essay of china in hindi

दुनिया की सबसे लंबी दीवार “दी ग्रेट वॉल ऑफ़ चाइना”

The Great Wall of China in Hindi 

चीन की विशाल दीवार मनुष्यों द्धारा निर्मित एक महान संरचना है, जिसका इतिहास 2 हजार साल से भी ज्यादा पुराना है। यह अपनी अद्भुत वास्तुकला और भव्यता की वजह से विश्व के सात अजूबों में से एक है।

इस विशाल दीवार को ”छांग छंग” के नाम से भी जाना जाता है। करीब 6400 किलोमीटर लंबी इस विशाल दीवार का निर्माण किसी एक सम्राज्य और एक शासक ने नहीं करवाया है, बल्कि इस निर्माण चीन के अलग-अलग शासकों द्धारा किया गया है।

आपको बता दें कि अलग-अलग सम्राज्यों के शासकों ने अपने क्षेत्रीय इलाकों की रक्षा के लिए इस विशाल दीवार का निर्माण करवाया था। उस दौरान ”द ग्रेट वॉल ऑफ चाइना” का इस्तेमाल माल की हेरा-फेरी के लिए किया जाता था। विश्व के सात अजूबों में से एक यह चीन की विशाल दीवार चीन के करीब 15 इलाकों में फैली हुई है।

यह विशाल दीवार बीजिंग से शुरु होती है, और जिययुगुआन तक फैली हुई है। वहीं एक पुरातात्विक सर्वेक्षण के मुताबिक यह दीवार 15 प्रांतों को पार करती हुई और उत्तर-पश्चिम में शिजियांग से एवं पूर्व में कोरिया की सीमा तक फैली हुई है।

आपको बता दें कि द ग्रेट वॉल ऑफ चाइना सिर्फ एक ही दीवार नहीं है, बल्कि यह कई दीवारों का संग्रह हैं। 17वीं सदी के बाद से 20 से भी ज्यादा सम्राज्यों ने इन विशाल दीवार के निर्माण काम की जिम्मा बेहद गंभीरता से संभाला था।

बैडलिंग, इस दीवार का सबसे अधिक पसंद किया जाने वाला हिस्सा है, यहां से सबसे ज्यादा आर्कषक एवं आश्चर्यजनक सीन देखने को मिलते हैं।

चाइना की इस महान दीवार के निर्माण को लेकर सबसे अधिक हैरान कर देने वाली बात यह है कि इस दीवार को बनाने में ज्यादा मेहनत न करने वाले हजारों मजदूरों को मौत के घाट उतार दिया गया था और उनकी लाशों को इस दीवार के नीचे ही दफन कर दी जाती थी, शायद इसलिए चीन की इस विशाल संरचना को दुनिया का सबसे बड़ा कब्रिस्तान भी कहा जाता है।

इसके अलावा लाखों मजदूरों को जबरन कैद कर सजा के रुप में इस दीवार का निर्माण काम करवाया गया था। इस दीवार के निर्माण में करीब 20 से 30 लाख लोगों ने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया था, तब जाकर इस विशाल संरचना का निर्माण हुआ था। आइए जानते हैं, चीन की इस महान दीवार के बारे में –

दुनिया की सबसे लंबी दीवार “दी ग्रेट वॉल ऑफ़ चाइना” – The Great Wall of China

चीन की विशाल दीवार का निर्माण – great wall of china history in hindi.

मनुष्य द्धारा निर्मित दुनिया की सबसे विशाल संरचना द ग्रेट वॉल ऑफ चाइना का निर्माण किसी एक राजवंश और शासक ने नहीं करवाया बल्कि इसके निर्माण में बहुत सारे सम्राज्य और सम्राटों का योगदान है।

इतिहास में उल्लेखित तथ्यों के मुताबिक 720 से 221 ईसा पूर्व के दौरान चीन की महान दीवार का निर्माण काम झोऊ राजवंश की देखरेख में हुआ। इसके बाद चीन की उत्तरी सीमा पर करीब 221 ईसा पूर्व से 207 ईसा पूर्व तक किन राजवंश द्धारा चीन की इस विशाल दीवार का निर्माण किया गया।

इसके बाद हान राजवंश ने इस विशाल दीवार के निर्माण काम में अपना सहयोग दिया, इस दौरान इस महान दीवार को सिल्क रोड व्यापार की रक्षा के लिए बढ़ाया गया था।

और फिर इसके बाद 1368 ईसवी से 1644 के बीच मिग राजवंश ने इस दीवार के निर्माण काम को आगे बढ़ाया, इस अवधि के दौरान इस दीवार का अधिकांश हिस्से का निर्माण किया गया।

इस दीवार के निर्माण में चावल के आटे समेत रेती, पत्थर, ईट और मिट्टी का इस्तेमाल किया गया है।

चीन की महान दीवार का निर्माण करने का मुख्य मकसद – Main Purpose Of Great Wall Of China

विश्व की इस सबसे विशाल मानव निर्मित संरचना का निर्माण मूल रूप से एक युद्धकालीन रक्षा के रूप में अर्थात दुश्मनों के हमलों से बचने के लिए एवं चीन को एकजुट करने एवं रेशम मार्ग के रुप में इसका इस्तेमाल करने के लिए किया गया था।

इसके अलावा इस रुट का इस्तेमाल माल की हेरा-फेरी के लिए अर्थात व्यापार और परिवहन के उद्देश्य से भी किया गया था।

आपको बता दें कि उस दौरान मंगोलियाईओं से चीन को खतरा था, वे अक्सर चीन पर आक्रमण करने की फिराक में रहते थे, इसलिए इस विशाल दीवार को खासकर मंगोलियाई हमलों और दुश्मनों के हमलों से रक्षा के लिए किया गया था।

आपको बता दें कि चीन की इस विशाल दीवार में चीन की सीमा पर निगरानी रखने के लिए कई लुक आउट टॉवर भी बनाए गए हैं। वहीं जब चीन के पहले शासक किन शी हुआंग ने पहली बार विश्व की इस सबसे विशाल संरचना का  प्रस्ताव रखा था, उस दौरान उत्तरी हमलावर जनजातियों से चीनी राज्यों की रक्षा करना उनका एकमात्र उद्देश्य था।

दुनिया के सात अजूबों में से एक है चीन की महान दीवार – 7 Wonders Of The World Great Wall Of China

द ग्रेट वॉल ऑफ चाइना, विश्व की सबसे विशाल मानव निर्मित संरचना है, जो कि सिर्फ एक लंबी दीवार ही नहीं है, बल्कि कई दीवारों और किलों की एक श्रंखला है। इस महान दीवार को लाखों मजदूरों द्धारा 2 हजार से भी ज्यादा सालों में बनाया गया है।

अपनी अद्भुत बनावट और भव्यता के लिए मशहूर इस दीवार को दुनिया के सात अजूबों में शामिल किया गया है। दुश्मनों के हमलों से रक्षा के लिए बनाई गई इस विशाल दीवार में कई वॉच टॉवर समेत आग, धुएं आदि का संकेत देने के लिए सिंग्नल की सुविधाएं भी है।

इसके अलावा इस महान दीवार में सेना बैरकों समेत अन्य नियंत्रण तंत्र का भी निर्माण किया गया है।

कई हजार साल पहले बनी द ग्रेट वॉल ऑफ चाइना का निर्माण इस तरह किया गया है कि यह विशाल दीवार, कोई एक सामान्य दीवार नहीं बल्कि किलेबंदी एवं कई दीवारों का एक विशाल संग्रह है, जिनमें से कुछ एक-दूसरे के समानांतर बनी हुई हैं, जबकि अन्य कुछ परिपत्र की तरह हैं।

लाखों कारीगरों द्धारा निर्मित इस विशाल दीवार को बनाने का ज्यादातर काम हाथों से किया गया था, हालांकि इस विशाल संरचना को बनाने में उस समय इस्तेमाल होने वाली प्राचीन तकनीक रस्सी, टोकरी, चरखी, पहिया ठेला, घोड़े या बैल-गाड़ी आदि का भी इस्तेमाल किया गया था।

चीन की महान दीवार बनाने में लगा कुल समय – Great Wall Of China Building Time

कई सम्राज्यों और शासकों द्धारा निर्मित चीन की इस विशाल दीवार के निर्माण काम में करीब 2 हजार से भी ज्यादा का लंबा वक्त लगा। 6400 किलोमीटर लंबी इस दीवार को नापने के लिए नॉर्वे से आए स्टीफन रॉबर्ट लोकेन को करीब 691 दिन लगे थे। इस विशाल दीवार के अंदर कई हजार चीनी अवशेष है।

”द ग्रेट वॉल ऑफ चाइना” की शुरुआत बिंदु हुशान पर शुरु होकर जियागुआन पास पर खत्म होता है, जबकि यह विशाल दीवार लाओलोन्गतोऊ और बोहई सागर में खत्म होती है।

चीन की महान दीवार के इतिहास में जियागुआन पास को सबसे प्रभावी सैन्य प्रणाली इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यह आक्रमणकारियों को चीन की सीमाओं में प्रवेश करने से प्रभावी ढंग से रोकता है।

आपको बता दें कि यह विश्व का सबसे बड़ा पास है, जिससे कई सैन्य कहानियां जुड़ी हुई हैं।

चीन की विशाल दीवार से जुड़े कुछ दिलचस्प एवं रोचक तथ्य – Facts about The Great Wall of China

