्म दिवस 2 अक्टूबर को पूरे विश्व में अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस मनाया जाता है।
- महात्मा गांधी जी के 2 बड़े भाई और 1 बड़ी बहन थी।
- महात्मा गांधी जी को महात्मा का टाइटल रबिंद्रनाथ टैगोर जी ने दिया था।
- गांधी जी को 5 बार नोबेल पीस प्राइज के लिए नॉमिनेट किया गया था, पहली बार सन 1937, 1938, 1939, 1947 और उनकी मृत्यु से कुछ दिन पहले यानी की जनवरी 1948 में।
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शहीद सरदार भगत सिंह जी
जब भी freedom fighters in Hindi की बात होती है तो सरदार भगत सिंह जी का नाम जरूर लिया जाता है।
आखिर लिया भी क्या ना जाए देश की आजादी में जो उनके योगदान है, उसके लिए पूरा भारत उनका आभारी है।
भगत सिंह जी का जन्म 28 सितंबर 1907 को हुआ था और केवल 24 वर्ष की उम्र में 23 मार्च 1931 को वो देश के लिए शहीद हो गए।
उन्हें अंग्रेजी सरकार द्वारा फांसी दे दी गई थी, भगत सिंह जी के विचार बाकी स्वतंत्रता सेनानियों से अलग थे, इसलिए अधिकतर स्वतंत्रता सेनानी उनका खुल के समर्थन नही कर पाते थे।
लेकिन भगत सिंह जी हर एक सेनानी की सोच का मान रखते थे, जिन स्वतंत्रता सेनानियो की सोच उनसे अलग थी, वह उन्हे भी पूरा सम्मान दिया करते थे।
भगत सिंह जी ने देशवासियों के मन में देश की आजादी के चिंगारी जगाने में बहुत अहम योगदान दिया।
Facts about Bhagat Singh Ji -:
यह है सरदार भगत सिंह जी से जुड़ी कुछ बातें -:
- जब भगत सिंह जी के माता पिता उनकी शादी करवाना चाहते थे तो भगत सिंह जी ने यह कह कर घर छोड़ दिया था की अगर देश की आजादी से पहले मेरी शादी होगी तो मेरी दुल्हन केवल मौत होगी।
- उन्होंने और बटुकेश्वर दत्त जी ने मिलकर असेंबली हॉल, दिल्ली में बम फेंके थे और इंकलाब ज़िंदाबाद के नारे लगाए थे। वहां पर बम गिराने के बाद वह भागे नही बल्कि खुद पकड़े गए थे।
- पकड़े जाने पर उन्होंने किसी तरह का डिफेंस नही मांगा और इसे भारत में आजादी की जज्बे को फैलाने के लिए प्रयोग किया।
- उन्हें मौत की सजा 7 अक्टूबर 1930 को सुनाई गई थी। जेल में रहते हुए उन्होंने भारतीय कैदियों और बाहरी कैदियों के बीच हो रहे भेदभाव को देखकर भूख हड़ताल कर दी थी।
- भगत सिंह जी पर बहुत फिल्में बनी है, लेकिन उनमें से The Legend of Bhagat Singh मूवी सबसे अधिक प्रसिद्ध है, इस मूवी में अजय देवगन जी ने प्रमुख भूमिका निभाई है।
सुभाषचद्र बोस
अगली महान शख्सियत जो की हमारी इस freedom fighters in Hindi लिस्ट में है, वह है सुभाष चंद्र बोस।
सुबास चंद्र बोस जी का जन्म 23 जनवरी 1897 में हुआ था और उनकी मृत्यु 18 अगस्त 1945 में देश की आजादी से तकरीबन 2 साल पहले हो गई थी।
सुभाष चंद्र बोस जी को सब लोग नेताजी सुभाष चंद्र बोस कहते है। उन्होंने देशवासियों को आजादी के लिए लड़ने की प्रेरणा दी।
उन्होंने नारा दिया था “तुम मुझे खून दो, मै तुम्हें आजादी दूंगा”। यह नारा आज भी सभी भारतीयों के दिलो में पत्थर पर लिखें अक्षरों की तरह छपा हुआ है।
सुभाष चंद्र बोस ने देश की आजादी की लड़ाई में बहुत अहम योगदान दिया।
Facts about Subhas Chandra Bos
यह है सुभाषचंद्र बोस से जुड़ी कुछ बातें -:
- सुभाष चंद्र बोस जी स्वामी विवेकानंद जी और श्री रामकृष्ण परमहंसा जी के विचारो से बहुत प्रभावित थे।
