कंप्यूटर की आत्मकथा पर निबंध computer ki atmakatha essay in hindi

Computer ki atmakatha essay in hindi.

दोस्तों आज हम आपको इस लेख के माध्यम से कंप्यूटर की आत्मकथा बताने जा रहे हैं . यह आर्टिकल एक काल्पनिक आर्टिकल है. चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं और इस लेख को पढ़ते  हैं .

computer ki atmakatha essay in hindi

मैं कंप्यूटर बोल रहा हूं , आज दुनिया में मेरे बिना कोई भी काम करना आसान नहीं है . दुनिया में मेरी उपयोगिता दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है . मेरे निर्माण के बाद पूरा संसार दिन-प्रतिदिन सफलता प्राप्त कर रहा है . मैंने हर काम   को आसान कर दिया है . जिन कामों को करने में अधिक समय लगता था आज वह काम मिनटों में हो जाता है . हर इंसान मेरा उपयोग कर रहा है . मुझे बड़ी खुशी होती है कि मेरे निर्माण से आप लोगों के जीवन में खुशियां आई है . आज मेरा उपयोग हर क्षेत्र में किया जा रहा है .

तरह-तरह की गढ़ना मेरे द्वारा की जा रही है . मैं कंप्यूटर बोल रहा हूं , आज हर इंसान मेरे माध्यम से अपनी  हर समस्या का समाधान प्राप्त कर रहा है . जब मेरा निर्माण नहीं हुआ था तब यह दुनिया सफलता प्राप्त नहीं कर पा  रही थी लेकिन जब से मेरा जन्म हुआ है तब से यह दुनिया निरंतर प्रगति के रास्ते पर चल रही है . मेरे कारण ही आज लोग एक दूसरे से जुड़े हुए हैं . जिस काम को करने में महीनों लग जाते थे आज उस काम को मेरे माध्यम से कुछ ही समय में पूरा कर लिया जाता है .

पहले जब किसी को अपने रिश्तेदार की  जानकारी प्राप्त करना होती थी तो वह पत्र के माध्यम से अपने रिश्तेदार के हाल-चाल प्राप्त करता था और  15 से 20 दिनों में उस खत का जवाब मिल पाता था लेकिन जब से मेरा निर्माण हुआ है तब से मेरे द्वारा ईमेल के  माध्यम से  लाखों हजारों किलोमीटर दूर बैठे व्यक्ति का हाल चाल जान सकते हैं . यह सब मेरे कारण ही संभव हो पाया है . आज मेरा उपयोग हर क्षेत्र में किया जा रहा है . वैज्ञानिक भी विज्ञान की खोज करने के लिए मेरा उपयोग कर रहे है .

मेरा उपयोग करने से  कीमती समय बर्बाद होने से बच रहा है . आज दुनिया की हर तरह की जानकारी मेरे माध्यम से प्राप्त की जा सकती है . आज सभी लोग मेरा उपयोग कर रहे हैं . मेरे अंदर हर तरह का डाटा सेव करके रखा जा सकता है . पहले  किसी हिसाब किताब को संभाल कर रखने के लिए मोटी मोटी फाइलें का उपयोग  किया जाता था . लेकिन जब से मेरा जन्म हुआ है तब से सभी लोग अपनी फाइले मेरे अंदर ही संभाल कर रखते हैं . मेरे अंदर अपार डाटा संभाल कर रखने की क्षमता है .

मेरे अंदर डाटा हमेशा सेव रहता है . आज मेरे माध्यम से लोग घर पर ही अपनी जरूरत के सामान ऑनलाइन के माध्यम से मंगा लेते हैं . मैंने इंसान की हर जरूरतो को पूरा किया है . शिक्षा के क्षेत्र से लेकर स्वास्थ्य के क्षेत्र एवं बिजनेस के क्षेत्र तक मैंने अपना योगदान दिया है . मैं यह सोचता हूं कि यदि मेरा जन्म नहीं होता तो यह दुनिया आगे नहीं बढ़ पाती .

आज मैं बहुत खुश हूं कि इस दुनिया को सफलता की ऊंचाइयों पर पहुंचाने में मेरा योगदान है . मेरा जन्म पूरी संसार को सफलता दिलाने के लिए हुआ है . मैं अपने माध्यम से लोगों की जरूरतों को पूरा करता हूं और करता रहूंगा .

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दोस्तों हमारे द्वारा लिखा गया यह बेहतरीन लेख कंप्यूटर की आत्मकथा पर निबंध computer ki atmakatha essay in hindi यदि आपको पसंद आए तो अपने रिश्तेदारों एवं दोस्तों में शेयर अवश्य करें धन्यवाद .

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कंप्यूटर पर निबंध (Computer Essay in Hindi)

कंप्यूटर

कम्प्यूटर आधुनिक तकनीक की एक महान खोज है। ये एक सामान्य मशीन है जो अपनी मेमोरी में ढेर सारे डाटा को सुरक्षित रखने की क्षमता रखती है। ये इनपुट (जैसे की-बोर्ड) और आउटपुट(प्रिंटर) के इस्तेमाल से काम करता है। ये इस्तेमाल करने में बेहद आसान है इसलिये कम उम्र के बच्चे भी इसे काफी आसानी से इस्तेमाल कर सकते हैं। ये बहुत ही भरोसेमंद है जिसे हम अपने साथ रख सकते है और कहीं भी और कभी भी प्रयोग कर सकते है। इससे हम अपने पुराने डेटा में बदलाव के साथ नया डेटा भी बना सकते है।

छोटे बच्चों के लिए कंप्यूटर पर निबंध (100-200 शब्द) – Computer par Nibandh

कंप्यूटर एक इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस है जो हमारे अलग अलग कार्यों को करने के लिए डेटा को सेव करता है। कंप्यूटर में बहुत ज्यादा स्पेस होता है जिसमे हम अपने जीवन भर के डेटा, मेमोरीज और भारी से भारी फाइल्स सेव कर सकते हैं। यह हर क्षेत्र में काम करने वाले लोगों का काम आसान बनाता है। यह छात्रों के अध्ययन में मदद करता है, बच्चे ऑनलाइन क्लास कर सकते हैं, अपना प्रोजेक्ट बना सकते हैं और सॉफ्टवेयर की मदद से पेंट, टाइपिंग, एक्सेल, पीपीटी, ए आई, प्रोग्रामिंग वगैरह सीख सकते हैं। हम कंप्यूटर से ईमेल भेज सकते हैं, दुनिया के किसी भी कोने से डेटा एक्सेस कर सकते हैं। ऑनलाइन शॉपिंग और ऑनलाइन सेलिंग के माध्यम से कंप्यूटर ने लोगों का रोजगार भी आसान बना दिया है।

हम इंटरनेट बैंकिंग से अपने अकाउंट का डिटेल देख सकते हैं, किसी को भी कहीं भी पैसा ट्रांसफर कर सकते हैं। सोशल मीडिया की मदद से दुनिया में कहीं भी किसी से भी जुड़ सकते हैं, बात कर सकते हैं। कंप्यूटर को कहाँ नहीं इस्तेमाल किया जा रहा है, हर घर में, हर हॉस्पिटल में, हर स्कूल में, रेलवे स्टेशन पर, पुलिस थाना, आदि। कंप्यूटर को हम कहीं भी अपने साथ ले जा सकते हैं और अपनी गोद में रखकर चला सकते हैं। लेकिन जहाँ कंप्यूटर के फायदे हैं वहीं नुकसान भी है, देर तक कंप्यूटर पर काम करने से आंख ख़राब हो सकती है और मोटापा भी बढ़ सकता है। कंप्यूटर के आने से डेटा हैकिंग और साइबर क्राइम बहुत बढ़ गया है। इसलिए हमें कंप्यूटर को बहुत ही सावधानीपूर्वक इस्तेमाल करना चाहिए।

बड़े बच्चों के लिए कंप्यूटर पर निबंध (300-400 शब्द)

आज के युग में, कंप्यूटर मानव जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया है। यह केवल एक मशीन नहीं, बल्कि एक ऐसी तकनीक है जिसने मानव दुनिया को बदलकर रख दिया है। सभी छात्रों के लिए कंप्यूटर के महत्व को समझना आवश्यक है क्योंकि यह न केवल उनके अध्ययन में मदद करता है, बल्कि भविष्य में उनके करियर के लिए भी महत्वपूर्ण है।

कंप्यूटर का इतिहास

कंप्यूटर का इतिहास बहुत पुराना है। चार्ल्स बैबेज को “कंप्यूटर का जनक” कहा जाता है। उन्होंने ही सबसे पहले मैकेनिकल कंप्यूटर का आविष्कार किया था। आधुनिक कंप्यूटर का विकास 20वीं सदी में हुआ और यह समय के साथ और भी एडवांस होता जा रहा है। आज कंप्यूटर न केवल गणनाओं के लिए, बल्कि डेटा स्टोरेज, नेटवर्किंग, और मल्टीमीडिया कार्य के लिए भी उपयोग किया जाता है।

कंप्यूटर के पार्ट्स

कंप्यूटर के कई पार्ट्स होते हैं जैसे मॉनिटर, कीबोर्ड, माउस, सीपीयू, और स्टोरेज डिवाइस। लेकिन लैपटॉप में ये सभी डिवाइस आल इन वन है मतलब लैपटॉप के अंदर ही होते हैं। कंप्यूटर के सभी पार्ट्स कंप्यूटर को सही ढंग से कार्य करने में मदद करते हैं। इसके अलावा, सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर का समन्वय कंप्यूटर की कार्यक्षमता को बढ़ाता है।

कंप्यूटर की मुख्य विशेषताएं

कंप्यूटर की मुख्य विशेषताएं उसको चलने में सरलता, सटीकता, और बड़ी मात्रा में डेटा को स्टोर करने की क्षमता है। यह हमारे दैनिक जीवन के कई क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शिक्षा के क्षेत्र में कंप्यूटर का उपयोग बढ़ता ही जा रहा है। ऑनलाइन क्लासेस, ई-बुक्स, और डिजिटल लाइब्रेरी की सुविधा ने छात्रों के अध्ययन को और भी आसान बना दिया है और छात्रों के शैक्षिक प्रदर्शन को बढ़ाने में भी मदद करता है।

कंप्यूटर की उपयोगिता

इंटरनेट ने कंप्यूटर की उपयोगिता को और भी बढ़ा दिया है। इसके माध्यम से हम दुनिया के किसी भी कोने से कोई भी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। सोशल मीडिया, ई-मेल, और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग ने संचार को बेहद आसान बना दिया है। इसके अलावा, इंटरनेट बैंकिंग, ऑनलाइन शॉपिंग, और डिजिटल मार्केटिंग जैसी सुविधाएं भी देता है।

कंप्यूटर के नकारात्मक प्रभाव

कंप्यूटर के अधिक उपयोग के कुछ नकारात्मक प्रभाव भी हैं जैसे लंबे समय तक कंप्यूटर के सामने बैठने से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं, जैसे आंखों में तनाव, पीठ दर्द, और मोटापा। इसके अलावा, साइबर क्राइम और डेटा चोरी जैसी समस्याएं भी बढ़ रही हैं। इसलिए, कंप्यूटर का सही और सुरक्षित उपयोग करना आवश्यक है।

एक तरफ जहाँ कंप्यूटर एक अद्भुत आविष्कार है जिसने हमारे जीवन को सरल और सुविधाजनक बनाया है। छात्रों के लिए, कंप्यूटर का ज्ञान न केवल उनके वर्तमान अध्ययन में सहायक है, बल्कि उनके भविष्य के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है। वहीं कंप्यूटर कई नुकसान भी हैं, इसलिए कंप्यूटर के सही उपयोग और इसके संभावित खतरों के प्रति जागरूक रहकर, हम इसका अधिकतम लाभ उठा सकते हैं।

कंप्यूटर पर निबंध (300 शब्द) – Computer par Nibandh

कंप्यूटर एक नवीनतम तकनीक है जो ज्यादातर जगहों पर इस्तेमाल किया जाता है। ये कम समय लेकर ज्यादा से ज्यादा कार्य को संभव बनाता है। ये कार्य स्थल पर व्यक्ति के श्रम को कम कर देता है अर्थात कम समय और कम श्रम शक्ति उच्च स्तर का परिणाम प्रदान करता है। आधुनिक समय में बिना कंप्यूटर के जीवन की कल्पना भी नही की जा सकती है।

हम लोग कंप्यूटर में इंटरनेट का इस्तेमाल कर सकते है जो बेहद कम समय में जरूरी जानकारी उपलब्ध कराता है। व्यक्ति के जीवन में इसका बड़ा योगदान है क्योंकि इसका प्रयोग अब हर क्षेत्र में है और ये हर क्षण हमारे सहायक के रुप में मौजूद रहता है। पहले के समय के कंप्यूटर कम प्रभावशाली तथा कार्य सीमित थे जबकि आधुनिक कंप्यूटर बेहद क्षमतावान, संभालने में आसान तथा ज्यादा से ज्यादा कार्यों को संपादित कर सकने वाले है, जिसके कारण यह लोगों में इतने लोकप्रिय होते जा रहे है।

जिंदगी हुआ आसान

भावी पीढ़ी के कंप्यूटर और प्रभावी होंगे साथ ही कार्यात्मक क्षमता भी बढ़ जाएगी। इसने हम सबके जीवन को आसान बना दिया है। इसके माध्यम से हम कुछ भी आसानी से सीख सकते है तथा अपने हुनर को और भी ज्यादे निखार सकते है। हम लोग चुटकियों में किसी भी सेवा, उत्पाद या दूसरी चीजों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते है। कंप्यूटर में लगे इंटरनेट के द्वारा हम कुछ भी खरीदारी कर सकते है जिससे घर में बैठे-बैठे मुफ्त डिलिवरी प्राप्त कर सकते है। इससे हमारे स्कूल प्रोजेक्ट में भी खूब मदद मिलती है।

इंसानों के लिये कंप्यूटर के सैकड़ों फायदे है तो साइबर अपराध, अश्लील वेबसाइट, जैसे नुकसान भी शामिल है जिसकी पहुँच हमारे बच्चों और विद्यार्थियों तक आसानी से हो जाती है। हालांकि कुछ उपायों अपनाकर हम इसके कई नकारात्मक प्रभावों से बच भी सकते हैं।

Essay on Computer in Hindi

FAQs: Frequently Asked Questions on Computer (कंप्यूटर पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

उत्तर- जापान का सुपर कंप्यूटर “फुगाकू”।

उत्तर- मल्टीपेटाफ्लोप्स सुपर कंप्यूटर प्रत्यूष।

उत्तर- आईबीएम (इंटरनेशनल बिजनेस मशीन)।

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Essay on Computer in Hindi- कंप्यूटर पर निबंध

इस लेख / निबंध में आप कंप्यूटर के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्राप्त करेंगे और कंप्यूटर का महत्व समझ पाएंगे। Here we provide an essay on Computer in Hindi- you will get valuable information about computer Hindi.