  • द ग्रेट वॉल ऑफ चाइना में करीब 700 लुकआउट टावर (निगरानी के लिए) बने हुए हैं, इसके निर्माण में करीब 2 हजार साल का लंबा वक्त लगा था।
  • दुनिया के सात अजूबों में से एक चीन की महान दीवार के बारे में सबसे दिलचस्प बात यह है कि इस दीवार का निर्माण किसी एक सम्राट द्धारा नहीं किया गया है, बल्कि कई सम्राटों और शासकों ने इस विशाल दीवार के निर्माण में अपना सहयोग दिया है।
  • चीन की इस विशाल दीवार के बीच में महात्मा गांधी के मंदिर और युद्ध के देवता (God Of War) के मंदिर बनाए गए हैं, जो कि देखने में बेहद आर्कषक लगते हैं। यह दीवार आम पर्यटकों के लिए साल 1970 ईसवी में खोली गई थी।
  • पृथ्वी पर बनी इस सबसे लंबी दीवार की लंबाई करीब 6 हजार 400 किलोमीटर है, जो कि मनुष्यों द्धारा बनाई गई सबसे विशाल संरचनाओं में से एक है। इस विशाल दीवार के निर्माण के दौरान व्हीलबारो का अविष्कार किया गया था। वहीं इस दीवार को बनाते समय इसके पत्थरों को जोड़ने के लिए चावल के आटे का इस्तेमाल किया गया था।
  • विश्व की इस सबसे लंबी दीवार में कई खाली जगहें भी हैं, अगर इन खाली जगहों को जोड़ दिया जाए तो इसकी कुल लंबाई 8 हजार 848 किलोमीटर हो जाएगी। वहीं अगर इस दीवार की चौड़ाई की बात करें तो इसमें एकसाथ करीब 5 घुड़सवार या 10 पैदल सैनिक एक साथ गस्त कर सकते हैं।
  • दुनिया के सबसे महंगे संरचनाओं में से एक द ग्रेट वॉल ऑफ चाइना एक पूरी दीवार नहीं है, बल्कि कई छोटे-छोटे हिस्सों से मिलकर बनी है।
  • 6400 किमी लंबी इस विशाल की ऊंचाई एक समान नहीं है, किसी जगह पर यह 9 फुट ऊंची तो कहीं पर यह सिर्फ 35 फुट ही ऊंची है।
  • दुनिया की इस सबसे विशाल संरचना के निर्माण में करीब 4 लाख लोगों की जान चली गई थी। इस दीवार को बनाने वालों के लिए ऐसा भी प्रचलित है कि इस महान दीवार को बनाने में जो कारीगर कड़ी मेहनत नहीं करते थे, उन्हें इस दीवार में दफना दिया जाता था। इस दीवार को विश्व का सबसे बड़ा कब्रिस्तान कहा जाता है।
  • दुनिया की सबसे महंगी संरचनाओं में से एक द ग्रेट वॉल ऑफ चाइना को पहले दुश्मनों से देश की रक्षा के लिए बनाया गया था, लेकिन यह दीवार अजेय न रह सकी, इतिहास के सबसे क्रूर और बर्बर शासक चंगेज खान ने 1211 ईसवी में इस महान दीवार को तोड़ने के बाद चीन पर आक्रमण किया था। और फिर इस विशाल दीवार का इस्तेमाल परिवहन और सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाने के लिए किया जाने लगा था।
  • दुनिया के सात अजूबों में से एक चीन की विशाल दीवार के बारे में हैरान कर देने वाली बात तो यह है कि इस महान सरंचना से ईंटों की चोरी होती है। 1960 से 1970 के दशक में लोगों ने इस दीवार से ईंटें निकालकर अपने लिए घर बनाने शुरु कर दिए थे। आपको बता दें कि तस्कर बाजार में इस विशाल दीवार की एक ईंट की कीमत करीब 3 पौंड तक मानी जाती है। इस महान दीवार की चोरी होने, सही तरीके से देखरेख नहीं होने एवं खराब मौसम के प्रभाव की वजह से करीब एक तिहाई हिस्सा गायब हो चुका है।
  • चीन की इस महान दीवार को वर्ल्ड हेरिटेज साइट यूनेस्को ने साल 1987 में विश्व धरोहर की लिस्ट में शामिल किया था।
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भारत चीन सम्बन्ध पर निबंध | Essay On Relation Between India And China In Hindi

भारत चीन सम्बन्ध पर निबंध | Essay On Relation Between India And China In Hindi: Bharat china sambandh -नमस्कार फ्रेड्स आपका स्वागत हैं भारत चीन संबंध का निबंध, भाषण, अनुच्छेद, लेख, आर्टिकल यहाँ साझा कर रहे हैं. Indo-China Relationship पर यहाँ शोर्ट निबंध दिया गया हैं.

भारत चीन सम्बन्ध पर निबंध | Essay On India China Relation In Hindi

भारत चीन सम्बन्ध पर निबंध | Essay On Relation Between India And China In Hindi

भारत और चीन के ऐतिहासिक संबंध हजारों साल पुराने हैं. चीन सहित अन्य कई एशिया के देश बौद्ध धर्म के अनुयायी रहे है, जिनकी जन्मभूमि भारत को माना जाता हैं.

तीसरी सदी में सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए विशेष प्रचार किए थे. यही से भारत चीन सम्बन्धों की शुरुआत मानी जाती हैं,

बौद्ध भिक्षु फाहियान   (४०५-४११) तथा चीनी  यात्री हेनसाग  (६३५-६४३)  ने भारत की यात्रा की थी. सातवी सदी में हम्बली व इतिसंग नामक चीनी यात्री भारत आए.

इसके अतिरिक्त अनेक तिब्बती व चीनी यात्रियों ने भारत की यात्रा की, जिससे दोनों देशों धार्मिक एवं सामाजिक सम्बन्धों  में वृद्धि हुई.

भारत चीन के ऐतिहासिक रिश्ते

चीन में प्रस्तर फलकों द्वारा मुद्रण का आविष्कार हो चूका था. किन्तु पत्थरों के भारी होने के कारण यह विधि पुस्तकों की छपाई के लिए विशेष उपयोगी नहीं थी, काष्ट पर उत्कीर्ण ठप्पों की छपाई विधि चीन में भारत से सुई काल में पहुंची.

इस विधि से 868 ई में सबसे पहले बौद्ध धर्म की पवित्र पुस्तक वज्रच्छेदिक प्रज्ञा पारमिता सूत्र मुद्रित हुई. इसे संसार की सबसे पहली मुद्रित पुस्तक माना जाता हैं.

चीन में आयुर्वेद भारत से पहुंचा. पांचवीं शताब्दी के मध्य चीनी बौद्ध सामंत किग शेंग द्वारा रचित चिकित्सा ग्रंथ चे चान पिंग पी याओ फा विविध भारतीय मूल ग्रंथों से संकलित किया गया हैं.

11 वीं शताब्दी ई में रावण कृत कुमारतंत्र नामक भारतीय आयुर्वेद ग्रंथ का चीनी भाषा में अनुवाद किया गया जो बाल रोग चिकित्सा का ग्रन्थ हैं.

520 ई में चीनी यात्री सांग युन ने भारत के उत्तरी पश्चिमी सीमान्त क्षेत्र के उद्यान राज्य में लाओ त्जे कृत उपनिषद ताओ तेह किग ग्रंथ का प्रवचन दिया जो कि चीनी रहस्यवाद और दर्शन शास्त्र की उत्कृष्ट रचना हैं.

सातवीं शताब्दी ई के पूर्वार्द्ध में प्राज्योतिष के राजा भास्करवर्मन ने इस ग्रंथ को संस्कृत में अनुवाद करवाने की उत्कंठा प्रकट की थी.

धर्मरक्ष ने बौद्ध महाकवि अश्वघोष के महाकाव्य बुद्धचरित का चीनी भाषा में अनुवाद किया. मो लांग की एक नायिका और दक्षिण पूर्व की ओर उड़ता हुआ मयूर जैसे प्रबंध काव्यों की रचना बौद्ध साहित्य की शैली में ही हुई.

तांग राज्यकाल में रचित एक तकिये का अभिलेख और सुंगकाल में लिखित लोकप्रिय उपन्यास स्वर्णिम बोतल का आलूचा भी इसी तरह के उदाहरण हैं.

चीन का लोकप्रिय तंतु वाद्ययंत्र कोन हो हान राज्यकाल में भारत आया. तांग राज्यकाल में प्रयुक्त होने वाला एक अन्य वाद्ययंत्र पि पा मिस्र अरब और भारत पंहुचा जो एक प्रकार का गिटार था.

ईसा की आठवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में राष्ट्रीय पंचाग को निश्चित करने के लिए कुछ भारतीय भिक्षुओं की नियुक्ति की गई. इनमें से प्रथम भिक्षु गौतम की गणना पद्धति कुआंग त्से ली नाम दिया गया.

उसका प्रयोग केवल तीन वर्ष के लिए हुआ जिसके बाद सिद्धार्थ नामक एक अन्य भिक्षु ने नया पंचाग बनाकर 718 ई में तांग सम्राट हुआन त्सुग को दिया. कियू चेली नामक यह पंचाग किसी भारतीय पंचाग का अनुवाद था,

जिसमें चन्द्रमा की गति और ग्रहणों की गणना का वर्णन था. 721 ई में यि हिंग नामक चीनी बौद्ध ने स्पष्टतया भारतीय पद्धति पर आधारित एक नई प्रणाली निकाली जिसमें भारतीय ज्योतिष की तरह नवग्रहों को मान्यता दी गई.

आधुनिक भारत चीन सम्बन्धों की शुरुआत 1947 में आजादी के बाद से शुरू हुई, जब चीन में माओ त्से तुंग के नेतृत्व में साम्यवादी सरकार की स्थापना 1949 में हुई.

हमारे चीन के साथ रिश्ते प्रगाढ़ रहे हैं, चीन की संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य के रूप में भारत द्वारा अनुशंसा की गईं थी, तथा उसे राजनितिक मान्यता दिलाने की शुरुआत करने वाला भारत पहला गैर साम्यवादी राष्ट्र था.

जबकि अब यही चीन भारत के uno की सिक्योरिटी कौंसिल के स्थाई सदस्य बनने में चीन अपने वीटों का उपयोग कर रहा हैं.

पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु तथा चीनी प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई के दोस्ताना रिश्ते थे. लाई नेहरु के बिच 1954 में हुआ ऐतिहासिक समझौता पंचशील सिद्धांत समझौता के नाम से प्रसिद्ध हैं.

1955 का दौर जब दोनों देश के नेता एक दूसरे देश में जाते तथा हिंदी चीनी भाई भाई के नारे बांडूरंग समझौते में भारत की यही कुटनीतिक भूल थी.

भारत चीन संबंध का इतिहास (History of india-China relations in Hindi)

चीन भारत से दोस्ती कर अपना स्वार्थ सिद्ध करने में जुट गया, 1957 में भारत चीन व तिब्बत सीमा विवाद के चलते दोनों देशों के बिच रिश्तों में काफी गर्माहट रही.

1954 के पंचशील समझौते में भारत ने स्वीकार किया, कि तिब्बत पर चीन का अधिकार हैं, मगर भारत सरकार ने तिब्बत में चीनियों द्वारा तिब्बती नागरिकों के किये जा रहे दमन को मान्यता नही दी थी.

तिब्बत के आंतरिक विद्रोह को भारत की एक तरह से यह सहानुभूति थी. खम्पा क्षेत्र में बौद्ध धर्म के भिक्षु दलाई लामा उस विद्रोह के मुख्य नेता था.

चीनी सरकार ने इस विद्रोह को सैन्य ताकत का उपयोग करते हुए कुचल दिया, बतौर शरणार्थी दलाई लामा ने भारत में शरण ले ली. 31 मार्च 1959 को लामा के भारत पहुचते ही, चीनी सरकार ने इस पर भारत से आपत्ति जताई.

यही भारत चीन रिश्तों का सबसे कटुतापूर्ण समय था. चीन भारत का बदला लेने के लिए सैन्य अभ्यास में जुट गया, जबकि भारतीय नेता चीन की यात्रा पर हिंदी चीनी भाई भाई के नारों में मशगुल थे.

भारत चीन युद्ध 1961 (1961 india china war in hindi)

दलाई लामा को शरण देने के कारण अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत को अपमानित करने के लिए 20 अक्टूबर 1962 को भारत के उत्तरी पूर्वी सीमान्त क्षेत्र में लद्दाख की सीमा पर आक्रमण कर चीन के कुछ क्षेत्रों पर कब्जा कर दिया, दलाई लामा को शरण देने का मात्र बहाना था, चीन इस आक्रमण के द्वारा अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना चाहता था.

इस आक्रमण से वह भारत को कमजोर साबित करना चाहता था, इस तरह वह अपने मंसूबों में कामयाब भी हो गया. चीन के इस आक्रमण से जवाहरलाल नेहरु का गहरा आघात लगा और अन्तः 1964 में उनकी मृत्यु हो गईं.

ड्रेगन चीन ने यही तक बस नहीं किया, उसने 1965 व 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध में पाक का परोक्ष समर्थन कर अपने इरादे जाहिर कर दिए थे.

भारत चीन सम्बन्धों में सुधार का दौर

वर्ष 1988 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने चीन की यात्रा करके दोनों देशों के बीच की दरार को कम करने की कोशिश की. सन 1991 में चीनी प्रधानमंत्री ली पेंग भारत आए और आर्थिक सम्बन्धों को बढ़ाने का आश्वासन दिया.