- सुभाष चंद्र बोस जी देश की आजादी के लिए लड़ते हुए 11 बार जेल गए।
- नेताजी ने जर्मनी में रहते हुए देश की आजादी के लिए लोगो को बहुत सपोर्ट हासिल की।
- नेताजी की मौत आज भी एक रहस्य है, लेकिन अधिकतर लोगो का कहना है की उनकी मौत ताइवान में हुए प्लेन क्रैश के समय 18 अगस्त 1945 को हो गई थी।
- कईं लोगों का मानना है की उनकी मौत प्लेन क्रैश में हुई थी और यह वहाँ से बचकर, अपनी पहचान छुपा कर रहने लगे थे।
चंद्रशेखर आज़ाद
चंद्रशेखर आजाद जी का जन्म 23 जुलाई 1906 को वर्तमान अलीराजपुर जिले में हुआ था, उनका नाम चंद्र शेखर तिवारी था। उन्हें आजाद और पंडित जी जैसे उपनामों से बुलाया जाता था।
वह शहीद भगत सिंह जी के साथी थे, वह 9 अगस्त 1925 को हुए काकोरी काण्ड में शामिल थे, जिसमें अंग्रेजी सरकार के खिलाफ युद्ध लड़ने के लिए हथियार खरीदने के लिए अंग्रेजी सरकार का ही खजाना लूट लिया गया था।
उन्होंने भगत सिंह जी के साथ मिलकर लाल लाजपत राय जी की मौत बदला लिया। उन्होंने भगत सिंह जी के असेंबली में बम फेंकने में भी सहायता की।
27 फरवरी 1931 को अंग्रेजी सरकार ने इन्हें अल्फ्रेड पार्क में घेर लिया और इन्हें surrender करने का कहा, लेकिन इन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया और एक पुलिस इंस्पेक्टर को गोली मार दी।
चंद्र शेखर आजाद जी ने 5 गोलियां चलाकर, 5 लोगो की हत्या कर दी, उसके बाद उन्होंने अंतिम बची गोली खुद को मारकर आत्महत्या कर ली, इन्होने देश की आजादी के लिए देशवासियों में एक अलग ही हुंकार भर दी।
यदि कभी freedom fighters in Hindi जैसी किसी लिस्ट को पेश किया जा रहा हो और इनका नाम ना आएं, तो हम उस लिस्ट को कभी पूरा नहीं मानेंगे।
Facts about Chandra Shekhar Azad
यह है चंद्रशेखर आजाद से जुड़ी कुछ बातें -:
- चंद्रशेखर आजाद 1921 में जब वह एक स्कूल स्टूडेंट हुए करते थे, तभी आजादी की जंग में हिस्सा लेने लगे थे।
- इन्होंने गाँधी जी के द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन में भाग लिया था, जिसकी वजह से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, जब उन्हें जज के सामने पेश किया गया तो उन्होंने वहाँ अपना नाम आजाद बातया।
- उन्होंने जब अपने आपको आजाद नाम दिया था, उन्होंने तब यह शपथ ली थी की पुलिस उन्हें कभी जिंदा नहीं पकड़ पाएगी।
- आजाद जी एक लाइन को बहुत बाहर दोहराया करते थे, जो की कुछ इस प्रकार है “दुश्मनों की गोलियों का हम सामना करेंगे, आजाद ही थे और आजाद ही रहेंगे।”
- इनके अपने साथी ने ही अंग्रेजों को बताया था की यह अल्फ्रेड पार्क में मोजूद है और यह वहाँ कितनी देर रहेंगे।
- इनके जीवन पर एक मूवी बनाई गई है, जिसका नाम है शहीद चंद्रशेखर आजाद, इस मूवी में इनकी कहानी को दिखाया गया है।
रानी लक्ष्मी बाई
हमारी इस freedom fighters in Hindi लिस्ट में अब हम एक महिला के बारे में बात करेंगे।
नीचे हमनें महिला freedom fighters in hindi के लिए एक अलग लिस्ट बनाएंगे, लेकिन हम झांसी की रानी जी के हौंसले से इतना प्रेरित है की हम उनका नाम यहां लिखें बिना नही रह पाए।
रानी लक्ष्मी बाई यानी झांसी की रानी, इनके बारे में जो कुछ भी कहा जाए कम है, इनके नाम को सुनकर ही मन में एक अलग प्रकार का होंसला उत्पन्न हो जाता है।