Essay on Computer in Hindi- कंप्यूटर पर निबंध

भूमिका-मनुष्य के जीवन में विज्ञान का प्रवेश और योगदान इस सीमा तक बढ़ गया है कि आज मानव जीवन और इतिहास की विज्ञान के बिना कल्पना ही नहीं की जा सकती है। विगत दो दशकों में हुई वैज्ञानिक प्रगति ने अनेक नए आयाम जोड़े हैं। आज भविष्य की संभावनाओं के प्रति अधिक सतर्क होकर वैज्ञानिक अनेक नवीन आविष्कारों की ओर उन्मुख हुआ है। तीव्रगति से भागते हुए जीवन और उपकरणओं की गति का नियंत्रण विज्ञान से ही संभव है। आंकड़ों के इकट्ठे होते हुए ढेर की संभाल अब कागज के पन्नों पर संभव नहीं। उठते और गिरते ग्राफ तथा अनेक क्षेत्र के लेखाजोखा का आंकलन अब कम्प्यूटर के द्वारा ही संभव हो सकता है। मानव मस्तिष्क का सहायक कम्प्यूटर अब नई दिशाओं की ओर बढ़ रहा है।

इतिहास (History of computer in Hindi) – सभ्यता के शुरू से ही मानव गणना की समस्या को दूर करने के लिए काफी संघर्ष करता रहा है। शुरू में 400 बी. सी. में मानव गणना के लिए अपनी उगंलियों का प्रयोग करता था। जापान और चीन के व्यापारियों ने ‘एबकस’ का प्रयोग गणना के लिए किया। 1645 ई. में मि. नेपियल ने एक गणना यन्त्र की खोज की जिसे यांत्रिक गणक के नाम से जाना जाता है। 1840 ई. में चाल्र्स बैबेज ने विश्लेषणात्मक इंजन का निर्माण रॉयल सोसाइटी की प्रार्थना पर गणना के लिए किया। चाल्र्स बैबेज को आधुनिक कम्प्यूटर का जनक माना जाता है और लेडी ऐडा को कम्प्यूटर की जननी माना जाता है। मि. हर्मन हॉलरथ ने एक मशीन का निर्माण किया जिसे पंच कार्ड मशीन या पंच कार्ड रीडर या हॉलरथ कार्ड के नाम से भी जाना जाता है। 1900 ई. में मि. हॉलरथ ने अपने कार्य का व्यवसायीकरण किया और टेबुलेटिंग मशीन कम्पनी (टी. एम. सी.) को स्थापित किया। 1924 ई में मि. बॉटसन इस कम्पनी के अध्यक्ष बने और उन्होंने इस कम्पनी को नया नाम दिया जो कि इंटरनैशनल बिजनैस मशीन (आई. बी. एम.) के नाम से जाना जाता है।

कम्प्यूटर तकनीक में पिछले चार दशकों से काफी उन्नति हुई है। 1944 ई. में प्रोफैसर एकिन्स और उनकी टीम ने हारवर्ड विश्वविद्यालय, अमेरिका में पहले कम्प्यूटर का आविष्कार किया जिसे मार्क-1 के नाम से जाना जाता है। आज विश्व कम्प्यूटर क्रांति के प्रवेश द्वार पर खड़ा है और आने वाले दशकों में कम्प्यूटर बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगे। आज ऐसा कोई भी स्थान नहीं है जहां कम्प्यूटर सहायक न हो।

कम्प्यूटर की विभिन्न भाषाएं – आधुनिक कम्प्यूटर में विभिन्न भाषाएं हैं। इनमें बेसिक, कबोल, फोरट्रॉन, एलगोल पास्कल, डी-बेस, आदि प्रमुख हैं। कम्यूटर सीखने के लिए सबसे पहले बेसिक भाषा का उपयोग किया जाता है। बेसिक कम्प्यूटर की सबसे आसान और सरल भाषा है। उद्योगों में बेसिक भाषा का उपयोग नहीं किया जा सकता। इसलिए उद्योगों में कबोल भाषा का प्रयोग किया जाता है। वैज्ञानिकों और गणितज्ञों के लिए फोरट्रॉन का उपयोग होता है। कम्प्यूटर की अलग-अलग भाषाओं में किसी भी प्रश्न का समाधान अलग-अलग तरीके से होता है। सभी तरीके भाषा के अनुसार ही होते हैं।

अब वैज्ञानिक महान् वैयाकरण याणिनी की अष्टाध्यायी के सूत्रों के आधार पर नई कम्प्यूटर भाषा का निर्माण कर रहे हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि पाणिनी के सूत्र वैज्ञानिक नियमों पर रचे गए है अत: इन से विकसित कम्प्यूटर भाषा अत्यधिक सटीक होगी।

बेसिक भाषा समझने में सरल है और इसमें प्रोग्राम कम्प्यूटर पर बनाते हुए इसकी गलतियां निकल जाती हैं। इस भाषा का उपयोग माइक्रो और मिन्नी कम्प्यूटर में बहुत अधिक होता है। कबोल भाषा अंग्रेज़ी की तरह होती है जो कि पढ़ने और समझने में काफी आसान होती है। यह भाषा व्यापार के लेखा-जोखा के तथ्यों से सम्बन्धित होती है। फोरट्रान भाषा का उपयोग गणित में अधिक होता है। यह भाषा काफी कम्प्यूटरों पर उपलब्ध है और अन्य भाषाओं की सापेक्षिक समझने में आसान है।

कम्प्यूटर में पांच अंग होते हैं – इनपुट डिवाइस या आन्तरिक यंत्र, मैमोरी यूनिट या स्मरण यन्त्र, कन्ट्रोल यूनिट या नियंत्रण यन्त्र, अंकगणित इकाई तथा आउटपुट डिवाइस या बाह्य यात्र।

सूचनाओं को एकत्र करने के लिए पहले संकेत भरे जाते हैं और फिर सूचनाओं को कम्प्यूटर भाषा में परिवर्तित कर इन्हें बिट्स में बदल देते हैं। इसके परिणाम कम्प्यूटर टर्मिनल पर छपकर बाहर आ जाते हैं।

कम्प्यूटर के सम्बन्ध में आशंकाएं – कम्प्यूटर के सम्बन्ध में लोगों में काफी आशंकाएं पाई जाती हैं। सबसे पहली आशंका यह है कि कम्प्यूटर गल्तियां करता है अर्थात् प्रोग्रामिंग में गल्तियां होती हैं। लोग समझते हैं कि कम्प्यूटर सीखने के लिए गणित समझना बहुत आवश्यक है। कई लोगों का यह विचार है कि कम्प्यूटर बेरोजगारी का मूल है। जो काम दस व्यक्ति करते हैं वही काम एक कम्प्यूटर बड़ी आसानी से कर सकता है।

उपरोक्त आशंकाएं जो कम्प्यूटर के सम्बन्ध में पाई जाती है वे लगभग सभी निर्मूल है। लोगों के विचार में कम्प्यूटर गल्तियां करता है परन्तु ऐसा नहीं है। जो व्यक्ति कम्प्यूटर पर प्रोग्राम लिखता है वही गलियां करता है न कि कम्प्यूटर। कम्प्यूटर सीखने के लिए गणित को समझना भी कोई आवश्यक नहीं है। कई लोगों का विचार है कम्प्यूटर बेरोजगारी फैलाता है पर हमें यह नहीं भूलना चाहिए की उसके साथ ही यह कई लोगो को रोज़गार भी देता है।

कम्प्यूटर के उपयोग (Uses of computer in hindi) – आधुनिक कम्प्यूटर से मानव को काफी लाभ है। आज ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं है जहां पर कम्प्यूटर का प्रयोग न किया जाता हो। प्रतिदिन हमें कम्प्यूटर के नए-नए उपयोग प्राप्त हो रहे हैं। कम्प्यूटर आज मनुष्य को कृषि, उद्योग धन्धे, वैज्ञानिक खोज, मशीन निर्माण, अन्तरिक्ष अनुसंधान, यातायात नियन्त्रण तथा चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में पूर्व योगवान दे रहा है। अब तो वह साल बानक कथा क्षेता में भी सहावाक से रह्य हो।

व्यापार और उद्योग धन्धों में कम्प्यूटर बहुत ही आवश्यक हो गया है। अस्तपाल, पैट्रोल पम्प, बैंक, रेलवे स्टेशन, कार्यालयों तथा व्यापारिक प्रतिष्ठानों में, आज कम्प्यूटर कार्य करता हुआ नज़र आता है।” भीड़-भरे रेलवे स्टेशनों में आज आरक्षण कार्यालय वातानुकूलित बन रहे हैं तथा कम्प्यूटर के सामने बैठे क्लर्क आरक्षण की टिकटों पर लिखते हुए नज़र आते हैं। बड़े-बड़े व्यवसायों में कम्प्यूटर फाइलों के ढेर को तथा महत्वपूर्ण आंकड़ों को सुरक्षित रखते हैं तथा उनसे व्यापारी अपनी व्यापार नीति को नियन्त्रित करते हैं। आरम्भ में जो काम केवल मनुष्य द्वारा होने ही सम्भव थे आज वे स्वचलित कम्प्यूटरों के द्वारा हो रहे हैं।

चिकित्सा के क्षेत्र में आज कम्प्यूटर के द्वारा बीमारियों का सही पता लगाया जा सकता है। मनुष्य के शरीर के अंग-प्रत्यंगों को कम्प्यूटर के परदे पर देखा जा सकता है और सरलता से कैसर जैसी भयानक बीमारियों का पता भी लगाया जा सकता है। शरीर के किसी भी अंग में होने वाली अनियमितता का पता बताने के बाद कम्प्यूटर फिर बीमारी की पहचान करने में भी अपने परीक्षणों के द्वारा सहायक सिद्ध होता है। अनेक आनुवांशिक बीमारियों का पता भी लग जाता है। गुण सूत्र और जीन को समझने में कम्प्यूटर सहायता करता है।

अन्तरिक्ष अभियान में पिछले कई वर्षों से निरन्तर सफलताएं मनुष्य ने प्राप्त की हैं। ऐसा अब असम्भव नहीं लगता है कि मनुष्य दूसरे ग्रहों और उपग्रहों में भी अपना आवास बना लेगा और यह कम्प्यूटर की सहायता के बिना सम्भव नहीं था। दूर-संचार के साधनों में सेटेलाइट्स प्रमख रूप से उपयोगी सिद्ध हो रहा है। इससे आज हज़ारों मील दूर स्थित दूसरे देशों में होने वाले प्रोग्राम आसानी से हर देशों में प्रसारित किए जाते हैं और इनमें भी कम्प्यूटर ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।

मौसम की जानकारी के लिए सेटेलाइट्स द्वारा भेजे गए चित्र बहुत उपयोगी होते हैं क्योंकि इससे मौसम सम्बन्धी खतरों के बारे में पूर्व जानकारी मिलने से आवश्यक कदम उठाए जा सकते हैं।

उपसंहार -आधुनिक युग में कम्प्यूटर और रोबट निश्चय ही क्रांतिकारी सिद्ध होंगे। इनसे मानव इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ रहा है। रोबट सभी प्रकार के काम करने में समर्थ हो रहा है और कम्प्यूटर उसकी सहायता के लिए तैयार है। कम्प्यूटर और रॉबट दोनों संवेदन शून्य है, मस्तिष्क शून्य है, वे केवल यन्त्र मात्र है। अत: आवश्यक है कि इन्हें संवेदनाओं और भावनाओं से नियन्त्रित किया जाए। इनका दुरुपयोग भी तो उतना ही विनाशक हो सकता है जितना लाभकारी इनका उपयोग होता है|

हिंदी में कंप्यूटर पर निबंध- Long essay on computer in Hindi.

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पुस्तक की आत्मकथा पर निबंध |Essay on Autobiography of a Book in Hindi

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पुस्तक की आत्मकथा पर निबंध |Essay on Autobiography of a Book in Hindi!

ADVERTISEMENTS:

मैं पुस्तक हूँ । जिस रूप में आपको आज दिखाई देती हूं प्राचीन काल में मेरा यह स्वरूप नही था । गुरु शिष्य को मौखिक ज्ञान देते थे । उस समय तक कागज का आविष्कार ही नहीं हुआ था । शिष्य सुनकर ज्ञान ग्रहण करते थे ।

धीरे-धीरे इस कार्य में कठिनाई उत्पन्न होने लगी । ज्ञान को सुरक्षित रखने के लिए उसे लिपिबद्ध करना आवश्यक हो गया । तब ऋषियों ने भोजपत्र पर लिखना आरम्भ किया । यह कागज का प्रथम स्वरूप था ।

भोजपत्र आज भी देखने को मिलते हैं । हमारी अति प्राचीन साहित्य भोजपत्रों और ताड़तत्रों पर ही लिखा मिलता है ।

मुझे कागज का रूप देने के लिए घास-फूस, बांस के टुकड़े, पुराने कपड़े के चीथड़े को कूट पीस कर गलाया जाता है उसकी लुगदी तैयार करके मुझे मशीनों ने नीचे दबाया जाता है, तब मैं कागज के रूप में आपके सामने आती हूँ ।

मेरा स्वरूप तैयार हो जाने पर मुझे लेखक के पास लिखने के लिए भेजा जाता है । वहाँ मैं प्रकाशक के पास और फिर प्रेस में जाती हूँ । प्रेस में मुश् छापेखाने की मशीनों में भेजा जाता है । छापेखाने से निकलकर में जिल्द बनाने वाले के हाथों में जाती हूँ ।

वहाँ मुझे काटकर, सुइयों से छेद करके मुझे सिला जाता है । तब मेर पूर्ण स्वरूप बनता है । उसके बाद प्रकाशक मुझे उठाकर अपनी दुकान पर ल जाता है और छोटे बड़े पुस्तक विक्रेताओं के हाथों में बेंच दिया जाता है ।

मैं केवल एक ही विषय के नहीं लिखी जाती हूँ अपितु मेरा क्षेत्र विस्तृत है । वर्तमान युग में तो मेरी बहुत ही मांग है । मुझे नाटक, कहानी, भूगोल, इतिहास, गणित, अंग्रेजी, अर्थशास्त्र, साइंस आदि के रूप में देखा जा सकता है ।

बड़े-बड़े पुस्तकालयों में मुझे सम्भाल कर रखा जाता है । यदि मुझे कोई फाड़ने की चेष्टा करे तो उसे दण्ड भी दिया जाता है । और पुस्तकालय से निकाल दिया जाता है । दुबारा वहां बैठकर पढ़ने की इजाजत नहीं दी जाती ।

मुझमें विद्या की देवी मरस्वती वास करती है। अध्ययन में रुचि रखने वालों की मैं मित्र बन जाती हूँ । वह मुझे बार-बार पढ़कर अपना मनोरंजन करते हैं । मैं भी उनमें विवेक जागृत करती हूँ । उनकी बुद्धि से अज्ञान रूपी अन्धकार को निकाल बाहर करती हूँ ।

नर्सरी से लेकर कॉलेज में पढ़ने वाले के लिए मैं उनकी सफलता की कुंजी हूँ । वे मुझे पढ़कर धीरे-धीरे आगे बढ़ते हैं और अपने लक्ष्य पर पहुँचकर जीविका कमाने में लग जाते हैं । जो मेरा सही इस्तेमाल नहीं करते वह प्रगति की दौड़ में पिछड़ जाते हैं ।

आगे बढ़ने का अवसर खो देते हैं और मित्रों, रिश्तेदारों में लज्जित होते हैं । मैं केवल स्कूल और कॉलेजों की पाठ्य पुस्तक ही नहीं हूँ, अपितु हिन्दुओं की गीता, मुसलमानों की कुरान, सिक्सों का गुरू ग्रन्थ साहिब, ईसाइयों की बाइबिल हूँ । ये लोग मुझे धार्मिक ग्रन्थ मानकर मेरी पूजा करते हैं, मुझे फाड़ना या फेंकना पाप समझा जाता है ।

मैं नहीं चाहती कि लोग मुझे फाड़कर फेंक दे या रद्दी की टोकरी में डाल दें । जहाँ मैं अपने भविष्य के बारे में पड़ी-पड़ी यह सोंचू कि कल मेरा क्या होगा ? क्या मूंगफली वाला, चाटवाला, सब्जीवाला या चने वाला उठाकर ले जाएगा ? कोई लिफाफे बनाने वाले को देकर लिफाफे बनवाएगा ? या कोई गरीब विद्या प्रेमी आधी कीमत देकर मुझे खरीद लगा ।

मैं चाहती हूँ कि लोग मुझे फाड़े नहीं, मुझे घर के एक कोने में सही ढंग से रखें और इस्तेमाल करें । जो मेरा आदर करता है मैं उसका आदर करती हूँ । भविष्य में महान् व्यक्तियों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर देती हूँ । जहां वह अपनी विद्वता का परिचय देकर दूसरों से आदर पाता है । कितने व्यक्ति परिश्रम करके मुझे आप तक पहुँचाते हैं । आप मेरा सदुपयोग करें मैं केवल यही आशा करती हूँ ।

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Atmakathya Summary, Explanation Notes, Question Answers आत्मकथ्य पाठ सार, पाठ-व्याख्या, कठिन शब्दों के अर्थ और NCERT की पुस्तक के अनुसार प्रश्नों के उत्तर

Atmakathya Summary of CBSE Class 10 Hindi (Course A) Kshitij Bhag-2 Chapter 3 and detailed explanation of the lesson along with meanings of difficult words. Here is the complete explanation of the lesson, along with all the exercises, Questions and Answers given at the back of the lesson.