वर्ष 1993-94 में प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने भी सीमा विवाद को समाप्त कर चीन के साथ अच्छे आर्थिक संबंध बनाने की पहल की.

2003 में भारत ने चीन का तिब्बत पर दावा भी स्वीकार कर लिया. 2005 में प्रधानमंत्री जियाबाओ ने भारत की यात्रा की तथा सिक्किम पर अपनी दावेदारी को नकारा.

नवम्बर 2006 में चीनी राष्ट्रपति हू जिन्ताओ की भारत यात्रा के दौरान भी दोनों देशों के बिच आर्थिक संबंध मजबूत बनाने तथा सीमा विवाद को सुलझाने जैसे अहम मुद्दों पर सार्थक बातचीत हुई.

वर्तमान में भारत चीन संबंध

इतिहास को उठाकर देख ले, चीन का भारत के प्रति रवैया कभी भी सकारात्मक नही रहा हैं. जब भी भारत ने अमेरिका या अन्य किसी पूंजीवादी मुल्क के साथ संबंध बनाए हैं.

तब तब चीन के पेट में दर्द हुआ हैं. चीन एशिया में भारत को ही अपना प्रतिद्वंदी मानता हैं. वह पाकिस्तान के साथ अब आर्थिक और सैन्य समझौते करने के साथ अन्य एशियाई देशों के साथ श्रीलंका, म्यांमार, बांग्लादेश, भूटान तथा नेपाल में भी भारत विरोधी कार्य कर रहा हैं.

पाकिस्तान में पल रहे आतंकवादी को आर्थिक सहायता देकर जम्मू कश्मीर में अशांति का माहौल तैयार करने तथा पाकिस्तान को बार बार भारत के साथ सीमा पर गोलीबारी के लिए उकसाने का कार्य चींब हमेशा से करता आ रहा हैं.

भारत की कई सामरिक एवं आर्थिक परियोजनाओं में टांग अड़ाकर चीन अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी चला रहा हैं. संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत के सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्य के दावे को हर बार चीन ने पाकिस्तान के कहने पर वीटों का उपयोग कर इसे रोका हैं.

उत्तरी, पूर्व, पश्चिम तथा पूर्व आसमा से लेकर समुद्र तक चीन भारत को घेरने में लगा हैं. तथा पड़ौसी देशों को भारत के खिलाफ उकसा रहा हैं.

हाफिज सईद को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने के निर्णय में एक बार फिर चीन भारत का रोड़ा बनकर विश्व के सामने आया हैं. भारत चीन के मध्य सीमा विवाद 1968 से चल रहा हैं. लेकिन चीन इस पर हल न चाहकर इसे निगलना चाहता हैं.

भारत चीन संबंध 2022

हाल के वर्षों में भारत के साथ चीन का सीमा विवाद लगातार मुखर होता गया है. पिछले साल तो सिक्किम क्षेत्र में डोकलाम में 73 दिनों तक दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने थीं. 

चीन के राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग और नरेंद्र मोदी के साथ 2018 की शुरुआत से ही अच्छे सबंध दिखाई पड़ते हैं. प्रधानमंत्री 4 बार चीन की यात्रा पर जा चुके हैं.

जिनपिंग दो बार भारत भी आए हैं. इनके अतिरिक्त विदेश मंत्री तथा भारत के राष्ट्रपति भी हाल ही में चीन यात्रा पर गये थे, जिससे दोनों देशों के बिच में राजनितिक विश्वास की बहाली होगी या फिर भारत एक बार फिर चीन के साथ नरमी बरत कर कोई गलती तो नहीं कर रहा हैं.

अक्टूबर 2019 में जिनपिंग की भारत यात्रा और महाबलीपुरम अध्याय ने दोनों देशों के बीच सदियों पुराने स्वर्णिम इतिहास को फिर से दोहराया हैं.

मोदी जिनपिंग की इस अनौपचारिक वार्ता पर समस्त दुनियां का ध्यान भारत ने अपनी ओर खीचने में सफलता अर्जित की हैं. 2020 में भारत चीन संबंध मधुरता के साथ एक दूसरे के प्रति गहरे विश्वास के साथ नई ऊँचाइयों पर पहुंचे हैं.

कोरोना काल और उसके बाद के विश्व में भारत और चीन के रिश्तों के बीच काफी तनातनी रही हैं. दक्षिण चीन सागर विवाद में भी भारत ने अमेरिका और उनके सहयोगी देशों का समर्थन जारी रखकर चीन को उसी की भाषा में जवाब देने की कोशिश की हैं.

लद्दाख सीमा पर चल रहे LAC विवाद के बाद कई स्तरीय सैन्य बातचीत और चीनी विदेश मंत्री के भारत यात्रा से दोनों देशों के तल्ख पड़े रिश्तों में कुछ सुधार के अनुमान लगाएं जा सकते हैं.

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चीन की महान दीवार का इतिहास: हिंदी में पढ़ें

Amelia

The Great Wall of China is one of the most iconic and recognizable structures in the world. It is a series of walls and fortifications that span across the northern part of China, and has a history that dates back more than 2,000 years. The Great Wall of China is a symbol of China’s power and strength, and is considered to be one of the greatest achievements of human engineering.

Table of Contents

History of the Great Wall of China

The Great Wall of China was built in several stages, beginning as early as the 7th century BC. The earliest known fortifications were built by the Qin Dynasty (221-206 BC), and were later expanded and strengthened by the Han Dynasty (206 BC-220 AD). Over the centuries, the wall was continually built, repaired, and expanded by various Chinese dynasties. It was eventually completed during the Ming Dynasty (1368-1644).

The Great Wall of China was built to protect the Chinese empire from invading nomadic tribes from the north. The wall was made up of stone, earth, wood, and brick, and was designed to be a formidable defensive structure. The wall was also used as a customs checkpoint, and was used to keep out unwanted people and animals.

Purpose of the Great Wall of China

The main purpose of the Great Wall of China was to protect the Chinese empire from invasion. It was a symbol of power and strength, and served as a reminder of the strength of the Chinese empire. The wall also served as a customs checkpoint, and was used to keep out unwanted people and animals. The wall was also used as a communication system, with beacon towers along the wall that could send messages quickly.

Impact of the Great Wall of China

The Great Wall of China has had a significant impact on Chinese history and culture. It has been a symbol of strength and power for centuries, and is one of the most recognizable structures in the world. The wall has also been a source of inspiration for many artists and writers, and has been the subject of numerous books, films, and television shows.

The Great Wall of China Today

Today, the Great Wall of China is a popular tourist destination. It is estimated that more than 10 million people visit the wall each year. Visitors can explore the wall and learn about its history, and take in the stunning views from the top. The wall is also a UNESCO World Heritage Site, and is considered to be one of the most important cultural sites in the world.

The Great Wall of China is one of the most iconic and recognizable structures in the world. It has a long and fascinating history, and is a symbol of strength and power. The wall has also been a source of inspiration for many, and continues to be a popular tourist destination. No matter what your interest, the Great Wall of China is sure to leave a lasting impression.

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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

Make Your Note

चीन के साथ भारत का संबंध

  • 20 Apr 2023
  • 10 min read
  • सामान्य अध्ययन-II
  • भारत और इसके पड़ोसी

यह एडिटोरियल 19/04/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “A message for the planners in dealing with the Dragon” लेख पर आधारित है। इसमें भारत के लिये चीन की भू-राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं के निहितार्थ और भारत के लिये अपनी सीमा पर किसी भी स्फूर्त गतिविधि के लिये तैयार रहने की आवश्यकता के संबंध में चर्चा की गई है।

भारत-चीन संबंधों में हाल के घटनाक्रमों ने दोनों देशों के बीच भविष्य में संघर्ष की संभावना के बारे में चिंताओं की वृद्धि की है। ‘बिना युद्ध जीत’ (Winning Without Fighting) के सन ज़ू (Sun Tzu) के दर्शन के उपयोग पर प्रश्न उठाया गया है तो दूसरी ओर कई अन्य लोगों का अनुमान है कि चीन युद्ध की तैयारी कर रहा है।

  • भारत और चीन के तनावपूर्ण संबंधों को हाल के चीनी उकसावों से बढ़ावा मिला है, जिसमें अरुणाचल प्रदेश में स्थानों के लिये नामों का आवंटन, भारतीय मीडियाकर्मियों को वीजा देने से इनकार करना और युद्ध की तैयारी पर राष्ट्रपति के वक्तव्य आदि शामिल हैं। इन घटनाओं ने चीन के इरादों के बारे में चिंता उत्पन्न की है और भारत को किसी भी स्थिति के लिये तैयार रहने की आवश्यकता है।
  • इस संदर्भ में, भारत की रक्षा तैयारियों की संवीक्षा की जा रही है, जहाँ रक्षा संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने सशस्त्र बलों के तत्काल आधुनिकीकरण की आवश्यकता पर बल दिया है।

भारत-चीन संघर्ष के प्रमुख कारण

  • हाल में संघर्ष की सबसे गंभीर घटनाएँ वर्ष 2020 में लद्दाख की गलवान घाटी में और वर्ष 2022 में अरुणाचल प्रदेश के तवांग में देखने को मिलीं।
  • सीमा—वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control- LAC) के दोनों ओर के पर्यवेक्षक इस बात से सहमत हैं कि वर्ष 2013 के बाद से गंभीर सैन्य टकरावों की संख्या में वृद्धि हुई है।
  • LAC वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद अस्तित्व में आया।
  • पश्चिमी क्षेत्र:  लद्दाख
  • मध्य क्षेत्र: हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड
  • पूर्वी क्षेत्र: अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम
  • सोवियत संघ/रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका सहित एक-दूसरे के मुख्य शत्रुओं के साथ साझेदारी ने उन्हें रणनीतिक भागीदार बनने और रणनीतिक मामलों पर सहयोग करने से अवरुद्ध रखा है।
  • चीन और भारत के बीच बढ़ते शक्ति अंतराल (जहाँ चीन की जीडीपी भारत की तुलना में पाँच गुना अधिक है) ने भारत के लिये चीन के समक्ष झुकने का संकेत दिए बिना किसी भी सामंजस्य के निर्माण को कठिन बना दिया है।
  • बुनियादी ढाँचे के निर्माण ने, विशेष रूप से तिब्बत में, एक ऐसी सुरक्षा दुविधा को जन्म दिया है जिसमें सैन्य संबंध एक ऐसे सर्पिल या पेंचदार स्थिति में चले जाते हैं जहाँ एक पक्ष या दोनों पक्ष युद्ध के लिये प्रेरित हो सकते हैं।

सीमा विवाद समाधान तंत्र क्या रहा है?

  • इस पर वर्ष 1993 में हस्ताक्षर किये गए थे, जिसमें बल प्रयोग के त्याग, LAC की मान्यता और बातचीत के माध्यम से सीमा मुद्दे के समाधान का आह्वान किया गया था।
  • इस पर वर्ष 1996 में हस्ताक्षर किये गए थे, जिसमें LAC पर असहमति को हल करने के लिये गैर-आक्रामकता, बड़े सैन्य आवागमन की पूर्व सूचना देने और मानचित्रों के आदान-प्रदान करने की प्रतिज्ञा की गई थी।
  • इस पर वर्ष 2013 में देपसांग घाटी घटना के बाद हस्ताक्षर किये गए थे।

रक्षा संबंधी संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट में क्या कहा गया है?