इनपर एक कविता भी लिखी गई है “खूब लड़ी मर्दानी, वो झांसी वाली रानी थी”।
यह कविता को हम जितनी भी बार पढ़ ले, हमारी आंखों में आसूं आ जाते है, रानी लक्ष्मी बाई के हौंसले के बारे में बात करने के हम खुद को लायक भी नहीं समझते।
इनका जन्म 19 नवंबर 1828 को हुआ था, वह झांसी राज्य की रानी थी, उनके पिता का नाम मोरोपन्त ताम्बे और माता का नाम भागीरथी सापरे था, उनका विवाह झांसी नरेश महराज गंगाधर राव नवेलकर से हुआ था।
उन्होंने 29 वर्ष की उम्र में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ युद्ध किया, वह पूरे साहस के साथ युद्ध में लड़ी, युद्ध के दौरान ही सिर पर तलवार लगने की वजह से उनकी मृत्यु हो गई, वह 18 जून 1858 को शहीद हुई थी।
Facts about Rani Lakshmi Bai
यह है रानी लक्ष्मी बाई से जुड़ी कुछ बातें -:
- इनको इनके माता पिता ने मणिकर्णिका नाम दिया था और इन्हें प्यार से मनु कह कर बुलाया जाता था, शादी के बाद इनको रानी लक्ष्मी बाई के नाम से जाना जाने लगा।
- उनके पिता ने उन्हीं तीरंदाजी जैसे कईं युद्ध कौशल उनको छोटी उम्र से ही सीखने लगे थे।
- उन्होंने केवल 4 वर्ष की उम्र में ही अपनी माता को खो दिया था, उनकी माता की मृत्यु के बाद उनके पिता जी ने बड़े लाड़ प्यार से उनको पालन पोषण किया।
- जब झांसी के महाराज यानि की उनकी पति की मृत्यु हुई तो 1853 में केवल 18 वर्ष की आयु में उन्होंने झांसी राज्य को संभालना शुरू किया।
लाल बहादुर शास्त्री
हमारी आज की इस freedom fighters in Hindi लिस्ट में जो अगला नाम है, वह है लाल बहादुर शास्त्री जी का।
लाल बहादुर शास्त्री भारत के दूसरे प्रधानमंत्री बने थे, उनका जन्म 2 अक्टूबर 1904 में वाराणसी में हुआ था।
उन्होंने काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि प्राप्त की,शास्त्री जी ने देश की आजादी के संघर्ष में अहम योगदान दिए।
उन्होंने देश के प्रधानमंत्री मंत्री बनने के बाद लगभग 18 महीनो तक देश की सेवा की।
लेकिन फिर 11 जनवरी 1966 को सोवियत संघ रूस में इनकी मृत्यु हो गई।
Facts about Lal Bahadur Shashtri
यह है लाल बहदूर शास्त्री से जुड़ी कुछ बातें -:
- लाल बहादुर शास्त्री जी के पिता की मृत्यु तभी हो गई थी, जब वह केवल डेढ़ साल के थे।
- उनके पिता की मृत्यु के बाद उनकी माता जी अपने तीन बच्चों के साथ अपने पिता यानि की शास्त्री जी के नाना जी के घर चले गए, शास्त्री जी का पालन पोषण फिर वहीं पर हुआ।
- उन्होंने वाराणसी से हाई स्कूल की शिक्षा प्राप्त की, जहां पर वह नंगे पाँव कईं किलोमीटर दूर अपने स्कूल जाया करते थे।
- यह गाँधी जी के विचारों से बहुत प्रेरित थे और कमाल के इत्तेफाक की बात है की इनका जन्मदिवस भी गाँधी जी के साथ ही आता है।
- इनकी मौत को बहुत लोग रहस्यमयी मानते है, इनकी मौत के स्पष्टीकरण पर सवाल उठाते हुए The Tashkent Files नाम की एक मूवी भी बनी है।
List of Some Other Freedom Fighters in Hindi
हमारे देश को आजाद करवाने में इतने लोगों ने अहम योगदान दिया है की उन सब का नाम यहाँ बता पान बहुत मुश्किल है।
फिर भी हम पूरी कोशिश कर रहे है की आपको अधिक से अधिक लोगों के बारे में बता सकें, तो यह रहीं कुछ ओर freedom fighters in Hindi की लिस्ट -:
Freedom Fighters in Hindi | उनके बारे में कुछ बात |
लाला लाजपत राय | इन्होंने देश में कुछ स्कूल स्थापित करवाए, उसके साथ इन्होंने पंजाब नैशनल बैंक और हिन्दू ऑर्फन रीलीफ मूवमेंट की नींव रखी। |
नाना साहब | नाना साहब जी ने अंग्रेजों द्वारा दिए गए प्रस्तावों को ठुकरा दिए और 1857 में हुए युद्ध में एक अहम भूमिका निभाई। इन्होंने पुणे के विकास में बहुत योगदान दिया। |
सरदार वल्लभभाई पटेल | इन्हें भारत का लौह पुरुष भी कहा जाता है, उन्होंने आजादी के बाद भारत का एकीकरण करने में अहम भूमिका निभाई। |
दादा भाई नौरोजी | इन्हीं भारत का “Grand old man‘ भी कहा जाता है, वह एक उच्च राष्ट्रवादी नेता और राजनेता थे। |
तांत्या टोपे | तांत्या टोपे का नाम तो आपने सुना ही होगा, यह भारत के प्रथम स्वत्रता संग्राम में प्रमुख सेनानायक थे। |
शहीद उधम सिंह | शहीद उधम सिंह जी भी एक फ्रीडम फाइटर थे, इन्होंने जलियाँवाले भाग हत्याकांड का बदल लेने के लिए जनरल Michael ‘O’Dwyer |
गोपाल कृष्ण गोखले | गोपाल कृष्ण गोखले भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के प्रसिद्ध नरमपंथी थे। |
राज गुरु | राज गुरु जी भागत सिंह जी और सुखदेव जी के साथी थे, इन्होंने भी देश की आजादी के लिए अपना योगदान दिया, इन्हें भी भगत सिंह जी और सुखदेव जी के साथ फांसी दी गई थी। |
सुखदेव थापर | सुखदेव जी स्वतंत्रता क्रांतिकारी थे, यह भगत सिंह जी के साथी थे और उन्हें भी भगत सिंह जी के साथ फांसी दी गई थी। |
राम प्रसाद बिस्मिल | राम प्रसाद बिस्मिल जी भी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख क्रांतिकारी थे, इन्हें भी अंग्रेजी सरकार द्वारा फांसी दी गई थी। |
खुदीराम बोस | खुदीराम जी ने भी देश की आजादी के लिए बहुत लड़ाईयो में अपना योगदान दिया और 18 वर्ष की उम्र में शहीद हो गए, अंग्रेजी सरकार ने इन्हें फांसी दी थी। |
भीमराव अम्बेडकर | यह डॉ बाबासाहेबअंबेडकर के नाम से लोकप्रिय थे, यह अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और समाजसुधारक थे। |
Woman Indian Freedom Fighters in Hindi
यह रहीं कुछ महिला freedom fighters in Hindi, जिन्होंने हमारे देश को आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभाई।
Woman Freedom Fighters in Hindi | उनके बारे में कुछ बात |
झांसी की रानी | सन 1857 में हुए विद्रोह में झांसी की रानी यानि रानी लक्ष्मीबाई जी ने अपना अहम योगदान दिया था। |
सावित्रिभाई फुले | इन्होंने लड़कियों पर हो रहे उत्पीड़न और उनकी शिक्षा को लेकर अपनी आवाज उठाई और महिलाओ को उनका अधिकार दिलवाने के लिए अपना अहम योगदान दिया। |
सरोजिनी नायडू | इन्होंने महिला उत्पीड़न के विरुद्ध अपनी आवाज उठाई, यह INC की पहली प्रेसीडेंट थी, यह उत्तरप्रदेश के गवर्नर पद पर भी रही। |
सुचेता कृपलानि | इन्होंने भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया था, यह गाँधी जी के सबसे कारीबियों में से एक थी, वह भारत के किसी भी राज्य की मुख्यमंत्री बनने वाली पहली महिला है। |