इस पोस्ट में हम आपके लिए सीबीएसई कक्षा 10 हिंदी कोर्स ए क्षितिज भाग  2 के पाठ 3 आत्मकथ्य के पाठ प्रवेश , पाठ सार , पाठ व्याख्या , कठिन शब्दों के अर्थ और NCERT की पुस्तक के अनुसार प्रश्नों के उत्तर लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप  इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें।  चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 10 आत्मकथ्य   पाठ के बारे में जानते हैं। 

See Video Explanation of आत्मकथ्य

  • आत्मकथ्य पाठ प्रवेश
  • आत्मकथ्य पाठ सार
  • आत्मकथ्य पाठ व्याख्या
  • आत्मकथ्य  प्रश्न – अभ्यास

कवि –  जय शंकर प्रसाद 

आत्मकथ्य पाठ प्रवेश (Atmakathya – Introduction to the chapter)

 प्रेमचंद के संपादन ( एडिटिंग ) में हंस ( पत्रिका ) में एक आत्मकथा नाम से एक विशेष भाग निकलना तय हुआ था। उसी भाग के अंतर्गत जयशंकर प्रसाद जी के मित्रों ने उनसे निवेदन किया कि वे भी हंस ( पत्रिका ) में अपनी आत्मकथा लिखें। परन्तु जयशंकर प्रसाद जी अपने मित्रों के इस अनुरोध से सहमत नहीं थे। क्योंकि कवि अपने धोखेबाज मित्रों की असलियत दुनिया के सामने ला कर , उनको शर्मिंदा नही करना चाहते थे और साथ ही साथ वे अपने निजी पलों को भी दुनिया के सामने नहीं बताना चाहते थे। कवि कि इसी असहमति के तर्क से पैदा हुई कविता है – आत्मकथ्य। यह कविता पहली बार 1932 में हंस के आत्मकथा के विशेष भाग में प्रकाशित की गई थी। छायावादी शैली में लिखी गई इस कविता में जयशंकर प्रसाद ने जीवन के यथार्थ एवं आत्मकथा लेखन के विषय में अपनी मनोभावनाएँ व्यक्त की है। छायावादी शैली की बारीकी को ध्यान में रख कर ही अपने मन के भावों को सबके सामने बताने के लिए जयशंकर प्रसाद ने ललित , सुंदर एवं नवीन शब्दों और बिंबो का प्रयोग किया है। इन्हीं शब्दों एवं बिंबो के सहारे उन्होंने बताया है कि उनके जीवन की कथा भी किसी एक सामान्य व्यक्ति के जीवन की कथा की तरह ही है। इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे महान और दिलचस्प मानकर लोग वाह – वाह करेंगे।  कुल मिलाकर इस कविता में एक तरफ कवि द्वारा जैसा होना चाहिए , ठीक वैसा ही स्वीकार किया गया है तो दूसरी तरफ एक महान कवि की विनम्रता भी इस कविता के जरिए हमें मिलती है।

आत्मकथ्य पाठ सार (Atmakathya Summary)

मुंशी प्रेमचंद के संपादन ( एडिटिंग ) में निकलने वाली उस समय की ‘ हंस ‘ पत्रिका के आत्मकथा के भाग के लिए अत्यंत प्रसिद्ध या मशहूर छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद से भी आत्मकथा लिखने के लिए कहा गया। कवि को जब अपनी आत्मकथा लिखने का प्रस्ताव मिला , तब अतीत में घटी हुई सभी धटनाएँ एक – एक करके उनकी आँखों के सामने आने लगती हैं। जिस कारण कवि अपनी आत्मकथा नहीं सुनना चाहते और वे कई तरह के तर्क देते हैं जिससे उन्हें अपनी आत्मकथा न सुनानी पड़े। इन्हीं तर्कों को इस काव्य में दर्शाया गया है। कवि जयशंकर प्रसाद भौंरे के माध्यम से अपनी कथा का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि जिस तरह से एक भौंरा फूलों के आसपास गुंजार करते हुए मंड़राता फिरता है, ठीक उसी प्रकार आज कवि का मन रूपी भँवरा भी अतीत की यादों के आसपास गुन – गुना कर गुंजार करते हुए न जाने अपनी कौन सी कहानी कहना चाह रहा है। कवि का जीवन रूपी वृक्ष जो कभी सुख व आनंद रुपी पत्तियों से हरा भरा था। अब वो सभी पत्तियों मुरझा कर एक – एक करके गिर रही हैं। क्योंकि आज कवि के जीवन की परिस्थितियां बदल चुकी है। उनके जीवन में सुख की जगह दुख और निराशा ने ले ली है। हिंदी साहित्य रूपी इस विशाल विस्तार वाले आकाश में न जाने कितने महान् पुरुषों अर्थात लेखकों के जीवन का इतिहास उनकी आत्मकथा के रूप में मौजूद हैं। लोग इन महान लेखकों की आत्मकथा को पढ़कर उनकी कमियों का मजाक बनाते हैं। इस कड़वे सत्य को जानते हुए भी कि प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे की दुर्बलताओं और कमजोरियों का मजाक बनाने में लगा है। कवि अपने दोस्तों से पूछते हैं कि क्या तुम मेरी कहानी को सुनकर सुख प्राप्त कर सकोगे ? मेरा जीवन रूपी घड़ा एकदम खाली है , जिसमें कोई भाव नहीं है। कवि यहां पर कहते हैं कि जिस व्यक्ति का स्वभाव जितना ज्यादा सरल होता है उसको लोग उतना ही ज्यादा धोखा देते हैं। कवि अपने उन प्रपंची मित्रों की असलियत दुनिया के सामने ला कर, उनको शर्मिंदा नही करना चाहते। साथ ही साथ वे अपने निजी पलों को भी दुनिया के सामने नहीं बताना चाहते। कवि अपनी पत्नी के साथ बिताये गये मधुर पलों का जिक्र करते हुए कहते हैं कि चांदनी रातों में उन्होंने अपनी प्रेयसी ( पत्नी ) के साथ एकांत में खिलखिला कर हंसते हुए , उससे प्यार भरी मीठी बातें करते हुए , जो समय बिताया था। वही मधुर स्मृतियाँ ही तो अब उनके जीवन जीने का एक मात्र सहारा है। उन निजी क्षणों का वर्णन वे कैसे कर सकते हैं ? उन आनंद भरे पलों की बातों को वे दूसरों के साथ बांटना नहीं चाहते। कवि कहते हैं कि उनको जीवन में वह सुख कहाँ मिला ,जिसका वे स्वप्न देखा करते थे। जिस सुख की उन्होंने कल्पना की थी। वह सुख उनकी बाहों में आते – आते , अचानक धोखा देकर भाग गया। अर्थात कवि ने अपनी पत्नी के साथ सुखपूर्वक जीवन जीने की जो कल्पना की थी , वह उनकी मृत्यु के साथ ही खत्म हो गयी। और उनका सारा जीवन दुखों से भर गया। अपनी पत्नी की सुंदरता की तुलना कवि ने उदित होती सुबह से की है। कवि यहाँ तर्क दे रहे हैं कि अभी उनकी आत्मकथा लिखने का सही समय नहीं आया है क्योंकि उन्होंने अभी तक कोई बड़ी उपलब्धि हासिल नहीं की है और न ही वे अभी अपने दुखों को कुरेदना चाहते हैं। आज वे अपनी पत्नी की ही यादों का सहारा लेकर अपने जीवन के रास्ते की थकान दूर करते हैं अर्थात् उसी की यादें उनके थके हुए जीवन का सहारा बनीं । जो कवि को आत्मकथा लिखने को कह रहे हैं कवि उन सब से पूछ रहे हैं कि उनके जीवन की कहानी जानकर वे सब क्या करेंगे। क्योंकि इस छोटे से जीवन में कवि ने अभी तक सुनाने लायक कोई बड़ी उपलब्धि हासिल नहीं की हैं। जो वे उन सब को सुना सके। कवि आगे कहते हैं कि यह ज्यादा बढ़िया रहेगा कि वे चुप रहकर, बड़ी शान्ति के साथ, अन्य लोगों की कहानियों या आत्मकथाओं को सुनें। कवि के अनुसार उनकी आत्मकथा में ऐसा कुछ भी ख़ास नहीं है। या उन्होंने अभी तक ऐसी कोई उपलब्धि हासिल भी नहीं की है जिसे पढ़कर किसी को खुशी मिलेगी या जिसे पढ़ने में किसी की कोई रूचि हो। कवि यहाँ पर एक तर्क देते हुए कहते हैं कि वैसे भी अभी सही समय नहीं है अपने दुःख भरे क्षणों को याद करने का क्योंकि उनका दुःख इस समय शांत है। वह अभी थककर सोया है। कवि अपने दुखद क्षणों को भूलना चाहते है और इस समय वो अपने दुखद अतीत को कुछ समय के लिए भूले हैं। इसीलिए वो वापस अपने दुखद अतीत को कुरेद कर फिर से दुखी नहीं होना चाहते हैं।

आत्मकथ्य पाठ व्याख्या (Atmakathya Lesson Explanation)

मधुप गुन – गुनाकर कह जाता कौन कहानी यह अपनी , मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी । इस गंभीर अनंत – नीलिमा में असंख्य जीवन – इतिहास यह लो , करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य – मलिन उपहास तब भी कहते हो – कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती । तुम सुनकर सुख पाओगे , देखोगे – यह गागर रीती । किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले – अपने को समझो , मेरा रस ले अपनी भरने वाले ।  

शब्दार्थ मधुप – भौंरा घनी – अधिक अनंत – विशाल नीलिमा – नीला आकाश असंख्य – जिसकी कोई संख्या न हो , अनगिनत जीवन – इतिहास – जीवन की कहानी व्यंग्य – मज़ाक मलिन – गंदा उपहास – मज़ाक दुर्बलता – कमज़ोरी बीती – गुजरी हुई स्थति या बात , खबर , हाल गागर रीती – खाली घड़ा ( ऐसा मन जिसमें भाव नहीं है )

नोट – कवि को जब अपनी आत्मकथा लिखने का प्रस्ताव मिला , तब अतीत में घटित सभी धटनाएँ एक – एक करके उनकी आँखों के सामने आने लगती हैं। इस काव्यांश में कवि अपने मित्रों से प्रश्न भी करते हैं कि आखिर वे कवि की आत्मकथा क्यों सुनना चाहते हैं?

व्याख्या – कवि जयशंकर प्रसाद भौंरे के माध्यम से अपनी कथा का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि हे मन रूपी भौंरे ! गुन – गुनाकर अपनी कौन – सी कहानी कह रहा है ? कहने का तात्पर्य यह है कि जिस तरह से एक भौंरा फूलों के आसपास गुंजार करते हुए मंड़राता फिरता हैं। ठीक उसी प्रकार आज कवि का मन रूपी भँवरा भी अतीत की यादों के आसपास गुन – गुना कर गुंजार करते हुए न जाने अपनी कौन सी कहानी कहना चाह रहा है। कवि आगे कहते हैं कि उनका जीवन रूपी वृक्ष जो कभी सुख व आनंद रुपी पत्तियों से हरा भरा था। अब वो सभी पत्तियों मुरझा कर एक – एक करके गिर रही हैं। क्योंकि आज कवि के जीवन की परिस्थितियां बदल चुकी है। उनके जीवन में सुख की जगह दुख और निराशा ने ले ली है। और कवि इस वक्त अपने जीवन रूपी वृक्ष में पतझड़ का सामना कर रहे हैं। 

हिंदी साहित्य रूपी इस विशाल विस्तार वाले आकाश में न जाने कितने महान् पुरुषों अर्थात लेखकों के जीवन का इतिहास उनकी आत्मकथा के रूप में मौजूद हैं। उन्हें पढ़कर ऐसा प्रतीत होता है कि वह स्वयं अपना मजाक उड़वाते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि लोग इन महान लेखकों की आत्मकथा को पढ़कर उनकी कमियों का मजाक बनाते हैं।

इस कड़वे सत्य को जानते हुए भी कि प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे की दुर्बलताओं और कमजोरियों का मजाक बनाने में लगा है। फिर भी मित्रों तुम मुझसे यह कहते हो कि मेरे जीवन में जो कमियाँ हैं , जो मेरे साथ घटित हुआ है , उसे मैं सबके सामने कह डालूँ। फिर कवि अपने दोस्तों से पूछते हैं कि क्या तुम मेरी कहानी को सुनकर सुख प्राप्त कर सकोगे ? मेरा जीवन रूपी घड़ा एकदम खाली है , जिसमें कोई भाव नहीं है। 

कवि आगे कहते हैं कि अगर मैंने अपनी आत्मकथा में कुछ ऐसा लिख दिया जिसे पढ़कर तुम कही ऐसा न समझो कि मेरे जीवन रूपी गागर (घड़े)  में जो सुख , खुशियों और आनंद रूपी रस थे । वो सभी तुमने ही खाली किये हैं। और उन सभी रसों को मेरे जीवन रूपी गागर  (घड़े) से लेकर तुमने अपने जीवन रूपी गागर  (घड़े) में भर लिया हों। और मेरा जीवन दुखों से भर दिया हो।

भावार्थ – कवि जयशंकर प्रसाद पहले तो अपनी आत्मकथा लिखने को तैयार नहीं थे और तर्क दे रहे थे कि इस हिंदी साहित्य में न जाने कितने महान् पुरुषों अर्थात लेखकों के जीवन का इतिहास उनकी आत्मकथा के रूप में मौजूद हैं। लोग इन महान लेखकों की आत्मकथा को पढ़कर उनकी कमियों का मजाक बनाते हैं। इस कड़वे सत्य को स्वीकार करते हुए कि प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे की दुर्बलताओं और कमजोरियों का मजाक बनाने में लगा है। फिर भी कवि अंततः अपनी आत्मकथा को लिखने के लिए तैयार तो हो जाते हैं किन्तु चेतावनी भी देते हैं कि वे कुछ ऐसा भी लिख सकते हैं जिसे पढ़कर कही कोई ऐसा न समझे कि उनके जीवन में जो सुख , खुशियों और आनंद रूपी रस थे , वो उन सभी ने ही खाली किये हैं और कवि का जीवन दुखों से भर दिया है। असल में यह भी कवि का एक तर्क ही है जिसको दे कर वे अपनी आत्मकथा को लिखने से बचना चाहते हैं।