  • भारत-चीन के बीच किसी भी संघर्ष में भारतीय वायु सेना की निवारक और आक्रामक शक्ति अत्यंत महत्त्वपूर्ण होगी।
  • सरकार को सेना को तैयार स्थिति में रखने के लिये बिना समय गँवाए अत्याधुनिक पाँचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान खरीदने पर विचार करना चाहिये।
  • हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड से 40 LCA तेजस जेट की आपूर्ति में व्यापक देरी हुई है और इस पर ध्यान देने की ज़रूरत है।
  • 114 मल्टी-रोल लड़ाकू विमान परियोजना के माध्यम से घटती स्क्वाड्रन संख्या को तत्काल पूर्ण करने की आवश्यकता है।
  • रक्षा मंत्रालय को तीसरे विमानवाहक पोत पाने पर एक अंतिम निर्णय लेना चाहिये, जिससे भारत की समुद्री क्षमताओं में वृद्धि होगी।
  • समिति ने अनुशंसा की है कि भारत की प्रतिरोधी मुद्रा को बनाए रखने के लिये रक्षा क्षेत्र के लिये आवंटन को सकल घरेलू उत्पाद के 3% तक बढ़ाना चाहिये।
  • किसी भी गलतफहमी या तनाव वृद्धि से बचने के लिये संचार के खुले चैनल बनाए रखना महत्त्वपूर्ण है।
  • भारत को अपनी रक्षा अधिग्रहण योजनाओं का पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता है कि वे केवल क्षमता रखने के बजाय दीर्घकालिक स्थिरता के लिये तैयार हैं या नहीं।
  • भारत को चीन के साथ संघर्ष की संभावना के लिये तैयार रहने की आवश्यकता है, विशेष रूप से नेशनल पीपुल्स कांग्रेस में चीनी राष्ट्रपति के हाल के वक्तव्य को देखते हुए।
  • इस तैयारी में भारत की सैन्य क्षमताओं को बढ़ाना शामिल होना चाहिये, विशेष रूप से भारतीय वायु सेना, भारतीय थल सेना और भारतीय नौसेना में।
  • रक्षा संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने अनुशंसा की है कि भारत के प्रतिरोधी रुख को बनाए रखने के लिये रक्षा क्षेत्र के लिये आवंटन को सकल घरेलू उत्पाद का 3% होना चाहिये।
  • भारत सरकार को इस अनुशंसा पर गंभीरता से विचार करना चाहिये और विदेशों से आपातकालीन आयुध खरीद पर निर्भर रहने के बजाय रक्षा के लिये पर्याप्त धन आवंटित करना चाहिये।
  • भारत को ऐसी बातचीत की रणनीति अपनानी चाहिये जो समर्पण के बजाय अपनी क्षमता एवं शक्ति पर बल दे।
  • इसमें सौदेबाजी के लिये शक्ति के साथ उपस्थित होना और यह स्पष्ट करना शामिल होगा कि भारत अपने हितों की रक्षा के लिये तैयार है।
  • सीमा पर अवसंरचना (जैसे सड़कें और पुल) का विकास दोनों देशों को दूरस्थ क्षेत्रों तक पहुँचने में मदद कर सकते हैं और किसी भी गलतफहमी या संघर्ष की संभावना को कम कर सकते हैं।

अभ्यास प्रश्न: रक्षा संबंधी संसदीय स्थायी समिति की हाल की टिप्पणियों के आलोक में चीन की बढ़ती सैन्य महत्त्वाकांक्षाओं का मुकाबला कर सकने के लिये भारत की तैयारियों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। (150 शब्द)

essay of china in hindi

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‘चीन की विशाल दीवार’ के बारे में 22 मजेदार तथ्य | China Great Wall Facts in Hindi

Great Wall of China   / चीन की विशाल दीवार मिट्टी और पत्थर से बनी एक किलेनुमा दीवार है जिसे चीन के विभिन्न शासको के द्वारा उत्तरी हमलावरों से रक्षा के लिए पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर सोलहवी शताब्दी तक बनवाया गया। यह दुनिया के सात अजूबों में शुमार है। 1970 में चीन की ग्रेट वॉल ऑफ चाइना को आम पयर्टकों के लिए खोला गया था। आइये बताते है इस ख़ास दीवार से जुड़े मजेदार फैक्ट्स:-

चीन की विशाल दीवार – Interesting Facts About The Great Wall Of China

1). इस दीवार की लंबाई 6300 किमी है, ये दुनिया में इंसानों की बनाई सबसे बड़ी संरचना है।

2). चीन की ये  महान दीवार 2,300 से अधिक साल पुराना है। यह 5वी सदी ईसा पूर्व से लेकर 16वी सदी  तक बनाई गयी थी।

3). यह एक मात्र मानव निर्मित आकृति है जिसे अंतरिक्ष से भी देखा जा सकता है।

4). दीवार को बनाते वक्त इसके पत्थरों को जोड़ने के लिए चावल के आटे का इस्तेमाल क‌िया गया था।

5). इस दीवार को बनाने के दौरान करीब 4 लाख लोगों की मौत हुई थी। और ऐसा कहा जाता है कि इस दीवार को बनाने में जो मजदूर कड़ी मेहनत नही करते थे उन्हें इसी दीवार में दफना दिया जाता था।

6). चीनी सम्राटो ने इसका निर्माण उत्तरी दिशा से होने वाले आक्रमणों से रक्षा के लिए किया गया था।

7). चीन के पूर्व सम्राट किन शी हुआंग की कल्पना के बाद इसे बनाने में करीब 2 हज़ार साल लगे. हमारे देश की जाति व्यवस्था भी करीब इतनी ही पुरानी है।

8). इस दीवार कली अधिकतम ऊंचाई 35 फीट तक है।

9). इस दीवार का गांसु प्रांत वाला करीब 20 प्रतिशत भाग कटाव के कारण गायब हो सकता है।

10). 3400 किमी लंबी इस पूरी दीवार में बीकन टॉवर, सीढ़‌ियां और कई पुल भी शामिल हैं।

11). इस दीवार की चौड़ाई इतनी हैं की एक साथ 5 घुड़सवार या 10  पैदल सैनिक एक साथ गस्त कर सके।

12). दिवार की चौड़ाई का इस बात से अंदाज लगाया जा सकता हैं की कही-कही पर इसमें कार भी चलाया जाता हैं।

13). इस दीवार का निर्माण किसी एक सम्राट द्वारा नहीं किया गया बल्कि कई सम्राटो और राजाओ द्वारा किया गया।

14). यह पूरी एक दीवार नहीं है बल्कि छोटे-छोटे हिस्‍सों से मिलकर बनी है।

15). चीनी भाषा में इस दीवार को ‘वान ली छांग छंग’ कहा जाता है जिसका मतलब होता है ‘चीन की विशाल दीवार’

16). इस दीवार पर दूर आती शत्रुओ पर निगाह रखने के लिए कई जगह मीनारे भी बनायीं गयी थी।

17). हालाँकि इस दीवार को चीन की सुरक्षा के लिए बनाया गया था पर ऐसा नहीं की कोई इसे तोड़ के अंदर न गया हो। कई दुश्मन इस दीवार को भी तोड़ के चीन पर हमला किया जैसे 1211 में चंगेज खान ने दीवार तोड़ के हमला किया था।

18). इस दीवार को एक और नाम से भी जाना जाता है ‘दुनिया का सबसे लंबा कब्रिस्तान’ ऐसा इस लिए, की जब इस दीवार का निर्माण हो रहा था और जो मजदुर कठोर परिश्रम नहीं कर रहे थे उसे इसी दीवार में दफ़न कर दिया जाता था।

19). 85° डिग्री की ढालन और 30 सेंटी की चौड़ाई के साथ इस दीवार का सिमातई वाला भाग सबसे संकरा है।

20). एक करोड़ पयर्टक हर साल इस दीवार को देखने के लिए आते हैं।

21). बराक ओबामा, रिचर्ड निक्सन, रानी एलिज़ाबेथ (सेकेंड) और जापान के सम्राट सहित दुनियाभर के करीब 400 नेताओं ने इस दीवार का दीदार किया है।

22). एक अंग्रेजी वेबसाइट के अनुसार, ग्रेट वॉल ऑफ चायना का एक तिहाई हिस्‍सा गायब हो चुका है। इसका कारण दीवार के सही रखरखाव की कमी के अलावा मौसम का प्रभाव और चोरी भी है। रिपोर्ट के अनुसार, लोगों को हर ईंट के लिए 3 पाउंड तक मिलते हैं।

23). कुछ समय पहले लोगों ने इस दीवार से ईंटें निकालकर अपने लिए घर बनाने शुरू कर दिए थे लेकिन बाद में सरकार ने सुरक्षा बाधा दी थी। हालाँकि चोरी आज भी होती है और तस्कर बाजार में इसकी एक ईंट की कीमत 3 पौंड मानी जाती है।

24). हालाँकि इस दीवार में कई खाली जगहें भी हैं यदि इन खाली जगहों को भी जोड़ दिया जाये तो इसकी लम्बाई 8848 किमी. हो जाएगी।

25). चीनी भाषा में इस दीवार को ‘ वान ली छांग छंग’ कहा जाता है  जिसका मतलब होता है ‘चीन की विशाल दीवार’

और अधिक लेख –

  • राॅयल एनफील्ड से जुड़े 15 रोचक तथ्य
  • एफिल टॉवर का इतिहास और सच्चाई
  • ताजमहल का सच इतिहास
  • विश्व के सात नये व प्राचीन अजूबे

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10 Lines on Great Wall of China in Hindi | चीन की विशाल दीवार पर 10 लाइन

10 Lines on Great Wall of China in Hindi | चीन की विशाल दीवार पर 10 लाइन

चीन की विशाल दीवार चीन की एक प्राचीन दीवार है।

यह दीवार सीमेंट, चट्टानों, ईंटों और मिट्टी के चूरे से बनी है।

चीन की विशाल दीवार 21,196 किलोमीटर लंबी है।

इस दीवार को बनाने में 2000 साल से भी ज्यादा का समय लगा था।

दीवार की सामान्य ऊंचाई 5-8 मीटर है।

चीन की विशाल दीवार दुनिया के सात अजूबों में से एक है।

इस दीवार का निर्माण चीन की सीमा की रक्षा के लिए किया गया था।

यह मानव द्वारा निर्मित अब तक की सबसे लंबी संरचना है।

इस दीवार का निर्माण विभिन्न चीनी सम्राटों ने करवाया था।

द ग्रेट वॉल ऑफ चाइना दुनिया के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है।

इस दीवार को बनाने का मुख्य उद्देश्य दुश्मनों के आक्रमण को रोकना था।

चीन की विशाल दीवार यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है।

दीवार के निर्माण में चिपचिपे चावल का भी उपयोग किया गया है।

दीवार का निर्माण मिंग राजवंश के दौरान पूरा हुआ था।

10 Lines on the Great Wall of China in English

The Great Wall of China is an ancient wall in China. 

This wall is made of cement, rocks, bricks, and powdered dirt.

The Great Wall of China is 21,196 kilometres long.

It took over 2000 years to construct the wall.

The Great Wall of China is one of the seven wonders of the world.

The Great Wall of China is one of the most popular tourist destinations in the world.

This wall was originally built to defend China’s border and protect trade. 