किटटूर रानी चेन्नम्मा | 1857 के विद्रोह से 33 साल पहले ही इन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया था और युद्ध में यह पूरे साहस के साथ लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुई। |
बेगम हजरत महल | यह भी 1857 के युद्ध में एक अहम भूमिका में थी, इन्होंने ग्रामीणों को अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध एक जुट करने का कार्य किया। |
विजयलक्ष्मी पंडित | यह जवाहरलाल नेहरू जी की बहन थी, इन्होंने भी देश की सेवा में अपना बहुत योगदान दिया। |
भीकाजी कामा | यह इन प्रवक्ताओ में से एक थी जिन्होंने भारतीय होम रूल सोसायटी को स्थापित किया था, यह साहित्य में भी रुचि रखती थी, उन्होंने कई क्रांतिकारी साहित्य लिखे। |
अरुणा आसफ अली | इन्होंने देश की आजादी के लिए लड़ी गई लड़ाइयों में हिस्सा लिया, उसके साथ यह तिहार जेल में राजनीतक कैदीओं की हक के लिए लड़ाई लड़ी, जिस वजह से इन्हें कलकोठरी की सजा सुनाई गई। |
ऊषा मेहता | इन्होंने केवल 8 वर्ष की उम्र में ही साइमन गो बैक विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया, इसके बाद इन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में भी हिस्सा लिया। |
Essay on Freedom Fighters in Hindi
बहुत सारे लोगो ने हमें आज़ादी दिलाने के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिए, हम देश के लिए उनके किये बलिदानो के लिए सदा उनके आभारी रहेंगे।
अधिकतर सेनानी तो ऐसे है जिन्होंने जिस आज़ादी के लिए अपने प्राण भी दे दिए, उन्हें वह आज़ादी देखने के लिए भी नहीं मिली।
उन्होंने हमारे लिए इतना सब कुछ किया है तो यह हमारी ज़िम्मेदारी बनती है की हम उनके आज इस दुनिया में ना होने के बावजूद हमेशा उनको याद रखें।
हमें उन्हें हमारे दिलो में हमेशा के लिए ज़िंदा रखना है, तो ऐसे में सब यह चाहते है की आने वाली पढियाँ भी उन्हें हमेशा याद रखें।
आने वाली भी पढियाँ भी यह समझे की जिस हवा में वह सांस ले रहे है, उस हवा में हमारे महान स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्ष और ज़ज़्बे की महक है।
ताकि आने वाली पढियाँ भी उन्हें याद रखें इसलिए स्कूलो, कॉलेजों में freedom fighters in hindi पर निबंध लिखवाये जाते है।
हम भी इस ब्लॉग में एक निबंध हमारे स्वतंत्रता सेनानियों पर लिख रहे है ताकि आप उनके बलिदानो को और अच्छे से समझ सकें।
Indian Freedom Fighters in Hindi
भारत बहुत सालों तक अंग्रेजो की क्रूरता को सहता रहा और उनके अधीन रहा, लेकिन 15 अगस्त 1947 को हमारे देश को आज़ादी मिली।
लेकिन यह आज़ादी ऐसे ही नहीं मिली बहुत लोगो बलिदानो के बाद हमें यह आज़ादी मिली, वो लोग जो की देश की आज़ादी के लिए लड़े, वह थे हमारे freedom fighters यानि की स्वतंत्रता सेनानी।
बहुत सारे स्वतंत्रता सेनानियों के प्रयासों के बाद जा कर हमें यह आज़ादी मिली है, उन लोगों ने लगातार अंग्रेजी हकूमत के खिलाफ अपनी आवाज़ उठायी।
जिसकी वजह से उनमें से कईं को जेल जाना पड़ा, कई लोगो की हत्या कर दी गयी और कईं लोगो को बुरी तरह से प्रताड़ित किया।
लेकिन इसके बावजूद हमारे देश के स्वतंत्रता सेनानियों ने हार नहीं मानी, उन्होंने उनके सामने आयी हर चुनौती का सामना किया, अंग्रेजी हकूमत के खिलाफ होने के वजह से उनपर कईं तरह के ज़ुल्म भी किये गए।