यह विडंबना ! अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं । भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं । उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ , मधुर चाँदनी रातों की । अरे खिल – खिला कर हँसते होने वाली उन बातों की । मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया । आलिंगन में आते – आते मुसक्या कर जो भाग गया ।

शब्दार्थ विडंबना – दुर्भाग्य , कष्टकर स्थिति , निंदा करना सरलते – सरल मन वाले प्रवंचना – छल , धोखा , कपट , झूठ , धूर्तता उज्ज्वल गाथा – सुखभरी कहानी आलिंगन – बाँहों में भरना मुसक्या – मुसकुराकर

नोट – कवि यहां पर कहते हैं कि जिस व्यक्ति का स्वभाव जितना ज्यादा सरल होता है उसको लोग उतना ही ज्यादा धोखा देते हैं। कवि अपने उन प्रपंची मित्रों की असलियत दुनिया के सामने ला कर , उनको शर्मिंदा नही करना चाहते। साथ ही साथ वे अपने निजी पलों को भी दुनिया के सामने नहीं बताना चाहते। अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद कवि अपने जीवन को दुःखमयी समझता है।

व्याख्या – कवि कहते हैं कि यह तो बड़े दुर्भाग्य की बात है कि मेरे मित्र मुझे आत्मकथा लिखने को कह रहे हैं क्योंकि सरल मन वाले की मैं हँसी कैसे उड़ाऊँ। मैं तो अभी तक स्वयं दूसरों के स्वभाव को समझ नहीं पाया हूँ । मेरे सरल स्वभाव के कारण जीवन में मुझसे जो गलतियां हुई। कुछ लोगों ने जो मुझे धोखे दिए या मेरे साथ जो छल – प्रपंच किया हैं। उन सभी के बारे में लिखकर मैं अपना और उनका मजाक नहीं बनाना चाहता हूँ । कहने का तात्पर्य यह है कि कवि अपने प्रपंची मित्रों की असलियत दुनिया के सामने ला कर , उनको शर्मिंदा नही करना चाहते हैं। इसीलिए कवि अपनी आत्मकथा नहीं लिखना चाहते हैं।

कवि अपनी पत्नी के साथ बिताये गये मधुर पलों का जिक्र करते हुए कहते हैं कि चांदनी रातों में मैंने अपनी प्रेयसी ( पत्नी ) के साथ एकांत में खिलखिला कर हंसते हुए , उससे प्यार भरी मीठी बातें करते हुए , जो समय बिताया था। वही मधुर स्मृतियों ही तो अब मेरे जीवन जीने का एक मात्र सहारा है। उन निजी क्षणों का वर्णन मैं कैसे कर सकता हूँ ? उन आनंद भरे पलों की बातों को मैं दूसरों के साथ बांटना नहीं चाहता हूँ।

कवि आगे कहते हैं कि मुझे जीवन में वह सुख कहाँ मिला ,जिसका मैं स्वप्न देख रहा था। उस स्वप्न को देखते – देखते अचानक मेरी आंख खुल गई। मैं जिस सुख की कल्पना कर रहा था। वह सुख मेरी बाहों में आते-आते , अचानक मुझे धोखा देकर भाग गया। अर्थात कवि ने अपनी पत्नी के साथ सुखपूर्वक जीवन जीने की जो कल्पना की थी , वह उनकी मृत्यु के साथ ही खत्म हो गयी। और उनका सारा जीवन दुखों से भर गया।

भावार्थ – कवि अपनी आत्मकथा को न लिखने के और तर्क देते हैं और बताते हैं कि वे अपने दोखेबाज़ मित्रों की असलियत दुनिया के सामने ला कर , उनको शर्मिंदा नही करना चाहते। और कवि की पत्नी की मृत्यु युवावस्था में ही हो गई थी। अपनी पत्नी के साथ बिताये मधुर पलों की स्मृतियाँ ही अब कवि के जीवन जीने का एकमात्र सहारा व मार्गदर्शक हैं। इसीलिए वो अपनी पत्नी के साथ बिताए हुए उन मधुर पलों को अपनी “उज्ज्वल गाथा ” के रूप में देखते हैं और उन्हें किसी के साथ बांटना नहीं चाहते हैं।

जिसके अरुण – कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में । अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में । उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की । सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की ? छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ ? क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ ? सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म – कथा ? अभी समय भी नहीं , थकी सोई है मेरी मौन व्यथा ।  

शब्दार्थ अरुण – कपोलों – लाल गाल मतवाली – मस्त कर देने वाली अनुरागिनी – प्रेमभरी उषा – सुबह निज – अपना सुहाग – सुहागिन होने की अवस्था , सधवा-अवस्था , सौभाग्य मधुमाया – प्रेम से भरी हुई स्मृति – यादें पाथेय – सहारा पथिक – यात्री पंथा – रास्ता सीवन – सिलाई उधेड़ – खोलन , टांके तोड़ना , परत उतारना या उखाड़ना कंथा – गुदड़ी / अंतर्मन ( जीवन की कहानी या मन के भाव ) मौन – चुप व्यथा – दुःख

नोट – उपरोक्त पंक्तियों में कवि अपनी पत्नी की सुंदरता का बखान कर रहे हैं। अपनी पत्नी की सुंदरता की तुलना कवि ने उदित होती सुबह से की है। कवि यहाँ तर्क दे रहे हैं कि अभी उनकी आत्मकथा लिखने का सही समय नहीं आया है क्योंकि उन्होंने अभी तक कोई बड़ी उपलब्धि हासिल नहीं की है और न ही वे अभी अपने दुखों को कुरेदना चाहते हैं।

व्याख्या – कवि अपनी प्रिया के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहते हैं कि उसके लाल गालों को देखकर ऐसा लगता था जैसे उसके लाल गालों की मदहोश कर देने वाली सुंदर छाया में प्रेम बिखेरती हुई प्रेम भरी सुबह सुहागिन की तरह उदित हो रही हो अर्थात् ऐसा लगता था जैसे सुबह भी अपनी लालिमा उसी से लिया करती थी । आज मैं उसकी ही यादों का सहारा लेकर अपने जीवन के रास्ते की थकान दूर करता हूँ अर्थात् उसी की यादें मेरे थके हुए जीवन का सहारा बनीं ।

कहने का तात्पर्य यह है कि कवि के अपनी पत्नी के साथ बिताये क्षण ही अब उनके जीने का एकमात्र सहारा हैं। इसीलिए कवि उन्हें किसी के साथ बांटना नहीं चाहते हैं। उन्हें सिर्फ अपने दिल में संजो कर रखना चाहते है।

आगे कवि पूछ रहे हैं कि मेरे अंतरमन रूपी गुदड़ी की सिलाई को उधेड़ कर उसके भीतर तुम क्या देखना चाहते हो। मेरा जीवन बहुत छोटा सा है। उसकी बड़ी-बड़ी कहानियां मैं कैसे लिखूं। अर्थात मेरे जीवन की कहानी जानकर तुम क्या करोगे। क्योंकि इस छोटे से जीवन में मैंने अभी तक सुनाने लायक कोई बड़ी उपलब्धि हासिल नहीं की हैं। जो मैं तुम्हें सुना सकूँ।

कवि आगे कहते हैं कि यह ज्यादा बढ़िया रहेगा कि मैं चुप रहकर , बड़ी शान्ति के साथ , अन्य लोगों की कहानियों या आत्मकथाओं को सुनूँ। तुम मेरी आत्मकथा सुनकर क्या प्रेरणा प्राप्त कर सकोगे ? कहने का तात्पर्य यह है कि कवि के अनुसार उनकी आत्मकथा में ऐसा कुछ भी ख़ास नहीं है। या उन्होंने अभी तक ऐसी कोई उपलब्धि हासिल भी नहीं की है जिसे पढ़कर किसी को खुशी मिलेगी या जिसे पढ़ने में किसी की कोई रूचि हो।

कवि यहाँ पर एक तर्क देते हुए कहते हैं कि वैसे भी अभी सही समय नहीं है अपने दुःख भरे क्षणों को याद करने का क्योंकि उनका दुःख इस समय शांत है। वह अभी थककर सोया है। कवि अपने दुखद क्षणों को भूलना चाहते है और इस समय वो अपने दुखद अतीत को कुछ समय के लिए भूले हैं। इसीलिए वो वापस अपने दुखद अतीत को कुरेद कर फिर से दुखी नहीं होना चाहते हैं।

भावार्थ – कवि नहीं चाहते कि कोई भी उनके अंतर्मन में झाँक कर देखे क्योंकि वहाँ तो कवि ने सिर्फ अपनी मधुर पुरानी यादों को संजो कर रखा है। कवि के अनुसार उनके जीवन में सुख के ऐसे पल कभी नहीं आए , जिनसे कोई प्रेरित हो सको । इसलिए वे अपने जीवन की कहानी को खोलकर , उधेड़कर नहीं दिखाना चाहते। इसीलिए कवि कहते हैं कि उन दुःख भरे क्षणों को , जिन्हें वो भूले चुके हैं , उन्हें फिर से याद करने के लिए उनसे कोई मत कहो। क्योंकि उनको याद करने से उनके मन में फिर से हलचल होने लगेगी और वो फिर से दुखी हो जाएंगे। इसीलिए कवि कहते हैं कि उन्हें आत्मकथा लिखने के लिए मत कहो।

आत्मकथ्य प्रश्न – अभ्यास (Atmakathya Question Answers)

प्रश्न 1 – कवि आत्मकथा लिखने से क्यों बचना चाहता है ?

उत्तर – कवि आत्मकथ्य लिखने से इसलिए बचना चाहते है क्योंकि उन्हें ऐसा नहीं लगता कि हिंदी साहित्य में न जाने कितने महान् पुरुषों अर्थात लेखकों के जीवन का इतिहास उनकी आत्मकथा के रूप में मौजूद हैं। लोग इन महान लेखकों की आत्मकथा को पढ़कर उनकी कमियों का मजाक बनाते हैं। कवि अपना मज़ाक नहीं बनवाना चाहते। कवि अपने प्रपंची मित्रों की असलियत दुनिया के सामने ला कर , उनको शर्मिंदा नही करना चाहते हैं। और कवि अपनी पत्नी के साथ बिताए हुए मधुर पलों को अपनी “उज्ज्वल गाथा ” के रूप में देखते हैं और उन्हें किसी के साथ बांटना नहीं चाहते हैं। कवि को यह भी लगता है कि उन्होंने अभी तक ऐसी कोई उपलब्धि हासिल भी नहीं की है जिसे पढ़कर किसी को खुशी मिलेगी या जिसे पढ़ने में किसी की कोई रूचि हो। उन्हें लगता है कि उनका जीवन केवल कष्टों से भरा हुआ है अतः वे अपने कष्टों को लोगों को बताना नहीं चाहते तथा उन्हें अपने तक ही सीमित रखना चाहते हैं। यही कारण है कि कवि अपनी आत्मकथा नहीं लिखना चाहते।

प्रश्न 2 – आत्मकथा सुनाने के संदर्भ में ” अभी समय भी नहीं ” कवि ऐसा क्यों कहता है ?

उत्तर – आत्मकथा सुनाने के संदर्भ में ‘ अभी समय भी नहीं ‘ कवि ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि कवि को लगता है कि उसने जीवन में अब तक कोई भी ऐसी उपलब्धि हासिल नहीं की है , जो दूसरों को बताने योग्य हो या जिससे कोई उसके जीवन से कोई प्रेरणा ले सके। तथा आत्मकथा लिखकर कवि अपने मन में दबे हुए कष्टों को फिर से याद नहीं करना चाहता है। अपनी छोटी सी कथा को बड़ा आकार देने में वह असमर्थ हैं। उसके जीवन में उसे सुख की प्राप्ति नहीं हुई है। इसीलिए कवि कहते हैं कि अभी सही समय नहीं है अपने दुःख भरे क्षणों को याद करने का क्योंकि उनका दुःख इस समय शांत है। वह अभी थककर सोया है। कवि अपने दुखद क्षणों को भूलना चाहते है और इस समय वो अपने दुखद अतीत को कुछ समय के लिए भूले हैं। इसीलिए वो वापस अपने दुखद अतीत को कुरेद कर फिर से दुखी नहीं होना चाहते हैं।

प्रश्न 3 – स्मृति को ‘ पाथेय ’ बनाने से कवि का क्या आशय है ?

उत्तर – ‘ पाथेय ’ अर्थात् सहारा। स्मृति को पाथेय बनाने से कवि का आशय अपनी प्रिय की स्मृति के सहारे जीवन जीने से है। कवि की पत्नी की मृत्यु युवावस्था में ही हो गई थी। अपनी पत्नी के साथ बिताये मधुर पलों की स्मृतियाँ ही अब कवि के जीवन जीने का एकमात्र सहारा व मार्गदर्शक हैं। इसीलिए कवि उन्हें किसी के साथ बांटना नहीं चाहते हैं। उन्हें सिर्फ अपने दिल में संजो कर रखना चाहते है। जैसे थका हुआ यात्री शेष रास्ता देखते हुए अपनी मंजिल पा जाता है वैसे ही कवि अपनी पत्नी की यादों के सहारे अपना शेष जीवन बिता लेगा। मनुष्य अपनी सुखद स्मृतियों की याद में अपना सारा जीवन व्यतीत कर सकता है।

प्रश्न 4 – भाव स्पष्ट कीजिए –

( क ) मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया। आलिंगन में आते – आते मुसक्या कर जो भाग गया।

उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियां कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित आत्मकथ्य कविता से ली गई है। उक्त पंक्तियों का भाव यह है कि कवि भी दूसरे लोगों के जैसा सुखमय तथा आनंदरूपी जीवन व्यतीत करना चाहता था पर उसे वह सुख नहीं मिल सका जिसकी वह कल्पना कर रहा था। उसे सुख पाने का अवसर भी मिला पर वह हाथ आते – आते चला गया अर्थात् उसकी पत्नी की मृत्यु हो जाने से वह सुखद जिंदगी अधिक समय तक व्यतीत न कर सका। मनुष्य के सपने कभी हकीकत नहीं होते। जरूरी नहीं है कि सुख के सपने पूरे साकार हों। कवि इन पक्तियों के जरिए यह बताना चाहते हैं कि जीवन में सुख क्षणिक है।

( ख ) जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में। अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।

उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियां कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखित आत्मकथ्य कविता से अवतरित हैं। कवि ने इन पंक्तियों में जीवन के ‌सुखद क्षणो‌ की अभिव्यक्ति की है। यही सुखद क्षण उसके जीवन का सहारा है। कवि अपनी प्रेयसी के‌‌ सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहता है कि उसकी प्रेयसी अत्यंत सुंदर थी। उसके कपोल अर्थात गाल इतने लाल , सुंदर और मनोहर थे कि प्रात:कालीन सुबह भी अपना सौंदर्य बढ़ाने के लिए लालिमा इन्हीं गालों से लिया करती थी। अर्थात् कवि कहना चाहते हैं कि उनकी पत्नी के लाल – लाल गाल सूर्य की लालिमा से भी बढ़कर सुंदर थे।

 प्रश्न 5 – ‘ उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ , मधुर चाँदनी रातों की ’ – कथन के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है ?