It is the longest structure ever built by humans.

The Great Wall is called “Changcheng” in Chinese.

The main purpose of building this wall was to stop the invasion of enemies.

The Great Wall of China is a UNESCO World Heritage Site.

The wall is the longest man-made structure in the world.

This wall was built over 2,000 years under several different Chinese emperors.

The glutinous rice was also used in the construction of the wall.

This wall was built by various Chinese emperors.

  • Also Read: 10 Lines on Taj Mahal in Hindi

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भारत-चीन संबंध पर निबन्ध | Essay on Indo-China Relationship in Hindi

essay of china in hindi

भारत-चीन संबंध पर निबन्ध | Essay on Indo-China Relationship in Hindi!

भारत व चीन एक लम्बी अवधि से एक-दूसरे को सामरिक, आर्थिक एवं कूटनीतिक दृष्टि से पीछे करने के लिए प्रयत्न करते आ रहे हैं तथा एशिया में अपने वर्चस्व को लेकर उलझ रहे हैं । आज के राजनीति में चल रहे संक्रमण काल में भारत-चीन संबंधों की नई पहल का महत्व दोनों देशों के हितों के लिए ही नहीं, अपितु तृतीय विश्व के विकासशील देशों के हितों के लिए भी आवश्यक है ।

1954 में भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु तथा तत्कालीन चीनी प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई द्वारा सह अस्तित्व के लिए प्रतिपादित पंचशील सिद्धांत दोनों देशों के बीच सहयोग एवं सम्मान हेतु स्थापित किया गया । पंचशील के पाँच सिद्धांतों में एक-दूसरे की अखण्डता व सम्प्रभुता का सम्मान, अनाक्रमण, समानता, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व तथा एक-दूसरे के आतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना शामिल था ।

भारतीय प्रधानमंत्री श्री वाजपेयी की चीन यात्रा के समय चीनी प्रधानमंत्री वेन जिआबाओ के साथ हुई बातचीत के बाद सरहदी रारत्ते से व्यापार बढ़ाने की एक सहमति के साथ-साथ आपसी संबंधों को व्यापक बनाने वाला एक साझा घोषणा-पत्र जारी किया गया, जिससे दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग को गति मिलने पर आपसी विश्वास का एक नया परिवेश पनपेगा ।

दोनों देशों ने व्यापार सम्बन्धी सहमति एमओयू और नौ समझौतों पर भी हस्ताक्षर किए । वास्तविकता यह है कि दोनों देशों का आर्थिक व व्यापारिक भविष्य राजनीतिक व राजनयिक वातावरण के द्वारा सही सही अर्थों में तय होगा ।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार सम्बर्द्धन परिषद (सी.सी.पी.आई.टी.) ने भारत के शीर्ष उद्योग संगठन फिक्की के साथ मिलकर एक-दूसरे के बाजार में यथाशीघ्र प्रवेश पाने व समझने के लिए गाइड बुक तथा बेवसाईट लांच किया है । इसके साथ ही व्यापारिक सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए क्षेत्रानुसार मार्गों के मानचित्र (रोड-मैप) भी तैयार किए गए हैं ।

दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के बीच हुई आपसी बातचीत के बाद सरहदी रास्ते से व्यापार बढ़ाने की सहमति के साथ-साथ आपसी सम्बन्धों को व्यापक बनाने पर भी बल दिया गया और एक संयुक्त घोषणा-पत्र भी जारी किया गया । आशा है कि अब आर्थिक सम्बन्धों को एक नया आयाम मिलेगा ।

भारत-चीन सम्बन्ध एक नये युग में प्रवेश कर रहे हैं, जो कि व्यापारिक व आर्थिक दृष्टिकोण से अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं सामयिक पहल है, चीन ने भारत में ढाँचागत विकास और संसाधन के क्षेत्र में 50 करोड़ डॉलर के निवेश की इच्छा व्यक्त की है ।

दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग हेतु एक कार्यवाही योजना तय करने पर भी सहमति हुई है, सीमा व्यापार हेतु सिक्किम आने हेतु चीन ने ‘नाथू दर्रा’ खोलने पर भी स्वीकृति दे दी है तथा सिक्किम के ‘छांगू’ में चीन का व्यापार केन्द्र तथा तिब्बत के ‘रेनिगगौग’ में भारतीय व्यापार चौकी स्थापित करने में सहमति हुई है ।

ADVERTISEMENTS:

भारत का चीन रो व्यापार (आयात-निर्यात) 1999-2000 में 1825 मिलियन डॉलर था, जो 2002-03 मिलियन डॉलर तक पहुँच गया, जिसके निरन्तर बढ़ते रहने कई सम्भावना है । इसके साथ ही व्यापारिक वीजा की अवधि भी बढ़ाई गई है, यद्यपि व्यापारिक सम्बन्धों को लेकर आपसी मतभेद रहा है कि अपने सस्ते माल से भारत के बाजार को भर रहा है, किन्तु भारत ने इसकी परवाह करते हुए भूमण्डलीकरण के इस दौर का एक अभिन्न अंग मानते हुए इसे भी सहर्ष स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं किया ।

दुनिया की 40 प्रतिशत आबादी वाले दोनों देशों के बीच बाजार व व्यापार की संभावनाएं इतनी विशाल हैं कि आगामी कुछ वर्षों में साझा बाजार स्थापित हो सकता लेकिन इस व्यापार को साझा बाजार के रुप में विकसित करने के लिए संयुक्त रुप से समझदारी व संयम के साथ काम लेने की आवश्यकता है ।

यह उल्लेखनीय है कि इस भारत का वस्त्र उद्योग इस स्थिति के लिए स्वयं को तैयार कर रहा है जब 2005 इसका निर्यात कोटा समाप्त हो जाएगा । अत: ऐसी स्थिति में चीन के वस्त्र उद्योग के थ सहयोगी उद्यम के माध्यम से इस उत्पादन का एक बड़ा स्तर सुनिश्चित किया जा सकता है ।

इसके साथ ही भारत अनेक वर्षों से लगभग 5 करोड़ टन अतिरिक्त अनाज का भार वहन करता रहा है, जबकि अनाज का एक बड़ा भाग सहयोग एवं कं के साथ आसानी से चीन को निर्यात किया जा सकता है । प्रतिस्पर्धा के इस युग दोनों देशों को जर्मनी, फ्रांस व ब्रिटेन से सबक सीखते हुए साझा बाजार स्थापित करना हितकारी होगा ।

चीन के साथ भारत का सीमा विवाद एक पुराना रोग है, जिसका उपचार किसी भी प्रति में तुरन्त सम्भव नहीं है । विगत 22 वर्षों के दौरान 14 बार किए गए प्रयासों के सीमा विदा समाप्त करने के सन्दर्भ में कोई भी सार्थक एवं स्पष्ट नीति अभी तक नहीं बन पायी है ।

यह भी उल्लेखनीय है कि चीन ने पाकिस्तान, नेपाल, भूटान एवं म्यांमार से अपने सीमा विवाद समाप्त कर दिए और रुस, कजाकिस्तान व वियतनाम से भूमि व विवादों को भी विराम दिया जा चुका है । एकमात्र भारत के साथ चीन का सीमा बरकरार बना हुआ है ।

भारत व चीन के बीच की सर्श्वा सीमा जो लगभग 4056 किलोमीटर है, तीन क्षेत्रों-पूर्वी क्षेत्र अरुणाचल प्रदेश में म्यांमार से भूटान तक है, मध्य नेपा के शिपकी दर्रा में लिपुलेख दर्रा तक तथा पश्चिमी क्षेत्र जम्मू-कश्मीर में लद्दाख से कराकोरम दर्रा तक है ।

पूर्वी क्षेत्र के एक बडे भू-भाग पर चीन ने 1962 के युद्ध के दौरान कब्जा कर लिया । किन्तु युद्ध विराम के बाद वह पहले वाली रथति पर तो चला गया, लेकिन उसने प्रदेश में लगभग 90,000 वर्ग किलोमीटर के सम्पूर्ण क्षेत्र पर अपने दावे की लगायी हुई है ।

पूर्वी क्षेत्र में 1100 किलोमीटर लम्बी सीमा है, जिसे मैकमोहन रेखा कहा जाता है, जो अरुणाचल को तिबत से अलग करती है । इसके अन्तर्गत लगभग 5000 किलोमीटर भू-भाग विवादग्रस्त है, पश्चिमी क्षेत्र में दोनों देशों के मध्य स्थित 1600 किलोमीटर लम्बी जम्मू-कश्मीर सीमा रेखा चीन को सिक्यांग तथा तिब्बत के क्षेत्रों से करती है ।

इसमें लगभग 25,000 वर्ग किलोमीटर भू-भाग विवादित है जिसमें पेमोंग के निकटवर्ती अक्साई चीन तथा चिंग झील के निकटवर्ती अक्साई चिन तथा चिंग हेनम घाटी सम्मिलित हैं । पाकिस्तान ने तथाकथित चीन-पाक समझौते के तहत् पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में हमारा 5180 वर्ग किलोमीटर भू-भाग गैर-कानूनी राप से चीन को दे दिया है ।

मध्य क्षेत्र में लगभग 650 किलोमीटर लम्बी सीमा रेखा है, जो हिमालय में स्पीति वाराहोती तथा नीलांग के पहाड़ी क्षेत्रों को अलग करती है । इसके अन्तर्गत 1600 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र विवादित है । पूर्वी क्षेत्र की सीमा रेखा को लेकर चीन को जितनी पेरशानी हो रही है, उससे कहीं अधिक समस्या वास्तव में वास्तविक नियन्त्रण रेखा को लेकर बनी हुई है ।

आश्चर्य किन्तु सत्य है कि चीन सेना ने अरुणाचल प्रदेश में उस दौरान भी जबरन प्रवेश करने का प्रयास किया जब भारत-चीन वार्ता हेतु वाजपेयी चीन यात्रा पर थे । इस घटनाक्रम में सीमित समर्पण के बाद भारत ने 15 चौकियाँ पीछे हटाई, चीन सैनिकों ने अर्द्धसैनिक बल के जवानो एवं खुफिया ब्यूरो के कर्मचारियों को घेरा, ललकारा व हथियार रखवाकर समर्पण की वीडिया फिल्म भी बनाई जिससे चीन की नीयत पर सन्देह होना स्वाभाविक है ।

सिक्किम के सन्दर्भ में भी चीन ने स्पष्ट कर दिया है कि इसको भारत का अंग मानने की मान्यता उसने परोक्ष राप में भी नहीं दी है । सीमा विवाद के साथ ही चीन का पाकिस्तान के प्रति सामरिक लगाव भारत-चीन विश्वास में भटकाव उत्पन करता रहा है ।

चीन द्वारा पाकिस्तान को दिए जा रहे आधुनिक हथियारों को लेकर उपजी सुरक्षा चिन्ता अविश्वास की असली समस्या है । पाकिस्तान में चीन ने न केवल काराकोरम राजमार्ग निर्माण करके अपनी सेना के लिए अरब सागर तक मार्ग बना चुका है, बल्कि इसके साथ ही नेपाल सीमा को राजमार्ग से जोड़ने का भी चीन द्वारा अनूठा प्रयास किया गया है ।