पकडे जाने पर उन लोगो के साथ जानवरो से भी बुरा सुलूक किया जाता था। लेकिन उन सब के मन में एक ही बात थी की उन्हें अपने देश को आज़ाद कराना है।
इसलिए उन्होंने उन पर हुए हर ज़ुल्म का सामना किया और देश के लिए लड़े, वह भी हमारे जैसे आम नागरिक ही थे, लेकिन उनमें एक ज़ज़्बा था की वह अपने देश के लिए कुछ करेंगे।
उनमें से बहुत लोगो को लड़ना नहीं आता था, लेकिन वह लोग फिर भी जंग में उतरे, उनमें से कहीं शारीरक रूप से ताक़तवर नहीं थे, लेकिन उनके हौसले के आगे शक्तिशाली से शकितशाली व्यक्ति भी हार जाता था।
वह सब लोग एक जैसे नहीं थे, उनमें असमानताएं थी लेकिन एक चीज़ जो समान करती थी, वह थी उनका देश के लिए प्यार और देश को आज़ादी दिलाने का उनका ज़ज़्बा।
वह अपने से ऊपर अपने देश को मानते थे, इसलिए असामनातये होने के बावजूद भी वह लोग एक साथ एक जुट होकर अंग्रेजो के खिलाफ लड़े और उन्होंने हमारे देश को आज़ादी दिलाई।
हमें हमारे स्वतंत्रता सेनानियों से प्रेरणा लेनी चाहिए और समझना चाहिए की व्यक्ति का सम्प्रदायिकता नहीं समझना चाहिए, इन सब से ऊपर एक चीज़ होती है वह है देश।
देश से ऊपर कोई धर्म नहीं होता और ना ही कोई जात होती है, इसलिए हम सब को एक जुट होकर रहना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए की कैसे हम अपने देश के हित में काम आ सकते है।
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Conclusion about Freedom Fighters in Hindi
तो यह था आज का ब्लॉग “Freedom fighters in Hindi” के बारे में।
हमें उम्मीद है की आपको आज का यह ब्लॉग पसंद आया होगा, इसमें हमें आपको हमारे देश के स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में जानकारी दी।
हमारे देश को आज़ादी के लिए बहुत अधिक लोगो ने अपने बलिदान दिए है, उनकी वजह से ही हम आज इस आज़ाद देश में जी रहे है।
हमें उनके बलिदानों को हमेशा याद रखना चाहिए और हमेशा उन्हीं अपने दिलो में ज़िंदा रखना है।
तो इसी के साथ आज के ब्लॉग में इतना ही, ऐसे ही ओर ब्लॉग्स को पढ़ने के लिए आप course mentor से जुड़ें रहें।
FAQ about Freedom Fighters in Hindi
फ्रीडम फाइटर को हिंदी में क्या बोलते हैं.
फ्रीडम फाइटर को हिंदी में स्वतंत्रता सेनानी कहते है, यानि की ऐसे लोग जिन्होने देश को आज़ादी दिलाने के लिए क्रांति की हो, उन लोगो को फ्रीडम फाइटर कहा जाता है। महात्मा गाँधी जी, भगत सिंह जी जैसे बहुत से लोग हमारे फ्रीडम फाइटर है।
भारत में प्रथम स्वतंत्रता सेनानी कौन है?
भारत का प्रथम स्वतंत्रता सेनानी मंगल पांडे जी को कहा जाता है, वह अंग्रेजी सेना में एक सिपाही थे। 1857 में जब अंग्रेजो के खिलाफ भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम हुआ था, उस संग्राम में इन्होने बहुत भूमिका निभाई थी।
देश आजाद कराने में कौन कौन थे?
भारत को आज़ाद कराने में किसी एक व्यक्ति का हाथ नहीं था, बहुत सारे लोगो के निरंतर प्रयास के बाद भारत को आज़ादी मिली, लेकिन जिन्होंने इस लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी उनमें से कुछ लोग इस प्रकार है -: 1. मंगल पांडे 2. सरदार भगत सिंह 3. महात्मा गाँधी जी 4. सुभाषचंद्र बोस 5. चंद्रशेखर आज़ाद।
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