उत्तर – कवि अपनी पत्नी के साथ बिताये गये मधुर पलों का जिक्र करते हुए कहना चाहता है कि चांदनी रातों में उन्होंने अपनी प्रेयसी ( पत्नी ) के साथ एकांत में खिलखिला कर हंसते हुए , उससे प्यार भरी मीठी बातें करते हुए , जो समय बिताया था। वे सुख के क्षण उज्ज्वल गाथा की तरह ही पवित्र है जो उसके लिए अब अपने अकेलेपन के जीवन को व्यतीत करने का एकमात्र सहारा बनकर रह गए हैं। वही मधुर स्मृतियों ही तो अब उनके जीवन जीने का एक मात्र सहारा है। उन निजी क्षणों का वर्णन वे सब के सामने कैसे कर सकते हैं ?  ऐसी स्मृतियों को वह सबके सामने प्रस्तुत कर अपने आप को शर्मिंदा नहीं करना चाहते हैं। उन आनंद भरे पलों की बातों को वे दूसरों के साथ बांटना नहीं चाहते। बल्कि अपने तक ही सीमित रखना चाहते हैं।

प्रश्न 6 – ‘ आत्मकथ्य ’ कविता की काव्यभाषा की विशेषताएँ उदाहरण सहित लिखिए।

उत्तर – ‘ जयशंकर प्रसाद ’ द्वारा रचित कविता ‘ आत्मकथ्य ’ की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

( क ) कविता में हिंदी भाषा की खड़ी बोली का उपयोग किया है। ( ख ) अपने मनोभावों को व्यक्त कर उसमें सजीवता लाने के लिए कवि ने ललित , सुंदर एवं नवीन बिंबों का प्रयोग किया है। जैसे – “ जिसके अरुण – कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में। अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में। ” ( ग ) प्रस्तुत कविता में कवि ने नवीन शब्दों का प्रयोग किया है। ( घ ) मानवीकरण शैली का प्रयोग किया गया है। ( ड़ ) अलंकारों के प्रयोग से काव्य सौंदर्य बढ़ गया है।

जैसे –

खिल – खिलाकर , आते – आते – में पुनरुक्ति अलंकार है। अरुण – कपोलों –  में रुपक अलंकार है। मेरी मौन , अनुरागी उषा – में अनुप्रास अलंकार है।

प्रश्न 7 – कवि ने जो सुख का स्वप्न देखा था उसे कविता में किस रूप में अभिव्यक्त किया है ?

उत्तर – कवि ने जो सुख का स्वप्न देखा था उसे कवि ने अपनी प्रेयसी नायिका के माध्यम से व्यक्त किया है। कवि कहता है कि नायिका स्वप्न में उसके पास आते – आते मुस्कुरा कर चली गई। कवि कहना चाहता है कि जो सपने उसने और उसकी प्रेमिका ने मिलकर देखे थे वो तो उसे कभी प्राप्त नहीं हुआ। उसने जिस सुख की कल्पना की थी वह उसे कभी प्राप्त न हुआ और उसका जीवन हमेशा उस सुख से वंचित ही रहा। इस दुनिया में सुख छलावा मात्र है। हम जिसे सुख समझते हैं वह अधिक समय नहीं रहता है , किसी स्वप्न की भांति जल्दी ही गायब हो जाता है।

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अन्य गद्य विधाओं की ही भाँति आत्मकथा (hindi aatmkatha) नामक साहित्यिक विधा का भी आगमन पश्चिम से हुआ। वहीं से विस्तारित होकर हिंदी साहित्य में प्रमुख विधा बन गई। aatmkatha के लिए अंग्रेजी में Autobiography शब्द प्रयुक्त होता है। नामवर सिंह ने अपने एक व्याख्यान में कहा था कि ‘अपना लेने पर कोई चीज परायी नहीं रह जाती, बल्कि अपनी हो जाती है।’ हिंदी आत्मकथाकारों ने यही किया। हिन्दी साहित्य में बनारसीदास जैन कृत ‘अर्द्धकथानक’ को हिंदी की पहली आत्मकथा माना जाता है। इसकी रचना सन् 1641 ई. में हुई थी। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने इसे निर्विवाद रूप से हिंदी साहित्य में आत्मकथा की विधा की पहली किताब मानते हुए इसका महत्व स्वीकार किया है। नीचे आत्मकथाओं का कालक्रमानुसार सूची दी गई है-

हिन्‍दी आत्‍मकथाओं की सूची (कालक्रमानुसार)

हिंदी की प्रमुख aatmkatha और उसके लेखक निम्नलिखित हैं-

लेखकआत्मकथा
बनारसीदास जैन अर्द्ध कथानक (ब्रजभाषा पद्य में, 1641)
दयानन्‍द सरस्वती जीवनचरित्र (1860)
भारतेन्दु हरिश्चंद्रकुछ आप बीती कुछ जग बीती
भाई परमानन्द आपबीती (मेरी राम कहानी, 1921)
महात्मा गांधीसत्य के प्रयोग (1923)
रामविलास शुक्लमैं क्रान्तिकारी कैसे बना (1933)
सुभाष चन्‍द्र बोसतरुण के स्‍वप्‍न (1935)
भवानी दयाल संन्यासीप्रवासी की कहानी (1939)
श्यामसुन्दरदासमेरी आत्मकहानी (1941)
हरिभाऊ उपाध्यायसाधना के पथ पर (1946)
गुलाब रायमेरी असफलताएं
मूलचन्द अग्रवालएक पत्रकार की आत्मकथा (1944)
राहुल सांकृत्‍यायनमेरी जीवनयात्रा (5 खंड, 1946, 47, 67)
राजेन्द्र प्रसादआत्मकथा (1947)
भवानी दयाल संन्यासीप्रवासी की आत्मकथा (1947)
वियोगी हरिमेरा जीवन प्रवाह (1951)
सत्‍यदेव परिव्राजकस्‍वतन्‍त्रता की खोज में ()
यशपालसिंहावलोकन ( 3 खंड, 1951, 52, 55)
अजितप्रसाद जैनअज्ञात जीवन (1951)
शान्तिप्रिय द्विवेदीपरिव्राजक की आत्‍मकथा (1952)
देवेन्‍द्र सत्‍यार्थीचांद सूरज के बीरन
नील यक्षिणी
चतुरसेन शास्त्रीयादों की परछाइयां (1956)
मेरी आत्मकहानी (1963)
सेठ गोविन्ददासआत्मनिरीक्षण (1957)
नरदेव शास्त्रीआपबीती जगबीती (1957)
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शीमेरी अपनी कथा (1958)
देवराज उपाध्यायबचपन के वो दिन
यौवन के द्वार पर
पाण्‍डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’अपनी खबर (1960)
सुमित्रानन्‍दन पन्‍तसाठ वर्ष : एक रेखांकन (1963)
चतुरसेन शास्त्रीमेरी आत्मकहानी
सन्तराम बी॰ ए॰मेरे जीवन के अनुभव
आबिदअलीमजदूर से मिनिस्टर (1968)
हरिवंश राय बच्‍चनक्‍या भूलूँ क्‍या याद करूं (1969)
नीड़ का निर्माण फिर (1970)
बसेरे से दूर (1978)
दशद्वार से सोपान तक (1985)
वृन्दावनलाल वर्माअपनी कहानी (1970)
देवराज उपाध्याययौवन के द्वार पर (1970)
चतुभुर्ज शर्माविद्रोही की आत्मकथा (1970)
मोरार जी देसाईमेरा जीवन-वृत्तान्त ( 2 भाग, 1972, 74)
बलराज साहनीमेरी फ़िल्मी आत्मकथा
कृष्णचन्द्रआधे सफ़र की पूरी कहानी (1979)
रामविलास शर्माघर की बात (1983)
मुडेर पर सूरज
देर सबेर
आपस की बात
अपनी धरती अपने लोग (1996)
विश्वनाथ लाहिरीएक पुलिस अधिकारी की आत्मकथा (1984)
रामदरश मिश्रजहां मैं खड़ा हूँ (1984)
रौशनी की पगडंडिया
टूटते-बनते दिन
उत्तर पक्ष
फुरसत के दिन (2000)
सहचर है समय (1991)
शिवपूजन सहायमेरा जीवन (1985)
अमृतलाल नागरटुकड़े-टुकड़े दास्तान (1986)
हंसराज रहबरमेरा सात जन्म ( 3 खंड )
यशपाल जैनमेरी जीवनधारा (1987)
डॉ॰ नगेन्द्रअर्धकथा (1988)
रेणुआत्मपरिचय (1988)
कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकरतपती पगडंडियों पर पदयात्रा (1989)
गोपाल प्रसाद व्‍यासकहो व्‍यास कैसी कटी (1994)
मनोहरश्याम जोशीलखनऊ मेरा लखनऊ
कमलेश्वरजो मैंने जिया (1992)
यादों के चिराग़ (1997)
जलती हुई नदी (1999)
रवीन्द्र कालियाग़ालिब छुटी शराब (2000)
राजेन्द्र यादवमुड़-मुड़ कर देखता हूं (2001)
भगवतीचरण वर्माकहि न जाए का कहिए
अखिलेशवह जो यथार्थ था (2001)
भीष्म साहनीआज के अतीत (2003)
अशोक वाजपेयीपावभर जीरे में ब्रह्मभोज (2003)
स्वदेश दीपकमैंने मांडू नहीं देखा
विष्णु प्रभाकरपंखहीन (2004)
मुक्त गगन में
पंछी उड़ गया
रवीन्द त्यागीवसन्त से पतझड़ तक
राजकमल चौधरीभैरवी तंत्र
कन्हैयालाल नन्दनगुज़रा कहां-कहां से (2007)
कहना ज़रूरी था (2009)
मैं था और मेरा आकाश (2011)
रामकमल रायएक अन्तहीन की तलाश
दीनानाथ मलहोत्राभूली नहीं जो यादें
देवेश ठाकुरयों ही जिया
कृष्ण बिहारीसागर के इस पार से उस पार तक (2008)
हृदयेशजोखिम
एकान्त श्रीवास्तवमेरे दिन मेरे वर्ष
मिथिलेश्वरपानी बीच मीन प्यासी
और कहां तक कहें युगों की बात (2012)
नरेन्द्र मोहनकमबख़्त निन्दर (2013)
पुरुषोतम दास टंडनराख की लपटें
हरिशंकर परसाईहम इक उम्र से वाकिफ हैं
  • कमलेश्वर ने  ‘गर्दिश के दिन’ (1980) में भारतीय भाषाओं  के 12 साहित्यकारों के आत्मकथ्य का सम्पादन किया है।
  • विष्णुचन्द्र शर्मा ने 1984 में ‘मुक्तिबोध की आत्मकथा’ लिखा।
  • सूर्यप्रसाद दीक्षित ने ‘निराला की आत्मकथा’1970 में लिखा है।

आत्मकथा विधा से संबंधित कुछ प्रश्न

1. हिंदी की प्रथम आत्मकथा उसके लेखक का नाम है-

(A) अर्द्ध कथानक- बनारसीदास जैन ✅

(B) जीवनचरित्र- दयानन्‍द सरस्वती

(C) सत्य के प्रयोग- महात्मा गांधी

(D) मेरी राम कहानी- भाई परमानन्द

2. ‘अपनी खबर’ आत्मकथा के लेखक कौन है-

(A) भीष्म साहनी

(B) श्यामसुंदर दास

(C) रामविलास शर्मा

(D) पाण्‍डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ ✅

3. वृन्दावनलाल वर्मा की आत्मकथा है:

(A) अपनी खबर

(B) तिरस्कृत

(C) अपनी कहानी ✅

(D) मुक्त गगन में

4. ‘अर्धकथानक’ किस भाषा की रचना है?

(C) बुंदेली

(D) राजस्थानी

5. इनमें से कौन-सी रचना आत्मकथा है?

(A) मैं आईना हूँ

(B) पहला पड़ाव

(C) मेरे सात जनम ✅

(D) आत्मदाह

6. निम्नलिखित में से कौन-सी कृति आत्मकथा है?

(A) कलम का सिपाही

(B) चीड़ों पर चाँदनी

(C) अर्द्धकथानक ✅

(D) बाणभट्ट की आत्मकथा

7. रचनाकाल की दृष्टि से निम्नलिखित आत्मकथाओं का सही अनुक्रम है:

(A) मेरी जीवन यात्रा, अर्धकथा, क्या भूलूँ क्‍या याद करूँ, टुकड़े-टुकड़े दास्तान

(B) अर्धकथा, मेरी जीवन यात्रा, क्या भूलूँ क्‍या याद करूँ, टुकड़े-टुकड़े दास्तान ✅

(C) टुकड़े-टुकड़े दास्तान, मेरी जीवन यात्रा, अर्धकथा, क्या भूलूँ क्या याद करूँ

(D) क्‍या भूलूँ क्‍या याद करूँ, टुकड़े-टुकड़े दास्तान, अर्धकथा, मेरी जीवन यात्रा

8. निम्नलिखित आत्मकथाओं को उनके लेखकों के साथ सुमेलित कीजिए:

(a) दस द्वार से सोपान तक(i) वृंदावन लाल वर्मा
(b) मेरी आत्म कहानी(ii) राहुल सांकृत्यायन
(c) अपनी कहानी(iii) श्याम सुन्दर दास
(d) मेरी जीवन यात्रा(iv) हरिवंश राय बच्चन
(v) चंदर सेन

      (a)    (b)    (c)    (d)

(A)    (iii)   (ii)    (i)    (v)

(B)    (iv)   (iii)   (i)    (ii) ✅

(C)   (v)    (iv)   (iii)   (i)

(D)   (i)    (ii)    (iii)   (iv)

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आपकी इस सूची में एक आत्मकथा रह गई है। भारतेंदु युग या कहें उत्तर भारतेंदु युग के पुरोधा साहित्यकार व प्रमुख संपादक लज्जाराम मेहता (1863-1931) की लिखी आत्मकथा ‘आपबीती’ लिखी गईं 1928 में और उनकी मृत्यु 1931 के बाद 1932 में श्रीवेंकटेश्वर प्रेस मुंबई से मुद्रित हुई। लज्जाराम मेहता, पूर्व प्रेमचंद युग के प्रमुख यथार्थवादी सामाजिक उपन्यासकार थे। उन्होंने 23 पुस्तकें लिखी, सब प्रकाशित हैं। उनका अंतिम उपन्यास ‘आदर्श हिंदू’ 1915 में काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा तीन जिल्दों में मनोरंजन पुस्तकमाला के नं. 4, 5, 6 क्रम में मुद्रित हुआ है। आपकी सभी पुस्तकें भारत के सभी बड़े व पुराने पुस्तकालयों में हैं। लज्जाराम मेहता ने 1890-1894 में साहित्यिक समाचार पत्र ‘सर्वहित’ का संपादन किया। फिर 1897-1905 में ‘श्रीवेंकटेश्वर समाचार’ मुंबई का संपादन किया। इसमें महावीर प्रसाद द्विवेदी का पहला लेख भी प्रकाशित हुआ। आशा है कि यह जानकारी आपके Hindi Sarang को समृद्ध करने में सहायक होगी। धन्यवाद। धीरेन्द्र ठाकोर

हिंदी साहित्य का विस्तार विपुल है, ऐसे में बहुत संभव है कि आत्मकथा में भी कुछ रचनाएँ छूट गयी हों. लेकिन हिंदी साहित्य की समृद्धि में और इनको उचित तरीके से ऑनलाइन मंच और रखने के लिए हिंदी सारंग टीम को दिल से बधाई. आशा है आप आगे भी इस तरह से चीजों को व्यवस्थि रूप से रखते हुए इस मंच की प्रभावशीलता और बढ़ाते रहेंगे और लोगों को लाभान्वित करते रहेंगे.