चीन की ओर से सुरक्षा की दृष्टि से अत्यन्त संवेदनशील राज्य के रुप में सिक्किम गिना जा रहा है क्योंकि पूर्वोत्तर राज्यों से सटा हुआ है । पूर्वोतर के उग्रवादियों को चीन से हथियार व प्रशिक्षण मिलता रहा है । अत: सिक्किम में सीमा व्यापार के नाम पर चीन के प्रवेश करते ही भारतीय सुरक्षा तन्त्र पर अतिरिक्त बोझ बढ़ने की आशंका से कदापि इनार नहीं किया जा सकता है ।

भारत-चीन सीमा विवाद को लेकर दोनों की दोस्ती के बीच बहुत अवरोध है । चीन जान-बूझकर भारत के साथ सीमा विवाद को सुलझाने की उपेक्षा करता जा रहा है जो कि सम्बन्धों के सन्दर्भ में शुभ संकेत नहीं है ।

यही चीन दूसरी ओर अन्य पड़ोसियों विशेषकर रुस के साथ सीमा विवाद सौहार्दपूर्वक सुलझा चुका है । इतना ही नहीं भारत पर लगाम लगाने व नकेल डालने की एक योजनाबद्ध रणनीति के तहत चीन अपने आधुनिक हथियारों एवं विकसित नाभिकीय प्रौद्योगिकी की आपूर्ति पाकिस्तान को करता रहा है ।

पाकिस्तान का सहयोग और चीन की भारत के चारों ओर जारी सामरिक व रणनीतिक गतिविधियाँ हमें निरन्तर सतर्क रहने के लिए रयष्ट संकेत देती हैं । कुछ भी हो भारत व चीन को सीमा सम्बन्धी विवाद हर हाल में सुलझाना होगा और उनके सह-अस्तित्व के लिए शर्तों पर, सहमत होना ही होगा ।

भारत ने इस दृष्टि से तत्परता दिखा दी है और प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव बृजेश मिश्र को इस कार्य हेतु विशेष दूत बनाया गया है । अब देखना है कि सीमा विवाद सुलझाने में चीन कितनी रुचि लेगा उसी से नये सम्बन्धों के मीकरण सही अर्थो मे सुनिश्चित हो सकेंगे ।

भारत-चीन के व्यापारिक एवं व्यावहारिक कदम जिस गर्मजोश के साथ उठाए गए उससे भारत-चीन रिश्तों की खाइयाँ आहिस्ता-आहिस्ता पटती जा रही है । इसके लिए ल दोनों ओर से हुई है । सीमा विवाद के अलावा दोनों देशों ने वाजपेयी के इस दौरे व्यापार, शिक्षा, वीजा व सूचना तकनीकी आदि को लेकर भी अनेक महत्युपर्ण समझौते किए हैं, इस समझौतों से भी अधिक महत्युपर्ण एवं प्राथमिक कदम यह होगा कि भारत व न इस बात का विश्वास बनाए कि अब दोनों एक-दूसरे के लिए खतरा नहीं बनेंगे ।

62 के आकस्मिक युद्ध के बाद यह प्रश्न प्रत्येक भारतीय के मन में उभरता है कि क्या चीन पर विश्वास किया जा सकता है ? इसका उत्तर तुरन्त देना सम्भव नहीं है, यह समय के साथ ही पता लग सकेगा यद्यपि चीन अब प्रत्यक्ष रुप से किसी भी देश के साथ युद्ध नहीं करना चाहता है, किन्तु इसके बावजूद अप्रत्यक्ष रुप से चीन अपने गेधियों को लामबन्द करने का कोई भी अवसर नहीं छोड़ता रहा है ।

चूँकि इस समय गया में भारत चीन का प्रबलतम प्रतिद्वन्द्वी प्रमाणित हो रहा है जिससे वह भारत को भी तें ओर से अप्रत्यक्ष रुप से घेरने का भी हर सम्भव प्रयास कर रहा है । चीन का भारत के प्रति आकस्मिक लगाव उसके हृदय परिवर्तन के कारण नहीं पनपा बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में आए बदलाव और उससे उत्पन्न आवश्यकताओं के रण हुआ है ।

अमरीका के एशिया में नये समीकरणों की तलाश के कारण चीन को नी बड़ी है । चूँकि अमरीका अपनी दूरगामी रणनीति के तहत् चीन को घेरने के प्रयास लगा है और अपनी दादागिरी के बल पर चीन पर अपना अंकुश लगाना चाहता है ।

प्रस्थिति यह है कि चीन इस समय एशिया की एक महान शक्ति के रुप में उभरा है, को यदि भारत का सहयोग एवं समर्थन मिल जाता है तो उसके द्वारा अमरीका के स्व को सीधी चुनौती सरलता एवं सहजता से दी जा सकती है ।

भारत-चीन सम्बन्धों में सुधार करने के लिए आवश्यक है कि दोनों देश अतीत के पदों को भूलकर एक नए अध्याय का आरम्भ व्यापार, व्यवहार एवं विश्वास के साथ करें, आशंकाओं एवं सन्देहों को दर-किनार कर सामरिक सतर्कता के साथ सम्बन्धों को परने पर बल देने की सामयिक आवश्यकता है, यद्यपि हमारे चीन के साथ अनेक मुद्‌दों विरोधाभास है, जैसे-भारत में सिक्किम विलय को मान्यता न देना, दोनों देशों के बीच घणु अप्रसार सन्धि, दलाईलामा का भारत में प्रवास, पाकिस्तान के प्रति उसका विशेष व हथियारों की आपूर्ति तथा सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता के सन्दर्भ वर्तमान परिप्रेक्ष्य में दक्षिण एशिया में जो स्थिति है, इसमें दोनों देशों को अपने क्रियावादी रुख का परित्याग करना होगा और सम्बन्धों के सन्दर्भ में ठोस पहल करनी होगी ।

यद्यपि सीमा विवाद बेहद जटिल है, किन्तु अमरीका के बढ़ते वर्चस्व एवं गान समन्वित परिवेश की दृष्टि से भारत-चीन के साथ एक समुचित सौहार्दपूर्ण वातावरण का विकास एक आवश्यकता बन गई है ।

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चीन की विशाल दीवार का इतिहास History of The Great Wall of China in Hindi

चीन की विशाल दीवार का इतिहास History of The Great Wall of China in Hindi

लेकिन चीन की महान दीवार वास्तव में केवल एक महान दीवार नहीं है, ‘ध्यान देने वाली बात यह है कि – यात्रा विशेषज्ञ (Travel Experts) स्टेन गॉडविन ने बताया है कि यह दो शब्दों से मिलकर बनी है। यात्रा के साथ अवकाश, “यह वास्तव में दीवारों और किलों की एक श्रृंखला है।”

गॉडविन ने आमतौर पर वहां यात्रा करने वालोँ के लिए इसे चार मुख्य वर्गों में व्यवस्थित किया है। बदलिंग (अलग-अलग गतिशीलता के यात्रियों के लिए यह सबसे प्रसिद्ध और सुलभ जगह है), मुटियंयू (अच्छी तरह से नवीनीकृत लेकिन बहुत कम भीड़ ), सिमताई (टुकड़े-टुकड़े में फैली हुई दीवार), और जिनशानलिंग (पैदल यात्रियों के लिये)।

चीन की विशाल दीवार का इतिहास ‘दी ग्रेट वॉल ऑफ चाइना’ History of The Great Wall of China in Hindi

चीन की विशाल दीवार कहां है where is great wall of china.

चीन की विशाल दीवार बीजिंग से शुरू हुई है, इसकी विशाल संरचना हुशान में है पूर्व में लिओनिंग,यह शहर के उत्तर-पश्चिम में, जिययुगुआन तक फैली है। सामान्य तय, चीन की विशाल दीवार देश की उत्तरी सीमा की रक्षा करती है एक 2012 के पुरातात्विक सर्वेक्षण का अनुमान है कि दीवार (संरचना पर काम कर रहे सभी राजवंशों को ध्यान में रखते हुए) 15 प्रांतों को पार करती हुई और उत्तर-पश्चिम में, शिंजियांग से, पूर्व में कोरिया की सीमा तक फैली हुई है।

चीन की बड़ी दीवार कितनी लंबी है? How long is The Great Wall of China?

यदि आप कभी भी इसके निर्मित सभी वर्गों को मापना चाहते थे, तो एक नई रिपोर्ट बताती है कि चीन की महान दीवार 13,170.7 मील लंबी हो सकती है। इसका अधिकांश भाग मिंग राजवंश के दौरान बनाया गया था, जो कि हुशान और जिययुगुआन के बीच 5,500.3 मील तक फैला है।

चीन की महान दीवार कब बनाई गई थी ? When It was built?

यह ठीक से कहना मुश्किल है कि चीन की विशाल दीवार का निर्माण कब हुआ, क्योंकि कई सारे राजवंशों और शासकों ने इसके निर्माण में योगदान दिया था। यह माना गया है कि दीवार की शुरुआत की लंबाई 770 बी.सी. के रूप में शुरू की गई थी, हालांकि तब सरकारी काम 221 बी.सी. तक शुरू नहीं हुआ था।

सम्राट किन शी हुआंग के शासनकाल के दौरान – 5,500 मील की दूरी – मिंग राजवंश के दौरान 1368 और 1644 के बीच बनाया गया था।  ट्रैवल चाइना गाइड के अनुसार, कम से कम 20 राज्यों और राजवंशों ने कई सदियों के दौरान चीन की विशाल दीवार के निर्माण में योगदान दिया।

चीन की महान दीवार का निर्माण क्यों किया गया था ? Why it was built?

चीन की महान दीवार कैसे बनाई गई थी how it was built.

विशाल दीवार वास्तव में किलेबंदी का एक संग्रह है, जिनमें से कुछ एक दूसरे के समानांतर बनी हैं, जबकि अन्य कुछ परिपत्र की तरह हैं। विशाल दीवार जो प्राकृतिक बाधाओं, जैसे नदियों या ऊँचे पहाड़ों का भी हिस्सा है।

यात्रा करने का सर्वोत्तम समय Best time to tour or visit

चीन की विशाल दीवार पर जाने के लिए सबसे लोकप्रिय समय मई और अक्टूबर के पहले सप्ताह हैं। लेकिन यात्रियों को इन समयावधि के दौरान भारी भीड़ का सामना करना पड़ सकता है। ये छुट्टियों का समय होता हैं, और हर कोई यात्रा करता है, “गॉडविन ने अनुसार सर्दियों के दौरान , चीन की विशाल दीवार को बर्फ कंबल की तरह ढ़क लेती है – जिस कारण पर्यटकों की संख्या में गिरावट आ जाती है क्यों कि वहां इस समय बर्फ के एक फिसलन बनी रहती है और ठंडी हवाएं भी चलती है।

चीन की विशाल दीवार की यात्रा के लिए शरद ऋतु का समय सबसे खूबसूरत समय है। इस समय मौसम आरामदायक और सूखा होता है, और पहाड़ों की पत्तियां रंगों का एक बहुरूपदर्शक रूप दिखाती है। जून में चीन की विशाल दीवार की यात्रा करना बेहतर साबित हो सकता है क्योंकि इस समय कोई घरेलू छुट्टियाँ नहीं होती हैं। आप छुट्टियों से संबंधित भीड़ से बच सकते है और होटल के कमरे और पर्यटन स्थल पर इस समय हम कुछ छूट का आनंद ले सकते है।