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Essay on computer ki aatmakatha in hindi in 700 words

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आधुनिक युग में कंप्यूटर का महत्व (Computer Essay in Hindi)

  आधुनिक युग में कंप्यूटर का महत्व (Computer Essay in Hindi)

  हैलो! आज हम आपको आधुनिक युग में कंप्यूटर का महत्व, Computer Essay in Hindi और इसके अलावा भी बहुत कुछ जानने वाले हैं। 

essay on computer ki atmakatha

  आज की पीढ़ी दुनिया के बारे में अपने बेतहाशा सपनों में कभी सोच भी नहीं सकती थी, सदियों पहले, जब कंप्यूटर या कोई अन्य तकनीक नहीं थी। हम इतना आगे बढ़ गए हैं कि अब हर जानकारी बस एक क्लिक दूर है और 24/7 आपके हाथ में है। यह सब उन्नति केवल "कंप्यूटर" नामक एक छोटे से उपकरण की शुरूआत के साथ ही संभव थी।

  मूल रूप से, कंप्यूटर एक ऐसा उपकरण है जो इंप्यूटर द्वारा संदेश को स्वीकार करता है और इस संदेश को संसाधित करता है और स्टोरेज डिवाइस पर जानकारी संग्रहीत करता है और बाद में आउटपुट डिवाइस के माध्यम से संदेश का आउटपुट देता है।

  कंप्यूटर की एक सरल व्याख्या। आम तौर पर, कंप्यूटर में एक प्रोसेसिंग यूनिट होती है जिसे सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट या सीपीयू और मेमोरी का एक रूप कहा जाता है। 1940 और 1945 के बीच के वर्षों में विकसित किए गए पहले इलेक्ट्रॉनिक डिजिटल कंप्यूटर थे। शुरुआती आकार एक कमरे जितना बड़ा था और आज के पर्सनल कंप्यूटर जितना बिजली की खपत करता था।

  प्रारंभ में, कंप्यूटर एक ऐसे व्यक्ति से संबंधित था जो गणना या गणना करता है और जैसे कंप्यूटर शब्द 1613 में विकसित हुआ और 19 वीं शताब्दी के अंत तक जारी रहा । बाद में इसे एक मशीन के रूप में फिर से वर्णित किया गया जो गणना करता है।

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Computer पर महत्व (mahatv computer par).

  प्रारंभिक कंप्यूटर अपने कार्यों में सीमित थे। यह स्वचालित गणना और प्रोग्रामयोग्यता का संलयन था जिसने 1837 में पहचाने गए पहले कंप्यूटरों का उत्पादन किया था। 1837 में चार्ल्स बैबेज ने पूरी तरह से प्रोग्राम किए गए मैकेनिकल कंप्यूटर, अपने विश्लेषणात्मक इंजन को पेश करने और डिजाइन करने वाले पहले व्यक्ति थे। सीमित वित्त और डिजाइन के साथ छेड़छाड़ का विरोध करने में असमर्थता के कारण, वह अपना काम पूरा नहीं कर सका और बाद में इसे उनके बेटे हेनरी बैबेज ने पूरा किया, जिन्होंने इसे विश्लेषणात्मक इंजन की कंप्यूटिंग इकाई के सरलीकृत संस्करण में बनाया।

  कंप्यूटर का आविष्कार करने का मूल उद्देश्य तेजी से गणना करने वाली मशीन बनाना था। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान दुश्मन के हथियारों की दिशा और गति को समझना और उनका पता लगाना बहुत जरूरी हो गया था। गणना सटीक और गणितीय रूप से की जानी थी और एक उन्नत मशीन के बिना यह संभव नहीं होगा। दुश्मन की रक्षा के लिए, अग्रिम पंक्ति के सैनिकों को फायरिंग टेबल की आवश्यकता होती थी और उस समय केवल एक कंप्यूटर ही गति और सटीकता के साथ ऐसी फायरिंग टेबल का उत्पादन कर सकता था।

उस समय तकनीक का उत्पादन करने के लिए बहुत अधिक धन और मस्तिष्क शक्ति की आवश्यकता थी। पहला कंप्यूटर मूर स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग द्वारा निर्मित किया गया था, जिसे अमेरिकी सेना की ओर से ENIAC कहा जाता है, जो 1946 में था। ENIAC बड़ी संख्या में सटीक गणना करके फायरिंग टेबल का उत्पादन करने में सक्षम था।

समय के साथ कंप्यूटर विकसित हुए हैं और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक के साथ, हम सबसे उन्नत प्रकार के कंप्यूटरों का उपयोग करते हैं जिन्होंने जीवन के हर क्षेत्र में मनुष्य की मदद की है। कंप्यूटर की हर पीढ़ी में या वास्तव में विकास के दौरान, हर बार ऐसे कंप्यूटर लॉन्च किए जा रहे हैं जो हल्के, छोटे, तेज और अधिक शक्तिशाली हैं। 1970 के दशक से कंप्यूटर एक प्रमुख कारक रहा है और आज इसने जीवन के लगभग सभी क्षेत्रों पर विजय प्राप्त कर ली है।

कंप्यूटर का उपयोग आज विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है जैसे मौसम की भविष्यवाणी, मशीनरी संचालन, अंतरिक्ष यान का मार्गदर्शन और प्रौद्योगिकी। इनके अलावा चिकित्सा क्षेत्र में, यह उन सूचनाओं को संग्रहीत करने में बहुत मददगार हाथ प्रदान करता है जिन्हें बाद में संदर्भित किया जा सकता है, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में, बैंकों में स्वचालन, नेट के माध्यम से टिकट बुकिंग, यातायात नियंत्रण, और यहां तक कि कंप्यूटर में खेल भी खेला जा सकता है। बहुत अधिक। यह सब केवल उन विशेषताओं के कारण संभव है जो एक कंप्यूटर में तेज, सटीकता, विश्वसनीयता और अखंडता जैसी होती हैं। यह बिना कोई गलती किए एक अरब से अधिक निर्देश प्रति सेकंड कार्यकारी कर सकता है पूरी तरह से विश्वसनीय है। कंप्यूटर की मेमोरी इतनी विशाल होती है कि यह बड़ी मात्रा में डेटा को स्टोर कर सकता है।

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Computer के बारे में (jane computer par mahatv).

कंप्यूटर चलाने के लिए प्रोग्रामिंग ही तय करती है और इसे कंप्यूटर में चलाया जाना चाहिए। प्रोग्रामिंग को कंप्यूटर को आवंटित निर्देशों के एक सेट के रूप में परिभाषित किया जाता है जो किसी समस्या को हल करने के लिए इसे स्वीकार करता है। कंप्यूटर को प्रोग्राम करने के लिए कई अलग-अलग भाषाओं का उपयोग किया जा रहा है। कुछ भाषाएँ हैं BASIC, COBOL, C, C++, JAVA कुछ नाम हैं।

कंप्यूटर के आने से सूचना प्राप्त करना काफी आसान हो गया है। कंप्यूटर सूचना प्रौद्योगिकी की रीढ़ बन गए हैं और इस क्षेत्र में एक प्रमुख अनुप्रयोग इंटरनेट है। इंटरनेट के साथ आज कुछ भी असंभव नहीं है। जानकारी प्राप्त करने के अलावा, कोई मित्र और परिवार से जुड़ा रह सकता है, व्यापार विस्तार, खरीदारी, अध्ययन के लिए एक महान मंच और सूची बस चलती है, यह अंतहीन है।

लगभग सभी क्षेत्रों में कम्प्यूटरीकरण ने हजारों लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा किए हैं। कंप्यूटर शिक्षा स्कूल स्तर पर और प्राथमिक कक्षाओं में शुरू की गई है, इसलिए कंप्यूटर का ज्ञान प्राप्त करने का महत्व है। हर साल हजारों छात्र दुनिया भर के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों से कंप्यूटर प्रौद्योगिकी की दुनिया में कदम रखते हैं और यही युवा प्रौद्योगिकी को उन्नति के अगले स्तर पर ले जाने में कल की संपत्ति है।

कंप्यूटर ने सभी भूमिकाओं में साबित कर दिया है कि उसे सौंपा गया है। कंप्यूटर के साथ लागू किए गए हर क्षेत्र में एक महान मददगार हाथ। टेलीकम्युनिकेशन और सैटेलाइट इमेजरी भी कंप्यूटर आधारित हैं, जो अन्य क्षेत्रों में कंप्यूटर होल्ड की लंबी सूची में जुड़ जाते हैं।

हर सकारात्मक के साथ एक नकारात्मक होता है और यही बात कंप्यूटर पर भी लागू होती है। उन सभी सकारात्मकताओं के साथ जिन्हें कोई प्राप्त कर सकता है और जब्त कर सकता है, नकारात्मक पक्ष भी बड़ा है। साइबर अपराध में वृद्धि, अश्लील वेबसाइटें, झूठी पहचान के कारण युवाओं को फंसाना और बहुत कुछ। फिर भी, लाभ अधिक संख्या में हैं और यह नकारात्मक पहलुओं को रोकने के लिए कई तरह का निवारक उपाय भी शुरू किए गए हैं।

दुनिया वह नहीं होती जो आज है, अगर इस महान मशीन में प्रवेश नहीं हुआ होता, भले ही कच्चे रूप में, हमसे सदियों पहले। कंप्यूटर का भविष्य बहुत अच्छा है और हमें बस उस पर नजर रखनी है और उसमें आने वाले परिवर्तनों को चिह्नित करना है।

आधुनिक काल का कंप्यूटर का महत्व (mahatv computer par aadhunik kal me)

इस तथ्य से कि कंप्यूटर ने मनुष्य के जीवन को काफी हद तक बदल दिया है, शायद ही इनकार किया जा सकता है। इन दिनों हम में से अधिकांश लोग उनके बिना अपने जीवन की कल्पना नहीं कर सकते हैं।

कंप्यूटर लोगों के जीवन को आसान और अधिक आरामदायक बनाते हैं: वे उन अरबों लोगों के संपर्क में रहने के अवसर प्रदान करते हैं जो दुनिया के विभिन्न हिस्सों में बहुत अच्छी तरह से हो सकते हैं। आज लोग कम्प्यूटरीकृत कार चला सकते हैं और दूसरे देशों के नियोक्ताओं के लिए उन्हें देखे बिना भी काम कर सकते हैं।

एक विचार यह भी है कि कंप्यूटर एक इलेक्ट्रॉनिक मस्तिष्क है जिस पर लोग भरोसा कर सकते हैं। हां, मैं मानता हूं कि कंप्यूटर व्यवसायी लोगों और उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण तत्व हैं जिन्हें काम, अध्ययन और मनोरंजन के लिए उनकी आवश्यकता है, लेकिन आप कंप्यूटर का उपयोग करने वाले युवा स्कूली लड़कों और लड़कियों के बारे में क्या सोचते हैं ?

निजी तौर पर मेरा मानना ​​है कि कंप्यूटर और इंटरनेट तक उनकी पहुंच सीमित होनी चाहिए। यदि वे विभिन्न खेल खेलते हैं या समय-समय पर अपने दोस्तों के साथ ऑनलाइन चैट करते हैं तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है । फिर भी अक्सर ऐसा होता है कि बच्चे इंटरनेट पर होमवर्क के समाधान खोजने लगते हैं जो एक बुरी आदत बन जाती है। पाठ्यपुस्तकों से अपने ज्ञान या जानकारी का उपयोग करके असाइनमेंट से निपटने की कोशिश करने के बजाय, वे ऑनलाइन पाए गए समाधानों का उपयोग करना पसंद करते हैं। यह निश्चित रूप से स्कूल में उनकी प्रगति पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।

कंप्यूटर युवाओं के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। सबसे पहले, जो लोग अपने कंप्यूटर की स्क्रीन के सामने बहुत समय बिताते हैं, वे शारीरिक गतिविधि की कमी से पीड़ित होते हैं। इन बच्चों को अक्सर स्कोलियोसिस और ग्लूकोमा जैसी आंखों की समस्या होती है।

 इस तथ्य से कि कंप्यूटर ने मनुष्य के जीवन को काफी हद तक बदल दिया है, शायद ही इनकार किया जा सकता है। इन दिनों हम में से अधिकांश लोग उनके बिना अपने जीवन की कल्पना नहीं कर सकते हैं।

निजी तौर पर मेरा मानना है कि कंप्यूटर और इंटरनेट तक उनकी पहुंच सीमित होनी चाहिए। यदि वे विभिन्न खेल खेलते हैं या समय-समय पर अपने दोस्तों के साथ ऑनलाइन चैट करते हैं तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है । फिर भी अक्सर ऐसा होता है कि बच्चे इंटरनेट पर होमवर्क के समाधान खोजने लगते हैं जो एक बुरी आदत बन जाती है। पाठ्यपुस्तकों से अपने ज्ञान या जानकारी का उपयोग करके असाइनमेंट से निपटने की कोशिश करने के बजाय, वे ऑनलाइन पाए गए समाधानों का उपयोग करना पसंद करते हैं। यह निश्चित रूप से स्कूल में उनकी प्रगति पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।

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Conclusion (निष्कर्ष)

  तो दोस्तों आपको यह जानकारी "आधुनिक युग में कंप्यूटर का महत्व - Computer Essay in Hindi" कैसी लगी, अगर अच्छी लगी हो, तो इसे शेयर जरुर करें।

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Authored By: Mr Govind

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BEGINNER GUIDE (Hindi)

Hindi Essay on “Ek Kalam Ki Atmakatha”, “एक कलम की आत्मकथा”, Hindi Essay for Class 5, 6, 7, 8, 9 and Class 10 Students, Board Examinations.

एक कलम की आत्मकथा

Ek Kalam Ki Atmakatha

सुंदर कद-काठी का मैं एक नीली कलम हूँ। रवि के पिता जी मुझे ज्ञान देवी सरस्वती के पूजा के दिन घर ले आए थे। मेज के ऊपर मुझे रख उन्होंने बताया कि सभी मुझे केवल विशेष कार्यों के लिए प्रयोग करेंगे।

रवि की बड़ी बहन को भूकंप के ऊपर प्रोजेक्ट बनाने को मिला। उसने पिता जी की आज्ञा से मेरा प्रयोग किया। भूकंप की कहानियाँ और लोगों की पीड़ा दिल दहला देने वालीं थीं। लिखते हुए मेरा मन भी रोने लगा। जब हम राहत कार्यों के विषय पर आए तो मुझे यह सोच कर बहुत हर्ष हुआ कि मनुष्यता अभी भी जीवित है।

रवि की माता जी सुंदर कविताएँ रचती हैं। पेड़, पहाड़, चिड़िया और कोयल को लयबद्ध करने का भार मेरे नन्हें कंधों पर आता है। साहित्य की  ओर मेरा योगदान मुझे गौरवान्वित अनुभव कराता है।

रवि कभी-कभी मुझे अपनी परीक्षा में ले जाता है। तब मुझे अपना उत्तरदायित्व निभाना पड़ता है। बिना रुके लिखते जाना ही मेरा प्रण रहता है।

रवि के पिता जी मुझे अपनी फाइलों में टैक्स जोड़ने के लिए प्रयोग करते हैं। तब मुझे सबसे अधिक डर लगता है। मैं उनका कार्य बहत ध्यान से और धीरे-धीरे करता हूँ।

इतने भिन्न कार्यों को करने का मेरा अनुभव मुझे ज्ञानी बना रहा है।

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निम्नलिखित विषय पर 80 से 100 शब्दों में निबंध लिखिए। एक किसान की आत्मकथा - Hindi (Second/Third Language) [हिंदी (दूसरी/तीसरी भाषा)]

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निम्नलिखित विषय पर 80 से 100 शब्दों में निबंध लिखिए।

एक किसान की आत्मकथा

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भारत गाँवों का देश है और मैं उन्हीं गाँवों में रहता हूँ। लोग मुझे अन्नदाता, किसान, भूमिपुत्र जैसे कई नामों से जानते हैं और मेरा सम्मान करते हैं। सारे देशवासी मेरे द्वारा उगाया गया अन्न ग्रहण करके ही अपना और अपने परिवार का पेट भरते हैं। हमारा पूरा जीवन धरती माँ की सेवा में गुजर जाता है। हमारा इतिहास बहुत पुराना है। सभ्यता के विकास से लेकर आज इक्कीसवीं सदी तक मैं अपने पुराने व्यवसाय से ही जुड़ा हुआ हूँ।

मेरा नाम गोपाल है। रामपुर नाम के एक छोटे से गाँव में रहने वाला किसान। मेरी जीवन कथा सीमित स्थानों और संसाधनों के बीच घूमती है, लेकिन इसकी महत्त्वपूर्णता कोई नहीं कम कर सकता। मेरे जीवन के सभी संघर्षों और सफलताओं के बावजूद, मैं एक संतुष्ट और गर्वमय किसान बना हूँ।

मेरा जीवन बड़े परिवार में बिता, जहाँ खेती हमारे जीवन का मुख्य आधार थी। मेरे पिताजी और दादाजी ने मुझे खेती के महत्त्व को सिखाया और मेरे अंदर उत्प्रेरणा की भावना जगाई। मैंने अपनी शिक्षा गाँव के स्कूल में पूरी की, लेकिन शिक्षा के बाद भी मेरे दिल में सिर्फ खेती की ख्वाहिश ही थी।

जब मैंने खेती का काम शुरू किया, तो मुझे पता चला कि यह काम आसान नहीं है। धूप, मिट्टी, और प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ता है। लेकिन मैंने कोई समय नहीं खोया और जीवन की मुश्किल समयों में अपने आप को मजबूत बनाया। मेरी लगन और मेहनत ने मुझे सफलता के मार्ग पर आगे बढ़ने की सामर्थ्य दी।

मेरे जीवन में कई व्यापारिक और वित्तीय संकट आए, जब मैं नुकसान का सामना करना पड़ा। परंतु ये संकट मेरी हिम्मत नहीं हार सके। मैंने नए तकनीकों का इस्तेमाल किया, बाजार की ताकत को समझा और अपनी फसल की कीमतों को नियंत्रित किया। धीरे-धीरे मैं अपनी जमीन की खेती में विदेशी तकनीकों का प्रयोग करने लगा और अधिक उत्पादन की संभावनाएँ प्राप्त की।

मेरे साथी किसानों के साथ मैंने सहयोग और ज्ञान साझा किया। हम साथ मिलकर नए फसलों की खेती की, सबसे अच्छे तारिकों को सीखा और अनुभव साझा किया। हम एक-दूसरे के सामर्थ्यों को पहचानते और अपनी खेती में सुधार करने के लिए मिलकर काम करते रहे। इस सहयोग ने हमें वृद्धि की एक नई गति दी और हमारी आर्थिक स्थिति को सुधारा।

खेती मेरे लिए एक अद्वितीय अनुभव है। जब मैं अपनी मेहनत के फल को अपनी आँखों से देखता हूँ, तो उस खुशी की कोई सीमा नहीं होती। प्रकृति के साथ मेरी एकता, मिट्टी के संग मेरी जीवन की एकता है। यह मुझे स्वाभाविक सुंदरता और अधिक मूल्यवान जीवन का आनंद देता है।

खेती में कार्य करके मुझे अपने देश के किसानों की महत्त्वपूर्ण भूमिका का भी आदर्श बनाने का अवसर मिला है। मैं अपने गाँव के बच्चों को प्रेरित करता हूँ कि वे भी खेती में अपना भविष्य बनाएँ।

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रुपये की आत्मकथा rupaye ki atmakatha Essay on Autobiography of Money in Hindi रुपये की आत्मकथा rupaye ki atmakatha in hindi - मैं रूपया हूँ . इस संसार में सबसे महत्वपूर्ण वस्तु हूँ .सभी लोग मेरी गुणवत्ता से परिचित हैं .

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Ped ki Atmakatha in Hindi – एक पेड़ की आत्मकथा पर निबंध

दोस्तो आज हमने Ped ki Atmakatha in Hindi लिखा है एक पेड़ की आत्मकथा पर निबंध कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 ,10, 11, 12 के विद्यार्थियों के लिए है। इस लेख के माध्यम से हमने एक Ped ki Atmakatha  का वर्णन किया है। पेड़ का जीवन बहुत ही साधारण होता है।

वह अपना पूरा जीवन पृथ्वी के प्राणियों की सेवा में लगा देता है। फिर भी अंत में उसको काट दिया जाता है। लेकिन इतनी सब कठिनाइयों के बाद में भी एक पेड़ फिर से जन्म लेता है और फिर से सभी की सेवा करने लग जाता है।

Essay on Ped ki Atmakatha in Hindi 

मैं एक पेड़ हूं मेरा जन्म एक बीज के रूप में हुआ था मैं कुछ दिनों तक धरती पर यूं ही पड़ा रहा और धूल में भटकता रहा। कुछ दिनों बाद वर्षा का मौसम आया तो बारिश हुई, बारिश के कुछ समय बाद मैं बीज की दीवारों को तोड़कर बाहर निकला और इस दुनिया को देखा मैं उस समय बहुत ही कोमल था किसी के थोड़ा सा जोर से हाथ लगाने पर ही मैं टूट सकता था।

Ped ki Atmakatha in Hindi

जब मैं छोटा था तब छोटी सी आहट से ही मुझे डर लगता था मुझे ऐसा लगता था कि कोई पशु पक्षी या फिर इंसान मुझे तोड़ न ले या फिर अपने पैरों के नीचे कुचल ना दे। लेकिन समय बीतता गया और मैं धीरे-धीरे बड़ा होता गया।

कुछ वर्षों में मैं प्रकृति को भी जानने लगा था कि कब बसंत ऋतु आती है, कब वर्षा ऋतु आती है, कब सर्द ऋतु आती है उस हिसाब से मैं अपने आप को ढाल लेता था।

मैंने अपने जीवन को बचाए रखने के लिए बहुत सी बाधाओं को पार किया है जैसे कि गर्मियों में सूरज की तेज धूप को सहा है तो कभी सर्दियों में बहुत अधिक ठंड को सहा है, कभी तेज तूफान आते है तो कभी ओले गिरते है, कभी कोई जानवर मुझे खाने को दौड़ता है तो कभी इंसान मेरी टहनियों को तोड़ लेता है।

इन सभी बाधाओं से मुझे बहुत तकलीफ हुई लेकिन इन बाधाओं ने मेरे को इतना मजबूत बना दिया है कि अब मैं किसी भी बाधा का सामना कर सकता हूं।

यह भी पढ़ें –  Phool ki Atmakatha in Hindi Essay – फूल की आत्मकथा पर निबंध

लेकिन अब मैं बड़ा हो गया हूं मुझे अब किसी जानवर के खाने का भय नहीं रहता है और गर्मी सर्दी भी मैं सहन कर लेता हूं बड़ा होने के कारण अभी इंसान भी मेरी टहनियां नहीं तोड़ पाते है।

अब मेरे ऊपर कुछ पुष्प और फल भी लगने लगे है। मेरे पुष्प भगवान के चरणों में अर्पित किए जाते है जो कि मुझे बहुत अच्छा लगता है।

मेरे फल खाने के लिए बच्चे दौड़े चले आते है वह मेरे कच्चे फल ही खा जाते है। मेरे फल खाकर छोटे बच्चे बहुत खुश होते है यह देखकर मेरे हृदय में को भी सुकून मिलता है की मेरे होने से किसी को तो खुशी मिल रही है। और हम पेड़ों का असली मकसद ही यह रहता है कि हम जीवन भर कुछ ना कुछ इस धरती के प्राणियों को देते रहें।

समय व्यतीत होता रहा और मेरी टहनियां और मजबूत हो गई मेरी टहनियों के मजबूत होते ही बच्चों ने मेरे ऊपर झूले डाल दिए और जोर-जोर से झूलने लगे। बच्चे जब झूल रहे थे तो उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था झूले की रस्सियों से मुझे चुभन और दर्द तो हो रहा था लेकिन बच्चों की प्यारी मुस्कान के आगे वह दर्द कुछ नहीं था इसलिए मैं भी अपनी डाल को हिलाकर उन्हें ठंडी हवा दे रहा था।

धीरे-धीरे समय बीत रहा था और मैं पहले से ज्यादा बड़ा और मजबूत होता जा रहा था मेरी शाखाएं दूर-दूर तक फैलने लगी थी। गर्मियों में जब भी कोई राही तेज धूप से बचने के लिए मेरे नीचे आकर बैठता और आराम करता तो मैं उसे ठंडी छांव देता और टहनियों को हिला कर उन्हें हवा देता वह प्रसन्न होकर मुझे खूब दुआएं देते यह देख कर मुझे अच्छा लगता।

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कुछ लोग बारिश से बचने के लिए मेरे नीचे आकर खड़े हो जाते हैं मैं भी उनको बारिश से बचाने के लिए अपने पत्तों का ऐसा जाल बनता कि वह छतरी के समान बन जाता जिससे वह लोग बारिश में भीग नहीं पाते थे और बारिश खत्म होने पर भी खुशी-खुशी घर चले जाते थे।

मेरी विशाल शाखाओं पर बहुत सारे पक्षी आते है और उनमें से कुछ पक्षी मेरी शाखाओं पर अपना घोंसला बनाते है यह मुझे अच्छा लगता है कि कोई मेरी शाखाओं पर अपना घर बसा कर अपना जीवन यापन कर रहा है।

कुछ पक्षी उड़ते हुए थक जाते थे तो वे मेरी टहनियों के ऊपर आकर आराम करते हैं और मेरा धन्यवाद करके फिर से अपनी मंजिल की ओर उड़ कर चले जाते। लेकिन जिन पक्षियों ने मेरे ऊपर घर बनाया था वह सुबह दाना चुगने के लिए जाते और शाम को अपने घोंसले में लौट आते है।

वे पक्षी जब दाना चुगने जाते तब मैं उनके घोंसले की रक्षा करता था और उन पक्षियों के साथ मेरा एक अनूठा प्रेम बन गया था मानो ऐसा लग रहा था कि एक हमारा छोटा परिवार बन गया है।

मैं पहले से ज्यादा लोगों को अब फल और फूल दे रहा था लोग खुश होकर उन्हें खा रहे थे और मेरा धन्यवाद भी कर रहे थे।

जैसे-जैसे समय बीत रहा था मैं भी बूढ़ा हो रहा था और मेरी कुछ शाखाएं सूखने भी लगी थी लेकिन उनकी जगह नई शाखाएं भी आ रही थी। मेरा जीवन अच्छा व्यतीत हो रहा था।

लेकिन कुछ मनुष्य मेरी मोटी टहनियों को देखकर मुझे काटने का विचार करने लगे यह देख कर मुझे बहुत ही दु:ख हुआ कि मैंने जीवन भर इंसानों को सब कुछ दिया लेकिन आज ये अपने स्वार्थ के लिए मुझे काटना चाहते है।

कुछ दिन बाद ही कुछ लोग आए और मुझे काटने लगे मुझे बहुत ही पीड़ा हो रही थी लेकिन मैं अपनी पीड़ा जाहिर भी तो नहीं कर सकता था और ना ही कटने से बचने के लिए भाग सकता था।

उन लोगों ने मुझे पूरा काट दिया और फिर मेरी कुछ लकड़ियों को जला दिया और कुछ लकड़ियों से अपने काम की वस्तुएं बना ली। मुझे इस बात का गर्व है कि मैंने जीवन भर सब की सेवा की और मरने के बाद भी मेरी लकड़ी लोगों के काम आयी।

लेकिन मेरे मन में आज भी एक सवाल है हमने जीवन भर इंसानों को खूब फल, फूल, लकड़ियां, धूप से बचाने के लिए छांव और सबसे महत्वपूर्ण हमने इंसानों के जीवन के लिए ऑक्सीजन दी जिससे बिना इंसान जीवित नहीं रह सकते, हमने पृथ्वी को हरा भरा बनाए रखा, पृथ्वी के वातावरण में घुली जहरीली गैसों को भी साफ किया।

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फिर भी इंसानों ने अपने थोड़े से स्वार्थ के चलते हमें काट दिया। इस बात को लेकर हम पेड़ों को बहुत दुख होता है। लेकिन शायद इंसान की सोच ऐसी ही होती है कि जब तक किसी से कुछ मिलता रहे तब तक तो उसे पूछते हैं और जब मिलना बंद हो जाता है तो उसे ठुकरा देते है।

अंत में मैं यही कहना चाहूंगा कि मेरी सोच गलत थी कि जानवर हमें खा जाएंगे और मैं जानवरों से डरता था लेकिन बड़े होने पर समझ में आया कि हमें जानवरों से नहीं इंसानों से खतरा है।

मैं पेड़ आप सभी से निवेदन करना चाहूंगा कि आप हम पेड़ों को काटे नहीं और ज्यादा से ज्यादा लगाएं जिससे हम इस पृथ्वी को और खुशियों से भर दे।

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हम आशा करते है कि हमारे द्वारा Ped ki Atmakatha in Hindi  आपको पसंद आया होगा। अगर यह लेख आपको पसंद आया है तो अपने दोस्तों और परिवार वालों के साथ शेयर करना ना भूले। इसके बारे में अगर आपका कोई सवाल या सुझाव हो तो हमें कमेंट करके जरूर बताएं।

49 thoughts on “Ped ki Atmakatha in Hindi – एक पेड़ की आत्मकथा पर निबंध”

Nibandh or prathana patra

Nice very very good story iam emotional boro

Thank you Tausif for appreciation and share with your friends and family.

Thank u soo much for d lovely atmakhata……I really felt as if tree its self is speaking

Thank you Akshay kannan for appreciation.

Swaroop Biradar

I like the essay very much. Your website helps millions of students all over the world to learn various and valuable lessons in hindi Once again thanks a lot

Welcome Swaroop and thank you for appreciation.

Good very nicely explained the bio graphy of tree it seems that the tree itself has came alive and speaks this …..Its not just to read this and comment down on it but its about understanding the stuff written there and implement on it ( good things only ) what an inspiring message conved at last.

thank you Bibhash Chandra Bimal for appreciation.

Very good or nice atmakhata

vidhi Chauhan thank you for appreciation, keep visiting Hindi yatra.

thank you very much it helped me a lot

Welcome yashaswi thakur, keep visiting Hindi yatra.

Loved it, Great thoughts…… Tommorow Hindi Board Exam is there…. Your words in essay will definitely help me…. And Sir/Madam(Admin of web) be frank for any technical help from me…. I am a computer student and familiar with online Networking and website development… Thank you so much!

Welcome Rohan Pawar and thank you for appreciation.

I love this essay plz send more

Thank you Ritu Sumesh Pujari for appreciation and we will write more content soon on this topic.

Nice essay 👍 I like this essay very much .

Thank you Sujal Tarde keep visiting hindi yatra.

thankyou for giving a idea for my homework

Welcome amish and thanks for appreciation

Yay very nice you helped me in my homework

Thank you Tejasv Sehgal for appreciation.

Thanks sir Write Raste ki atamkatha Plz

Suru ji hum jald hi Raste ki atamkatha likhnge, aise hi hindi yatra par aate rahe.

Per ki aatm katha bahut achchhi hai air ye sabhi ko parhna chahiye

Aap ne shi khaa Ranjeet bhagat, aise hi website par aate rhe

Wow ….👍🤗I just loved the essay… Really good

Thank you Nupur for appreciation.