लोकप्रिय अफ़वाहों के विपरीत, आप अंतरिक्ष से नग्न आंखों से चीन की विशाल दीवार नहीं देख सकते हैं। नासा के अनुसार, हालांकि, इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन से ली गई तस्वीरों ने आदर्श परिस्थितियों में दीवार के वर्गों को दर्शाया है। रडार इमेजरी का उपयोग करके दीवार का स्पष्ट रूप से फोटो खिंचा जा सकती है।

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चीन की दीवार का इतिहास व जानकारी Great Wall Of China In Hindi

चीन की दीवार Great Wall Of China In Hindi विश्व की सबसे लम्बी दीवार है। चीन की दीवार (Cheen Ki Deewar) का इतिहास और जानकारी इस पोस्ट में है। इसे ग्रेट वॉल ऑफ चाइना भी कहते है। यह चीन देश के उत्तर में मौजूद है। चीन की दीवार खुद में एक स्वर्णिम इतिहास समेटे हुए है। इस महान दीवार को अंतरिक्ष से भी देखा जा सकता है। ग्रेट वाल ऑफ चाइना के बारे में रोचक जानकारी देने का प्रयास इस आर्टिकल “Great Wall Of China History In Hindi” में है

चीन की दीवार का इतिहास Great Wall Of China History In Hindi

1. चीन की दीवार ( Cheen Ki Deewar ) विश्व के 7 अजूबों में भी शामिल है। चीन की दीवार केवल मिट्टी, ईट और पत्थर से बनी हुई है। ईंटों को चावल के पाउडर से आपस में चिपकाया गया था जैसे वर्तमान में सीमेंट का उपयोग किया जाता है। आज कई सदियों बाद भी यह मजबूती से जमी हुई है।

2. इस महान दीवार को बनाने में कई सौ वर्ष लगे थे। 5 वीं सदी ईसा पूर्व से 16 वीं सदी तक चीन की दीवार को बनाया गया था। इस दौरान कई राजवंशों का शासन आया और चला गया। ग्रेट वाल ऑफ चाइना को निर्मित करने में उस समय के सभी चीनी शासकों का योगदान था।

3. चीन के शासकों ने दीवार को विदेशी उत्तरी हमलावरों से बचाने के लिए बनाया था। खासकर मंगोल आक्रमणकारियों से बचाव के लिए चीन की दीवार बनाई गई थी। बाद के वर्षों में यह दीवार केवल परिवहन का जरिया बनकर रह गई थी।

4.   चीन की दीवार किसने बनाई – चीनी शासक किन शी हुआंग ने चीन की दीवार की कल्पना की थी। इस कल्पना को साकार करने में करीब 2 हजार वर्ष लग गए थे। किन शी हुआंग के द्वारा बनाई गयी दीवार का कुछ ही हिस्सा बाकी है। इस दीवार का ज्यादातर भाग मिग राजवंश के शासकों ने 13 वीं सदी से 16 वीं सदी तक निर्मित किया था।

5. इस दीवार को बनाने में लाखों सैनिक, मजदूरों और कारीगरों ने मिलकर काम किया था। दीवार निर्माण के दौरान हजारों लोग मारे गए। इसका सबसे बड़ा कारण पहाड़ो की चोंटीयो पर पत्थरों को लाना था। इन मारे गए लोगो को दीवार में ही दफना दिया जाता था। इसलिए ग्रेट वॉल ऑफ चाइना को दुनिया का सबसे लम्बा कब्रिस्तान भी कहते है।

Cheen Ki Deewar In Hindi चीन की दीवार की जानकारी –

6. मजबूत और विशाल दीवार होने के बावजूद कई आक्रमणकारियों ने इसे तोड़ा था। वर्ष 1211 में मंगोल चंगेज खान ने चीन की दीवार को तोड़ा था। इतिहास में आता है कि चंगेज खान दीवार को तोड़कर चीन में घुस गया था और वहां के राज्यों पर कब्जा कर लिया था।

7. ग्रेट वॉल ऑफ चाइना की ऊंचाई हर जगह एक सी नही है। कही पर इस दीवार की ऊंचाई 35 फुट है तो कही पर केवल 8 फुट ही है।

8. चीन की दीवार की चौड़ाई इतनी ज्यादा है कि आसानी से 10 पैदल सैनिक एक साथ दीवार पर निकल सकते है। इस दीवार पर कई जगह सीढ़ियां भी बनी हुई है। यह दीवार कई जगहों पर पुल के रूप में भी है।

9. इस विशाल दीवार में जगह जगह करीब 7 हजार मीनारें भी बनाई गई है जिनका काम सीमा पर आए दुश्मनों पर नजर रखना था। देखा जाए तो चीन की दीवार किलेबंदीनुमा संरचना है।

10. चीन की विशाल दीवार हुशान प्रान्त से जियागुआन प्रान्त तक फैली हुई है। यह विशाल दीवार कई पहाड़ों, नदियों और जंगलो से होकर गुजरती है। यह दीवार सीधी ना होकर घूमी हुई है।

11. चीन की दीवार की लम्बाई –  6400 किलोमीटर है। यह दीवार अलग अलग खंडों में बनी हुई है। इसका अर्थ यह है कि चीन की दीवार में कई हिस्से है जिन्हें मिलाकर ग्रेट वॉल ऑफ चाइना बनी है। अगर इन खंडों के बीच की जगह को भी दीवार में शामिल करें तो दीवार की कुल लम्बाई 8848 किलोमीटर पड़ती है।

ग्रेट वॉल ऑफ चाइना Great Wall Of China In Hindi –

12. चीन की दीवार ( Great Wall Of China ) के कई हिस्से क्षतिग्रस्त हो चुके है जिसका कारण रखरखाव ना रखना और चोरी है। वहां के स्थानीय लोग इस दीवार की ईंट चुराकर घर का निर्माण करते है। इस कारण चीन की दीवार को खतरा है।

13. यूनेस्को ने ग्रेट वॉल ऑफ चाईना को वर्ष 1987 में विश्व धरोहर में शामिल किया था। विश्व के 7 अजूबों में यह दीवार आती है क्योंकि मानव निर्मित यह सबसे उम्दा और विशाल कलाकृति है। हर वर्ष करोडों पर्यटक चीन की दिवार को देखने आते है। वर्ष 1970 में ग्रेट वॉल ऑफ चाइना को आम पर्यटकों के लिए खोला गया था।

14. अगर आप चीन की दीवार  (Great Wall Of China) की यात्रा करना चाहते है तो मई से अक्टूबर का समय सबसे उत्तम है। सर्दियों में दीवार बर्फ से ढक जाती है जिससे यात्रा करना सम्भव नही है। चीनी भाषा में चीन की दीवार को “वान ली छांग छंग” कहा जाता है। इसका अर्थ दुनिया की सबसे लम्बी दीवार होता है।

यह भी पढ़े – 

  • 7 अजूबों के नाम व जानकारी
  • ताजमहल का इतिहास
  • लाल किला का इतिहास

नोट – इस पोस्ट Great Wall Of China In Hindi में चीन की दीवार (Cheen Ki Deewar) का इतिहास और ग्रेट वॉल ऑफ चाइना की जानकारी आपको कैसी लगी। यह आर्टिकल “Great Wall Of China History In Hindi” अच्छा लगा हो तो इसे शेयर भी करे।

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चीन की विशाल दीवार: 22 रोचक तथ्य

पूरी दुनिया में 7 अजूबे माने जाते हैं जिनमें भारत का ताजमहल, ग्रेट पिरामिड ऑफ़ गिज़ा, हैंगिंग गार्डन ऑफ़ बेबीलोन, और चीन की दीवार इत्यादि शामिल हैं. चीन की दीवार अपने निर्माण के समय, मजबूती और पुराने इतिहास के कारण विश्व प्रसिद्द है. आइये इस लेख में चीन की दीवार के बारे में कुछ रोचक तथ्य जानते हैं..

Hemant Singh

चीन की विशाल दीवार मिट्टी और पत्थर से बनी एक किलेनुमा दीवार है जिसे चीन के विभिन्न शासकों के द्वारा उत्तरी हमलावरों से रक्षा के लिए 5 वीं शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर 16 वीं शताब्दी तक बनवाया गया था. चीन की यह महान दीवार 2,300 से अधिक साल पुरानी है. यह दीवार दुनिया के सात अजूबों में गिनी जाती है.

आइये इस विश्व प्रसिद्द दीवार के बारे में कुछ और रोचक तथ्यों को जानते हैं .

1. चीन के पूर्व सम्राट किन शी हुआंग की कल्पना के बाद दी वार बनाने में करीब 2000 साल लगे.

2. इस दीवार का निर्माण किसी एक सम्राट द्वारा नहीं किया गया बल्कि कई सम्राटों और राजाओं द्वारा कराया गया था.

3. इस दीवार को 1970 में आम पयर्टकों के लिए खोला गया था.

4. इस दीवार की लंबाई 6400 किमी. है, ये दुनिया में इंसानों की बनाई सबसे बड़ी संरचना है.

5. दीवार को बनाते समय इसके पत्थरों को जोड़ने के लिए चावल के आटे का इस्तेमाल क‌िया गया था.

6. यह पूरी एक दीवार नहीं है बल्कि छोटे-छोटे हिस्‍सों से मिलकर बनी है.

7. इस दीवार में कई खाली जगहें भी हैं यदि इन खाली जगहों को भी जोड़ दिया जाये तो इसकी लम्बाई 8848 किमी. हो जाएगी.

8. इस दीवार की चौड़ाई इतनी हैं कि एक साथ 5 घुड़सवार या 10 पैदल सैनिक एक साथ गस्त कर सकते हैं.

9. इस दीवार की ऊंचाई एक समान नही है किसी जगह यह 9 फुट ऊंची है तो कहीं पर 35 फुट ऊंची है.

10. इस दीवार से दूर से आते शत्रुओं पर नजर रखने के लिए कई जगह मीनारें भी बनायीं गयी थीं.

11. चीन की विशाल दीवार को दुश्मनों से देश की रक्षा के लिए बनाया गया था लेकिन बाद में इसका इस्तेमाल परिवहन और सामान को एक जगह से दूसरी जगह पर पहुँचाने के लिए किया जाने लगा था.

12. इस चीनी दीवार को देश की रक्षा के लिए बनाया गया था लेकिन यह दीवार अजेय न रह सकी क्योंकि चंगेज खान ने 1211 में इसे तोडा और पार कर चीन पर हमला किया था.

13. चीनी दीवार को यूनेस्को ने 1987 में विश्व धरोहर सूची में शामिल किया था.

14. 1960-70 के दशक में लोगों ने इस दीवार से ईंटें निकालकर अपने लिए घर बनाने शुरू कर दिए थे लेकिन बाद में सरकार ने सुरक्षा बाधा दी थी. हालाँकि चोरी आज भी होती है और तस्कर बाजार में इसकी एक ईंट की कीमत 3 पौंड मानी जाती है.

16. ग्रेट वॉल ऑफ चायना का एक तिहाई हिस्‍सा गायब हो चुका है. इसका कारण दीवार के सही रखरखाव की कमी के अलावा मौसम का प्रभाव और चोरी भी है.

17. ऐसा कहा जाता है कि इस दीवार को बनाने में जो मजदूर कड़ी मेहनत नही करते थे उन्हें इसी दीवार में दफना दिया जाता था.

18. आकंड़ों में अनुसार इसे बनाने में करीब 10 लाख लोगों ने जान गवाई थी. इसी कारण इस दीवार को दुनिया को सबसे बड़ा कब्रिस्तान भी कहा जाता है.

19. यह एक मात्र मानव निर्मित संरचना है जिसे अंतरिक्ष से भी देखा जा सकता है.

great wall china space

20. चीनी भाषा में इस दीवार को ‘ वान ली छांग छंग’ कहा जाता है जिसका मतलब होता है ‘चीन की विशाल दीवार’

21. लगभग 1 करोड़ पयर्टक हर साल इस दीवार को देखने के लिए आते हैं.

touorists at wall of china

22. बराक ओबामा, रिचर्ड निक्सन, रानी एलिज़ाबेथ II और जापान के सम्राट अकिहितो सहित दुनियाभर के करीब 400 नेता इस दीवार को देख चुके हैं.

तो ये थे चीन की विशाल दीवार के बारे में 22 बहुत ही रोचक तथ्य. उम्मीद है कि चीन की सरकार इस विश्व विरासत स्थल की सुरक्षा के लिए और पुख्ता कदम उठाएगी ताकि इसे आने वाली पीढ़ियों के लिए भी संभाल कर रखा जा सके.

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Essay on Earthquake : कैसे लिखें भूकंप पर निबंध

essay of china in hindi

  • Updated on  
  • अगस्त 22, 2024

Essay on Earthquake in Hindi

भूकंप को समझना छात्रों के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उन्हें प्राकृतिक आपदाओं के बारे में आवश्यक ज्ञान प्रदान करता है। यह ज्ञान न केवल छात्रों की जागरूकता को बढ़ावा देता है बल्कि भूकंपीय घटनाओं के दौरान प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया करने के लिए उन्हें तैयार भी करता है। भूकंप छात्रों को टेक्टोनिक प्लेट्स, भूकंपीय तरंगों और रिक्टर स्केल जैसी अवधारणाओं के बारे में परिचित कराता है, जिससे छात्रों में भूवैज्ञानिक विज्ञानों की गहरी समझ विकसित होती है। भूकंप विषय पर विद्यालय में निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है जिसमें भूकंप पर निबंध लिखने को दिया जाता है। इस ब्लॉग में Essay on Earthquake in Hindi के कुछ सैंपल दिए गए हैं आप जिनकी मदद ले सकते हैं।

This Blog Includes:

भूकंप पर 100 शब्दों में निबंध, भूकंप पर 200 शब्दों में निबंध, भूकंप के अन्य महत्वपूर्ण प्रकार, भूकंप से होने वाले प्रभाव, उपसंहार .

भूकंप पृथ्वी की सतह का हिलना होता है जो अर्थ क्रस्ट में अचानक ऊर्जा के निकलने के कारण होता है। इससे इमारतों और बुनियादी ढांचे को गंभीर नुकसान हो सकता है, जिससे यह एक खतरनाक प्राकृतिक आपदा बन जाती है। भूकंप की तीव्रता उसके परिमाण और भूकंप के केंद्र से दूरी पर निर्भर करती है। भूकंप भूस्खलन, आग और सुनामी को भी जन्म देते हैं, जिससे और भी अधिक विनाश हो सकता है। केवल कुछ सेकंड तक चलने के बावजूद, भूकंप का प्रभाव विनाशकारी हो सकता है, जो इस बात पर प्रकाश डालता है कि मनुष्य प्रकृति की शक्तियों के प्रति कितने कमजोर हैं। इमरजेंसी किट के साथ तैयार रहना और सुरक्षा प्रक्रियाओं को जानना ऐसी घटनाओं के दौरान जोखिम को कम करने और जान बचाने में मदद कर सकता है।

भूकंप प्राकृतिक विपत्ति है जो कई खतरे लेकर आती है। भूकंप के कारण इमारतें ढह सकती हैं, जिससे लोग अंदर फंस सकते हैं। जबकि मामूली भूकंप आना आम बात है, बड़े भूकंप से गंभीर कंपन हो सकता है। यह कंपन उस बिंदु से शुरू होता है जहाँ चट्टान सबसे पहले टूटती है, जिसे हाइपोसेंटर या फ़ोकस कहा जाता है।

जब भूकंप शुरू होता है और आप अंदर होते हैं, तो ज़मीन पर लेट जाएँ और सुरक्षित रहने के लिए अपना सिर ढक लें। भूकंप की तीव्रता भूकंपीय घटना के दौरान निकलने वाली ऊर्जा का माप है।

भूकंप के प्रकार

भूकंप तीन प्रकार के होते हैं, जैसे कि-

  • उथले भूकंप: ये पृथ्वी की सतह के करीब आते हैं। ये आमतौर पर कम शक्तिशाली होते हैं लेकिन फिर भी काफी नुकसान पहुँचा सकते हैं।
  • मध्यवर्ती भूकंप: इनका फ़ोकस सतह और पृथ्वी के मेंटल के बीच स्थित होता है। ये आमतौर पर उथले भूकंपों से ज़्यादा शक्तिशाली होते हैं।
  • गहरे भूकंप: ये पृथ्वी की पपड़ी के नीचे मेंटल में आते हैं। ये सबसे शक्तिशाली होते हैं और सतह पर भी नुकसान पहुँचा सकते हैं।

इन प्रकारों को समझने से हमें प्रत्येक प्रकार के भूकंप से जुड़े संभावित प्रभाव और खतरों को पहचानने में मदद मिलती है। विभिन्न भूकंपों की प्रकृति और प्रतिक्रिया के तरीके को जानकर, हम उनके प्रभावों से खुद को बेहतर तरीके से तैयार और सुरक्षित कर सकते हैं।

भूकंप पर 500 शब्दों में निबंध

भूकंप पर 500 शब्दों (Essay on Earthquake in Hindi) में निबंध नीचे दिया गया है-

आसान शब्दों में कहें तो पृथ्वी की सतह के हिलने को भूकंप कहते हैं। यह अचानक होता है और बहुत भयावह हो सकता है। भूकंप एक गंभीर प्राकृतिक आपदा है जो इमारतों को बहुत नुकसान पहुंचा सकती है और लोगों को नुकसान पहुंचा सकती है। कुछ भूकंप छोटे होते हैं और शायद ही कभी ध्यान में आते हैं, जबकि कुछ बहुत शक्तिशाली और विनाशकारी होते हैं। बड़े भूकंप आमतौर पर बहुत खतरनाक होते हैं और बहुत तबाही मचा सकते हैं। भूकंप को विशेष रूप से खतरनाक बनाने वाली बात यह है कि हम यह अनुमान नहीं लगा सकते कि वे कब आएंगे।

भूकंप के अन्य महत्वपूर्ण प्रकार नीचे दिए गए हैं-

  • टेक्टोनिक भूकंप: पृथ्वी की पपड़ी चट्टानों के बड़े-बड़े स्लैब से बनी है, जिन्हें टेक्टोनिक प्लेट्स कहा जाता है। ये प्लेटें ऊर्जा संग्रहित करती हैं, जिसके कारण वे एक-दूसरे से दूर या एक-दूसरे की ओर बढ़ती हैं। समय के साथ, यह गति प्लेटों के बीच दबाव बनाती है। जब दबाव बहुत अधिक हो जाता है, तो यह एक फॉल्ट लाइन बनाता है। इस गड़बड़ी के केंद्र को फोकस कहा जाता है। ऊर्जा तरंगें फोकस से सतह तक जाती हैं, जिससे जमीन हिलती है।
  • टेक्टोनिक भूकंप, जो तब होता है जब मैग्मा हिलता है या वापस ले लिया जाता है।
  • दीर्घ-अवधि के भूकंप, जो पृथ्वी की परतों के भीतर दबाव में बदलाव के कारण होते हैं।
  • ढहने वाले भूकंप: ये गुफाओं और खदानों में होते हैं और आमतौर पर कमज़ोर होते हैं। भूमिगत विस्फोटों के कारण अक्सर खदानें ढह जाती हैं, जिससे भूकंपीय तरंगें पैदा होती हैं, जिसके परिणामस्वरूप भूकंप उत्पन्न होता है।
  • विस्फोटक भूकंप: ये परमाणु हथियार परीक्षणों के कारण होते हैं। जब कोई परमाणु हथियार फटता है, तो उससे बहुत ज़्यादा ऊर्जा निकलती है, जिससे भूकंप पैदा होता है।

सबसे पहले भूकंप का सबसे ज़्यादा ध्यान देने योग्य प्रभाव ज़मीन का हिलना है। यह कंपन ज़मीन के टूटने का कारण बन सकती है, जो पृथ्वी की सतह का टूटना है। ज़मीन के टूटने और हिलने से इमारतों और बुनियादी ढांचे को गंभीर नुकसान हो सकता है। भूकंप की गंभीरता इसकी तीव्रता, भूकंप के केंद्र से दूरी और स्थानीय भूगोल पर निर्भर करती है। भूकंप का एक और बड़ा प्रभाव भूस्खलन है, जो तब होता है जब ढलान हिलने के कारण अस्थिर हो जाते हैं। 

भूकंप मिट्टी के द्रवीकरण का भी कारण बन सकता है। ऐसा तब होता है जब पानी से भरी मिट्टी अपनी ताकत खो देती है और तरल की तरह व्यवहार करती है, जिससे इमारतें और अन्य संरचनाएँ डूब जाती हैं। भूकंप के दौरान आग लग सकती है क्योंकि कंपन से बिजली और गैस लाइनों को नुकसान पहुँचता है। एक बार आग लग जाने के बाद, इसे रोकना बहुत मुश्किल हो सकता है। भूकंप सुनामी का कारण बन सकते हैं, जो पानी के नीचे भूकंप के कारण पानी की अचानक गति से उत्पन्न होने वाली बड़ी समुद्री लहरें हैं। सुनामी 600-800 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से आ सकती है और तट पर पहुँचने पर भारी तबाही मचा सकती है।

भूकंप शक्तिशाली और भयावह प्राकृतिक घटनाएँ हैं जो इस बात पर प्रकाश डालती हैं कि मनुष्य प्रकृति के प्रति कितने संवेदनशील हैं। वे अचानक होने वाली घटनाएँ हैं जो सभी को चौंका देती हैं। भले ही भूकंप केवल कुछ सेकंड तक रहता है, लेकिन यह बहुत अधिक नुकसान पहुंचा सकता है।

भूस्खलन ढलान की अस्थिरता के कारण होता है। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यह ढलान अस्थिरता भूकंप के कारण होती है।

लेकिन कुछ मामलों में, किसी भ्रंश के दोनों ओर की चट्टानें समय के साथ टेक्टोनिक बलों के कारण धीरे-धीरे विकृत हो जाती हैं।  भूकंप आमतौर पर तब आता है जब भूमिगत चट्टान अचानक टूट जाती है और किसी भ्रंश के साथ तीव्र गति से गति होती है।  ऊर्जा के अचानक निकलने से भूकंपीय तरंगें उत्पन्न होती हैं, जिनसे ज़मीन हिलती है।

हम प्राकृतिक भूकंपों को आने से तो नहीं रोक सकते, लेकिन खतरों की पहचान करके, सुरक्षित संरचनाओं का निर्माण करके, तथा भूकंप सुरक्षा पर शिक्षा प्रदान करके हम उनके प्रभावों को काफी हद तक कम कर सकते हैं।  प्राकृतिक भूकंपों के लिए तैयारी करके हम मानव जनित भूकंपों के खतरे को भी कम कर सकते हैं।

उम्मीद है आपको Essay on Earthquake in Hindi के संदर्भ में हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। इसी तरह के अन्य निबंध पर ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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