Aap ki atmakatha bahut acchi hai. Supper and thank you so much aap ne ye hum tak bahuchaya hai.

thank you Sana sheikh for Appreciation.

There’s a silly mistake that is in hindi it never comes full stop ” . ” , it comes purnaviram ” । ” please correct it.

We have improved our mistake and we are grateful to you that you made us aware of our mistake, Thank you Sangita

Can u plz send a short form of it nearly in 150-175 words

We will soon write 150-175 words essay on ped ki atmakatha

Nice nnnnniiiiiccccceeeee

Thank you Dev Somani, keep visiting our website.

Aap ki likhi hui pedh ki aatmkatha bahut acchi thi. kya aap ek suraj ki aatmkatha likh sakte he

Rashid Shaikh Pahle to App ke protsahan ke liye dhanyawad, or hum suraj ki aatmkatha bhi jald hi likhnge aap aise hi support banye rakhe.

Pls ek topic ke different essays dijiye for more ideas pls n thank you…….!!!!

Bhavya Pawan kevlani aap ke suggestion ke liye Dhanywad, aap apna support banaye rakhe hum jald hi naye Essay likhnge

kya aap ek budhe ped ki aatmakhata likh sakte hai

hum kuch hi dino me budhe ped ki aatmakhata esi page me update kar denge.

Ped ki aatmkat nibhand bahut hi acha tha mujhe bhi pad ke itna acha laga ki kya bolu mujhe bahut si ayday mili isliya aap ka dhanevad

Aap ko hamare duvara likha Gya nibandh accha laga iskliye aap ka Dhanyawad Arun Mulvad. Aise hi website par aate rahe

Very good or nice atmakatha that I didn’t saw any time

Thank you Deva Akhil

Very nice essay on per ki athmakatha

Thank you very much for your appreciation.

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Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Pakshi ki Atmakatha”, ”पक्षी की आत्मकथा” Complete Hindi Nibandh for Class 8, 9, 10, Class 12 and Graduation Classes

पक्षी की आत्मकथा, pakshi ki atmakatha .

निबंध नंबर:- 01 

संसार में अनगिनत प्राणी निवास करते है। उन्हें जलचर, थलचर और नभचर प्राणी जैसे तीन भागों में बाँटा जाता है। जलचर यानि पानी में रहने वाले। थलचर यानि धरती पर चलने-फिरने और रहने वाले मनुष्य और कई तरह के पशु. कीड़े-मकोडे, सौंप-बिच्छ आदि। नभचर यानि आकाश के खुलेपन में उड़ पाने में समर्थ पक्षी जाति के प्राणी। इन के पंख होते है. जिन के बल पर ये उड़ पाने में समर्थ हुआ करते हैं। स्पष्ट है कि मैं पक्षी यानि नभचर श्रेणी का प्राणी हूँ। मेरा अधिवास या घर-घोंसला आदि जो कुछ भी कहो, वह वृक्षों की शाखाओं पर ही अधिकतर हुआ करता है-यद्यपि मेरे कुछ भाई पेडों के तनों में खोल बना कर, घरों के रोशनदानों, छतों, पहाडी गारों या जहाँ कहीं भी थोडी-सी जगह मिल जाए. वहीं अपना नन्हा-सा नीड (घोंसला) बना कर रह लिया करते हैं। हाँ, टिपीहर (Land Bird) जैसे मेरे कुछ जाति भाई धरती के ऊपर या भीतर कहीं खोल बना कर भी रह लेते हैं।

अपने सम्बन्ध में और कुछ बताने से पहले मैं अपनी उत्पत्ति के बारे में भी बता दूं तो अच्छा रहेगा। संसार में पक्षी, पशु और मनुष्य आदि जितने भी प्राणी हैं, उन्हें क्रमशः अण्डज, उद्भिज, पिण्डज और स्वदेज चार प्रकार के माना गया है। जो प्राणी अण्डे से जन्म लेते हैं, उन्हें अण्डज कहा जाता है। जो बीज आदि बोने से जन्म लिया करते हैं, उन्हें उद्भिज कहा और माना जाता है। जो शरीर से सीधे उत्पन्न हुआ करते हैं, उन्हें पिण्डज कहा गया है। इसी प्रकार जिन प्राणियों का जन्म स्वेद अर्थात् पसीने से हुआ करता है. उन्हें स्वदेज कहा जाता है। धरती पर विचरण करने वाले मनुष्य और तरह-तरह के पशु पिण्डज प्राणी माने गए हैं। जिन्हें नभचर कहा-माना जाता है, अर्थात् आकाश के खुले वातावरण में विचरण करने या उड़ सकने वाले प्राणी अण्डज हुआ करते हैं। दनस्पतियों आदि उदभिज कहलाती हैं और जलचर जीव प्रायः स्वदेज होते हैं। स्पष्ट है कि हम पक्षी अण्डज जाति के प्राणी हैं।

तो मैं पक्षी हूँ-हजारों लाखों जातियों में से एक जाति का पक्षी, जो आपके घरों के आस-पास के वन-उपवनों में, पेड़-पौधो में पाया जाता है। भगवान् ने मेरे पंखों को चित्र-विचित्र रंगों वाला बनाया है। हम सभी पक्षियों की बुनियादी बनावट तो प्रायः समान ही हुआ करती है; हाँ आकार-प्रकार में कुछ अन्तर अवश्य हो जाता है। आकार-प्रकार के समान ही रंग-रूप भी प्रायः हर जाति के पक्षी का कुछ भिन्न और अलग ही हुआ करता है। दो पैर, दो आँखें, एक लम्बी या छोटी चोंच, शरीर पर छोटे-बड़े पंख और राम. कद या आकार-प्रकार के अनुरूप छोटे या बड़े-बड़े मजबूत डैने जिन के कारण हम पक्षी उड़ पाने में समर्थ हआ करते हैं, सभी के ही रहा ही करते हैं। हम पक्षियों की बोली भी प्रायः अलग-अलग हुआ करती है। किसी की बोली बहुत मधुर-मनहर, किसी की कठोर-कर्कश और किसी की सामान्य हुआ करती है। इसी कारण मधुर-मनहर बोली को गाना और कठोर-कर्कश को काँव काँव करना या कड़वी कहा जाता है। हम पक्षियों की बोली को आम तौर पर एक शब्द में ‘चहचहाना आप आदमियों को बड़ा ही अच्छा लगा करता है। आप लोग उसे सुन कर प्रायः ‘प्रकृति का संगीत, जैसे नाम देकर मनोमुग्ध होकर रह जाया करते हैं। है न ऐसी ही बात।

मैं पक्षी हूँ-भोला-भाला। आप मनुष्यों के पिजरों में बन्द होकर भी अपनी वाणी से चहचहाकर मस्त रहने और सभी को मस्त कर देने वाला। सिखाने और मैं आप मनष्यों की बोली, बातें और कई प्रकार के व्यवहार भी सीख लिया करता हूँ | मैं तो शुद्ध शाकाहारी जाति का पक्षी हूँ। फल, कई सब्जियाँ और दाना-दुनका जो कुछ भी मिल जाए खा कर और दो-चार बूंद स्वच्छ पानी पीकर मस्त रहा करता हूँ। लेकिन अन्य जातियों के कुछ पंक्षी माँसाहारी भी हुआ करते हैं। चील, गिद्ध, बाज जाति के पक्षी माँसाहार ही किया करते हैं। कुछ पक्षी कीड़े-मकौड़े खा कर भी जीवित रहते हैं कुछ विष्टा तक खा जाते है। भई, मनुष्यों में भी भिन्न आहार-विहार वाले लोग होते हैं न। उसी प्रकार हम पक्षियों में भी हैं।

मुझ पक्षी को स्वतंत्रतापूर्वक किसी वृक्ष की डाली पर घोंसला बना कर रहना, मुक्त आकाश में मुक्त भाव से चहचहाते हुए इच्छापूर्वक दूर-दूर तक उड़ना ही स्वाभाविक रूप से अच्छा लगता है। जैसे आप मनुष्यों को कई बार परतंत्र जीवन बिताना पड़ जाता है अनिच्छा से, वैसे ही कई बार मुझे भी आप मनुष्यों के बन्धन में, पिंजरे में बन्द होकर रहना पड़ जाया करता है। इस तरह की परतंत्रता सभी सुख-सामग्रियाँ सुलभ रहने पर भी अच्छी नहीं लगा करतीं । स्वतंत्र रहकर रोज सुबह दूर-दराज़ तक उड़, दाना दुनका चुग कर साँझ ढले चहचहाते हुए वापिस घोंसले में लौट आना-इस प्रकार परिश्रम से भरा स्वावलम्बी जीवन की चाहत है हम पक्षियों की नहीं, सोने का पिंजरा भी मुझे सच्चा सुख नहीं दे सकता, अतः कभी भूल कर भी इस तरह की परतंत्र रहने की बात न कहना-करना। आप मनुष्यों के समान हमें भी ऐसी बात पसन्द नहीं-हम उड़ने वाले पक्षियों को कतई नहीं।

Pakshi Jeevan

निबंध नंबर:- 02 

विश्व में अनगिनत प्राणी निवास करते हैं। उन्हें जलचर, थलचर, और नभकर पानी जैसे तीनों भागों में बाँटा जाता है। जलचर यानि पानी में रहने वाले मनुष्य और कई तरह के पशु, कीडे-मकौड़े, साँप बिच्छू आदि। नभचर यदि आकाश के खुलेपन में उड़ने वाले पक्षी जाति के प्राणी। इनके पंख होते हैं जिनके बल पर ये उड़ पाने में समर्थ हुआ करते हैं। स्पष्ट है कि मैं पक्षी यानि नभचर श्रेणी का प्राणी हूँ। मेरा अधिवास या घर-घोंसला जो भी कहो, वह वृक्षों की शाखाओं पर ही अधिकतर हुआ करता है। यद्यपि मेरे कुछ भाई पेड़ो के तनों में खोल बनाकर घरों के रोशनदानों, छतों या जहाँ कहीं भी थोड़ी सी जगह मिल जाए, वहीं अपना नन्हा-सी नीड यादि घोंसला बनाकर रह लिया करते हैं। हाँ टिटीहरी जैसी मेरे कुछ पक्षी भाई धरती के ऊपर या भीतर कहीं खोल बनाकर भी रह लेते हैं।

अपने संबंध में और कुछ बताने से पहले मैं अपनी उत्पत्ति के विषय में भी बता दूँ, तो अच्छा रहेगा। विश्व में पक्षी, पशु और मनुष्य आदि जितने भी प्राणी हैं उन्हें क्रमशः अंडज उद्भिज, पिंडज और स्वदेश चार प्रकार के माने गए है। जो प्राणी अंडे से जन्म लेते हैं -उन्हें अंडज कहा जाता है। जो बीज आदि के बोने से जन्म लिया करते हैं -उन्हें उभिज कहा और माना जाता है। जो शरीर से सीधे उत्पन्न हुआ करते हैं -उन्हें पिंडज कहा गया है। इसी प्रकार जिन प्राणियों का जन्म स्वेद अर्थात पसीने से हुआ करता है, उन्हें स्वदेज़ कहा जाता है। धरती पर विचरण करने वाले मनुष्य और तरह-तरह के पशु पिंडज प्राणी माने गए हैं। जिन्हें नभचर कहा-माना जाता है, वे प्राणी अंडज हुआ करते हैं। वनस्पतियाँ आदि उद्भिज कहलाती है और जलचर जीव प्रायः स्वदोज होते हैं। स्पष्ट है कि हम पक्षी अंडज जाति के प्राणी हैं।

मैं पक्षी हूँ-हजारों लाखों जातियों में से एक जाति का पक्षी, जो आपके घरों के आस-पास के वन-उपवनों में पेड़-पौधों में पाया जाता है। भगवान ने मेरे पक्षों को चित्र-विचित्र रंगों वाला बनाया है। हम सभी पक्षियों की बुनियादी बनावट तो प्रायः समान ही हुआ करते हैं; हाँ आकार-प्रकार में कुछ अंतर अवश्य हो जाता है। आकार प्रकार के समान रंग-रूप भी प्रायः हर जाति के पक्षी का कुछ भिन्न और अलग ही हुआ करता है। दो पैर, दो आँखें, एक लंबी या छोटी चोंच शरीर पर छोटे बड़े पंख और रोम, कद आकार प्रकार के अनुरूप छोटे या बड़े-बडे मजबूत डैने जिनके कारण हम पक्षी उड पाने में समर्थ हुआ करते हैं यह सभी के रहा करते हैं। हम पक्षियों की बोली भी प्रायः अलग-अलग हुआ करती है। किसी की बोली बहुत मधुर-मनहर, किसी की कठोर-कर्कश और किसी की सामान्य बोली को आम तौर पर एक शब्द में चहचहाना ही कहा करते हैं। किसी वन उपवन में हम पक्षियों को सम्मिलित चहचहाना आप मनुष्यों को बड़ा ही अच्छा लगता है। आप लोग उसे सुनकर प्रायः प्रकृति का संगीत, जैसे नाम देकर मनोमुग्ध होकर रह जाया करते हैं।

मैं पक्षी हूँ- भोला-भाला। आप मनुष्यों के पिंजरों में बंद होकर भी अपनी वाणी से चहचहा कर मस्त रहने और सभी मस्त कर देने वाला। सिखाने और आप मनुष्यों की बोली, बातें और कई प्रकार के व्यवहार भी सीख लिया करता हूँ। मैं तो शुद्ध शाकाहारी जाति का पक्षी हूँ। फल, कई सब्जियाँ और दाना-दुनका जो कुछ भी मिल जाए खाकर और दो-चार बूंद स्वच्छ पानी पीकर मस्त रहा करता हूँ। लेकिन अन्य जातियों के कुछ पक्षी मांसाहारी भी हुआ करते हैं। चील, गिद्ध, बाज़ जाति के पक्षी मांसाहार ही किया करते हैं। कुछ पक्षी कीड़े-मकोड़े खाकर भी जीवित रहते हैं। कुछ विष्ठा तक खा जाते हैं। भाई मनुष्यों में तो भिन्न आहार-विहार वाले लोग होते हैं न। उसी प्रकार हम पक्षियों में भी हैं।

मैं पक्षी तो स्वतन्त्रतापूर्वक किसी पेड़ की डाली पर घोंसला बनाकर रहना, मुक्त आकाश में मुक्त भाव से चहचहाते हुए इच्छापूर्वक दूर-दूर तक उड़ना ही स्वाभाविक रूप से अच्छा लगता है। जैसे आप मनुष्यों को कई बार परतंत्र जीवन बिताना पड़ जाता है अनिच्छा से, वैसे ही कई बार मुझे भी आप मनुष्यों के बंधन में, पिंजरे में बंद होकर रहना पड़ जाया करता है। इस प्रकार की परतंत्रता सभी सुख-सामग्रियाँ सुलभ रहने पर भी अच्छी नहीं लगा करती। स्वतंत्र रहकर रोज सुबह दूर-दराज तक उड़ दाना-दुनका चुराकर साँझ ढले चहचहाते हुए वापस घोंसले में लौट आना, इस प्रकार परिश्रम से भरा स्वावलंबी जीवन की चाहत है। हम पक्षियों की। सोने का पिंजरा भी मुझे सच्चा सुख नहीं दे सकता अत: कभी भूलकर भी इस प्रकार की परतंत्र रहने की बात न कहना-करना। आप मनुष्यों के समान हमें भी ऐसी बात पसंद नहीं हम उडने वाले पक्षियों को कतई नही।

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